Thursday, October 25, 2012

Murli [20-10-2012]-Hindi


मुरली सार:- ”मीठे बच्चे – तुम रूहानी ब्राह्मणों का आपस में बहुत-बहुत प्यार होना चाहिए। आपस में मिलकर राय निकालो कि कैसे सभी को सत्य बाप का परिचय दें”
प्रश्न:- बच्चे किस निश्चय के आधार पर अपना भाग्य ऊंचा बना सकते हैं?
उत्तर:- पहले जब बुद्धि में यह निश्चय बैठे कि यहाँ पढ़ाने वाला स्वयं परमात्मा है, उनसे ही हमें सौभाग्य लेना है तब पढ़ाई रोज़ पढ़ें और अपना सौभाग्य ऊंचा बना सकें। बाप की श्रीमत है कि बच्चे तुम्हें किसी भी हालत में रोज़ पढ़ना है। अगर क्लास में नहीं आ सकते हो तो भी घर में मुरली पढ़ो।
गीत:- तू प्यार का सागर है….
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) आपस में बहुत प्यार से रहना है, मिलकर राय निकालनी है कि किस युक्ति से हर एक तक बाप का सन्देश पहुंचायें।
2) यह विनाश का समय है इसलिए एक बाप से सच्ची प्रीत रखनी है। योग से आत्मा को पावन बनाना है।
वरदान:- दृढ़ता की शक्ति से सफलता प्राप्त करने वाले, प्रयोगशाली, त्रिकालदर्शी भव
बापदादा का वरदान है – जहाँ दृढ़ता है वहाँ सफलता है। तो दृढ़ता से कोई भी गुण वा शक्ति के प्रयोग का प्रोग्राम बनाओ और पहले स्वयं में सन्तुष्टता का अनुभव करो। दृढ़ संकल्प हो कि ”मुझे करना ही है”। दूसरों के अलबेलेपन का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। त्रिकालदर्शीपन की स्थिति के आसन पर बैठकर जैसा समय वैसी विधि से पहले स्वयं सिद्धि स्वरूप बनो, तब प्रयोगशाली आत्माओं का पावरफुल संगठन तैयार होगा और उस संगठन की किरणें बहुत कार्य करके दिखायेंगी।
स्लोगन:- सर्व की दुआयें प्राप्त करने वाले ही सन्तुष्टमणि हैं।