Wednesday, April 24, 2013

Murli [24-04-2013]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-इस कलियुगी दुनिया का सुख काग विष्टा के समान है, यह दुनिया अब गई 
कि गई इसलिए इससे लगाव नहीं रखना है, आसक्ति निकाल देनी है'' 

प्रश्न:- किन बच्चों की दिल इस पुरानी दुनिया से नहीं लग सकती है? 
उत्तर:- जो आज्ञाकारी, वफादार, निश्चयबुद्धि बच्चे हैं उनकी दिल इस पुरानी दुनिया से लग नहीं 
सकती क्योंकि उनकी बुद्धि में रहता यह तो विनाश हुई कि हुई। यह तिलसम (जादू) का खेल है, 
माया का भभका है। इसका अब विनाश होना ही है। डैम फटेंगे, अर्थक्वेक होगी, सागर धरनी को 
हप करेगा.... यह सब होना है, नथिंगन्यु। स्वीट होम, स्वीट राजधानी याद है तो इस दुनिया से 
दिल नहीं लग सकती। 

गीत:- जिसका साथी है भगवान... 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) इस दुनिया में स्वयं को मेहमान समझना है। देही-अभिमानी बन पुरानी दुनिया और 
पुरानी देह से उपराम रहना है। 

2) योग से आत्मा और शरीर रूपी बर्तन साफ करना है। यह शरीर काम का नहीं है इसलिए 
इसमें ममत्व नहीं रखना है। 

वरदान:- सन्तुष्टता के सर्टीफिकेट द्वारा भविष्य राज्य-भाग्य का तख्त प्राप्त करने वाले सन्तुष्ट मूर्ति भव 

सन्तुष्ट रहना है और सर्व को सन्तुष्ट करना है -यह स्लोगन सदा आपके मस्तक रूपी बोर्ड पर लिखा 
हुआ हो क्योंकि इसी सर्टीफिकेट वाले भविष्य में राज्य-भाग्य का सर्टीफिकेट लेंगे। तो रोज़ 
अमृतवेले इस स्लोगन को स्मृति में लाओ। जैसे बोर्ड पर स्लोगन लिखते हो ऐसे सदा अपने 
मस्तक के बोर्ड पर यह स्लोगन दौड़ाओ तो सभी सन्तुष्ट मूर्तियां हो जायेंगे। जो सन्तुष्ट हैं 
वह सदा प्रसन्न हैं। 

स्लोगन:- आपस में स्नेह और सन्तुष्टता सम्पन्न व्यवहार करने वाले ही सफलता मूर्त बनते हैं।