Tuesday, August 22, 2017

मुरली 23 अगस्त 2017

23-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - समय बहुत थोड़ा है इसलिए रूहानी धन्धा करो, सबसे अच्छा धंधा है - बाप और वर्से को याद करना, बाकी सब खोटे धन्धे हैं”
प्रश्न:
तुम बच्चों के अन्दर कौनसी उत्कण्ठा होनी चाहिए?
उत्तर:
कैसे हम बिगड़ी हुई आत्माओं को सुधारें, सभी को दु:ख से छुड़ाकर 21 जन्मों के लिए सुख का रास्ता बतावें। सबको बाप का सच्चा-सच्चा परिचय दें - यह उत्कण्ठा तुम बच्चों में होनी चाहिए।
गीत:-
भोलेनाथ से निराला...  
ओम् शान्ति।
भोलानाथ बच्चों को ओम् शान्ति का अर्थ भी समझाते हैं। खुद भी कहते हैं ओम् शान्ति तो बच्चे भी कहते हैं ओम् शान्ति। यह अपना परिचय देना होता है कि हम आत्मा शान्त स्वरूप, शान्तिधाम के रहने वाले हैं। हमारा बाप भी वहाँ रहने वाला है। भक्तिमार्ग में भी बाबा-बाबा कहते हैं। भल मनुष्य गाते हैं परन्तु हैं रावण मत पर। रावण मत मनुष्य को बिगाड़ती है। बाप आकर बिगड़ी को बनाते हैं। रावण भी एक है, राम भी एक है। 5 विकारों को मिलाकर कहते हैं रावण। रावण अपना राज्य स्थापन करते हैं, शोकवाटिका में बैठने का। वह बिगाड़ते हैं, वह बनाते हैं। रावण को मनुष्य नहीं कहा जाता है। परन्तु दिखाते हैं 5 विकार पुरूष क़े 5 विकार स्त्री के। रावण राज्य में दोनों में विकार हैं। तुम जानते हो 5 विकार हमारे में भी थे। अभी हम श्रीमत पर निर्विकारी बनते जाते हैं। बिगड़ी को सुधार रहे हैं। जैसे बाप सबकी बिगड़ी बनाते हैं, बच्चों में भी यही उत्कण्ठा रहनी चाहिए कि कैसे हम बिगड़ी को बनावें। सब मनुष्य मात्र एक दो की बिगाड़ते रहते हैं। बिगड़ी को सुधारने वाला एक ही बाप है। तो जैसे तुम सुधरे हो वैसे तात (लगन) लगी रहे कि कैसे जाकर दु:खी आत्माओं की सहायता करें। बाप की जो उत्कण्ठा है वह सपूत बच्चे ही पूरी कर सकते हैं। बच्चों की बुद्धि में उत्कण्ठा रहनी चाहिए कि कैसे किसकी बिगड़ी को बनायें। मित्र सम्बन्धियों को भी समझाना चाहिए। उनको भी रास्ता बतायें। दु:खी जीव आत्माओं को 21 जन्मों के लिए सुखी बनायें, फिर भी हमारे भाई बहन हैं, बहुत दु:खी अशान्त हैं। हम तो बाप से वर्सा ले रहे हैं तो ख्याल आना चाहिए कि कैसे जाकर किसको समझायें, भाषण करें। घर-घर जायें, मन्दिरों में जायें। बाप मत देते हैं, मन्दिरों में बहुत सर्विस कर सकते हो। भक्त बहुत हैं, अन्धश्रद्धा से शिव के मन्दिर में बहुत जाते हैं। अन्दर में कोई न कोई आश रखकर जाते हैं। यह नहीं समझते कि शिव हमारा बाप है। उनकी इतनी जो महिमा है तो जरूर कभी कुछ करके गये होंगे। शिव के मन्दिर में क्यों जाते हैं! अमरनाथ पर यात्रा करने क्यों जाते हैं! ढेर यात्रियों को ब्राह्मण लोग वा सन्यासी ले जाते हैं। यह है भक्तिमार्ग का धन्धा, इससे तो सुधरेंगे नहीं। भोलानाथ बाप ही आकर बिगड़ी को बनाते हैं। वह विश्व का रचयिता अथवा मालिक है लेकिन खुद नहीं बनता है। मालिक तुम बच्चों को बनाते हैं। परन्तु वह ऊंच है, उनसे वर्सा मिल रहा है। तुमको दिल में आना चाहिए कि कैसे हम भाई बहनों को रास्ता बतायें। किसको