Monday, November 19, 2018

18-11-18 प्रात:मुरली

18-11-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 04-04-84 मधुबन

संगमयुग की श्रेष्ठ वेला, श्रेष्ठ तकदीर की तस्वीर बनाने की वेला
आज बापदादा हरेक ब्राह्मण श्रेष्ठ आत्मा के श्रेष्ठ जीवन के जन्म की वेला, तकदीर की रेखा देख रहे थे। जन्म की वेला सभी बच्चों की श्रेष्ठ हैं क्योंकि अभी युग ही पुरुषोत्तम श्रेष्ठ है। श्रेष्ठ संगमयुग पर अर्थात् श्रेष्ठ वेला में सभी का श्रेष्ठ ब्राह्मण जन्म हुआ। जन्म, वेला सभी की श्रेष्ठ है। तकदीर की रेखा, तकदीर भी सभी ब्राह्मणों की श्रेष्ठ है क्योंकि श्रेष्ठ बाप के शिव वंशी ब्रह्माकुमार वा कुमारी हैं। तो श्रेष्ठ बाप, श्रेष्ठ जन्म, श्रेष्ठ वर्सा, श्रेष्ठ परिवार, श्रेष्ठ खजाने - यह तकदीर की लकीर जन्म से सभी की श्रेष्ठ है। वेला भी श्रेष्ठ और प्राप्ति के कारण तकदीर की लकीर भी श्रेष्ठ है। यह तकदीर सभी बच्चों को एक बाप द्वारा एक जैसी प्राप्त है, इसमें अन्तर नहीं है। फिर भी एक जैसी तकदीर प्राप्त होते भी नम्बरवार क्यों? बाप एक, जन्म एक, वर्सा एक, परिवार एक, वेला भी एक संगमयुग, फिर नम्बर क्यों? सर्व प्राप्ति अर्थात् तकदीर सभी को बेहद की मिली है। अन्तर क्या हुआ? बेहद की तकदीर को जीवन के कर्म की तस्वीर में लाना इसमें यथाशक्ति होने के कारण अन्तर पड़ जाता है। ब्राह्मण जीवन अर्थात् तकदीर को तस्वीर में लाना, जीवन में लाना। हर कर्म में लाना, हर संकल्प से, बोल से, कर्म से तकदीरवान को तकदीर अनुभव हो अर्थात् दिखाई दे। ब्राह्मण अर्थात् तकदीरवान आत्मा के नयन, मस्तक, मुख की मुस्कराहट हर कदम सभी को श्रेष्ठ तकदीर की अनुभूति करावे, इसको कहा जाता है तकदीर की तस्वीर बनाना। तकदीर को अनुभव की कलम से, कर्म के कागज की तस्वीर में लाना। तकदीर के तस्वीर की चित्र रेखा बनाना। तस्वीर तो सभी बना रहे हो लेकिन किसकी तस्वीर सम्पन्न है और किसकी तस्वीर कुछ न कुछ किसी बात में कम रह जाती है अर्थात् प्रैक्टिकल जीवन में लाने में किसकी मस्तक रेखा अर्थात् मन्सा, नयन रेखा अर्थात् रुहानी दृष्टि, मुख की मुस्कराहट की रेखा अर्थात् सदा सर्व प्राप्ति स्वरुप सन्तुष्ट आत्मा। सन्तुष्टता ही मुस्कराहट की रेखा है। हाथों की रेखा अर्थात् श्रेष्ठ कर्म की रेखा। पांव की रेखा अर्थात् हर कदम श्रीमत प्रमाण चलने की शक्ति। इसी प्रकार तकदीर की तस्वीर बनाने में किसका किसमें, किसका किसमें अन्तर पड़ जाता है। जैसे स्थूल तस्वीर भी बनाते हैं तो कोई को नैन नहीं बनाने आते, कोई को टांग नहीं बनाने आती। कोई मुस्कराहट नहीं बना सकते। तो फर्क पड़ जाता है ना। जितना सम्पन्न चित्र उतना मूल्यवान होता है। वो ही एक चित्र लाखों का मूल्य कमाता और कोई 100 भी कमाता। तो अन्तर किस बात का हुआ? सम्पन्नता का। ऐसे ही ब्राह्मण आत्मायें भी सर्व रेखाओं में सम्पन्न न होने कारण किसी एक रेखा, दो रेखा की सम्पूर्णता न होने कारण नम्बरवार हो जाते हैं।

