Sunday, August 20, 2017

मुरली 21 अगस्त 2017

21-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - बाप की याद कायम तब रहेगी जब बुद्धि में ज्ञान होगा, ज्ञानयुक्त बुद्धि से रूहानी यात्रा करनी और करानी है”
प्रश्न:
ईश्वर दाता है फिर भी ईश्वर अर्थ दान करने की रसम क्यों चली आती है?
उत्तर:
क्योंकि ईश्वर को अपना वारिस बनाते हैं। समझते हैं इसका एवज़ा वह दूसरे जन्म में देगा। ईश्वर अर्थ देना माना उसे अपना बच्चा बना लेना। भक्ति मार्ग में भी बच्चा बनाते हो अर्थात् सब कुछ बलिहार करते हो इसलिए एक बार बलिहार जाने के रिटर्न में वह 21 जन्म बलिहार जाता है। तुम कौड़ी ले आते हो, बाप से हीरा ले लेते हो। इसी पर ही सुदामा का मिसाल है।
गीत:-
रात के राही...  
ओम् शान्ति।
बच्चों ने इस गीत की एक लाइन से ही समझ लिया होगा। बाप जब बच्चे कहते हैं तो समझना चाहिए हम आत्माओं को बाप बैठ समझाते हैं। आत्म-अभिमानी बनना है। यह तो सब जानते ही हैं आत्मा और शरीर दो चीज़ें हैं। परन्तु यह नहीं समझते हैं कि हम आत्माओं का बाप भी होगा। हम आत्मायें निर्वाणधाम की रहने वाली हैं। यह बातें बुद्धि में आती नहीं हैं। बाप कहते हैं ना - यह ज्ञान बिल्कुल ही प्राय:लोप हो जाता है। तुम जानते हो अब यह नाटक पूरा होने वाला है। अब घर जाना है। अपवित्र पतित आत्मायें वापिस घर जा नहीं सकती। एक भी जा नहीं सकता, यह ड्रामा है। जब सभी आत्मायें यहाँ चली आती हैं फिर वापिस जाने लगती हैं। यह तो अभी तुम जानते हो कि बाप हमें रूहानी यात्रा सिखला रहे हैं। कहते हैं हे आत्मायें अब बाप को याद करने की यात्रा करनी है। जन्म-जन्मान्तर तुम जिस्मानी यात्रा करते आये हो। अभी तुम्हारी है यह रूहानी यात्रा। जाकर, फिर मृत्युलोक में वापिस आना नहीं है। मनुष्य जिस्मानी यात्रा पर जाते हैं तो फिर लौट आते हैं। वह है जिस्मानी देह-अभिमानी यात्रा। यह है रूहानी यात्रा। सिवाए बेहद के बाप के यह यात्रा कोई सिखला नहीं सकते। तुम बच्चों को श्रीमत पर चलना है। सारा मदार है याद की यात्रा पर, जो बच्चे जितना याद करते हैं, याद कायम उनकी रहेगी जिनको कुछ न कुछ ज्ञान है। 84 जन्मों के चक्र का भी ज्ञान है ना। अभी हमारे 84 जन्म पूरे हुए। यह है 84 जन्मों के चक्र की यात्रा, इनको कहा जाता है आवागमन की यात्रा। आवागमन तो सभी का होता रहता है। आना और जाना। जन्म लिया और छोड़ा, इसको आवागमन कहा जाता है। अभी तुम इस दु:खधाम के आवागमन के चक्र से छूटते जा रहे हो। यह है दु:खधाम, अभी तुम्हारा जन्म-मरण सब अमरलोक में होना है, जिसके लिए तुम पुरूषार्थ करने आये हो अमरनाथ के पास। तुम सब पार्वतियां हो, अमरकथा सुनती हो अमरनाथ से, जो सदैव अमर है। तुम सदैव अमर नहीं हो। तुम तो जन्म-मरण के चक्र में आते हो। अभी तुम्हारा चक्र नर्क में है, इससे तुमको छुड़ाकर आवागमन स्वर्ग में बनाते हैं। वहाँ तुमको कोई दु:ख नहीं होगा। यह है तुम्हारा अन्तिम जन्म। तुम देखते जायेंगे कैसे विनाश होता है। यह जो माथा मारते हैं - लड़ाई न हो या कहते हैं बाम्बस जाकर समुद्र में डाल दें। यह सब बिचारे कहते रहते हैं परन्तु यह नहीं जानते कि अब समय आकर पूरा हुआ है।
