Thursday, November 29, 2018

30-11-2018 प्रात:मुरली

30-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम ब्राह्मणों का यह नया झाड़ है, इसकी वृद्धि भी करनी है तो सम्भाल भी करनी है क्योंकि नये झाड़ को चिड़ियायें खा जाती हैं''
प्रश्नः-
ब्राह्मण झाड़ में निकले हुए पत्ते मुरझाते क्यों हैं? कारण और निवारण क्या है?
उत्तर:-
बाप जो ज्ञान के वन्डरफुल राज़ सुनाते हैं वह न समझने के कारण संशय उत्पन्न होता है इसलिए नये-नये पत्ते मुरझा जाते हैं फिर पढ़ाई छोड़ देते हैं। इसमें समझाने वाले बच्चे बहुत होशियार चाहिए। अगर कोई संशय उठता है तो बड़ों से पूछना चाहिए। उत्तर नहीं मिलता तो बाप से भी पूछ सकते हैं।
गीत:-
प्रीतम आन मिलो........  
ओम् शान्ति।
गीत तो बच्चों ने बहुत बार सुने हैं, दु:ख में भगवान् को सभी बुलाते हैं। तुम्हारे पास तो वह बैठे हैं। तुमको सभी दु:खों से लिबरेट कर रहे हैं। तुम जानते हो बरोबर दु:खधाम से सुखधाम ले जाने वाला सुखधाम का मालिक बतला रहे हैं। वह आया हुआ है, तुम्हारे सम्मुख बैठा हुआ है और राजयोग सिखला रहा है। यह कोई मनुष्य का काम नहीं। तुम कहेंगे परमपिता परमात्मा ने हमको मनुष्य से देवता बनाने के लिये राजयोग सिखलाया है। मनुष्य, मनुष्य को देवता नहीं बना सकते। मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार.... यह किसकी महिमा है? बाबा की। बरोबर देवतायें तो सतयुग में होते हैं। इस समय देवतायें होते ही नहीं। तो जरूर स्वर्ग की स्थापना करने वाला ही मनुष्य को देवता बनायेगा। परमपिता परमात्मा जिसको शिव भी कहते हैं, उनको यहाँ आना पड़े पतितों को पावन बनाने। अब वह आये कैसे? पतित दुनिया में कृष्ण का भी तन मिल न सके। मनुष्य तो मूंझे हुए हैं। अब तुम बच्चे सम्मुख सुन रहे हो। तुम इस दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी को जानते हो। हिस्ट्री के साथ जॉग्राफी जरूर होती है और हिस्ट्री-जॉग्राफी होती है मनुष्य सृष्टि में। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर की, सूक्ष्मवतन की कभी हिस्ट्री-जॉग्राफी नहीं कहेंगे। वह है सूक्ष्मवतन। वहाँ तो है मूवी। टॉकी तो यहाँ है। अब बाबा तुम बच्चों को सारी दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी और मूलवतन का समाचार, जिसको तीन लोक कहते हैं सब सुनाते हैं। अब तुम ब्राह्मणों का नया झाड़ लगा है। इसको झाड़ कहा जाता है। दूसरे जो मठ-पंथ हैं उनको झाड़ नहीं कहेंगे। भल क्रिश्चियन लोग हैं वह जानते हैं कि क्रिश्चियन ट्री अलग है लेकिन उनको यह पता नहीं है कि सभी टाल-टालियां इस बड़े झाड़ से निकली हुई हैं। समझाना चाहिए मनुष्य सृष्टि कैसे पैदा होगी। मात-पिता फिर बालक.... वह भी सब इकट्ठे तो नहीं निकलेंगे। दो से चार, पांच पत्ते होते हैं फिर कोई को तो चिड़िया भी खा जाती है। यहाँ भी चिड़िया खा जाती हैं। यह बहुत छोटा झाड़ है। धीरे-धीरे वृद्धि को पायेंगे, जैसे पहले पाया है। तुम बच्चों को अब कितनी नॉलेज है। तुम त्रिकालदर्शी हो तीनों कालों को जानने वाले हो, त्रिलोकीनाथ हो अर्थात् तीनों लोकों को जानने वाले हो। लक्ष्मी-नारायण को त्रिलोकीनाथ, त्रिकालदर्शी नहीं कहेंगे। मनुष्य फिर कृष्ण को त्रिलोकीनाथ कहते हैं। जो सर्विस करेंगे उनकी प्रजा बनेगी। अपना वारिस भी बनाना है, प्रजा भी बनानी है। तो यह बुद्धि में होना चाहिए - हम त्रिलोकीनाथ हैं। यह बातें बड़ी वन्डरफुल हैं। बच्चे पूरी रीति समझा नहीं सकते तो कन्स्ट्रक्शन के बदले डिस्ट्रक्शन कर लेते हैं। निकले हुए पत्तों को मुरझा देते हैं फिर पढ़ाई को छोड़ देते हैं। हम कहेंगे कल्प पहले भी ऐसा हुआ था, बीती सो बीती देखो। अब तुम बच्चे सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जान गये हो, हिस्ट्री और जॉग्राफी जानते हो। बाकी मनुष्य बातें तो बहुत बनाते हैं ना, क्या-क्या लिखते हैं, कैसे नाटक बनाते हैं!

