Monday, November 12, 2018

13-11-2018 प्रात:मुरली

13-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - दिन में शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करो, रात में बैठ ज्ञान का सिमरण करो, बाप को याद करो, बुद्धि में स्वदर्शन चक्र फिराओ तो नशा चढ़ेगा''
प्रश्नः-
माया किन बच्चों को याद में बैठने ही नहीं देती है?
उत्तर:-
जिनकी बुद्धि किसी न किसी में फँसी हुई रहती है, जिनकी बुद्धि को ताला लगा हुआ है, पढ़ाई अच्छी रीति नहीं पढ़ते हैं माया उन्हें याद में बैठने नहीं देती। वह मनमनाभव रह नहीं सकते। फिर सर्विस के लिए भी उनकी बुद्धि चलती नहीं। श्रीमत पर न चलने के कारण नाम बदनाम करते हैं, धोखा देते हैं तो सजायें भी खानी पड़ती हैं।
गीत:-
तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है........  
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। गॉड फादर को ही बुलाते हैं, कृष्ण को नहीं। बाप को कहेंगे - आओ, फिर से कंसपुरी के बदले कृष्णपुरी बनाओ। कृष्ण को तो नहीं बुलायेंगे। कृष्णपुरी को तो स्वर्ग कहा जाता है। यह कोई भी जानते नहीं, क्योंकि कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं। यह सब भूलें शास्त्रों से हुई हैं। अभी बाप यथार्थ बात समझाते हैं। वास्तव में सारी दुनिया का बड़ा गॉड फादर है। सबको उस एक गॉड को ही याद करना है। भल मनुष्य क्राइस्ट, बुद्ध अथवा देवताओं आदि को याद करते हैं, हरेक धर्म वाले अपने धर्म स्थापक को याद करते हैं। याद करना शुरू हुआ है द्वापर से। भारत में गाया हुआ भी है दु:ख में सिमरण सब करे, सुख में करे न कोई। बाद में ही याद करने की रस्म पड़ती है, क्योंकि दु:ख है। पहले-पहले भारतवासियों ने याद शुरू किया। उन्हों को देखते दूसरे धर्म वाले भी अपने धर्म स्थापक को याद करने लग पड़ते हैं। बाप भी धर्म स्थापन करने वाला है। परन्तु मनुष्यों ने बाप को भूल श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। लक्ष्मी-नारायण के धर्म का उन्हें पता नहीं है। याद तो न लक्ष्मी-नारायण को, न कृष्ण को करना है। याद एक बाप को करना है जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं। फिर जब यह भक्ति मार्ग में शिव की पूजा करने लगते हैं तो समझते हैं गीता का भगवान् कृष्ण है। उनको याद करते हैं। उन्हों को देख वह भी अपने धर्म स्थापक को याद करते हैं। यह भूल जाते हैं कि यह देवता धर्म भगवान् ने स्थापन किया है। हम लिख सकते हैं कि गीता का सरमोनाइजर कृष्ण नहीं, शिवबाबा है। वह है निराकार - यह वन्डरफुल बात हुई ना। किसी के पास भी शिवबाबा का परिचय नहीं है। वह स्टॉर है। सब जगह शिव के मन्दिर हैं तो वह समझते हैं कि इतना बड़ा है, अखण्ड ज्योति तत्व है। परन्तु वह तो महतत्व में रहते हैं, जहाँ आत्मायें रहती हैं। आत्मा का रूप बरोबर स्टॉर मिसल है, परमपिता परमात्मा भी स्टॉर है। परन्तु वह नॉलेजफुल, बीजरूप होने कारण उनमें त़ाकत है। आत्माओं का पिता (बीज) परमात्मा को कहेंगे। है वह निराकार। मनुष्य को तो ओशन ऑफ नॉलेज, ओशन ऑफ लव कह न सकें इसलिए समझाने वाले बच्चों में अथॉरिटी चाहिए, जिनकी बुद्धि विशाल हो। तुम सबमें मुख्य है मम्मा, वन्दे मातरम् भी गाया हुआ है। कन्याओं द्वारा बाण मरवाये। अधर कन्या, कुँवारी कन्या का राज़ कहाँ है नहीं। सिर्फ मन्दिर से ही सिद्ध होता है। जगदम्बा भी बरोबर है। परन्तु वे जानते नहीं कि वह कौन है?

