Monday, August 28, 2017

मुरली 28 अगस्त 2017

28-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम उठते-बैठते सब कुछ करते चुप रहो, बाप को याद करो तो वर्सा मिल जायेगा, इसमें गीत कविता आदि की भी दरकार नहीं है"
प्रश्न:
बाप को लिबरेटर कहने से कौन सी एक बात सिद्ध हो जाती है?
उत्तर:
जब बाप दु:खों से अथवा 5 विकारों से लिबरेट करने वाला है तो जरूर उसमें फँसाने वाला कोई दूसरा होगा। लिबरेटर कभी फँसा नहीं सकता। उसको कहा जाता है दु:ख हर्ता सुख कर्ता तो वह कभी किसी को दु:ख कैसे दे सकते। जब बच्चे दु:खी होते हैं तब उस बाप को याद करते हैं। दु:ख देने वाला है रावण। रावण माया श्रापित करती। बाप आते हैं वर्सा देने।
गीत:-
जो पिया के साथ है...  
ओम् शान्ति।
इस ज्ञान मार्ग में गीतों, कविताओं, डायलागों आदि की जरूरत नहीं है। यह सब भक्ति मार्ग में चलता है। यहाँ तो है समझ की बातें। हर बात बुद्धि से समझना है और है भी बहुत सहज। यानी यह ज्ञान बहुत सहज है। एक भी प्वाइंट से मनुष्य पुरूषार्थ करने लग पड़ते हैं। गीत सुनने की वा कविता बनाने की कोई जरूरत नहीं है। गृहस्थ व्यवहार में रहना है, धन्धा धोरी करना है। बाप कहते हैं वह सब करते तुम मेरे से वर्सा कैसे ले सकते हो। वह समझाते हैं उठते बैठते सब कुछ करते चुप रहना है। अन्दर में विचार चलता रहे, बाप ने समझाया है बात बिल्कुल सहज है समझने की। नई दुनिया को पुरानी दुनिया होने में समय लगता है। फिर पुराने से नई बनने में इतना समय नहीं लगता है। बच्चों को समझाया गया है - बाप नई सृष्टि रचते हैं, फिर पुरानी होती है। सुख और दु:ख की दुनिया बनी हुई जरूर है परन्तु सुख कौन देते हैं, दु:ख कौन देते हैं। यह किसको पता नहीं है। बनी बनाई भी जरूर है। इस चक्र से हम निकल नहीं सकते। उसको कहा जाता है ड्रामा। नाटक के बदले ड्रामा कहना अच्छा लगता है। नाटक जो होता है उसमें बदल सदल हो सकती है। कोई को निकाल सकते हैं, कोई को एड कर सकते हैं। आगे नाटक थे, बाइसकोप तो अब निकले हैं। बाइसकोप में जो फिल्म शूट हुई वही रिपीट होगी। यह बाइसकोप निकाला है - इस ज्ञान को भी इस द्वारा पूरा समझने के लिए। नाटक में फ़र्क हो जाता है। बाइसकोप में फर्क नहीं हो सकता। यह एक स्टोरी है नई पावन दुनिया और पुरानी पतित दुनिया की। सिर्फ मनुष्यों को यह पता नहीं है कि ड्रामा की आयु कितनी है। बहुत लम्बी चौड़ी आयु दे दी है। मनुष्य तो कुछ भी समझ नहीं सकते। नई दुनिया में कितने समझदार, धनवान पवित्र थे, सर्वगुण सम्पन्न थे। बाबा आज ऐसे क्यों समझा रहे हैं? कि बच्चे भी जाकर ऐसे भाषण करें। भारत की पहले-पहले महिमा करनी चाहिए। भारत को ऐसा किसने बनाया? वह भी महिमा निकलेगी परमपिता परमात्मा की, जिसको सब याद करते हैं। याद क्यों करते हैं? क्योंकि पुरानी दुनिया में दु:ख बहुत है। दु:ख देने वाले 5 विकार ही हैं। सतयुग त्रेता