Friday, April 5, 2013

Murli [5-04-2013]-Hindi


मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-जैसे बाप गुप्त है ऐसे बाप का ज्ञान भी गुप्त है, तुम्हें दान वा सेवा भी गुप्त करना है, 
अहंकार आने से ताकत कम हो जाती है।'' 

प्रश्न:- ड्रामा की किस सीन को देखते हुए तुम्हें दु:ख नहीं हो सकता है-क्यों? 
उत्तर:- ड्रामा में जो महाभारी महाभारत की सीन है इसे देख तुम्हें दु:ख नहीं हो सकता। तुम जानते हो यह 
बाम्ब्स आदि बनने ही हैं। नैचुरल कैलेमिटीज़ भी आनी ही है। यह ड्रामा बना हुआ है। सब आत्मायें पुराने 
शरीर छोड़ शान्तिधाम जायें-यह तो अच्छा है ना। इसमें दु:ख की बात ही नहीं। जब विनाश हो तब तो 
मुक्ति-जीवनमुक्ति का गेट खुले, दु:खधाम बदल सुखधाम बने इसलिए तुम इससे डरते नहीं हो। 

गीत:- तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है... 

धारणा के लिए मुख्य सार :- 

1) बेहद ड्रामा के हर राज़ को बुद्धि में स्पष्ट रखना है। अपना रजिस्टर खराब होने नहीं देना है। 

2) हम गॉडली स्टूडेन्ट हैं, हमारा यह जीवन हीरे तुल्य है, अतीन्द्रिय सुख का गायन हमारा है-इस 
स्मृति में रहना है। कभी भी अहंकार में नहीं आना है। 

वरदान:- आने और जाने के अभ्यास द्वारा बन्धनमुक्त बनने वाले न्यारे, निर्लिपत भव 

सारे पढ़ाई अथवा ज्ञान का सार है - आना और जाना। बुद्धि में घर जाने और राज्य में आने की खुशी है। 
लेकिन खुशी से वही जायेगा जिसका सदा आने और जाने का अभ्यास होगा। जब चाहो तब अशरीरी 
स्थिति में स्थित हो जाओ और जब चाहो तब कर्मातीत बन जाओ - यह अभ्यास बहुत पक्का चाहिए। 
इसके लिए कोई भी बंधन अपनी तरफ आकर्षित न करे। बंधन ही आत्मा को टाइट कर देता है और 
टाइट वस्त्र को उतारने में खिंचावट होती है इसलिए सदा न्यारे, निर्लिप्त रहने का पाठ पक्का करो। 

स्लोगन:- सुख के खाते से सम्पन्न रहो तो आपके हर कदम से सबको सुख की अनुभूति होती रहेगी।