Monday, February 8, 2016

मुरली 09 फरवरी 2016

09-02-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– बुद्धि में स्थाई एक बाप की ही याद रहे तो यह भी अहो सौभाग्य है|”  
प्रश्न:
जिन बच्चों को सर्विस का शौक होगा उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:
वह मुख से ज्ञान सुनाने बिगर रह नहीं सकते। वह रूहानी सेवा में अपनी हड्डी-हड्डी स्वाहा कर देंगे। उन्हें रूहानी नॉलेज सुनाने में बहुत खुशी होगी। खुशी में ही नाचते रहेंगे। वह अपने से बड़ों का बहुत रिगार्ड रखेंगे, उनसे सीखते रहेंगे।
गीतः
बदल जाए दुनिया........
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत की दो लाइन सुनी। यह वायदे का गीत है, जैसे कोई की सगाई होती है तो यह वायदा करते हैं कि स्त्री-पुरुष कभी एक-दो को छोड़ेंगे नहीं। कोई की आपस में नहीं बनती है तो छोड़ भी देते हैं। यहाँ तुम बच्चे किसके साथ प्रतिज्ञा करते हो? ईश्वर के साथ। जिसके साथ तुम बच्चों की वा सजनियों की सगाई हुई है। परन्तु ऐसा जो विश्व का मालिक बनाते हैं, उनको भी छोड़ देते हैं। यहाँ तुम बच्चे बैठे हो तुम जानते हो अभी बेहद का बापदादा आया कि आया। यह अवस्था जो तुम्हारी यहाँ रहती है, वह बाहर सेन्टर पर तो रह न सके। यहाँ तुम समझेंगे बापदादा आया कि आया। बाहर सेन्टर पर समझेंगे बाबा की बजाई हुई मुरली आई कि आई। यहाँ और वहाँ में बहुत फ़र्क रहता है क्योंकि यहाँ बेहद के बापदादा के सम्मुख तुम बैठे हो। वहाँ तो सम्मुख नहीं हो। चाहते हैं सम्मुख जाकर मुरली सुनें। यहाँ बच्चों की बुद्धि में आया– बाबा आया कि आया। जैसे और सतसंग होते हैं, वहाँ वो समझेंगे फलाना स्वामी आयेगा। परन्तु यह ख्यालात भी सबकी एकरस नहीं होगी। कइयों का बुद्धियोग तो और तरफ भटकता रहता है। कोई को पति याद आयेगा, कोई को सम्बन्धी याद आयेंगे। बुद्धियोग एक गुरू के साथ भी टिकता नहीं है। कोई बिरला होगा जो स्वामी की याद में बैठा होगा। यहाँ भी ऐसे है। ऐसे नहीं सब शिवबाबा की याद में रहते हैं। बुद्धि कहाँ न कहाँ दौड़ती रहती हैं। मित्र-सम्बन्धी आदि याद आयेंगे। सारा समय एक ही शिवबाबा की याद में रहें फिर तो अहो सौभाग्य। स्थाई याद में कोई विरला रहते हैं। यहाँ बाप के सम्मुख रहने से तो बहुत खुशी होनी चाहिए। अतीन्द्रिय सुख गोपी वल्लभ के गोप गोपियों से पूछो, यह यहाँ का गाया हुआ है। यहाँ तुम बाप की याद में बैठे हो, जानते हो अभी हम ईश्वर की गोद में हैं फिर दैवी गोद में होंगे। भल कोई की बुद्धि में सर्विस के ख्यालात भी चलते हैं। इस चित्र में यह करेक्शन करें, यह लिखें। परन्तु अच्छे बच्चे जो होंगे वह समझेंगे अभी तो बाप से सुनना है। और कोई संकल्प आने नहीं देंगे। बाप ज्ञान रत्नों से झोली भरने आये हैं, तो बाप से ही बुद्धि का योग लगाना है। नम्बरवार धारणा करने वाले तो होते ही हैं। कोई अच्छी रीति सुनकर धारण करते हैं। कोई कम धारण करते हैं। बुद्धियोग और तरफ दौड़ता रहेगा तो धारणा नहीं होगी। कच्चे पड़ जायेंगे। एक-दो बारी मुरली सुनी, धारणा नहीं हुई तो फिर वह आदत पक्की होती जायेगी। फिर कितना भी सुनता रहेगा, धारणा नहीं होगी। किसको सुना नहीं सकेंगे। जिसको धारणा होगी