दु:खी, रोगी देखा जाता है तो रहम आता है ना। बाप कहते हैं अभी हम तुमको ऐसा सुखी बनाते हैं जो आधाकल्प के लिए रोगी नहीं होंगे। तो तुम बच्चों को औरों को भी सुखधाम का रास्ता बताना है। सर्विस की उत्कण्ठा वाले एक जगह रह नहीं सकेंगे। समझेंगे हम भी जाकर किसको सुखधाम का रास्ता बतायें। बाबा तो बहुत ललकार करते हैं। अविनाशी ज्ञान रत्नों की पूरी धारणा होगी तो बहुतों का कल्याण कर सकते हैं। इस राजाई की स्थापना में पैसे की दरकार नहीं रहती है। वो लोग तो आपस में ही लड़ते झगड़ते रहते हैं, रावण की मत पर। हम रावण से राज्य छीनते हैं। रामराज्य राम द्वारा ही मिलता है। सतयुग में रामराज्य शुरू होता है, यहाँ कलियुग में रामराज्य कहाँ से आया। यह तो रावण राज्य है, सब दु:खी हैं। यह बात तुम सभी को समझा सकते हो। पहले उन्हें समझाना है जो गरीब हैं, व्यापारी हैं। बाकी बड़े आदमी तो कहेंगे कि हमको फुर्सत नहीं है, हम बिजी हैं। समझते हैं हम भारत को स्वर्ग बना रहे हैं, प्लैन करते रहते हैं। लेकिन तुम जानते हो शिवबाबा बिगर कोई स्वर्ग बना नहीं सकते। अभी टाइम बाकी थोड़ा है। रामराज्य स्थापन करने में ढील नहीं करनी है। रात दिन फुरना रहना चाहिए - कैसे किसको दु:ख से छुड़ायें। बच्चों को यह दिल में आना चाहिए - कैसे भाई बहिनों को रास्ता बतायें। अभी सब रावण की मत पर हैं। बाप तो बाप है जो बच्चों को आकर वर्सा देते हैं। मनुष्य कोर्ट में जाकर कहते हैं ईश्वर को हाज़िर-नाज़िर जान सच कहता हूँ। परन्तु अगर वह सर्वव्यापी है तो फिर प्रार्थना किसकी करते हैं! उनको कुछ भी पता नहीं है। बाप बार-बार समझाते हैं, मित्र सम्बन्धियों को जगाओ। तुम बच्चों को बड़ा मीठा बनना है। क्रोध का अंश भी न हो, परन्तु सब बच्चे तो ऐसे बन नहीं सकते। बहुत बच्चे हैं जिनको माया एकदम नाक से पकड़ लेती है। कितना भी समझाओ तो भी सुनते ही नहीं। बाप भी समझते हैं - शायद टाइम लगेगा। जब सब अच्छी रीति बाप की सर्विस में लग जायें। शौक भी तो चाहिए ना जो आकर कहें कि बाबा हमको सर्विस पर भेजो, हम जाकर औरों का कल्याण करें। परन्तु बोलते नहीं। बच्चों का धन्धा ही है सच्ची गीता सुनाना। अक्षर ही दो हैं - अल्फ और बे। बाबा ने अच्छी तरह युक्ति समझाई है। पहली बात ही यह है - परमपिता परमात्मा से आपका क्या सम्बन्ध है! नीचे में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी नाम लिखा हुआ है। बाबा बहुत नया तरीका, बहुत सहज बताते हैं। बाबा को उत्कण्ठा रहती है - ऐसे ऐसे बोर्ड लगाना चाहिए। बाबा डायरेक्शन देते हैं। बाप को कहते ही हैं रहमदिल, ब्लिसफुल तो बच्चों को भी बाप समान रहमदिल बनना है। इन चित्रों में तो बहुत बड़ा खजाना है। स्वर्ग के मालिक बनने की इनमें युक्ति है। बाप तो बहुत युक्तियां निकालते रहते हैं। कल्प पहले भी निकाली थी और अब भी निकाली हैं। मनुष्यों को टच होगा कि यह बात तो बड़ी अच्छी है। बाप से जरूर वर्सा मिलेगा। यह भी लिख दो स्वर्ग के वर्से के तुम हकदार हो। आकर समझो, बहुत सहज बात है। सिर्फ बोर्ड बनाकर अच्छी-अच्छी जगह पर लगाना है। 10-20 स्थानों पर बोर्ड लगाओ, यह एडवरटाइजमेंट भी डाल सकते हो। हमारे जो बिछुड़े हुए बच्चे होंगे उन्हों को यह अक्षर लगेंगे। कहेंगे पता तो निकालें कि यह क्या समझाते हैं। यह भी लिखा हुआ हो कि इस पहेली को समझने से तुम मुक्ति-जीवनमुक्ति को पा सकते हो, एक सेकेण्ड में।