भारत में बहुतों को अवतार मानते हैं। भारत ने ही अपना बेड़ा गर्क किया है। अब तुम बच्चे खास भारत को, आम दुनिया को सैलवेज करते हो। यह दुनिया का चक्र फिरता है, हम ऊपर होंगे तो नर्क नीचे होगा। जैसे सूर्य उतरता है तो कहेंगे समुद्र के नीचे जाता है। परन्तु जाता थोड़ेही है। समझते हैं द्वारिका आदि डूब गई। मनुष्यों की बुद्धि भी वन्डरफुल है ना। अब तुम कितने ऊंच बनते हो। कितनी खुशी होनी चाहिए। दु:ख के समय तुमको लॉटरी मिल रही है। देवताओं को तो मिली हुई है। यहाँ तुमको दु:ख से फिर अथाह सुख मिलते हैं। कितनी खुशी होती है, भविष्य 21 जन्मों लिए हम स्वर्ग के मालिक बनेंगे।

मनुष्य कहते हैं गीता का ज्ञान तो सतसंग है। कितने सतसंग सांई बाबा आदि के हैं। बहुत दुकानदारी है। यह तो एक ही हट्टी है ब्रह्माकुमारियों की। जगत अम्बा है ब्रह्मा की मुख वंशावली। सरस्वती ब्रह्मा की बेटी मशहूर है। तुम जानते हो मात-पिता से हमें सुख घनेरे मिले थे। अब वह मात-पिता मिला हुआ है। बहुत सुख घनेरे दे रहे हैं। अच्छा, मात-पिता को जन्म देने वाला कौन? शिवबाबा। हमको रत्न शिवबाबा से मिलते हैं। तुम हो गये पोत्रे। हम अब सुख घनेरे उस बेहद के बाप से, ब्रह्मा सरस्वती, मात-पिता द्वारा ले रहे हैं। देने वाला वह है। कितनी सहज बात है। फिर समझाना है हम इस भारत को स्वर्ग बनाते हैं। फिर सुख घनेरे जाकर पायेंगे। हम भारत के सेवक ठहरे। तन, मन, धन से हम सेवा करते हैं। गांधी को भी मदद करते थे ना। तुम समझा सकते हो यादव, कौरव, पाण्डव क्या करते थे? पाण्डवों की तरफ तो है परमपिता परमात्मा। पाण्डव हैं विनाश काले प्रीत बुद्धि, कौरव और यादव हैं विनाश काले विपरीत बुद्धि। जो परमपिता परमात्मा को मानते ही नहीं। ठिक्कर-भित्तर में ठोक देते हैं। तुम्हारी उनके सिवाए और कोई के साथ प्रीत नहीं है। तो बहुत हर्षित रहना चहिए। नाखून से लेकर चोटी तक खुशी रहनी चाहिए। बच्चे तो बहुत हैं ना। तुम मात-पिता द्वारा सुनते हो तो तुमको खुशी होती है। सारी सृष्टि में हमारे जैसा सौभाग्यशाली कोई हो नहीं सकता! हमारे में भी कोई पद्मापद्म भाग्यशाली, कोई सौभाग्यशाली, कोई भाग्यशाली और कोई दुर्भाग्यशाली भी हैं। जो आश्चर्यवत् भागन्ती हो जाते हैं उनको कहेंगे महान् दुर्भाग्य-शाली। कोई न कोई कारण से बाप को फारकती दे देते हैं। बाप तो बहुत मीठा है। समझते हैं शिक्षा दूँ तो कहाँ फारकती न दे देवे। समझाते हैं तुम विकार में जाकर कुल का नाम बदनाम करते हो। अगर नाम बदनाम करेंगे तो बहुत सजायें खानी पड़ेंगी। उसे कहा जायेगा सतगुरू का निंदक...... उन्होंने फिर अपने लौकिक गुरू के लिए समझ लिया है। अबलाओं को पुरुष भी डराते हैं। अमरनाथ बाबा अभी तुमको अमरकथा सुना रहे हैं। बाबा कहते हैं मैं तो टीचर, सर्वेन्ट हूँ ना। टीचर के पांव धोकर पीते हैं क्या? बच्चे जो मालिक बनने वाले हैं क्या हम उनसे पांव धुलाऊं? नहीं। गाया भी जाता है निराकार, निरहंकारी। यह भी उनके संग में निरहंकारी बन गया है।