को सुखधाम कहा जाता है। वह है ही ईश्वरीय स्थापना। यह फिर है आसुरी स्थापना, जिसमें मनुष्य 5 विकारों में फँस पड़ते हैं। समझते भी हैं बाप ही लिबरेट करते हैं। जो लिबरेटर है, वह फँसाने वाला थोड़ेही होगा। उनका नाम ही है दु:ख हर्ता सुख कर्ता। उनके लिए हम दु:ख कर्ता कह नहीं सकते। यह किसको पता नहीं है कि यह दु:ख देने वाले 5 विकार ही हैं, जिससे ही बाप आकर छुड़ाते हैं। बड़ी समझ की बात है। सारी दुनिया में इस समय रावण राज्य है। सिर्फ लंका की बात नहीं है। मनुष्यों के अपने-अपने विचार हैं। जिसको बुद्धि में जो आया वह लिख देंगे। वैसे ही यह शास्त्र हैं। अपना-अपना शास्त्र बना देते हैं। मनुष्यों को कुछ पता नहीं है। भगवानुवाच - यह वेद शास्त्र पढ़ना, यज्ञ तप आदि करना जो कुछ तुम करते आये हो वह सब उतरती कला के हैं। जो कुछ तुमने बनाया है वह अपने को गिराने के लिए। तुमको मत मिलती ही है गिरने की क्योंकि है ही उतरती कला। पावन दुनिया थी, अब पतित दुनिया है। आधाकल्प है नई दुनिया, आधाकल्प है पुरानी दुनिया। जैसे 24 घण्टे होते हैं, 12 घण्टे बाद दिन पूरा हो फिर रात होती है। वैसे यह ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात गाई जाती है। विष्णु का दिन रात नहीं कहेंगे। यह कितनी गुह्य बातें हैं। सिवाए बाप के और कोई समझा न सके। बाप समझाते हैं अभी तमोप्रधान से सतोप्रधान में जाना है। अभी अजुन अपनी बादशाही थोड़ेही स्थापन हुई है। बाप कितना सहज बच्चों को समझाते रहते हैं, सिर्फ शिवबाबा को याद करना है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। यह बातें भी तुम अबलायें ही समझ सकती हो। नई दुनिया और पुरानी दुनिया। नई दुनिया को रचने वाला बाप है। नई दुनिया स्वर्ग थी फिर नर्क किसने बनाया? रावण ने। रावण कौन है? यह राज़ भी तुमको समझाया है। कोई भी विद्वान पण्डित आदि नहीं समझ सकते वह तो कह देते जगत मिथ्या है। सब कुछ कल्पना है। तुम समझा सकते हो अगर जगत बना ही नहीं है तो तुम बैठे कहाँ हो? यह जो वर्ल्ड रिपीट होती है, उसकी पूरी नॉलेज चाहिए ना। नॉलेज न होने के कारण कह देते हैं सब कुछ मिथ्या है, जिसने जो सुनाया सो सत। तुम तो एक बात में ही खुश होते हो। बाप तो बहुत अच्छी रीति समझाते हैं। बाप ने तो आधाकल्प का वर्सा दिया है, फिर रावण से हराया है। यह खेल बना हुआ है।
तुम बच्चे जानते हो हम अभी ईश्वर के बने हैं और उनकी श्रीमत पर चल रहे हैं। यह चित्र तो बड़े अच्छे हैं, सबके पास बड़े चित्र होने चाहिए। बड़े चित्रों पर समझाना अच्छा होता है। चक्र सामने खड़ा है। संगमयुग भी सामने लगा हुआ है। कलियुग है काला, पतित। उनमें लोहे की खाद पड़ने से काले हो गये हैं। भारत कितना गोल्डन एजड था। अब फिर इनको आइरन एज से चेन्ज होना है। उनकी स्थापना इनका विनाश होना चाहिए। गाया भी जाता है परमपिता परमात्मा त्रिमूर्ति