तो आज तकदीरवान बच्चों की तस्वीर देख रहे थे। जैसे स्थूल तकदीर में भी भिन्न-भिन्न तकदीर होती है। वैसे यहाँ तकदीर की भिन्न-भिन्न तस्वीरें देखी। हर तस्वीर में मुख्य मस्तक और नयन तस्वीर की वैल्यु बढ़ाते हैं। वैसे यहाँ भी मंसा वृत्ति की शक्ति और नयन रुहानी दृष्टि की शक्ति, इसका ही महत्व होता है। यही तस्वीर का फाउन्डेशन है। सभी अपनी तस्वीर को देखो कि हमारी तस्वीर कितनी सम्पन्न बनी है। ऐसी तस्वीर बनी है जो तस्वीर में तकदीर बनाने वाला दिखाई दे। हर एक रेखा को चेक करो। इसी कारण नम्बर हो जाता है। समझा।

दाता एक है, देता भी एक जैसा है। लेकिन बनने वाले, बनने में नम्बरवार हो जाते। कोई अष्ट और ईष्ट देव बन जाते, कोई देव बन जाते। कोई देवों को देख-देख हर्षित होने वाले हो जाते। अपना चित्र देख लिया ना। अच्छा!

साकार रुप में मिलने में तो समय और संख्या को देखना पड़ता और अव्यक्त मिलन में समय और संख्या की बात नहीं है। अव्यक्त मिलन के अनुभवी बन जायेंगे तो अव्यक्त मिलन के विचित्र अनुभव सदा करते रहेंगे। बापदादा बच्चों के सदा आज्ञाकारी हैं इसलिए अव्यक्त होते भी व्यक्त में आना पड़ता है। लेकिन बनना क्या है? अव्यक्त बनना है ना या व्यक्त में आना है? अव्यक्त बनो। अव्यक्त बनने से बाप के साथ निराकार बन घर में चलेंगे। अभी वाया की स्टेज तक नहीं पहुँचे हो। फरिश्ता स्वरुप से निराकार बन घर जा सकेंगे। तो अभी फरिश्ता स्वरुप बने हो! तकदीर की तस्वीर सम्पन्न की है? सम्पन्न तस्वीर ही फरिश्ता है। अच्छा!

सभी आये हुए भिन्न-भिन्न ज़ोन के बच्चों को हर एक ज़ोन की विशेषता सहित बापदादा देख-देख हर्षित हो रहे हैं। कोई भाषा भले नहीं जानते लेकिन प्रेम और भावना की भाषा जानने में होशियार हैं और कुछ नहीं जानते लेकिन मुरली की भाषा जानते हैं। प्रेम और भावना से न समझने वाले भी समझ जाते हैं। बंगाल बिहार तो सदा बहारी मौसम में रहते। सदा बहार है।

पंजाब है ही सदा सभी को हराभरा करने वाला। पंजाब में खेती अच्छी होती है। हरियाणा तो है ही हरा भरा। पंजाब, हरियाणा सदा हरियाली से हरा भरा है। जहाँ हरियाली होती है उस स्थान को सदा कुशल, श्रेष्ठ स्थान कहा जाता है। पंजाब हरियाणा सदा खुशी में हरा भरा है इसलिए बापदादा भी देख-देख हर्षित होते हैं। राजस्थान की क्या विशेषता है? राजस्थान चित्र रेखा में प्रसिद्ध है। राजस्थान की तस्वीरें बहुत मूल्यवान होती हैं क्योंकि राज़े बहुत हुए हैं ना। तो राजस्थान तकदीर की तस्वीरें सबसे ज्यादा मूल्यवान बनाने वाले हैं। चित्रों की रेखा में सदा श्रेष्ठ हैं। गुजरात की क्या विशेषता है? वहाँ आइनों का श्रृंगार ज्यादा होता है। तो गुजरात दर्पण है। दर्पण कहो, आइना कहो, जिसमें बाप की मूर्त देखी जाए। आइने में शक्ल देखते हैं ना। तो गुजरात के दर्पण द्वारा बाप की तस्वीर फरिश्ता स्वरुप की तस्वीर सभी को दिखाने की विशेषता है। तो गुजरात की विशेषता है - बाप को प्रत्यक्ष करने वाले दर्पण। बाकी छोटा-सा तामिलनाडु रह गया। छोटा ही कमाल करता है। बड़ा कार्य करके दिखाता है। तामिलनाडु क्या करेंगे? वहाँ मन्दिर बहुत हैं। मन्दिरों में नाद बजाते हैं। तामिलनाडु की विशेषता है - नगाड़ा बजाए बाप की प्रत्यक्षता का आवाज बुलन्द करना। अच्छी विशेषता है। छोटे-पन में भी नाद बजाते हैं। भक्त लोग भी बड़े प्यार से नाद बजाते हैं और बच्चे भी प्यार से बजाते हैं। अब हरेक स्थान अपनी विशेषता को प्रत्यक्ष स्वरुप में लाओ। सभी ज़ोन वालों से मिल लिया ना! आखिर तो ऐसा ही मिलना होगा। पुराने बच्चे कहते हैं हमको क्यों नहीं बुलाते। प्रजा भी बनाते, बढ़ाते भी रहते। तो पुरानों को नये-नये को चांस देना पड़े तब तो संख्या बढ़े। पुराने भी पुरानी चाल से चलते रहें तो नयों का क्या होगा। पुराने हैं दाता देने वाले और नये हैं लेने वाले। तो चांस देना हैं इसमें दाता बनना पड़े। साकार मिलन में सब हद आ जाती हैं। अव्यक्त मिलन में कोई हद नहीं। कई कहते हैं संख्या बढ़ेगी फिर क्या होगा! साकार मिलन की विधि भी तो बदलेगी। जब संख्या बढ़ती है तो कुछ दान पुण्य भी करना होता है। अच्छा!

सभी देश विदेश के चारों ओर के स्नेही बच्चों के स्नेह के दिल के आवाज, खुशी के गीत और दिल के समाचार के पत्रों के रेसपान्ड में बापदादा सभी बच्चों को पदमगुणा यादप्यार के साथ रेसपान्ड दे रहे हैं कि सदा याद से अमर भर के वरदानी बन बढ़ते चलो और बढ़ाते चलो। सभी उमंग उत्साह में रहने वाले बच्चों को बापदादा स्व उन्न्ति और सेवा की उन्नति के लिए मुबारक दे रहे हैं। मुबारक हो। सदा साथ हो। सदा सम्पन्न और सम्पूर्ण हो, ऐसे सर्व वरदानी बच्चों को बापदादा फिर से यादप्यार दे रहे हैं। यादप्यार और नमस्ते।

पार्टियों से:- सदा स्वयं को बाप समान सम्पन्न आत्मा समझते हो! जो सम्पन्न है वह सदा आगे बढ़ते रहेंगे। सम्पन्नता नहीं तो आगे नहीं बढ़ सकते। तो जैसे बाप वैसे बच्चे। बाप सागर है बच्चे मास्टर सागर हैं। हर गुण को चेक करो-जैसे बाप ज्ञान का सागर है तो हम मास्टर ज्ञान सागर हैं। बाप प्रेम का सागर है तो हम मास्टर प्रेम के सागर हैं। ऐसे समानता को चेक करो तब बाप समान सम्पन्न बन सदा आगे बढ़ते जायेंगे। समझा-सदा ऐसी चेकिग करते चलो। सदा इसी खुशी में रहो कि जिसको विश्व ढूंढता है। उसने हमको अपना बनाया है। अच्छा।