उनको फिर सर्विस का शौक होगा। उछलता रहेगा, सोचेगा कि जाकर धन दान करूँ क्योंकि यह धन एक बाप के सिवाए तो और कोई के पास है नहीं। बाप यह भी जानते हैं, सबको धारणा हो न सके। सब एकरस ऊंच पद पा नहीं सकते इसलिए बुद्धि और तरफ भटकती रहती है। भविष्य तकदीर इतनी ऊंच नहीं बनती है। कोई फिर स्थूल सर्विस में अपनी हड्डी-हड्डी देते हैं। सबको राज़ी करते हैं। जैसे भोजन पकाते खिलाते हैं। यह भी सब्जेक्ट है ना। जिसको सर्विस का शौक होगा वह मुख से कहने बिगर रहेगा नहीं। फिर बाबा देखते भी हैं, देह-अभिमान तो नहीं है? बड़ों का रिगार्ड रखते हैं वा नहीं? बड़े महारथियों का रिगार्ड तो रखना होता है। हाँ, कोई-कोई छोटे भी होशियार हो जाते हैं तो हो सकता है बड़े को उनका रिगार्ड रखना पड़े क्योंकि बुद्धि उनकी गैलप कर लेती है। सर्विस का शौक देख बाप तो खुश होगा ना, यह अच्छी सर्विस करेंगे। सारा दिन प्रदर्शनी पर समझाने की प्रैक्टिस करनी चाहिए। प्रजा तो ढेर बनती है ना और तो कोई उपाय है नहीं। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, राजा, रानी, प्रजा सब यहाँ बनते हैं। कितनी सर्विस करनी चाहिए। बच्चों की बुद्धि में यह तो है– अभी हम ब्राह्मण बने हैं। घर गृहस्थ में रहने से हर एक की अवस्था तो अपनी रहती है ना। घर-बार तो छोड़ना नहीं है। बाप कहते हैं घर में भल रहो परन्तु बुद्धि में यह निश्चय रखना है कि पुरानी दुनिया तो खत्म हुई पड़ी है। हमारा अब बाप से काम है। यह भी जानते हैं कल्प पहले जिन्होंने ज्ञान लिया था वही लेंगे। सेकेण्ड बाई सेकेण्ड हूबहू रिपीट हो रहा है। आत्मा में ज्ञान रहता है ना। बाप के पास भी ज्ञान रहता है। तुम बच्चों को भी बाप जैसा बनना है। प्वाइंट धारण करनी है। सभी प्वाइंट एक ही समय नहीं समझाई जाती हैं। विनाश भी सामने खड़ा है। यह वही विनाश है, सतयुग-त्रेता में तो कोई लड़ाई होती नहीं। वह तो बाद में जब बहुत धर्म होते हैं, लश्कर आदि आते हैं तब लड़ाई शुरू होती है। पहले-पहले आत्मायें सतोप्रधान से उतरती हैं फिर सतो, रजो, तमो की स्टेज होती है। तो यह भी सब बुद्धि में रखना है। कैसे राजधानी स्थापन हो रही है। यहाँ बैठे हो तो बुद्धि में रखना है कि शिवबाबा आकर हमको खजाना देते हैं, जिसको बुद्धि में धारण करना है। अच्छे-अच्छे बच्चे नोट्स लिखते हैं। लिखना अच्छा है। तो बुद्धि में टॉपिक्स आयेंगी। आज इस टॉपिक पर समझायेंगे। बाप कहते हैं हमने तुमको कितना खजाना दिया था। सतयुग-त्रेता में तुम्हारे पास अथाह धन था। फिर वाम मार्ग में जाने से वह कम होता गया। खुशी भी कम होती गई। कुछ न कुछ विकर्म होने लगते हैं। उतरते-उतरते कलायें कम होती जाती हैं। सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो की स्टेजेस होती हैं। सतो से रजो में आते हैं तो ऐसे नहीं फट से आ जाते हैं। धीरे-धीरे उतरेंगे। तमोप्रधान में भी धीरे-धीरे सीढ़ी उतरते जाते हो, कला कम होती जाती है। दिन-प्रतिदिन कम होती जाती हैं। अभी जम्प लगाना है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है, इसके लिए टाइम भी चाहिए। गाया हुआ है चढ़े तो चाखे बैकुण्ठ रस.. काम की चमाट लगती है तो एकदम चकनाचूर हो जाते