बाप कहते हैं अगर अपनी जीवन बनानी है तो सर्विस करो। सागर पास आकर रिफ्रेश हो फिर सर्विस करनी है। भक्ति मार्ग में तो आधाकल्प धक्के खाये हैं। यहाँ तो एक सेकेण्ड में बाप को जान बाप से वर्सा पाना है। सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। मौत सामने खड़ा है। सबसे अच्छा धन्धा है यह। बाकी जो भी मनुष्य धन्धे करते हैं वह हैं खोटे। एक धन्धा सिर्फ करना है - बाप और वर्से को याद करो। कॉलेजों में जाकर प्रिन्सीपाल को समझाओ तो पढ़ने वाले भी समझें। तुम कितना सहज वर्सा ले रहे हो। जितना हो सके बाप को याद करो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बहुत-बहुत मीठा बनना है। क्रोध का अंश भी निकाल देना है। बाप समान रहमदिल बन सर्विस पर तत्पर रहना है।
2) मौत सामने खड़ा है। वानप्रस्थ अवस्था है इसलिए बाप को और वर्से को याद करना है। भारत को रामराज्य बनाने की सेवा में अपना सब कुछ सफल करना है।
वरदान:
बेहद के अधिकार को स्मृति में रख सम्पूर्णता की बधाईयां मनाने वाले मास्टर रचयिता भव
संगमयुग पर आप बच्चों को वर्सा भी प्राप्त है, पढ़ाई के आधार पर सोर्स आफ इनकम भी है और वरदान भी मिले हुए हैं। तीनों ही संबंध से इस अधिकार को स्मृति में इमर्ज रखकर हर कदम उठाओ। अभी समय, प्रकृति और माया विदाई के लिए इन्तज़ार कर रही है सिर्फ आप मास्टर रचयिता बच्चे, सम्पूर्णता की बधाईयां मनाओ तो वो विदाई ले लेगी। नॉलेज के आइने में देखो कि अगर इसी घड़ी विनाश हो जाए तो मैं क्या बनूंगा?
स्लोगन:
हर समय, हर कर्म में बैलेन्स रखो तो सर्व की ब्लैसिंग स्वत: प्राप्त होंगी।

"मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य - 1956"
"परमात्म ज्ञान का अर्थ है जीते जी मर जाना"
इस अविनाशी ज्ञान को परमात्म ज्ञान कहते हैं, इस ज्ञान का मतलब है जीते जी मर जाना इसलिए कोटों में कोई विरला यह ज्ञान लेने की हिम्मत रखता है। यह तो हम जानते हैं कि यह ज्ञान प्रैक्टिकल जीवन बनाता है, हम जो सुनते हैं वो प्रैक्टिकल में बनते हैं, ऐसा ज्ञान कोई साधू संत महात्मा दे नहीं सकते। वो लोग ऐसे नहीं कहेंगे मनमनाभव, अब यह फरमान सिर्फ परमात्मा ही कर सकता है। मनमनाभव का अर्थ है मेरे साथ योग लगाओ। अगर मेरे साथ योग लगायेंगे तो मैं तुम्हें पापों से मुक्त कर वैकुण्ठ की बादशाही दूँगा। वहाँ तुम चलकर राज्य करेंगे इसलिए इस ज्ञान को राजाओं का राजा कहते हैं। अब यह ज्ञान लेना बहुत महंगा सौदा है, ज्ञान लेना अर्थात् एक ही धक से जीते जी मर जाना। शास्त्रों आदि का ज्ञान लेना तो बिल्कुल सस्ता सौदा है। उसमें तो घड़ी-घड़ी मरना होगा क्योंकि वो परमात्मा का ज्ञान नहीं देते इसलिए बाबा कहते हैं अभी जो करना है वो अब करो फिर यह व्यापार नहीं रहेगा।
2) परमात्मा सत् चित्त आनंद स्वरूप हैं...