अव्यक्त महावाक्य - विश्व कल्याणकारी बनो

बापदादा ने आप बच्चों को विश्व सेवा के लिए निमित्त बनाया है। विश्व के आगे बाप को दिखाने वाले आप बच्चे हो। बच्चों द्वारा ही बाप दिखाई देगा। बैकबोन तो बाप है ही। अगर बाप बैकबोन न बने तो आप अकेले थक जायेंगे इसलिए बाप को बैकबोन समझ विश्व कल्याण की सेवा में तन-मन-धन, मन्सा-वाचा-कर्मणा से बिजी रहो तो सहज ही मायाजीत बन जायेंगे।

वर्तमान समय सारे विश्व में अल्पकाल के प्राप्ति रुपी फल-फूल सूखे हुए हैं। सभी मन से, मुख से चिल्ला रहे हैं और कैसे भी मजबूरी से जीवन को, देश को चला रहे हैं। खुशी-खुशी से चलना समाप्त हो गया है। तो ऐसे मजबूरी से चलने वालों को प्राप्ति के पंख देकर उड़ाओ। लेकिन उड़ा तब सकेंगे जब स्वयं उड़ती कला में होंगे। इसके लिए बाप समान विश्व कल्याणकारी की बेहद की स्टेज पर स्थित हो विश्व की सर्व आत्माओं को सकाश दो, विश्व परिक्रमा लगाओ। जैसे चित्रों में दिखाते हैं ग्लोब के ऊपर श्रीकृष्ण बैठा हुआ है, ऐसे विश्व के ग्लोब पर बैठ चारों ओर नज़र घुमाओ तो आटोमेटिक विश्व का चक्र लग जायेगा। वैसे भी जब बहुत ऊंचे स्थान पर चले जाते हैं तो चक्कर लगाना नहीं पड़ता लेकिन एक स्थान पर रहते सारा दिखाई देता है। जो जब आप अपनी ऊंची स्टेज पर, बीजरुप स्टेज पर, विश्व कल्याणकारी स्थिति में स्थित होंगे तो सारा विश्व ऐसे दिखाई देगा जैसे छोटा बाल है। तो सेकण्ड में चक्कर लगाकर आयेंगे।

आप सर्व आत्माओं के पिता के बच्चे हो, सर्व आत्मायें आपके भाई हैं। तो अपने भाईयों के तरफ संकल्प की नज़र दौड़ाओ। विशाल बुद्धि, दूरांदेशी बनो। छोटी-छोटी बातों में अपना समय नहीं गँवाओ। ऊंची स्टेज पर स्थित हो अब विशाल कार्य के निमित्त बनो। हे विश्व कल्याणकारी आत्मायें - सदा विशाल कार्य का प्लान इमर्ज रखो। सर्व की विशेषताओं द्वारा ही विश्व कल्याण का बेहद कार्य सम्पन्न होना है। जैसे कोई स्थूल चीज़ भी बनाते हैं, तो उसमें अगर सब चीजें न डाली जाएं, साधारण मीठा या नमक भी न हो तो चाहे कितनी भी बढ़िया चीज़ बनाओ लेकिन वह खाने योग्य नहीं बन सकती। ऐसे ही विश्व के इतने श्रेष्ठ कार्य के लिए हरेक रत्न की आवश्यकता है। सबकी अंगुली चाहिए। हर एक की अंगुली से ही विश्व परिवर्तन का कार्य सम्पन्न होना है।

बापदादा की दिल है कि विश्व पर सदा के लिए सुख और शान्ति का झण्डा लहर जाए। सदा चैन की बांसुरी बजती रहे। इस लक्ष्य को लेकर सर्व के सहयोग की अंगुली से विशाल कार्य को सम्पन्न करो। आप ब्राह्मण बच्चों का अब विशेष कर्तव्य है - मास्टर ज्ञान सूर्य बन सारे विश्व को सर्वशक्तियों की किरणें देना। तो सभी विश्व कल्याणकारी बन विश्व को सर्वशक्तियों की किरणें दो। जैसे सूर्य अपनी किरणों द्वारा विश्व को रोशन करता है। ऐसे आप मास्टर ज्ञान सूर्य बन सर्वशक्तियों की किरणें विश्व में फैलाओ तब सर्व आत्माओं को आपकी सकाश मिले सकेगी।

