Sunday, February 14, 2016

मुरली 15 फरवरी 2016

15-02-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - गरीब निवाज़ बाबा तुम्हें कौड़ी से हीरे जैसा बनाने आये हैं तो तुम सदा उनकी श्रीमत पर चलो''   
प्रश्न:
पहले-पहले तुम्हें सभी को कौन सा एक गुह्य राज़ समझाना चाहिए?
उत्तर:
`बाप-दादा' का। तुम जानते हो यहाँ हम बापदादा के पास आये हैं। यह दोनों इकट्ठे हैं। शिव की आत्मा भी इसमें है, ब्रह्मा की आत्मा भी है। एक आत्मा है, दूसरा परम आत्मा। तो पहले-पहले यह गुह्य राज़ सबको समझाओ कि यह बापदादा इकट्ठे हैं। यह (दादा) भगवान नहीं है। मनुष्य भगवान होता नहीं। भगवान कहा जाता है निराकार को। वह बाप है शान्तिधाम में रहने वाला।
गीतः
आखिर वह दिन आया आज........  
ओम् शान्ति।
बाप, दादा द्वारा अर्थात् शिवबाबा ब्रह्मा दादा द्वारा समझाते हैं, यह पक्का कर लो। लौकिक संबंध में बाप अलग, दादा अलग होता है। बाप से दादा का वर्सा मिलता है। कहते हैं दादे का वर्सा लेते हैं। वह है गरीब निवाज़। गरीब निवाज़ उनको कहा जाता है जो आकर गरीब को सिरताज बनाये। तो पहले-पहले पक्का निश्चय होना चाहिए कि यह कौन हैं? देखने में तो साकार मनुष्य है, इनको यह सब ब्रह्मा कहते हैं। तुम सब ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हो। जानते हो हमको वर्सा शिवबाबा से मिलता है। जो सबका बाप आया है वर्सा देने के लिए। बाप वर्सा देते हैं सुख का। फिर आधाकल्प बाद रावण दु:ख का श्राप देते हैं। भक्ति मार्ग में भगवान को ढूँढने लिए धक्का खाते हैं। मिलता किसको भी नहीं है। भारतवासी गाते हैं तुम मात-पिता....... फिर कहते हैं आप जब आयेंगे तो हमारा एक ही आप होंगे, दूसरा न कोई। और कोई साथ हम ममत्व नहीं रखेंगे। हमारा तो एक शिवबाबा। तुम जानते हो यह बाप है गरीब निवाज़। गरीब को साहूकार बनाने वाला, कौड़ी को हीरे तुल्य बनाते हैं अर्थात् कलियुगी पतित कंगाल से सतयुगी सिरताज बनाने के लिए बाप आये हैं। तुम बच्चे जानते हो यहाँ हम बापदादा के पास आये हैं। यह दोनों इकट्ठे हैं। शिव की आत्मा भी इसमें है, ब्रह्मा की आत्मा भी है, दो हुई ना। एक आत्मा है, दूसरा परम आत्मा। तुम सभी हो आत्मायें। गाया जाता है आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल...... पहले नम्बर में मिलने वाली हो तुम आत्मायें अर्थात् जो आत्मायें हैं वह परमात्मा बाप से मिलती हैं, जिसके लिए ही पुकारते हैं ओ गॉड फादर। तुम उनके बच्चे ठहरे। फादर से जरूर वर्सा मिलता है। बाप कहते हैं भारत जो सिरताज था वह अभी कितना कंगाल बना है। अभी मैं फिर तुम बच्चों को सिरताज बनाने आया हूँ। तुम डबल सिरताज बनते हो। एक ताज होता है पवित्रता का, उसमें लाइट देते हो। दूसरा है रतन जड़ित ताज। तो पहले-पहले यह गुह्य राज़ सबको समझाना है कि यह बापदादा इकट्ठे हैं। यह भगवान नहीं है। मनुष्य भगवान होता नहीं। भगवान कहा जाता है निराकार को। वह बाप है शान्तिधाम में रहने वाला। जहाँ तुम सभी आत्मायें रहती हो, जिसको निर्वाण धाम अथवा वानप्रस्थ कहा जाता है फिर तुम आत्माओं को शरीर धारण कर यहाँ पार्ट बजाना होता है। आधाकल्प सुख का पार्ट, आधाकल्प है दु:ख का। जब दु:ख का