Saturday, August 12, 2017

मुरली 13 अगस्त 2017

13-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:13-06-82 मधुबन 

“एक का मन्त्र याद रहे तो सबमें एक दिखाई देगा” (टीचर्स के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात)
आज बच्चों के संगठन और स्नेह, सहयोग, परिवर्तन का दृढ़ संकल्प, इस खुशबू को लेने के लिए आये हैं। बच्चों की खुशी में बापदादा की खुशी है। सदा यह अविनाशी खुशी और अविनाशी खुशबू बच्चों के साथ रहे - ऐसा ही अविनाशी संकल्प किया है ना! शुरू-शुरू में आदि स्थापना के समय एक दो को क्या लिखते थे और कहते थे, वह याद है? क्या शब्द बोलते थे? “प्रिय निज आत्मा”। यही आत्म-अभिमानी बनने और बनाने का साधन सहज रहा। नाम, रूप नहीं देखते थे। याद हैं वह अभ्यास के दिन! कितना नैचुरल रूप रहा? मेहनत करनी पड़ी? यही आदि शब्द अभी गुह्य रहस्य सहित प्रैक्टिकल में लाओ तो स्वत: ही स्मृति स्वरूप हो जायेंगे। एक का मन्त्र, एक बाप, एक घर, एकमत, एकरस, एक राज्य, एक धर्म, एक नाम आत्मा, एक रूप। एक का मन्त्र सदा याद रहे तो क्या हो जायेगा? सर्व में एक दिखाई देगा। यह सहज है ना! जब एक ही दिखाई देगा तो जो गीत गाते हो मेरा तो एक बाप... यह स्वत: ही होगा। ऐसा ही संकल्प किया है ना! बापदादा तो सिर्फ नैन मिलन करने आये हैं। बच्चों ने बुलाया और बाप आये। बाप ने बच्चों के स्नेह का रेसपान्ड दिया। जो कहा वह हुआ ना! आप लोगों ने संदेश भेजा कि दो घड़ी के लिए भी आओ। सबका संदेश तो पहुँच गया! आपका संकल्प करते ही बापदादा ने सुन लिया। वाणी में आने से पहले बापदादा के पास पहुंच जाता है। (जयन्ति बहन को देख बाबा बोले) विदेश से आना क्या सिद्ध करता है? दिल दूर नहीं तो देश भी दूर नहीं। दिल नजदीक है इसलिए यह भी एक दो के समीप होने का सबूत है। सदा एक दो के साथी हैं, यह प्रैक्टिकल स्वरूप दिखाया। यही मुरब्बी बच्चों की निशानी है। बापदादा निमित्त बने हुए सदा उमंग उत्साह बढ़ाने वाली विशेष आत्मा को प्रत्यक्ष सबूत की मुबारक दे रहे हैं। एक आप को नहीं देख रहे हैं लेकिन सभी बच्चों की दिल यहाँ है और देह वहाँ है। ऐसे सर्व बच्चों को भी बापदादा संगठन में देख रहे हैं। याद तो वैसे भी उन्हों को पहुँच जाती है फिर भी सभी बच्चों को देख स्नेह के सूत्र में बंधे हुए सदा समीप रहने वाली आत्माओं को विशेष यादप्यार दे रहे हैं। ऐसे तो देश में से भी जो बच्चे साकार में यहाँ नहीं हैं लेकिन उन्हों की भी दिल यहाँ है। उन बच्चों को भी बापदादा विशेष यादप्यार दे रहे हैं। अच्छा। (निर्वैर भाई से) यह भी विदेश जा रहे हैं! एवररेडी बन गये ना! इसको कहा जाता है मीठा ड्रामा। तीनों बिन्दियों के तिलक की सौगात हो गई। जब से संकल्प किया और तीन बिन्दयों