आप विश्व के दीपक, अविनाशी दीपक हो जिसका यादगार दीपमाला मनाई जाती है। अभी तक आपकी माला सिमरण करते हैं क्योंकि अधंकार को रोशन करने वाले बने हो। तो स्वयं को ऐसे सदा जगे हुए दीपक अनुभव करो। कितने भी तूफान आयें लेकिन सदा एकरस, अखण्ड ज्योति के समान जगे हुए दीपक। ऐसे दीपकों को विश्व भी नमन करती है और बाप भी ऐसे दीपकों के साथ रहते हैं। जैसे बाप सदा जागती ज्योति है, अखण्ड ज्योति है, अमर ज्योति है, ऐसे आप बच्चे भी सदा अमरज्योति बनकर विश्व को अंधकार से निकालने की सेवा करो। विश्व की आत्मायें आप जगे हुए दीपकों की तरफ बहुत स्नेह से देख रही हैं। आप रात से दिन बनाने वाले चैतन्य दीपक हो। कितनी आत्मायें अधंकार में भटकती हुई रोशनी के लिए तड़फ रही हैं। अगर आप दीपकों की रोशनी टिमटिमाती रहेगी, अभी-अभी जगी, अभी-अभी बुझी तो भटकी हुई आत्माओं का क्या हाल होगा! बुझती-जगती हुई लाइट पसन्द नहीं करेंगे इसलिए जागती ज्योत बन अंधकार को मिटाने की जिम्मेवार आत्मा समझकर चलो तब कहेंगे विश्व कल्याणकारी।

आप पूर्वज आत्मायें हो, आप की वृत्ति विश्व के वातावरण को परिवर्तन करने वाली हो। आप पूर्वजों की दृष्टि सर्व वंशावली को ब्रदरहुड की स्मृति दिलाने वाली हो। आप पूर्वज बाप की स्मृति में रह सर्व वंशावली को स्मृति दिला दो कि सभी का बाप आ गया है। आप पूर्वजों के श्रेष्ठ कर्म वंशावली को श्रेष्ठ चरित्र अर्थात् चरित्र निर्माण की शुभ आशा उत्पन्न कर दें। सबकी नज़र आप पूर्वजों को ढूंढ रही है तो अब बेहद के स्मृति स्वरुप बनो। जैसे बाप की महिमा में गायन करते हैं-"निर्बल को बल देने वाला''। ऐसे आप सभी भी चाहे ब्राह्मण परिवार में, चाहे विश्व की आत्माओं में हर आत्मा को, निर्बल को बल देने वाले महाबलवान बनो। जैसे वह लोग नारा लगाते हैं गरीबी हटाओ, वैसे आप निर्बलता को हटाओ। ऐसे निमित्त बन विश्व की हर आत्मा को बाप से हिम्मत और मदद दिलाओ। अच्छा। ओम् शान्ति।
वरदान:-
लगन की अग्नि में सब चिंताओं को समाप्त करने वाले निश्चयबुद्धि निश्चिंत भव
जो बच्चे निश्चयबुद्धि हैं वह सभी बातों में निश्चिंत रहते हैं। चिंतायें सारी मिट गई। बाप ने चिंताओं की चिता से उठाकर दिलतख्त पर बिठा दिया। बाप से लगन लगी और लगन के आधार पर, लगन की अग्नि में सब चिंतायें समाप्त हो गई, जैसे थी ही नहीं। न तन की चिंता, न मन में कोई व्यर्थ चिंता और न धन की चिंता। क्या होगा......ज्ञान की शक्ति से सब जान गये इसलिए सब चिंताओं से परे निश्चिंत जीवन हो गई।
स्लोगन:-
ऐसे अचल अडोल बनो जो किसी भी प्रकार की समस्या बुद्धि रुपी पांव को हिला न सके।