अबलाओं पर अत्याचार भी गाया हुआ है। कल्प पहले भी अत्याचार हुए थे। रक्त की नदियां बहेंगी, पाप का घड़ा भरेगा। अभी तुम योगबल से बेहद की बादशाही लेते हो। तुम जानते हो हम बाप से अटल-अखण्ड बादशाही लेते हैं। हम तो सूर्यवंशी बनेंगे। हाँ, इसमें हिम्मत भी चाहिए। अपना मुँह देखते रहो-हमारे में कोई विकार तो नहीं हैं। कोई भी बात न समझो तो बड़ों से पूछो, अपना संशय मिटाओ। अगर ब्राह्मणी संशय मिटा नहीं सकती तो फिर बाबा से पूछो। अभी तो तुम बच्चों को बहुत कुछ बातें समझने की हैं। जहाँ तक जियेंगे बाबा समझाते रहेंगे। बोलो, अभी तो हम पढ़ रहे हैं, बाबा से हम पूछेंगे या तो बोलो यह बातें अब तक बाबा ने समझाई नहीं हैं। आगे चलकर समझायेंगे, फिर पूछना। बहुत प्वाइंट्स निकलती रहती हैं। कोई कहेंगे लड़ाई का क्या होगा? बाबा त्रिकालदर्शी हैं समझा सकते हैं, परन्तु अभी तो बाबा ने बतलाया नहीं है। अर्जी हमारी, मर्जी उनकी। अपने को छुड़ा लेना चाहिए।

गार्डन में बाबा ने बच्चों से प्रश्न पूछा कि बाबा है ज्ञान का सागर तो जरूर वह ज्ञान डांस करता होगा। अच्छा, जबकि भक्ति मार्ग में शिवबाबा सबकी मनोकामनायें पूरी करने का पार्ट बजाते हैं तो उस समय उनको यह संकल्प होगा कि हमको भारत में संगम पर जाकर बच्चों को यह राजयोग सिखलाना है? स्वर्ग का मालिक बनाना है? यह संकल्प उठेगा वा जब आने का समय होगा तब संकल्प उठेगा?

विचार है यह संकल्प नहीं होगा। भल उसमें ज्ञान मर्ज है परन्तु इमर्ज तब होता है जब आने का समय होता है। ऐसे तो हमारे में भी 84 जन्मों का पार्ट मर्ज है ना। गाया भी जाता है भगवान् को नई सृष्टि रचने का संकल्प उठा, सो तो जब समय होगा तब संकल्प चलेगा। वह भी ड्रामा में बंधायमान है। यह बहुत गुह्य बातें हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

