मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-ज्ञान अमृत है और योग अग्नि है, ज्ञान और योग से
तुम्हारे सब दु:ख-दर्द दूर हो जायेंगे''
प्रश्न:- कौन सा रस ज्ञान से प्राप्त होता है, भक्ति से नहीं?
उत्तर:- जीवनमुक्ति का रस। भक्ति से किसी को भी जीवनमुक्ति का रस नहीं मिल
गीत:- भोलेनाथ से निराला...
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) हम राजॠषि हैं। स्वयं भगवान हमें राजयोग सिखाकर राजाई का वर्सा देते हैं,
2) योग अग्नि से विकर्मों को दग्ध कर सब बीमारियों से सदा के लिए मुक्त होना है।
वरदान:- कर्मभोग को कर्मयोग में परिवर्तन कर सेवा के निमित्त बनने वाले भाग्यवान भव
तन का हिसाब-किताब कभी प्राप्ति में विघ्न अनुभव न हो। तन कभी भी सेवा से वंचित
स्लोगन:- दृष्टि में रहम और शुभ भावना हो तो अभिमान व अपमान की दृष्टि समाप्त हो जायेगी।
प्रश्न:- कौन सा रस ज्ञान से प्राप्त होता है, भक्ति से नहीं?
उत्तर:- जीवनमुक्ति का रस। भक्ति से किसी को भी जीवनमुक्ति का रस नहीं मिल
सकता। बाप जब आते हैं तो बच्चों को जो डायरेक्शन देते, वही ज्ञान है उसी पर
चलने से स्वर्ग की राजाई मिल जाती है।
गीत:- भोलेनाथ से निराला...
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) हम राजॠषि हैं। स्वयं भगवान हमें राजयोग सिखाकर राजाई का वर्सा देते हैं,
इस नशे में रहना है।
2) योग अग्नि से विकर्मों को दग्ध कर सब बीमारियों से सदा के लिए मुक्त होना है।
इस जन्म के कर्मभोग को याद में रह चुक्तू करना है।
वरदान:- कर्मभोग को कर्मयोग में परिवर्तन कर सेवा के निमित्त बनने वाले भाग्यवान भव
तन का हिसाब-किताब कभी प्राप्ति में विघ्न अनुभव न हो। तन कभी भी सेवा से वंचित
होने नहीं दे। भाग्यवान आत्मा कर्मभोग के समय भी किसी न किसी प्रकार से सेवा के
निमित्त बन जाती है। कर्मभोग चाहे छोटा हो या बड़ा, उसकी कहानी का विस्तार नहीं करो,
उसे वर्णन करना माना समय और शक्ति व्यर्थ गंवाना। योगी जीवन माना कर्मभोग को
कर्मयोग में परिवर्तन कर देना-यही है भाग्यवान की निशानी।
स्लोगन:- दृष्टि में रहम और शुभ भावना हो तो अभिमान व अपमान की दृष्टि समाप्त हो जायेगी।