का तिलक ड्रामा अनुसार फिर से लग गया। लगा हुआ है और फिर से लग गया। यह अविनाशी तिलक सदा मस्तक पर लगा हुआ है ना। तीनों ही बिन्दी साथ-साथ हैं। बापदादा ने इस तिलक से वतन में स्वागत कर लिया, ठीक है ना! विशेष कौन से स्वरूप द्वारा सन्देश देने जा रहे हो? विशेष पाठ क्या याद दिलायेंगे? “सदा उमंग-उत्साह में उड़ते चलो” यही विशेष पाठ सभी को अनुभव द्वारा पढ़ाना। अनुभव द्वारा पाठ पढ़ना यह अविनाशी पाठ हो जाता है। तो विशेष नवीनता यही हो - अनुभव में रह अनुभव कराना। मुख की पढ़ाई तो बहुत समय चली। अभी सभी को इसी पढ़ाई की आवश्यकता है। इसी विधि द्वारा सभी को उड़ती कला में ले जाना क्योंकि अनुभव बड़े से बड़ी अथॉरिटी है। जिसको अनुभव की अथॉरिटी है उसको और कोई अथॉरिटी वार नहीं कर सकती। माया की अथॉरिटी चल नहीं सकती। तो यही विधि विशेष ध्यान में रखकर चक्कर लगाना। तो यह नवीनता हो जायेगी ना क्योंकि जब भी कोई जाता है तो सभी यही सोचते हैं कि कोई नवीनता मिले। बोलना और स्वरूप बनकर स्वरूप बनाना, यह साथसाथ हो। आपकी पसन्दी भी यह है ना! ड्रामा अनुसार अभी समय जो नूँधा हुआ है वही सेवा के लिए योग्य समझो। संकल्प तो समाप्त हो गया ना! एवररेडी बन सब तैयारियाँ भी सेकण्ड में हो गई हैं ना। स्थूल साधन तो वहाँ सब हैं। बने बनाये साधन हैं। कुछ रह गया तो भी कोई बड़ी बात नहीं। यहाँ से तो दो ड्रेस में भी चले जाओ तो हर्जा नहीं। वहाँ रेडीमेड मिल जाता है। सूक्ष्म तैयारी तो हो गई है ना! स्थूल तैयारी बड़ी बात नहीं। उन्हों को खुशखबरी सुनानी है। वे चाहते हैं कि विनाश न हो। इस दुनिया की स्थापना ही रहे। विनाश से डरते क्यों हैं? क्योंकि समझते हैं हमारी यह दुनिया खत्म हो जायेगी इसलिए डरते हैं। लेकिन दुनिया तो और ही नई आने वाली है। उन्हों को यह खुशखबरी मिल जाए तो जाे आप सबका संकल्प है कि हमारी यह दुनिया सदा वृद्धि को पाती रहे और अच्छे ते अच्छी बनती जाए, यह आपका संकल्प विश्व के रचयिता बाप के पास पहुँच गया है। और विश्व का मालिक विश्व में शान्ति स्थापना हो, उसका कार्य करा रहे हैं। और जो आप सबकी आश है कि एक विश्व हो जाए, विश्व में स्नेह हो, प्यार हो, लड़ाई झगड़ा न हो, यही आप सब आत्माओं की आश पूर्ण होने का समय पहुँच गया है। लेकिन किस विधि से होगा, उस विधि को सिर्फ जानो। विधि यथार्थ है तो सिद्धि भी होगी। सिद्धि तो मिलनी है लेकिन किस विधि द्वारा मिलेगी, वह नहीं जानते हैं। कन्फ्रेन्स आदि तो करके देखी है, लेकिन संकल्प मन से नहीं निकलता। लड़ाई-झगड़े का बीज ही खत्म हो जाए तो शस्त्र आदि होते भी यूज नहीं करना पड़े क्योंकि नुकसान कोई शस्त्र नहीं करते, नुकसान करने वाला क्रोध है ना कि शस्त्र, बीज क्रोध है। तो उसी विधिपूर्वक बीज