Friday, October 12, 2012

Murli [12-10-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम्हें पढ़ाई का बहुत कदर रखना है। बीमार हो, मरने पर भी हो तो भी क्लास में बैठो, कहा जाता ज्ञान अमृत मुख में हो तब प्राण तन से निकले'' 
प्रश्न: कई बच्चे भी बाप से बेमुख करने के निमित्त बन जाते हैं - कब और कैसे? 
उत्तर: जो आपस में भाई-बहनों से रूठकर पढ़ाई छोड़ देते हैं और गुरू के निंदक बन जाते हैं, उन्हें देख अनेक बाप से बेमुख हो जाते। आज अच्छा पढ़ते कल पढ़ाई छोड़ देते तो दूसरों को कह न सकें कि तुम पढ़ो। ऐसे बच्चे ऊंच पद से वंचित हो जाते हैं। 
गीत:- महफिल में जल उठी शमा.... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) घर का काम करते भी समय निकाल रूहानी सेवा जरूर करनी है। अपने को सर्विस बढ़ाने का जिम्मेवार समझना है। डिससर्विस नहीं करनी है। 
2) पढ़ाने वाला स्वयं सुप्रीम टीचर है इसलिए पढ़ाई का बहुत-बहुत कदर रखना है। किसी भी हालत में पढाई मिस नहीं करनी है। 
वरदान: बाप के साथ का अनुभव कर मेहनत को मोहब्बत में बदलने वाले परमात्म स्नेही भव 
बापदादा बच्चों को अपने स्नेह और सहयोग की गोदी में बिठाकर मंजिल पर ले जा रहे हैं। आप बच्चे सिर्फ परमात्म स्नेही बन गोद में समाये रहो तो मेहनत, मुहब्बत में बदल जायेगी। लवलीन होकर हर कार्य करो। बापदादा हर समय सर्व सम्बन्धों से आपके साथ हैं। सेवा में साथी है और स्थिति में साथ हैं। सर्व सम्बन्धों से साथ निभाने की आफर करते हैं, आप सिर्फ परमात्म स्नेही बनो और जैसा समय वैसे सम्बन्ध से साथ रहो तो अकेलापन फील नहीं होगा। 
स्लोगन: स्व-उन्नति और सेवा का बैलेन्स ही सफलता का साधन है।