है। त्रिमूर्ति का अर्थ भी कोई समझते नहीं हैं। रोड पर भी त्रिमूर्ति नाम रखे हुए हैं। वास्तव में त्रिमूर्ति है ब्रह्मा विष्णु शंकर, यह तीनों देवतायें हैं अलग-अलग। इन सबसे ऊंच ते ऊंच है परमपिता परमात्मा शिव, करन-करावनहार। उनको गुम कर दिया है। देवताओं से भी ऊपर तो वह निराकार भगवान ही है। जैसे बाप निराकार है वैसे हम आत्मायें भी निराकार हैं। हम यहाँ आये हैं पार्ट बजाने। लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी थी। एक दो के पिछाड़ी राज्य करते आते हैं। तो स्वर्ग की महिमा सुनानी पड़े। भारत कितना धनवान था। प्योरिटी, पीस, प्रासपर्टी थी। कभी अकाले मृत्यु नहीं होती थी, नई दुनिया थी। बाप ने ही नई दुनिया रची थी। बाप 16 कला बनाते हैं। कहते हैं बच्चे मनमनाभव, मामेकम् याद करो। यह है भगवानुवाच। उनको पतित-पावन कहा जाता है। कृष्ण को ज्ञान सागर नहीं कहेंगे। फिर गीता में कृष्ण का नाम क्यों डाला है! कोई द्वारा साक्षात्कार हुआ, कहेंगे बस यह कृष्ण का रूप है। दुनिया में तो अनेक प्रकार के मनुष्य हैं। किसी में भाव बैठ जाता है फिर उनका लाकेट बनाए गले में डाल देते हैं। गुरू का लाकेट पहन गुरू को याद करते हैं। बस ईश्वर सर्वव्यापी है फिर तो गुरू और ईश्वर में फ़र्क नहीं रहा। ऐसे ढेर हैं। बाप ने तुम बच्चों को पुरानी दुनिया और नई दुनिया का राज़ भी समझाया है। बाप बैठ नई दुनिया रचते हैं। अभी सब बाप को बुलाते रहते हैं। आकर पावन दुनिया स्थापन करो या हमको पावन बनाए ले चलो। धाम हैं दो - निर्वाणधाम और सुखधाम। सन्यासी तो मुक्ति के लिए नॉलेज देते हैं, जीवनमुक्ति के लिए दे नहीं सकते। तुम देवी-देवता धर्म वाले हो, जो पुजारी बने हो फिर पूज्य बनना है। श्रीकृष्ण सतयुग का प्रिन्स है, उनकी महिमा होती है। कुमार-कुमारी की ही महिमा होती है क्योंकि पवित्र हैं ना। नहीं तो कृष्ण से राधे की महिमा ज्यादा होनी चाहिए परन्तु यह किसको मालूम नहीं। पहले राधे फिर कृष्ण क्यों! कहते हैं राधे कृष्ण। कृष्ण राधे मुश्किल कोई कहेंगे। समझते हैं बच्चा वर्से का हकदार बनते हैं इसलिए कृष्ण की महिमा जास्ती है। यहाँ तुम सब हो बच्चे।
बाप कहते हैं - जितना पुरूषार्थ करेंगे उतना अपने लिए ही ऊंच पद पायेंगे - कल्प-कल्पान्तर के लिए। बाप आत्माओं से बात कर रहे हैं। पुरूषार्थ से तुम ऊंच पद पा सकते हो। विलायत में बच्ची पैदा होती है तो खुशी मनाते हैं। यहाँ बच्चा पैदा हो तो खुश होते हैं। हर एक की रसम अपनी-अपनी है। तो बच्चों की बुद्धि में अब बैठा है कि बाप वर्सा देते हैं, फिर श्राप माया देती है। वह गॉड फादर स्वर्ग का रचयिता है। कृष्ण के लिए कभी कह न सकें, परमात्मा ही नर्क को स्वर्ग बनाते हैं। सहज ज्ञान और योग वही सिखलाते हैं। ऐसे ऐसे भाषण तुम कर सकते हो। गीता में कृष्ण का नाम डाल खण्डन कर दिया है। गीता का भगवान निराकार परमात्मा है न कि