परमपिता परमात्मा को सत् चित्त आनंद स्वरूप भी कहते हैं, अब परमात्मा सत् क्यों कहते हैं? क्योंकि वह अविनाशी इमार्टल है, वो कब असत् नहीं होता, अजर अमर है और परमात्मा को चैतन्य स्वरूप भी कहते हैं। चैतन्य का अर्थ है परमात्मा भी मन बुद्धि सहित है, उसको नॉलेजफुल पीसफुल कहते हैं। वो ज्ञान और योग सिखला रहे हैं इसलिए परमात्मा को चैतन्य भी कहते हैं, भल वो अजन्मा भी है वो हम आत्माओं मुआफिक जन्म नहीं लेता, परमात्मा को भी यह नॉलेज और शान्ति देने के लिये ब्रह्मा तन का लोन लेना पड़ता है। तो वो जब चैतन्य है तभी तो मुख द्वारा हमें ज्ञान योग सिखला रहे हैं और फिर परमात्मा को आनंद स्वरूप भी कहते हैं, सुख स्वरूप भी कहते हैं यह सब गुण परमात्मा में भरा हुआ है इसलिए परमात्मा को सुख दु:ख से न्यारा कहते हैं। हम ऐसे नहीं कहेंगे कि परमात्मा कोई दु:ख दाता है, नहीं। वो सदा सुख आनंद का भण्डार है, जब उसके गुण ही सुख आनंद देने वाले हैं तो फिर हम आत्माओं को वह दु:ख कैसे दे सकता है!
3) परमात्मा करनकरावनहार है....
बहुत मनुष्य ऐसे समझ बैठे हैं कि यह जो अनादि बना बनाया सृष्टि ड्रामा चल रहा है वो सारा परमात्मा चला रहा है इसलिए वो कहते हैं कि मनुष्य के कुछ नाहीं हाथ... करनकरावनहार स्वामी... सबकुछ परमात्मा ही करता है। सुख दु:ख दोनों भाग परमात्मा ने ही बनाया है। अब ऐसी बुद्धि वालों को कौनसी बुद्धि कहा जायेगा? पहले पहले उन्हों को यह समझना जरुर है कि यह अनादि बनी बनाई सृष्टि का खेल वो परमात्मा जो अब बनाता है, वही चलता है। जिसको हम कहते हैं यह बनी बनाई का खेल ऑटोमेटिक चलता ही रहता है तो फिर परमात्मा के लिये भी कहा जाता है कि यह सबकुछ परमात्मा ही करता है, अब वो फिर किस हैसियत को रख परमात्मा उत्पत्ति करते हैं! यह जो परमात्मा को करनकरावनहार कहते हैं, यह नाम फिर कौनसी हस्ती के ऊपर पड़ा है? अब इन बातों को समझना है। पहले तो यह समझना है कि यह जो सृष्टि का अनादि नियम है वो तो बना बनाया है, जैसे परमात्मा भी अनादि है, माया भी अनादि है और यह चक्र भी आदि से लेकर अन्त तक अनादि अविनाशी बना बनाया है। जैसे बीज में अण्डरस्टुड वृक्ष का ज्ञान है और वृक्ष में अण्डरस्टुड बीज है, दोनों कम्बाइंड हैं, दोनों अविनाशी हैं, बाकी बीज का क्या काम है, बीज बोना झाड़ निकलना। अगर बीज न बोया जाए तो वृक्ष उत्पन्न नहीं होता। तो परमात्मा भी स्वयं इस सारी सृष्टि का बीजरूप है और परमात्मा का पार्ट है बीज बोना। परमात्मा ही कहता है मैं परमात्मा हूँ ही तब जब बीज बोता हूँ, नहीं तो बीज और वृक्ष अनादि है, अगर बीज नहीं बोया जाए तो वृक्ष कैसे निकलेगा! मेरा नाम परमात्मा ही तब है जब मेरा परम कार्य है, मेरी सृष्टि वही है जो मैं खुद पार्टधारी बन बीज बोता हूँ। सृष्टि की आदि भी करता हूँ और अन्त भी करता हूँ, मैं करनधारी बन बीज बोता हूँ, आदि करता हूँ बीज बोने समय फिर अन्त का भी बीज़ आता है फिर सारा झाड़ बीज की ताकत पकड़ लेता है। बीज का मतलब है रचना करना फिर उनकी अन्त करना। पुरानी सृष्टि की अन्त करना और नई सृष्टि की आदि करना इसको ही कहते हैं परमात्मा सबकुछ करता है। अच्छा। ओम् शान्ति।