हैं। हड्डी-हड्डी टूट जाती है। कोई मनुष्य अपना जीवघात करते हैं, आत्मघात नहीं, जीवघात कहा जाता है। यहाँ तो बाप से वर्सा पाना है। बाप को याद करना है क्योंकि बाप से बादशाही मिलती है। अपने से पूछना है हमने बाप को याद कर भविष्य के लिए कितनी कमाई की? कितने अन्धों की लाठी बना? घर-घर में पैगाम देना है कि यह पुरानी दुनिया बदल रही है। बाप नई दुनिया के लिए राजयोग सिखा रहे हैं। सीढ़ी में सब दिखाया है। यह बनाने में मेहनत लगती है। सारा दिन ख्यालात चलता रहता है, ऐसा सहज बनावें जो कोई भी समझ जाए। सारी दुनिया तो नहीं आयेगी। देवी-देवता धर्म वाले ही आयेंगे। तुम्हारी सर्विस तो बहुत चलनी है। तुम तो जानते हो हमारा यह क्लास कब तक चलेगा। वह तो लाखों वर्ष कल्प की आयु समझते हैं। तो शास्त्र आदि सुनाते ही रहते हैं। समझते हैं जब अन्त होगा तब सबका सद्गति दाता आयेगा और जो हमारे चेले होंगे उनकी गति हो जायेगी फिर हम भी जाकर ज्योति में समायेंगे। परन्तु ऐसे तो है नहीं। तुम अभी जानते हो हम अमर बाप द्वारा सच्चीस च्ची अमरकथा सुन रहे हैं। तो अमर बाप जो कहते हैं वह मानना भी है, सिर्फ कहते हैं– मुझे याद करो, पवित्र बनो। नहीं तो सज़ा भी बहुत खानी पड़ेगी। पद भी कम मिलेगा। सर्विस में मेहनत करनी है। जैसे दधीचि ऋषि का मिसाल है। हड्डियां भी सर्विस में दे दी। अपने शरीर का भी ख्याल न कर सारा दिन सर्विस में रहना, उनको कहा जाता है सर्विस में हड्डियां देना। एक है जिस्मानी हड्डी सर्विस, दूसरी है रूहानी हड्डी सर्विस। रूहानी सर्विस वाले रूहानी नॉलेज ही सुनाते रहेंगे। धन दान करते खुशी में नाचते रहेंगे। दुनिया में मनुष्य जो सर्विस करते हैं वह सब है जिस्मानी। शास्त्र सुनाते हैं, वह कोई रूहानी सर्विस तो नहीं है। रूहानी सर्विस तो सिर्फ बाप ही आकर सिखलाते हैं। प्रीचुअल बाप ही आकर प्रीचुअल बच्चों (आत्माओं) को पढाते हैं।

तुम बच्चे अब तैयारी कर रहे हो सतयुगी नई दुनिया में जाने के लिए। वहाँ तुमसे कोई विकर्म नहीं होगा। वह है ही रामराज्य। वहाँ होते ही हैं थोड़े। अभी तो रावणराज्य में सब दुःखी हैं ना। यह सारी नॉलेज भी तुम्हारी बुद्धि में है नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। इस सीढ़ी के चित्र में ही सारी नॉलेज आ जाती है। बाप कहते हैं यह अन्तिम जन्म पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनोगे। तुम्हें समझाना ऐसा है जो मनुष्यों को पता पड़े कि हम सतोप्रधान से तमोप्रधान बने हैं, फिर याद की यात्रा से ही सतोप्रधान बनेंगे। देखेंगे तो बुद्धि चलेगी, यह नॉलेज कोई के पास नहीं है। कहेंगे इस (सीढ़ी) में और धर्मों का समाचार कहाँ है। वह फिर इस गोले में लिखा हुआ है। वह नई दुनिया में तो आते नहीं हैं। उन्हों को शान्ति मिलती है। भारतवासी ही स्वर्ग में थे ना। बाप भी भारत में आकर राजयोग सिखाते हैं इसलिए भारत का प्राचीन योग सब चाहते हैं। इन चित्रों से वह खुद भी समझ जायेंगे। बरोबर नई दुनिया में सिर्फ भारत ही था। अपने धर्म को भी समझ जायेंगे। भल क्राइस्ट आया, धर्म स्थापन करने। इस समय वह भी तमोप्रधान है। यह रचता और रचना की कितनी बड़ी नॉलेज है।