को ही खत्म कर दें तो सिद्धि हुई पड़ी है। लड़ाई-झगड़े का बीज ही खत्म हो जाए। तो सर्व आत्माओं की आश पूर्ण होने का समय आ गया है। समय सबकी बुद्धि को प्रेर रहा है। गुप्त कार्य जो चल रहा है, वह कार्य सभी को अपनी तरफ खींच रहा है लेकिन वह जान नहीं सकते कि यह संकल्प क्यों आ रहा है! बनाया भी खुद और फिर यूज न करें यह संकल्प क्यों चल रहा है! तो स्थापना का कार्य प्रेरित कर रहा है लेकिन वह जानते नहीं। यह आप स्वयं समझते हो कि परिवर्तन में विनाश के सिवाए स्थापना होगी नहीं। लेकिन भावना तो उन्हों की भी वही है ना! उन्हों की भावना को लेकर यह खुशखबरी उन्हों को सुनाओ तो विधि यही सुनायेंगे कि शान्ति के सागर द्वारा ही शान्ति होगी। हम सब एक हैं। यह ब्रदरहुड की भावना किस आधार से बन सकती? जिससे यह संकल्प ही ना उठे, मेहनत नहीं करनी पड़े। कभी हथियार यूज करें, कभी नहीं करें। लेकिन यह संकल्प ही समाप्त हो जाए, ब्रदरहुड हो जाए, यह है विधि। ब्रदरहुड आ गया तो बाप तो है ही। ऐसे खुशखबरी के रूप से उन्हों को सुनाओ। शान्ति का पाठ पढ़ना पड़ेगा। (शान्ति की विधि से अशान्ति खत्म होगी) लेकिन वह शान्ति आवे कैसे? उसके लिए फिर मन्त्र देना पड़े। शान्ति का पाठ पढ़ाते हो ना! मैं भी शान्त, घर भी शान्त, बाप भी शान्ति का सागर, धर्म भी शान्त। तो ऐसा पाठ पढ़ाओ। शान्ति ही शान्ति का पाठ। दो घड़ी के लिए तो अनुभव करेंगे ना। एक घड़ी भी डेड साइलेन्स की अनुभूति हो जाए तो वह बार-बार आपको थैंक्स देंगे। आपको ही भगवान समझने लग जायेंगे क्योंकि बहुत परेशान हैं ना। जितनी ज्यादा बड़ी बुद्धि है उतनी बड़ी परेशानी भी है, ऐसी परेशान आत्माओं को अगर जरा भी अंचली मिल जाती तो वही उन्हों के लिए एक जीवन का वरदान हो जाता। जिसको भी चांस मिले वह बोलते-बोलते शान्ति में जाएं। एक सेकण्ड भी अनुभूति में उन्हों को ले जाएं तो वह बहुत-बहुत थैंक्स मानेंगे। वातावरण ऐसा बना दो जो सभी ऐसे अनुभव करें जैसे कोई शान्ति की किरण आ गई है। चाहे एक, आधा सेकण्ड ही अनुभव हो क्योंकि यह तो वायुमण्डल द्वारा होगा ना! ज्यादा समय नहीं रह सकेंगे। एक आधा सेकण्ड भी वायुमण्डल ऐसा हल्का बन जाए तो अन्दर से बहुत शुक्रिया मानेंगे क्योंकि विचारे बहुत हलचल में हैं। उन्हों को देख बापदादा को तो रहम आता है। न रात की नींद, न दिन की, भोजन भी खाने की रीति से नहीं खाते। जैसेकि ऊपर में बोझ पड़ा हुआ है। क्या होगा, कैसे होगा! तो ऐसी आत्माओं को एक झलक भी मिल जाए तो क्या मानेंगे! उन्हों के लिए तो समझो सूर्य नीचे उतर आया। एक झलक ही चाहिए। ज्यादा समय तो वह शक्ति को धारण भी नहीं कर सकेंगे। यह तो थोड़ी घड़ी की बात है। जैसे लहर आती और चली जाती है। इतना भी अनुभव हुआ तो उन्हों के लिए