अन्त होता है तब बाप कहते हैं मैं आता हूँ। यह ड्रामा बना हुआ है। ड्रामा पर बाबा ने मुरली में बहुत अच्छा समझाया है। वह मुरली बच्चों को पढ़नी चाहिए। यहाँ तुम आते हो भट्ठी में। यहाँ और कुछ बाहर का याद नहीं आना चाहिए। यहाँ है ही मात-पिता और बच्चे। और यहाँ शूद्र सम्प्रदाय है नहीं। जो ब्राह्मण नहीं हैं उनको शूद्र कहा जाता है। उनका संग तो यहाँ है ही नहीं। यहाँ है ही ब्राह्मणों का संग। ब्राह्मण बच्चे जानते हैं कि शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा हमको नर्क से स्वर्ग की राजधानी का मालिक बनाने आये हैं। अब हम मालिक नहीं हैं क्योंकि हम पतित हैं। हम पावन थे फिर 84 का चक्र लगाए सतो-रजो-तमो में आये हैं। सीढ़ी में 84 जन्मों का हिसाब लिखा हुआ है। बाप बैठकर बच्चों को समझाते हैं। जिन बच्चों से पहले-पहले मिलते हैं फिर उन्हों को ही पहले-पहले सतयुग में आना है। तुमने 84 जन्म लिए हैं। रचता और रचना की सारी नॉलेज एक बाप के पास ही है। वही मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। जरूर बीज में ही नॉलेज होगी कि इस झाड़ की कैसे उत्पत्ति, पालना और विनाश होता है। यह तो बाप ही समझाते हैं। तुम अब जानते हो हम भारतवासी गरीब हैं। जब देवी-देवता थे तो कितने साहूकार थे। हीरों से खेलते थे। हीरों के महलों में रहते थे। अब बाप स्मृति दिलाते हैं कि तुम कैसे 84 जन्म लेते हो। बुलाते भी हैं-हे पतित-पावन, गरीब-निवाज़ बाबा आओ। हम गरीबों को स्वर्ग का मालिक फिर से बनाओ। स्वर्ग में सुख घनेरे थे, अब दु:ख घनेरे हैं। बच्चे जानते हैं इस समय सब पूरे पतित बन पड़े हैं। अभी कलियुग का अन्त है फिर सतयुग चाहिए। पहले भारत में एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, अब वह प्राय:लोप हो गया है और सब अपने को हिन्दू कहलाते हैं। इस समय क्रिश्चियन बहुत हो गये हैं क्योंकि हिन्दू धर्म वाले बहुत कनवर्ट हो गये हैं। तुम देवी-देवताओं का असुल कर्म श्रेष्ठ था। तुम पवित्र प्रवृत्ति मार्ग वाले थे। अब रावण राज्य में पतित प्रवृत्ति मार्ग वाले बन गये हो, इसलिए दु:खी हो। सतयुग को कहा जाता है शिवालय। शिवबाबा का स्थापन किया हुआ स्वर्ग। बाप कहते हैं मैं आकर तुम बच्चों को शूद्र से ब्राह्मण बनाए तुमको सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राजधानी का वर्सा देता हूँ। यह बापदादा है, इनको भूलो मत। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा हमको स्वर्ग का लायक बना रहे हैं क्योंकि पतित आत्मा तो मुक्तिधाम में जा न सके, जब तक पावन न बनें। अभी बाप कहते हैं मैं आकर तुमको पावन बनने का रास्ता बताता हूँ। मैं तुमको पद्मपति स्वर्ग का मालिक बनाकर गया था, बरोबर तुमको स्मृति आई है कि हम स्वर्ग के मालिक थे। उस समय हम बहुत थोड़े थे। अभी तो कितने ढेर मनुष्य हैं। सतयुग में 9 लाख होते हैं, तो बाप कहते हैं मैं आकर ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की स्थापना, शंकर द्वारा विनाश करा देता हूँ। तैयारी सब कर रहे हैं, कल्प पहले मुआफ़िक। कितने बॉम्ब्स बनाते हैं। 