तुम अभी संगम पर हो और दुनिया वाले समझते हैं कि अभी तो अजुन कलियुग शुरू होता है, 40 हजार वर्ष बाद संगम आना है। यह भी बात निकली है शास्त्रों से। बाप कहते हैं तुम जो कुछ वेद शास्त्र आदि पढ़ते, दान पुण्य आदि जन्म-जन्मान्तर से करते आये हो - यह सब है भक्ति मार्ग। तुम जानते हो हम पहले ब्राह्मण फिर देवता बनते हैं। ब्राह्मण वर्ण है सबसे ऊंचा। यह तो प्रैक्टिकल बात है। ब्राह्मण बनने बिगर कोई देवता वर्ण में आ नहीं सकते। तुम निश्चय करते हो हम ब्रह्मा के बच्चे हैं, शिवबाबा से दैवी राज्य ले रहे हैं। अभी तुम्हारा पुरूषार्थ चलता है। रेस भी करनी पड़ती है। अच्छी रीति पढ़कर फिर दूसरों को भी पढ़ायें, लायक बनायें तो वह भी स्वर्ग के सुख देखें। कृष्णपुरी को तो सभी याद करते हैं। श्रीराम को छोटेपन में झूला आदि नहीं झुलाते हैं। श्रीकृष्ण को तो बहुत प्यार करते हैं, परन्तु अन्धश्रद्धा से। समझते तो कुछ भी नहीं हैं। बाप ने समझाया है इस समय यह सारी सृष्टि तमोप्रधान काली है। भारत बहुत सुन्दर, गोल्डन एज था। अब तो आइरन एज में है। तुम भी आइरन एज में हो, अब गोल्डन एज में जाना है। बाप सोनार का काम कर रहे हैं। तुम्हारी आत्मा में जो लोहे और तांबे की खाद पड़ी थी वह निकाली जाती है। अभी तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों झूठे बन गये हैं। अभी तुमको फिर से सच्चा सोना बनना है। सच्चे सोने में बहुत खाद मिलाने से एकदम मुलम्मा बन जाता है। तुम्हारी आत्मा में अभी बिल्कुल थोड़ा सोना जाकर रहा है। जेवर भी पुराना है, दो कैरेट सोना कहेंगे। तो बाप बैठकर श्रीमत देते हैं। भारत बरोबर स्वर्ग था और कोई धर्म का राज्य नहीं था फिर उस स्वर्ग में जाने का पुरूषार्थ करना है। परन्तु माया करने नहीं देती है। माया तुम्हारा बहुत सामना करती है। युद्ध के मैदान में तुमको बहुत हराती है। चलते-चलते कोई तूफान में आ जाते हैं, विकार में जाकर एकदम काला मुँह कर देते हैं। बाप कहते हैं अभी मैं तुम्हारा गोरा मुँह करता हूँ। तुम विकार में जाकर फिर काला मुँह मत करो। योग से अपनी अवस्था को शुद्ध बनाओ। शुद्ध होते-होते सारी खाद निकल जायेगी, इसलिए योग भट्ठी में रहना है। सोनार लोग इन बातों को तो अच्छी रीति समझेंगे। सोने की खाद निकलती है आग में डालने से। फिर सोने की सच्ची ढली बन जाती है। बाप कहते हैं जितना तुम मुझे याद करते रहेंगे उतना शुद्ध बनते जायेंगे। बाप तो श्रीमत देंगे और क्या करेंगे। कहते हैं बाबा कृपा करो। अब बाबा कृपा क्या करेंगे! बाप तो कहते हैं याद में रहो तो खाद निकल जायेगी। तो याद में रहना है वा कृपा आशीर्वाद मांगना है? इसमें तो हर एक को अपनी मेहनत करनी है।