कृष्ण। श्रीकृष्ण तो रचना है। उनको भी वर्सा बाप से मिला। वह कैसे, आओ तो समझायें। कोई भी बात उठाकर उन पर समझाने लग जाओ। पुरानी दुनिया, नई दुनिया पर समझाने से उसमें सब आ जाता है। अभी अनेक धर्म हैं। उनके बीच आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है। कितना समझाया जाता है, इन 5 विकारों को छोड़ो। घर में भी किस पर क्रोध नहीं करो। ख्यालात आने चाहिए कि जैसा कर्म हम करेंगे, हमको देख फिर और करेंगे। मैं विकारी बनूँगा तो मुझे देख और भी विकारी बनेंगे। बाप फरमान करते हैं अब पवित्र बनो। स्त्री को भी पवित्र बनाओ। कोई पर क्रोध मत करो। तुमको देख वह भी करने लग पड़ेंगे। मेल तो रचयिता है तो स्त्री को भी समझाना चाहिए फिर अगर तकदीर में ही नहीं होगा तो क्या कर सकेंगे। समझाना है कि पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। बाप समझाते हैं तुमने 84 जन्म कैसे लिये हैं। पहले तुम सतोप्रधान पावन थे। फिर रजो तमो बने हो। अब फिर तुम मुझे याद करो तो पावन बनेंगे। गीता के वरशन्स ही भगवान कह रहे हैं। गीता में कृष्ण का नाम डालने से उनकी सारी जीवन कहानी खत्म हो जाती है। समझाने की भी हिम्मत चाहिए। बाबा समझाते रहते हैं बहुत बच्चे समझते हैं हम तो शिवबाबा को ही मानते हैं, उनसे ही कल्याण होना है। भूल करते हैं तो बाबा ईशारा देते हैं। परन्तु कई बच्चे लून-पानी हो जाते हैं, लून-पानी थोड़ेही बनना है। समझाया जाता है कि ऐसे नहीं करो। कोई तो ऐसे हैं जो एक दो का रिगार्ड भी नहीं रखते हैं। अपने से बड़ों को तो तुम-तुम करके बात करते हैं। सेन्सीबुल बच्चों को सर्विस का बहुत शौक होना चाहिए। फलाना सेन्टर खुला है हम उन पर जाकर सर्विस करें। बिगर कहे जो करे सो देवता। कहने से करे वह मनुष्य, कहने से भी न करे तो...अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा यह बात याद रखना है कि जो कर्म हम करेंगे, हमें देख और भी करने लग पड़ेंगे इसलिए कभी भी श्रीमत के विपरीत विकारों के वश हो कोई भी कर्म नहीं करना है।
2) सर्विस का शौक रखना है। बिगर कहे सेवा में लग जाना है। कभी भी आपस में लून-पानी नहीं होना है।
वरदान:
अपने भरपूर स्टॉक द्वारा खुशियों का खजाना बांटने वाले हीरो हीरोइन पार्टधारी भव
संगमयुगी ब्राह्मण आत्माओं का कर्तव्य है सदा खुश रहना और खुशी बांटना लेकिन इसके लिए खजाना भरपूर चाहिए। अभी जैसा नाज़ुक समय नजदीक आता जायेगा वैसे अनेक आत्मायें आपसे थोड़े समय की खुशी की मांगनी करने के लिए आयेंगी। तो इतनी सेवा करनी है जो कोई भी खाली हाथ नहीं जाये। इसके लिए चेहरे पर सदा खुशी के चिन्ह हों, कभी मूड आफ वाला, माया से हार खाने वाला, दिलशिकस्त वाला चेहरा न हो। सदा खुश रहो और खुशी बांटते चलो-तब कहेंगे हीरो हीरोइन पार्टधारी।
स्लोगन:
एक दो की राय को रिगार्ड देना ही संगठन को एकता के सूत्र में बांधना है।