तुम कह सकते हो हमको किसी के पैसे की दरकार नहीं है। पैसा हम क्या करेंगे। तुम भी सुनो, दूसरों को भी सुनाओ। यह चित्र आदि छपाओ। इन चित्रों से काम लेना है। हाल बनाओ जहाँ यह नॉलेज सुनाई जाए। बाकी हम पैसा लेकर क्या करेंगे। तुम्हारे ही घर का कल्याण होता है। तुम सिर्फ प्रबन्ध करो। बहुत आकर कहेंगे रचता और रचना की नॉलेज तो बड़ी अच्छी है। यह तो मनुष्यों को ही समझनी है। विलायत वाले यह नॉलेज सुनकर बहुत पसन्द करेंगे। बहुत खुश होंगे। समझेंगे हम भी बाप के साथ योग लगायें तो विकर्म विनाश होंगे। सबको बाप का परिचय देना है। समझ जायेंगे यह नॉलेज तो गॉड के सिवाए कोई दे न सके। कहते हैं खुदा ने बहिश्त स्थापन किया परन्तु वह कैसे आते हैं, यह किसको पता नहीं। तुम्हारी बातें सुनकर खुश होंगे फिर पुरूषार्थ कर योग सीखेंगे। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने के लिए पुरूषार्थ करेंगे। सर्विस के लिए तो बहुत ख्याल करने चाहिए। भारत में हुनर दिखायें तब फिर बाबा बाहर में भी भेजेंगे। यह मिशन जायेगी। अभी तो टाइम पड़ा है ना। नई दुनिया बनने में कोई देरी थोड़ेही लगती है। कहाँ भी अर्थक्वेक आदि होती है तो 2-3 वर्ष में एकदम नये मकान आदि बना देते हैं। कारीगर बहुत हों, सामान सारा तैयार हो फिर बनने में देर थोड़ेही लगेगी। विलायत में मकान कैसे बनते हैं– मिनट मोटर। तो स्वर्ग में कितना जल्दी बनते होंगे। सोना-चांदी आदि बहुत तुमको मिल जाता है। खानियों से तुम सोना चांदी हीरे ले आते हो। हुनर तो सब सीख रहे हैं। साइंस का कितना घमण्ड चल रहा है। यह साइंस फिर वहाँ काम में आयेगी। यहाँ सीखने वाले फिर दूसरा जन्म वहाँ ले यह काम में लायेंगे। उस समय तो सारी दुनिया नई हो जाती है, रावण राज्य खत्म हो जाता है। 5 तत्व भी कायदेमुजीब सर्विस में रहते हैं। स्वर्ग बन जाता है। वहाँ कोई ऐसा उपद्रव नहीं होता, रावणराज्य ही नहीं, सब सतोप्रधान हैं।

सबसे अच्छी बात है कि तुम बच्चों का बाप से बहुत लव होना चाहिए। बाप खजाना देते हैं। उसको धारण कर और दूसरों को दान देना है। जितना दान देंगे उतना इकट्ठा होता जायेगा। सर्विस ही नहीं करेंगे तो धारणा कैसे होगी? सर्विस में बुद्धि चलनी चाहिए। सर्विस तो बहुत ढेर हो सकती है। दिन-प्रतिदिन उन्नति को पाना है। अपनी भी उन्नति करनी है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा रूहानी सर्विस में तत्पर रहना है। ज्ञान धन दान करके खुशी में नाचना है। खुद धारण कर औरों को धारणा करानी है।
2) बाप जो ज्ञान का खजाना देते हैं, उससे अपनी झोली भरनी है। नोट्स लेने हैं। फिर टॉपिक पर समझाना है। ज्ञान धन का दान करने के लिए उछलते रहना है।
वरदान:
सर्व के दिलों के राज़ को जान सर्व को राज़ी करने वाले सदा विजयी भव!   
विजयी बनने के लिए हर एक के दिल के राज़ को जानना है। किसी के मुख द्वारा निकलने वाले आवाज से उसके दिल के राज़ को जान लो तो विजयी बन सकते हो लेकिन दिल के राज़ को जानने के लिए अन्तर्मुखता चाहिए। जितना अन्तर्मुखी रहेंगे उतना हर एक के दिल के राज़ को जानकर उसे राज़ी कर सकेंगे। राज़ी करने वाले ही विजयी बनते हैं।
स्लोगन:
वैराग्य ऐसी योग्य धरनी है जिसमें जो भी बीज डालेंगे वह फलीभूत अवश्य होगा।