बाप कहते हैं मैं ब्रह्मा मुख कमल द्वारा रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बताता हूँ। ड्रामा में क्या है - यह मनुष्यों की बुद्धि में आना चाहिए। यह बेहद का ड्रामा है। इसके हम एक्टर हैं तो ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बुद्धि में रहना चाहिए। जिनकी बुद्धि में यह रहता है उन्हें बहुत नशा रहता है। सारा दिन शरीर निर्वाह किया, रात को बैठ स्मृति में लाओ - यह ड्रामा कैसे चक्र लगाता है? यही मनमनाभव है। परन्तु माया रात को भी बैठने नहीं देती है। एक्टर्स की बुद्धि में तो ड्रामा का राज़ रहना चाहिए ना। परन्तु है बड़ा मुश्किल। कहाँ न कहाँ फँस पड़ते हैं तो बाबा बुद्धि का ताला बन्द कर देते हैं। बहुत बड़ी मंज़िल है। अच्छी पढ़ाई वाले फिर तनखाह भी अच्छी लेते हैं ना। यह पढ़ाई है। परन्तु बाहर जाने से भूल जाते हैं फिर अपनी मत पर चल पड़ते हैं। बाप कहते हैं - मीठे बच्चे, श्रीमत पर चलने में ही तुम्हारा कल्याण है। यह है पतित दुनिया। विकार को पॉइज़न कहा जाता है, जिसका सन्यासी लोग सन्यास करते हैं। यह रावण राज्य शुरू ही होता है द्वापर से, यह वेद-शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग की सामग्री हैं। सर्विस के लिए बच्चों की बुद्धि चलनी चाहिए। श्रीमत पर चलें तो धारणा भी हो। बच्चे जानते हैं विनाश सामने खड़ा है। सब दु:खी हो रड़ी मारेंगे - हे भगवान्, रहम करो। त्राहि-त्राहि करते समय भगवान् को याद करेंगे। पार्टीशन के समय कितना याद करते थे - हे भगवान्, रहम करो, रक्षा करो। अब रक्षा क्या करेंगे? रक्षा करने वाले को ही जानते नहीं तो रक्षा करेंगे कैसे? अभी बाप आया है परन्तु मुश्किल कोई की बुद्धि में बैठता है। बाप समझाते हैं ऐसे-ऐसे सर्विस करो। यह श्रीमत बाप की मिलती है। ऐसे बाप को पहचान नहीं सकते, यह भी कैसा वन्डर है! कितनी समझने की बातें हैं! सारा दिन शिवबाबा की याद बुद्धि में रहे। यह भी उनका रथ साथी ठहरा ना।

बाबा देखते हैं - बच्चे आज बहुत अच्छे निश्चयबुद्धि हैं, कल संशयबुद्धि बन जाते हैं। माया का तूफान लगने से अवस्था गिरती है तो बाबा इसमें क्या कर सकते हैं। तुम ज्ञान में आये, सरेन्डर हुए तो तुम ट्रस्टी ठहरे। तुम क्यों फिक्र करते हो? सरेन्डर किया है, फिर सर्विस भी करनी है तो रिटर्न में मिलेगा। अगर सरेन्डर हुआ है, सर्विस नहीं करता तो भी उनको खिलाना तो पड़े, तो उन पैसों से ही खाते-खाते अपना ख़त्म कर लेते हैं, सर्विस करते नहीं हैं। तुम्हें सर्विस करनी है मनुष्य को हीरे जैसा बनाने की। मुख्य बाबा की रूहानी सर्विस करनी है, जिससे मनुष्य ऊंचे बने। सर्विस नहीं करते तो जाकर दास-दासी बनेंगे। जो पढ़ाई अच्छी पढ़ते हैं, उनका मान भी ऊंचा होता है, जो नापास होंगे वह जाकर दास-दासी बनेंगे।

