Thursday, October 25, 2012

Murli [24-10-2012]-Hindi


मुरली सार:- “मीठे बच्चे- मनुष्य जो बाप को भूल दुबन (दलदल) में फंसे हुए हैं, उन्हें निकालने की मेहनत करो, विचार सागर मंथन कर सबको बाप का सत्य परिचय दो”
प्रश्न:- गीता को किस धर्म का शास्त्र कहेंगे? इसमें रहस्य-युक्त समझने की बात कौन सी है?
उत्तर:- गीता शास्त्र है – ब्राह्मण दैवी-देवता धर्म का शास्त्र। ब्राह्मण देवी-देवताए नम: कहा जात है। इसे सिर्फ देवता धर्म का शास्त्र नहीं कहेंगे क्योंकि देवताओं में तो यह ज्ञान है ही नहीं। ब्राह्मण यह गीता का ज्ञान सुनकर देवता बनते हैं, इसलिए ब्राह्मण देवी-देवता दोनों का ही यह शास्त्र है। यह कोई हिन्दू धर्म का शास्त्र नहीं कहा जाता। यह बहुत समझने की बातें हैं। गीता ज्ञान स्वयं निराकार शिवबाबा तुम्हें सुना रहे हैं, श्रीकृष्ण नहीं।
गीत:- न व हमसे जुदा होंगे…..
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विचार सागर मंथन कर मनुष्यों को दुबन (दलदल) से निकालना है। जो कुम्भकरण की नींद में सोये हुए हैं उन्हों को जगाना है।
2) सूक्ष्म अथवा स्थूल देहधारियों से बुद्धियोग निकाल एक निराकार बाप को याद करना है। सबका बुद्धियोग एक बाप से जुटाना है।
वरदान:- फ्राक-दिल बन अखुट खजानों से सबको भरपूर करने वाले मास्टर दाता भव
आप दाता के बच्चे मास्टर दाता हो, किसी से कुछ लेकर फिर देना-वह देना नहीं है। लिया और दिया तो यह बिजनेस हो गया। दाता के बच्चे फ्राक दिल बन देते जाओ। अखुट खजाना है, जिसको जो चाहिए वह देते भरपूर करते जाओ। किसी को खुशी चाहिए, स्नेह चाहिए, शान्ति चाहिए, देते चलो। यह खुला खाता है, हिसाब-किताब का खाता नहीं है। दाता की दरबार में इस समय सब खुला है इसलिए जिसको जितना चाहिए उतना दो, इसमें कंजूसी नहीं करो।
स्लोगन:- अपनी मन्सा वृत्ति को ऐसा पावरफुल बनाओ जो खराब भी अच्छा हो जाए।