रात्रि-क्लास 13.1.69

बच्चे जब यहाँ आकर बैठते हैं तो बाप पूछते हैं बच्चे शिवबाबा को याद करते हो? फिर विश्व की बादशाही को याद करते हो? बेहद के बाप का नाम शिव है। फिर भाषा के कारण अलग-अलग नाम रख देते हैं। जैसे बम्बई में बबुलनाथ कहते हैं क्योंकि वह काँटों को फूल बनाते हैं। सतयुग में हैं फूल, यहाँ सभी हैं काँटे। तो बाप रूहानी बच्चों से पूछते हैं बेहद के बाप की याद में कितना समय रहते हो? उनका नाम है शिव, कल्याणकारी। तुम जितना याद करेंगे उतना जन्म-जन्मान्तर के पाप कट जायेंगे। सतयुग में पाप होते ही नहीं। वह है पुण्यात्माओं की दुनिया, यह है पापात्माओं की दुनिया। पाप कराने वाले हैं 5 विकार। सतयुग में रावण होता ही नहीं। यह है सारी दुनिया का दुश्मन। इस समय सारी दुनिया पर रावण का राज्य है। सभी दु:खी, तमोप्रधान हैं तब कहते हैं बच्चों मामेकम् याद करो। यह गीता के अक्षर हैं। बाप खुद कहते हैं देह सहित सभी सम्बन्ध छोड़ मामेकम् याद करो। पहले-पहले तुम सुख के सम्बन्ध में थे, फिर रावण के बन्धन में आये हो। फिर अभी सुख के सम्बन्ध में आना है। अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो - यह शिक्षा बाप संगमयुग पर ही देते हैं। बाप खुद कहते हैं मैं परमधाम का रहवासी हूँ, इस शरीर में प्रवेश किया है तुमको समझाने लिए। बाप कहते हैं पवित्र बनने बिगर तुम मेरे पास नहीं आ सकते हो। अब पावन कैसे बनेंगे? सिर्फ मेरे को याद करो। भक्ति मार्ग में भी सिर्फ मेरी पूजा करते, उनको अव्यभिचारी पूजा कहा जाता है। अभी मैं पतित-पावन हूँ। तो तुम मुझे याद करो तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप कट जायेंगे। 63 जन्मों के पाप हैं। सन्यासी कब राजयोग सिखा न सके, बाप ही सिखलाते हैं। वास्तव में यह शास्त्र, भक्ति आदि प्रवृत्ति मार्ग वालों के लिए है। सन्यासी तो जंगल में जाकर बैठते हैं और ब्रह्म को याद करते हैं। अभी बाप कहते हैं - सर्व का सद्गति दाता मैं हूँइसलिए मुझे याद करो तो तुम यह (लक्ष्मी-नारायण) बनेंगे। एम-आबजेक्ट सामने हैं। जितना पढ़ेंगे पढ़ायेंगे उतना ही ऊंच पद दैवी राजधानी में पायेंगे। अल्फ है एक बाप। रचना से रचना को वर्सा नहीं मिलता। यह है बेहद का बाप तो बेहद का वर्सा देते हैं। तुम स्वर्ग में सद्गति में होंगे। बाकी सभी आत्मायें वापस घर चली जायेंगी। मुक्ति-जीवन-मुक्ति, गति-सद्गति अक्षर ही हैं शान्तिधाम, सुखधाम के। बाप की याद बिगर घर जा नहीं सकेंगे। आत्मा को पवित्र जरूर बनना है। यहाँ सभी हैं नास्तिक। बाप को नहीं जानते। तुम अभी आस्तिक बनते हो। गायन भी है विनाश काले विपरीत बुद्धि विनश्यन्ति। अभी विनाश काल है ना। चक्र जरूर फिरना है। विनाश काले जिनकी प्रीत बुद्धि है वह हैं विजयन्ति। बाप कितना सहज कर सुनाते हैं, परन्तु माया-रावण भुला देती है। अभी इस पुरानी दुनिया का अन्त है। वह है अमरलोक, वहाँ काल होता नहीं। बाप को कहते हैं आओ साथ में हम सभी को ले चलो। तो काल ठहरा ना। सतयुग में कितना छोटा झाड़ है! अभी बहुत बड़ा झाड़ है।

ब्रह्मा और विष्णु का आक्युपेशन क्या है? विष्णु को देवता कहते हैं। ब्रह्मा को तो कोई जेवर आदि है नहीं। वहाँ न ब्रह्मा, न विष्णु, न शंकर हैं। प्रजापिता ब्रह्मा तो यहाँ है। सूक्ष्मवतन का सिर्फ साक्षात्कार होता है। स्थूल, सूक्ष्म, मूल है ना! सूक्ष्मवतन में है मूवी। यह समझने की बातें हैं। यह गीता पाठशाला है, जहाँ तुम राजयोग सीखते हो। शिवबाबा पढ़ाते हैं तो जरूर शिवबाबा ही याद आयेंगे ना। अच्छा!

रूहानी बच्चों को रूहानी बापदादा का याद-प्यार गुडनाईट। रूहानी बच्चों को रूहानी बाप की नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दु:ख के समय अपार सुखों की जो लाटरी मिली है, एक बाप से सच्ची प्रीत हुई है, उसका सिमरण कर सदा खुशी में रहना है।
2) बापदादा समान निराकारी और निरहंकारी बनना है। हिम्मत रख विकारों पर जीत पानी है। योगबल से बादशाही लेनी है।
वरदान:-
सारथी बन न्यारी और प्यारी स्थिति का अनुभव कराने वाले नम्बरवन सिद्धि स्वरूप भव
सारथी अर्थात् आत्म-अभिमानी। इसी विधि से ब्रह्मा बाप ने नम्बरवन की सिद्धि प्राप्त की। जैसे बाप देह को अधीन कर प्रवेश होते, सारथी बनते हैं, देह के अधीन नहीं बनते इसलिए न्यारे और प्यारे हैं। ऐसे ही आप ब्राह्मण आत्मायें भी बाप समान सारथी की स्थिति में रहो। चलते-फिरते यह चेक करो कि मैं सारथी अर्थात् शरीर को चलाने वाली न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित हूँ? इससे ही नम्बरवन सिद्धि स्वरूप बन जायेंगे।
स्लोगन:-
बाप के आज्ञाकारी होकर रहो तो गुप्त दुआयें समय पर मदद करती रहेंगी।