बाप कहते हैं रूहानी बच्चे, इस यात्रा में थक मत जाओ। घड़ी-घड़ी बाप को भूलो मत। जितना याद में रहते हो उतना समय जैसे तुम भट्ठी में हो। याद नहीं करते हो तो भट्ठी में नहीं हो। फिर तुमसे और भी विकर्म बनते, एड होते जाते हैं, जिससे तुम काले बन जाते हो। मेहनत कर गोरे बन और फिर काले बनते हो तो गोया तुम वैसे 50 परसेन्ट काले थे, अभी फिर 100 परसेन्ट काले बन जाते हो। काम विकार ने ही तुमको काला किया है। वह है काम चिता, यह है ज्ञान चिता। मुख्य बात है काम की। घर में झगड़ा ही इस पर होता है। कुमारियों को भी समझाया जाता है कि अभी तुम पवित्र हो तो अच्छी हो ना। कुमारी को सब पांव पड़ते हैं क्योंकि पवित्र है। तुम सब ब्रह्माकुमारियां हो ना। तुम ब्रह्माकुमारियां ही भारत को स्वर्ग बनाती हो। तो तुम्हारा यादगार भक्ति मार्ग में चला आता है। कुमारियों को बहुत मान देते हैं। हैं तो ब्रह्माकुमार भी परन्तु माताओं की मैजारिटी है। बाप खुद आकर कहते हैं वन्दे मातरम्। तुम बाप को वारिस बनाते हो। भक्तिमार्ग में तुम ईश्वर को दान क्यों देते हो? बाप तो बच्चों को देते हैं ना। फिर ईश्वर को दान क्यों करते हो? ईश्वर अर्थ करते हैं। कृष्ण अर्थ करते हैं। कृष्ण तुम्हारा क्या लगता है जो तुम उनको देते हो? कोई अर्थ चाहिए ना। कृष्ण गरीब तो है नहीं। फिर भी कहते हैं ईश्वर अर्थ, कृष्ण अर्थ तो होता ही नहीं। वह तो सतयुग का प्रिन्स है। बाप समझाते हैं कि मैं सबकी मनोकामनायें पूरी करता हूँ। कृष्ण तो मनोकामनायें पूरी कर न सके। वह तो कृष्ण को ईश्वर समझ कृष्ण अर्पणम् कहते हैं। वास्तव में फल देने वाला मैं हूँ। भक्तिमार्ग की सब बातें समझाई जाती हैं। शिवबाबा को तुम देते हो तो जरूर बच्चा ठहरा ना। भक्तिमार्ग में भी बच्चा है, यहाँ भी बच्चा है। भक्तिमार्ग में अल्पकाल के लिए एवजा मिल जाता है। अभी तो है डायेरक्ट, इसलिए तुमको 21 जन्मों के लिए वर्सा मिलता है। यहाँ तो पूरा बलिहार जाना पड़े। तुम एक बार बलिहार जाते हो तो यह 21 बार बलिहार जाते हैं। तुम कौड़ी ले आते हो बाप से हीरा लेने लिए। अन्दर समझते हैं हम चावल मुट्ठी शिवबाबा के भण्डारे में डालते हैं। सुदामे की बात अभी की है। शिवबाबा तुम्हारा क्या लगता है जो तुम उनको देते हो? बच्चा है तो तुम बड़े ठहरे ना। समझते हो एक देवे तो लाख पावे। देने वाला दाता वह एक ही है। साधू लोग तुमको कुछ देते नहीं हैं। भक्तिमार्ग में भी मैं देता हूँ, इसलिए बाबा पूछते हैं तुमको कितने बच्चे हैं! फिर कोई को समझ में आता है, कोई को समझ में नहीं आता है। अभी तुम जानते हो हम शिवबाबा पर बलि चढ़ते हैं। हमारा तन-मन-धन सब उनका है। वह हमको 21 जन्मों के लिए वर्सा देंगे। साहूकारों का हृदय विदीर्ण होता है। बाबा का नाम ही है गरीब-निवाज़। बाप कहते हैं तुमको अपना गृहस्थ व्यवहार सम्भालना है। ऐसे नहीं कि तुम यहाँ बैठ जाओ, सिर्फ श्रीमत पर चलते रहो। मामेकम् याद करो, बस। भक्तिमार्ग में भी तुम गाते हो कि मेरा तो एक दूसरा न कोई। तुम बच्चों को कितनी बातें समझाई जाती हैं। सब तो एक जैसे समझ वाले हो नहीं सकते। पिछाड़ी में निकलेंगे। फिर तुम्हारे में बल भी होगा। सुनने से ही झट आकर पकड़ लेंगे। निश्चय हो कि बाप हमको 21 जन्मों के लिए स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, तो एक सेकेण्ड भी न छोड़ें। यह बाबा अपना भी अनुभव सुनाते हैं ना। यह