बाबा कहते हैं - बच्चे, मुझे याद करो और वर्सा लो। बस, यह मनमनाभव अक्षर ही राइट है। ओशन ऑफ नॉलेज कहते हैं कि मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। ऐसे कृष्ण कह न सके, बाप ही कहते हैं - मामेकम् याद करो और भविष्य राज्य पद को याद करो। यह राजयोग है ना। इससे प्रवृत्ति मार्ग सिद्ध होता है। यह तुम ही समझा सकते हो। तुम्हारे में भी जो सर्विसएबुल तीखे हैं, उन्हों को बुलाया जाता है। समझा जाता है यह होशियार हैण्ड है। बच्चों को योगयुक्त बनना है। श्रीमत पर अगर नहीं चलते तो नाम बदनाम करते हैं। धोखा देते हैं तो फिर सजायें खानी पड़ती हैं। ट्रिब्युनल भी बैठती है ना। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

रात्रि क्लास

बच्चों को पहले-पहले समझानी देनी है बाप की। बेहद का बाप ही हमको पढ़ाते हैं, गीता पढ़ने वाले कृष्ण को भगवान कहते हैं। उन्हें समझाना है कि भगवान तो निराकार को कहा जाता है। देहधारी तो बहुत हैं। बिगर देह है ही एक। वह है ऊंचे से ऊंचा शिवबाबा। यह अच्छी रीत बुद्धि में बिठाओ। बेहद के बाप से बेहद का वर्सा मिलता है, वही ऊंच ते ऊंच निराकार परमपिता परमात्मा है। वह है बेहद का बाप और यह है हद का बाप। और कोई 21 जन्मों का वर्सा नहीं देते हैं। ऐसा भी कोई बाप नहीं जिससे अमर पद मिले। अमरलोक है सतयुग। यह है मृत्युलोक। तो बाप का परिचय देने से समझेंगे, बाप से वर्सा मिलता है जिसको दैवी स्वराज्य कहा जाता है। वह बाप ही देते हैं। वही पतित-पावन गाया जाता है, वह कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो तो पाप कट जायेंगे। पतित से पावन बन पावन दुनिया में चलने लायक बन सकते हो। कल्प-कल्प बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। याद की यात्रा से ही पवित्र बनना है। अभी पावन दुनिया आ रही है। पतित दुनिया विनाश होनी है। पहले-पहले बाप का परिचय दे पक्का कराना है। जब पक्का बाप को समझ जायें तब बाप से वर्सा मिले। इसमें माया भुलाती बहुत है। तुम कोशिश करते हो बाबा को याद करने की फिर भूल जाते हो। शिवबाबा को याद करने से ही पाप कटेंगे। वह बाबा इनके द्वारा बताते हैं बच्चे मुझे याद करो। फिर भी धंधे आदि में भूल जाते हैं। यह भूलना नहीं चाहिए। यही मेहनत की बात है। बाप को याद करते-करते कर्मातीत अवस्था तक पहुँचना है। कर्मातीत अवस्था वाले को कहा जाता है फरिश्ता। तो यह पक्का याद करो कैसे किसको समझायें। पक्का निश्चय भी हो कि हम भाइयों को (आत्माओं को) समझाते हैं। सबको बाप का पैगाम देना है। कई कहते हैं बाबा पास चलूँ, दीदार करूँ। परन्तु इसमें दीदार आदि की तो बात ही नहीं है। भगवान आकर सिखलाते हैं और मुख से कहते हैं तुम मुझ अपने निराकार बाप को याद करो। याद करने से सब पाप कट जाते हैं। कहाँ भी धंधे आदि में बैठे घड़ी-घड़ी बाप को याद करना है। बाप ने हुक्म दिया है मुझे याद करो। निरन्तर याद करने वाले ही विन करेंगे। याद नहीं करेंगे तो मार्क्स कम हो जायेंगे। यह पढ़ाई है ही मनुष्य से देवता बनने की, जो एक बाप ही पढ़ाते हैं। तुम्हें चक्रवर्ती राजा बनना है, तो 84 जन्मों को (पा को) भी याद करना है। कर्मातीत अवस्था तक पहुँचने के लिए मेहनत करनी है। वह अन्त में होनी है। अन्त कोई भी समय आ सकती है, इसलिए पुरुषार्थ लगातार करना है। नित्य तुम्हारा पुरुषार्थ चलता रहे। लौकिक बाप तुम्हें ऐसे नहीं कहेंगे कि देह के सभी सम्बन्ध छोड़ अपने को आत्मा समझो। शरीर का भान छोड़ मुझे याद करो तो पाप कटेंगे। यह तो बेहद का बाप ही कहते हैं बच्चे मुझ एक की याद में रहो तो सब पाप कट जायेंगे। तुम सतोप्रधान बन जायेंगे। यह धंधा तो खुशी से करना चाहिए ना। भोजन खाते समय भी बाप को याद करना है। याद में रहने का गुप्त अभ्यास तुम बच्चों का चलता रहे तो अच्छा है। तुम्हारा ही कल्याण है। अपने को देखना है बाबा को कितना समय याद करता हूँ? अच्छा - मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडनाईट। ओम् शान्ति।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मनुष्यों को हीरे जैसा बनाने की रूहानी सर्विस करनी है। कभी भी संशयबुद्धि बन पढ़ाई को नहीं छोड़ना है। ट्रस्टी होकर रहना है।
2) शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते भी बाप को याद करना है। श्रीमत में अपना कल्याण समझ चलते रहना है। अपनी मत नहीं चलानी है।
वरदान:-
सर्व प्रति शुभ कल्याण की भावना रख परिवर्तन करने वाले बेहद सेवाधारी भव
मैजारिटी बच्चे बापदादा के आगे अपनी यह आश रखते हैं कि हमारा फलाना संबंधी बदल जाए। घर वाले साथी बन जाएं लेकिन सिर्फ उन आत्माओं को अपना समझ यह आश रखते हो तो हद की दीवार के कारण आपकी शुभ कल्याण की भावना उन आत्माओं तक पहुंचती नहीं। बेहद के सेवाधारी सर्व प्रति आत्मिक भाव वा बेहद की आत्मिक दृष्टि, भाई-भाई के संबंध की वृत्ति से शुभ भावना रखते हैं तो उसका फल अवश्य प्राप्त होता है - यही मन्सा सेवा की यथार्थ विधि है।
स्लोगन:-
ज्ञान रुपी बाणों को बुद्धि रुपी तरकश में भरकर माया को ललकारने वाले ही महावीर योद्धे हैं।
मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य:
"मन के अशान्ति का कारण है कर्मबन्धन और शान्ति का आधार है कर्मातीत''

