मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - माया के विघ्न ज्ञान में नहीं, योग में पड़ते हैं, योग के बिना पढ़ाई की धारणा नहीं हो सकती, इसलिए जितना हो सके योग में रहने का पुरूषार्थ करो''
प्रश्न: बाबा गिरे हुए बच्चों को किस विधि से ऊपर उठा लेते हैं?
उत्तर: बाबा उन बच्चों की क्लास में महिमा करता, पुचकार 'प्यार' देता, हिम्मत दिलाता। बच्चे तुम तो बहुत अच्छे हो। तुम तो ज्ञान गंगा बन सकते हो। तुम विश्व का मालिक बनने वाले हो। मैं तो तुम्हें मुफ्त बादशाही देने आया हूँ। तुम फिर क्यों नहीं लेते? राहू का ग्रहण लगा है क्या? मुरली पढ़ो, योग में रहो तो ग्रहण उतर जायेगा। ऐसे हिम्मत दिलाने से बच्चे फिर से याद और पढ़ाई में लग जाते हैं। इस विधि से कई बच्चों की ग्रहचारी उतर जाती है।
गीत:- दूर देश का रहने वाला....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देह के सम्बन्धों को भूल अपने को अकेली आत्मा समझना है। बाप पर पूरा-पूरा बलि चढ़ना है, इसमें डरना नहीं है।
2) धर्मराज़ की सजाओं से बचने के लिए आज का काम कल पर नहीं छोड़ना है। पढ़ाई के आधार से बाप की ब्लैसिंग लेते रहना है।
वरदान: ''मैं और मेरा बाबा'' इस विधि द्वारा जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव करने वाले सहजयोगी भव
ब्राह्मण बनना अर्थात् देह, सम्बन्ध और साधनों के बन्धन से मुक्त होना। देह के सम्बन्धियों का देह के नाते से सम्बन्ध नहीं लेकिन आत्मिक सम्बन्ध है। यदि कोई किसी के वश, परवश हो जाते हैं तो बन्धन है, लेकिन ब्राह्मण अर्थात् जीवनमुक्त। जब तक कर्मेन्द्रियों का आधार है तब तक कर्म तो करना ही है लेकिन कर्मबन्धन नहीं, कर्म-सम्बन्ध है। ऐसा जो मुक्त है वो सदा सफलतामूर्त है। इसका सहज साधन है - मैं और मेरा बाबा। यही याद सहजयोगी, सफलतामूर्त और बन्धनमुक्त बना देती है।
स्लोगन: मैं और मेरेपन की अलाए (खाद) को समाप्त करना ही रीयल गोल्ड बनना है।
प्रश्न: बाबा गिरे हुए बच्चों को किस विधि से ऊपर उठा लेते हैं?
उत्तर: बाबा उन बच्चों की क्लास में महिमा करता, पुचकार 'प्यार' देता, हिम्मत दिलाता। बच्चे तुम तो बहुत अच्छे हो। तुम तो ज्ञान गंगा बन सकते हो। तुम विश्व का मालिक बनने वाले हो। मैं तो तुम्हें मुफ्त बादशाही देने आया हूँ। तुम फिर क्यों नहीं लेते? राहू का ग्रहण लगा है क्या? मुरली पढ़ो, योग में रहो तो ग्रहण उतर जायेगा। ऐसे हिम्मत दिलाने से बच्चे फिर से याद और पढ़ाई में लग जाते हैं। इस विधि से कई बच्चों की ग्रहचारी उतर जाती है।
गीत:- दूर देश का रहने वाला....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देह के सम्बन्धों को भूल अपने को अकेली आत्मा समझना है। बाप पर पूरा-पूरा बलि चढ़ना है, इसमें डरना नहीं है।
2) धर्मराज़ की सजाओं से बचने के लिए आज का काम कल पर नहीं छोड़ना है। पढ़ाई के आधार से बाप की ब्लैसिंग लेते रहना है।
वरदान: ''मैं और मेरा बाबा'' इस विधि द्वारा जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव करने वाले सहजयोगी भव
ब्राह्मण बनना अर्थात् देह, सम्बन्ध और साधनों के बन्धन से मुक्त होना। देह के सम्बन्धियों का देह के नाते से सम्बन्ध नहीं लेकिन आत्मिक सम्बन्ध है। यदि कोई किसी के वश, परवश हो जाते हैं तो बन्धन है, लेकिन ब्राह्मण अर्थात् जीवनमुक्त। जब तक कर्मेन्द्रियों का आधार है तब तक कर्म तो करना ही है लेकिन कर्मबन्धन नहीं, कर्म-सम्बन्ध है। ऐसा जो मुक्त है वो सदा सफलतामूर्त है। इसका सहज साधन है - मैं और मेरा बाबा। यही याद सहजयोगी, सफलतामूर्त और बन्धनमुक्त बना देती है।
स्लोगन: मैं और मेरेपन की अलाए (खाद) को समाप्त करना ही रीयल गोल्ड बनना है।