तो जौहरी था। बैठे बैठे क्या हो गया! बस, देखा बाबा द्वारा बादशाही मिलती है। विनाश भी देखा फिर राजाई भी देखी तो बोला बस, छोड़ो इस गुलामी को। साक्षात्कार हुआ, परन्तु ज्ञान नहीं था। बस मुझे बादशाही मिलती है। देखते हैं बाप स्वर्ग की बादशाही देने आये हैं तो फट से पकड़ना चाहिए ना। बाबा यह सब आपका है। आपके काम में लग गया। बाबा ने भी सब कुछ इन माताओं के हाथ में दे दिया। माताओं की कमेटी बनाई, उन्हों को दे दिया। बाबा ही सब कुछ कराते थे। समझा बाबा से 21 जन्मों के लिए बादशाही मिलती है, तो अब तुम भी लो ना। बाबा ने झट गुलामी छोड़ दी। जब से छोड़ा है तब से बड़ा खुशी में चलते आये हैं। यह तो अनेक बार हमने देवी-देवता धर्म स्थापन किया है। बाबा ने ब्रह्माकुमार कुमारियों द्वारा अनेक बार स्थापन किया होगा। जब ऐसी बात है तो देरी क्यों? बाबा से तो हम 21 जन्मों का वर्सा जरूर लेंगे। बाबा घर-बार तो नहीं छुड़ाते हैं। भल उनको भी अच्छी रीति सम्भालो, सिर्फ बाप को याद करना है। नशा रहना चाहिए कि हम बाबा के बने हैं। बाबा को लिखते हैं बाबा फलाना बहुत अच्छा निश्चयबुद्धि, समझदार है। बहुतों को समझाते हैं। परन्तु निश्चयबुद्धि हमारे पास तो आते नहीं। बाबा से मिले ही नहीं और मर जायें फिर बाबा से वर्सा कैसे मिलेगा। यहाँ तो बाप की गोद लेनी होती है ना। निश्चय हुआ और शरीर छोड़ दिया, मेहनत कुछ नहीं की। आइरन एज से गोल्डन एज न बने तो कामन प्रजा में जन्म ले लेंगे। अगर बच्चा बन अच्छी रीति पक्का होकर फिर शरीर छोड़े तो वारिस बन जाये। वारिस बनने में मेहनत थोड़ेही लगती है। कोई तो सूर्यवंशी राजाई पाते हैं, कोई तो सर्विस करते-करते पिछाड़ी में एक जन्म लिए करके राजाई की पाग पा लेंगे। वह कोई सुख थोड़ेही हुआ। राजाई का सुख तो पहले ही है फिर कलायें कम होती जाती हैं। बच्चों को तो पुरूषार्थ कर माँ बाप को फालो करना है। मम्मा बाबा की गद्दी पर बैठने के लायक तो बनो। हार्टफेल क्यों होना चाहिए! पुरूषार्थ कर फालो करो। सूर्यवंशी गद्दी का मालिक बनो। स्वर्ग में तो आओ ना। नापास होते हो तो चन्द्रवंशी में चले जाते हो, दो कला कम हो जाती हैं। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप से आशीर्वाद मांगने के बजाए याद की यात्रा में तत्पर रहना है। रूहानी यात्रा में कभी भी थकना नहीं है।
2) शिवबाबा को अपना वारिस बनाए उस पर पूरा-पूरा बलिहार जाना है। माँ बाप को फालो करना है। 21 जन्मों की राजाई का सुख लेना है।
वरदान:
दूसरों के लिए रिमार्क देने के बजाए स्व को परिवर्तन करने वाले स्वचिंतक भव
कई बच्चे चलते-चलते यह बहुत बड़ी गलती करते हैं-जो दूसरों के जज बन जाते हैं और अपने वकील बन जाते हैं। कहेंगे इसको यह नहीं करना चाहिए, इनको बदलना चाहिए और अपने लिए कहेंगे-यह बात बिल्कुल सही है, मैं जो कहता हूँ वही राइट है..। अब दूसरों के लिए ऐसी रिमार्क देने के बजाए स्वयं के जज बनो। स्वचिंतक बन स्वयं को देखो और स्वयं को परिवर्तन करो तब विश्व परिवर्तन होगा।
स्लोगन:
सदा हर्षित रहना है तो हर दृश्य को साक्षी होकर देखो।