5 हजार वर्ष पहले भी यह महाभारत लड़ाई लगी थी। भगवान ने आकर राजयोग सिखाए मनुष्य को नर से नारायण बनाया था। तो जरूर कलियुगी पुरानी दुनिया का विनाश होना चाहिए। सारे भंभोर को आग लगेगी। नहीं तो विनाश कैसे हो? आजकल बॉम्ब्स में आग भी भरते हैं। मूसलधार बरसात, अर्थ क्वेक्स आदि सब होंगी तब तो विनाश होगा। पुरानी दुनिया का विनाश, नई दुनिया की स्थापना होती है। यह है संगमयुग। रावण राज्य मुर्दाबाद हो रामराज्य जिंदाबाद होता है। नई दुनिया में कृष्ण का राज्य था। लक्ष्मी-नारायण के बदले कृष्ण का नाम ले लेते हैं क्योंकि कृष्ण है सुन्दर, सबसे प्यारा बच्चा। मनुष्यों को तो पता नहीं है ना। कृष्ण अलग राजधानी का, राधे अलग राजधानी की थी। भारत सिरताज था। अभी कंगाल है। फिर बाप आकर सिरताज बनाते हैं। अब बाप कहते हैं पवित्र बनो और मामेकम् याद करो तो तुम सतोप्रधान बन जायेंगे। फिर जो सर्विस कर आप समान बनायेंगे, वह ऊंच पद पायेंगे। डबल सिरताज बनेंगे। सतयुग में राजा-रानी और प्रजा सब पवित्र रहते हैं। अभी तो है ही प्रजा का राज्य। दोनों ताज नहीं हैं। बाप कहते हैं जब ऐसी हालत होती है तब मैं आता हूँ। अभी मैं तुम बच्चों को राजयोग सिखा रहा हूँ। मैं ही पतित-पावन हूँ। अब तुम मुझे याद करो तो तुम्हारी आत्मा से खाद निकल जाए। फिर सतोप्रधान बन जायेंगे। अभी श्याम से सुन्दर बनना है। सोने में खाद पड़ने से काला हो जाता है तो अब खाद को निकालना है। बेहद का बाप कहते हैं तुम काम चिता पर बैठ काले बन गये हो, अब ज्ञान चिता पर बैठो और सबसे ममत्व मिटा दो। तुम आशिक हो मुझ एक माशूक के। भगत सब भगवान को याद करते हैं। सतयुग-त्रेता में भक्ति होती नहीं। वहाँ तो है ज्ञान की प्रालब्ध। बाप आकर ज्ञान से रात को दिन बनाते हैं। ऐसे नहीं कि शास्त्र पढ़ने से दिन हो जायेगा। वह है भक्ति की सामग्री। ज्ञान सागर पतित-पावन एक ही बाप है, वह आकर सृष्टि चक्र का ज्ञान बच्चों को समझाते हैं और योग सिखाते हैं। ईश्वर के साथ योग लगाने वाले योग योगेश्वर और फिर बनते हैं राज राजेश्वर, राज राजेश्वरी। तुम ईश्वर द्वारा राजाओं का राजा बनते हो। जो पावन राजायें थे फिर वही पतित बनते हैं। आपेही पूज्य फिर आपेही पुजारी बन जाते हैं। अब जितना हो सके याद की यात्रा में रहना है। जैसे आशिक माशूक को याद करते हैं ना। जैसे कन्या की सगाई होने से फिर एक-दो को याद करते रहते हैं। अभी यह जो माशूक है, उनके तो बहुत आशिक हैं भक्ति मार्ग में। सब दु:ख में बाप को याद करते हैं-हे भगवान दु:ख हरो, सुख दो। यहाँ तो न शान्ति है, न सुख है। सतयुग में दोनों हैं।

अभी तुम जानते हो हम आत्मायें कैसे 84 का पार्ट बजाते हैं। ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनते हैं। 84 की सीढ़ी बुद्धि में है ना। अब जितना हो सके बाप को याद करना है तो पाप कट जाएं। कर्म करते हुए भी बुद्धि में बाप की याद रहे। बाबा से हम स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। बाप और वर्से को याद करना है। याद से ही पाप कटते जायेंगे। जितना याद करेंगे तो पवित्रता की लाइट आती जायेगी। खाद निकलती जायेगी। बच्चों को जितना हो सके टाइम निकाल याद का उपाय करना है। सवेरे-सवेरे टाइम अच्छा मिलता है। यह पुरूषार्थ करना है। भल गृहस्थ व्यवहार में रहो, बच्चों की सम्भाल आदि करो परन्तु यह अन्तिम जन्म पवित्र बनो। काम चिता पर नहीं चढ़ो। अभी तुम ज्ञान चिता पर बैठे हो। यह पढ़ाई बहुत ऊंची है, इसमें सोने का बर्तन चाहिए। तुम बाप को याद करने से सोने का बर्तन बनते हो। याद भूलने से फिर लोहे का बर्तन बन जाते हो। बाप को याद करने से स्वर्ग के मालिक बनेंगे। यह तो बहुत सहज है। इसमें पवित्रता मुख्य है। याद से ही पवित्र बनेंगे और सृष्टि चक्र को याद करने से स्वर्ग का मालिक बनेंगे। तुम्हें घरबार नहीं छोड़ना है। गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है। बाप कहते हैं 63 जन्म तुम पतित दुनिया में रहे हो। अब शिवालय अमरलोक में चलने के लिए तुम यह एक जन्म पवित्र रहे तो क्या हुआ। बहुत कमाई हो जायेगी। 5 विकारों पर जीत पानी है तब ही जगतजीत बनेंगे। नहीं तो पद पा नहीं सकेंगे। बाप कहते हैं मरना तो सबको है। यह अन्तिम जन्म है फिर तुम जाए नई दुनिया में राज्य करेंगे। हीरे-जवाहरातों की खानियां भरपूर हो जायेंगी। वहाँ तुम हीरे-जवाहरातों से खेलते रहेंगे। तो ऐसे बाप के बनकर उनकी मत पर भी चलना चाहिए ना। श्रीमत से ही तुम श्रेष्ठ बनेंगे। रावण की मत से तुम भ्रष्टाचारी बने हो। अब बाप की श्रीमत पर चल तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। बाप को याद करना है और कोई तकलीफ बाप नहीं देते हैं। भक्ति मार्ग में तो तुमने बहुत धक्के खाये हैं। अब सिर्फ बाप को याद करो और सृष्टि चक्र को याद करो। स्वदर्शन चक्रधारी बनो तो तुम 21 जन्मों के लिए चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे। अनेक बार तुमने राज्य लिया है और गँवाया है। आधाकल्प है सुख, आधाकल्प है दु:ख। बाप कहते हैं - मैं कल्प-कल्प संगम पर आता हूँ। तुमको सुखधाम का मालिक बनाता हूँ। अभी तुमको स्मृति आई है, हम कैसे चक्र लगाते हैं। यह चक्र बुद्धि में रखना है। बाप है ज्ञान का सागर। तुम यहाँ बेहद के बाप के सामने बैठे हो। ऊंच ते ऊंच भगवान प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा तुमको वर्सा देते हैं। तो अब विनाश होने के पहले बाप को याद करो, पवित्र बनो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) निरन्तर बाप की याद में रहने के लिए बुद्धि को सोने का बर्तन बनाना है। कर्म करते भी बाप की याद रहे, याद से ही पवित्रता की लाइट आयेगी।
2) मुरली कभी मिस नहीं करनी है। ड्रामा के राज़ को यथार्थ रीति समझना है। भट्ठी में कुछ भी बाहर का याद न आये।
वरदान:
अपनी दृष्टि और वृत्ति के परिवर्तन द्वारा सृष्टि को बदलने वाले साक्षात्कारमूर्त भव!   
अपनी वृत्ति के परिवर्तन से दृष्टि को दिव्य बनाओ तो दृष्टि द्वारा अनेक आत्मायें अपने यथार्थ रूप, यथार्थ घर तथा यथार्थ राजधानी देखेंगी। ऐसा यथार्थ साक्षात्कार कराने के लिए वृत्ति में जरा भी देह-अभिमान की चंचलता न हो। तो वृत्ति के सुधार से दृष्टि दिव्य बनाओ तब यह सृष्टि परिवर्तन होगी। देखने वाले अनुभव करेंगे कि यह नैन नहीं लेकिन यह एक जादू की डिब्बिया हैं। यह नैन साक्षात्कार के साधन बन जायेंगे।
स्लोगन:
सेवा के उमंग-उत्साह के साथ, बेहद की वैराग्य वृत्ति ही सफलता का आधार है।