वास्तव में हरेक मनुष्य की यह चाहना अवश्य रहती है कि हमको मन की शान्ति प्राप्त हो जावे इसलिए अनेक प्रयत्न करते आये हैं मगर मन को शान्ति अब तक प्राप्त नहीं हुई, इसका यथार्थ कारण क्या है? अब पहले तो यह सोच चलना जरूरी है कि मन के अशान्ति की पहली जड़ क्या है? मन की अशान्ति का मुख्य कारण है - कर्मबन्धन में फंसना। जब तक मनुष्य इन पाँच विकारों के कर्मबन्धन से नहीं छूटे हैं तब तक मनुष्य अशान्ति से छूट नहीं सकते। जब कर्मबन्धन टूट जाता है तब मन की शान्ति अर्थात् जीवनमुक्ति को प्राप्त कर सकते हैं। अब सोच करना है - यह कर्मबन्धन टूटे कैसे? और उसे छुटकारा देने वाला कौन है? यह तो हम जानते हैं कोई भी मनुष्य आत्मा किसी भी मनुष्य आत्मा को छुटकारा दे नहीं सकती। यह कर्मबन्धन का हिसाब-किताब तोड़ने वाला सिर्फ एक परमात्मा है, वही आकर इस ज्ञान योगबल से कर्मबन्धन से छुड़ाते हैं इसलिए ही परमात्मा को सुख दाता कहा जाता है। जब तक पहले यह ज्ञान नहीं है कि मैं आत्मा हूँ, असुल में मैं किसकी सन्तान हूँ, मेरा असली गुण क्या है? जब यह बुद्धि में आ जाए तब ही कर्मबन्धन टूटे। अब यह नॉलेज हमें परमात्मा द्वारा ही प्राप्त होती है गोया परमात्मा द्वारा ही कर्मबन्धन टूटते हैं। अच्छा। ओम् शान्ति।