तो बहुत है क्योंकि बहुत परेशान हैं। उन्हों को थोड़ा तिनके का सहारा भी बहुत है। अच्छा। संकल्प पूरा हुआ? बच्चों की खुशी में बाप की खुशी है। सफलता मूर्त हो ना! सफलता तो साथ है ही। जब बाप साथ है तो सफलता कहाँ जायेगी। जहाँ बाप है वहाँ सर्व सिद्धियाँ साथ हैं। बिन्दी लगाना आता है वा बिन्दी पर फिर क्वेश्चन आ जाता? आजकल की दुनिया में ऐसा बारूद चलाते हैं जो इतनी छोटी बिन्दी से इतना बड़ा सांप बन जाता है। यहाँ भी लगानी चाहिए बिन्दी। बिन्दी में सब समा जाता है। अगर संकल्प की तीली लगा देते तो फिर वह सांप हो जाता। न तीली लगाओ न सांप बने। बापदादा बच्चों का यह खेल देखता रहता है। जो होता सबमें कल्याण भरा हुआ है। ऐसा क्यों वा क्या नहीं। जो कुछ अनुभव करना था, वह किया। परिवर्तन किया और आगे बढ़ो। यह है बिन्दी लगाना। सभी विदेशियों को भी यह खेल बताना। उन्हों को ऐसी बातें अच्छी लगती है। (दादी जी और दादी चन्द्रमणी बाबा के पास बैठी हैं) यह तो बारात की शान हैं। बापदादा का विशेष श्रृंगार यह हैं। आप सभी के आगे परिवार के श्रृंगार कौन हैं? यही (दादियां) हैं ना। सबके मन में इन विशेष आत्माओं प्रति सदा क्या संकल्प रहता कि यह सदा जीती रहें। यह सब आप लोगों को अमर भव का सहयोग देती रहती है। एक दादी को भी कुछ होता है तो सबका संकल्प चलता है ना! यह स्थूल में निमित्त छत्रछाया है। वैसे तो बाप की छत्रछाया हैं लेकिन निमित्त यह अनुभवी आत्मायें मास्टर छत्रछाया हैं। कभी धूप अथवा कभी बारिश आती है तो छत्रछाया में चले जाते हैं ना। आप लोगों के पास भी कोई प्राब्लम आती है तो क्या करते हो? साकार में इन्हों के पास आना पड़ता है। बाप से तो रूह-रूहान करेंगे लेकिन पत्र तो मधुबन में लिखेंगे ना! जैसे वहाँ देखा है ना जहाँ एक्सकरशन करने जाते हैं तो बीच-बीच में छतरी लगा देते हैं फिर उनके बीच मनोरंजन प्रोग्राम करते हैं। यह भी ऐसे है। छतरियाँ जहाँ-तहाँ लगी हुई हैं। जब कुछ होता तो मनोरंजन भी करते हैं। मधुबन में हंसते, नाचते, गाते हो ना। तो बापदादा को भी खुशी होती है। बच्चे मनोरंजन मना रहे हैं। यही स्नेह सभी को बाप के स्नेह तरफ आकर्षित करता है। जैसे यह निमित्त बनी हुई हैं, ऐसे ही आप भी अपने को हर स्थान की छतरी समझो। जिनके निमित्त बनते हो उन्हों को सेफ्टी का साधन मिल जाए। झुकाव नहीं हो लेकिन सहारा दो। निमित्त बनकर सहारा, सहयोग देना दूसरी बात है लेकिन सहारेदाता बनकर सहारा नहीं दो। निमित्त बन सहारा देना और सहारे दाता बन सहारा देना, इसमें अन्तर हो जाता है। अगर आप नहीं समझते हो कि मैं सहारा हूँ परन्तु दूसरा आपको समझता है तो भी नाम तो दोनों का होगा ना! सेवा समझ करके निमित्त बन उमंग-उत्साह बढ़ाने का सहारा देना, इस विधि पूर्वक सहारा दो तो कभी भी रिपोर्ट नहीं निकलेगी। लेकिन सब कुछ उनको ही समझने लग जाते कि यही मेरा सहारा है, इसको कहा जाता है सहारा दाता बन सहारा दिया। लेकिन सेवा समझ निमित्त बन सहयोग का सहारा देना वह दूसरी बात है। तो आप सब कौन हो? अन्त में सब पार्टधारी इकठ्ठे स्टेज पर आयेंगे। चाहे इस शरीर द्वारा सेवाधारी, चाहे भिन्न-भिन्न शरीर द्वारा सेवाधारी। सब इकठ्ठे पार्टधारी स्टेज पर आना अर्थात् जयजयकार हो समाप्ति होना क्योंकि उन्हों का है ही गुप्त रूप में स्थापना में सहयोगी बनने का पार्ट। आप प्रत्यक्ष रूप में हो। वह गुप्त रूप में अपना स्थापना का पार्ट बजा रहे हैं, अभी प्रत्यक्ष नहीं होंगे क्योंकि पर्दा उठने का समय तब आये जब सब एवररेडी हो जाएं। सम्पन्न हो जाएं। पर्दा उठा फिर तो समाप्ति होगी ना। ऐसे सब तैयार हैं? पर्दा उठने की तैयारी है? अभी वारिस क्वालिटी की माला तैयार हुई है? 108 भी सम्पन्नता के काफी समीप हों, बिल्कुल सम्पन्न हो जाएं। समय के हिसाब से भी सम्पूर्णता के नजदीक हों। ऐसे समझते हो? उसकी निशानी क्या होगी? माला की विशेषता क्या होगी? माला तैयार है, उसकी विशेष निशानी क्या दिखाई देगी? एक के साथ एक दाना मिला हुआ है। यह माला की निशानी है। माला की विशेषता है एक दो के संस्कारों के समीप। दाने से दाना मिला हुआ। वह तैयारी है? जिसको भी देखें, चाहे 108 वां नम्बर हो लेकिन दाना मिला हुआ तो वह भी है ना! ऐसे जुड़े हुए हैं। सभी को यह महसूसता आवे कि यह तो माला के समान पिरोये हुए मणके हैं। ऐसे नहीं संस्कार सबके वैरायटी हैं तो नजदीक कैसे होंगे? नहीं। वैरायटी संस्कार होते भी समीप दिखाई दें। वैरायटी के आधार पर नम्बर हो गये लेकिन दाने तो नजदीक हैं ना, एक दो के। जब तक एक दूसरे से न मिलें तब तक माला बन नहीं सकती। एक भी दाना निकल जाए तो माला खण्डित हो जाए। पूज्य माला नहीं कही जायेगी। दूर भी रह जाएं तो भी कहेंगे यह पूज्यनीय माला नहीं। 108 वां नम्बर भी अगर थोड़ा दूर है तो माला रेडी नहीं हो सकती। अच्छा।
वरदान:
सर्वशक्तियों को अपने अधिकार में रख सहज सफलता प्राप्त करने वाले मा. सर्वशक्तिमान् भव
जितना-जितना मास्टर सर्वशक्तिमान् की सीट पर सेट होंगे उतना ये सर्व शक्तियां आर्डर में रहेंगी। जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियां जिस समय जैसा आर्डर करते हो वैसे आर्डर से चलती हैं, ऐसे सूक्ष्म शक्तियां भी आर्डर पर चलने वाली हों। जब यह सर्व शक्तियाँ अभी से आर्डर पर होंगी तब अन्त में सफलता प्राप्त कर सकेंगे क्योंकि जहाँ सर्व शक्तियाँ हैं, वहाँ सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है।
स्लोगन:
आकारी और निराकारी स्थिति में सहज स्थित होना है तो निरंहकारी बनो।