Wednesday, February 3, 2016

मुरली 03 फरवरी 2016

03-02-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

"मीठे बच्चे– तुम ब्राह्मण सो देवता बनते हो, तुम्हीं भारत को स्वर्ग बनाते हो, तो तुम्हें अपनी ब्राह्मण जाति का नशा चाहिए।"  
प्रश्न:
सच्चे ब्राह्मणों की मुख्य निशानियां क्या होंगी?
उत्तर:
सच्चे ब्राह्मणों का इस पुरानी दुनिया से लंगर उठा हुआ होगा। वह जैसे इस दुनिया का किनारा छोड़ चुके। 2. सच्चे ब्राह्मण वह जो हाथों से काम करें और बुद्धि सदा बाप की याद में रहे अर्थात् कर्मयोगी हो। 3. ब्राह्मण अर्थात् कमल फूल समान। 4. ब्राह्मण अर्थात् सदा आत्म-अभिमानी रहने का पुरूषार्थ करने वाले। 5. ब्राह्मण अर्थात् काम महाशत्रु पर विजय प्राप्त करने वाले।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं। बच्चे कौन? यह ब्राह्मण। यह कभी भूलो मत कि हम ब्राह्मण हैं, देवता बनने वाले हैं। वर्णों को भी याद करना पड़ता है। यहाँ तुम आपस में सिर्फ ब्राह्मण ही ब्राह्मण हो। ब्राह्मणों को बेहद का बाप पढाते हैं। यह ब्रह्मा नहीं पढाते हैं। शिवबाबा पढाते हैं ब्रह्मा द्वारा। ब्राह्मणों को ही पढाते हैं। शूद्र से ब्राह्मण बनने बिगर देवी-देवता बन नहीं सकेंगे। वर्सा शिवबाबा से मिलता है। वह शिवबाबा तो सबका बाप है। इस ब्रह्मा को ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर कहा जाता है। लौकिक बाप तो सबको होते हैं। पारलौकिक बाप को भक्ति मार्ग में याद करते हैं। अब तुम बच्चे समझते हो यह है अलौकिक बाप जिनको कोई नहीं जानते। भल ब्रह्मा का मन्दिर है, यहाँ भी प्रजापिता आदि देव का मन्दिर है। उनको कोई महावीर कहते हैं, दिलवाला भी कहते हैं। परन्तु वास्तव में दिल लेने वाला है शिवबाबा, न कि प्रजापिता आदि देव ब्रह्मा। सब आत्माओं को सदा सुखी बनाने वाला, खुश करने वाला एक ही बाप है। यह भी सिर्फ तुम ही जानते हो। दुनिया में तो मनुष्य कुछ नहीं जानते। तुच्छ बुद्धि हैं। हम ब्राह्मण ही शिवबाबा से वर्सा ले रहे हैं। तुम भी यह घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। याद है बड़ी सहज। योग अक्षर सन्यासियों ने रखा है। तुम तो बाप को याद करते हो। योग कॉमन अक्षर है। इनको योग आश्रम भी नहीं कहेंगे, बच्चे और बाप बैठे हैं। बच्चों का फर्ज है– बेहद के बाप को याद करना। हम ब्राह्मण हैं, डाडे से वर्सा ले रहे हैं ब्रह्मा द्वारा इसलिए शिवबाबा कहते हैं जितना हो सके याद करते रहो। चित्र भी भल रखो तो याद रहेगी। हम ब्राह्मण हैं, बाप से वर्सा लेते हैं। ब्राह्मण कभी अपनी जाति को भूलते हैं क्या? तुम शूद्रों के संग में आने से ब्राह्मणपना भूल जाते हो। ब्राह्मण तो देवताओं से भी ऊंच हैं क्योंकि तुम ब्राह्मण नॉलेजफुल हो। भगवान को जानी जाननहार कहते हैं ना। उसका भी अर्थ नहीं जानते। ऐसे नहीं कि सबके दिलों में क्या है वह बैठ देखते हैं। नहीं, उनको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज है। वह बीजरूप है। झाड़ के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। तो ऐसे बाप को बहुत याद करना है। इनकी आत्मा भी उस बाप को याद करती है। वह बाप कहते हैं यह ब्रह्मा भी मुझे याद करेंगे तब यह पद पायेंगे। तुम भी याद करेंगे तब पद पायेंगे। पहले-पहले तुम अशरीरी आये थे फिर अशरीरी बनकर वापिस जाना है। और सब तुमको दुःख देने वाले हैं, उनको क्यों याद करेंगे। जबकि मैं तुमको मिला हूँ, मैं तुमको नई दुनिया में ले चलने आया हूँ। वहाँ कोई दुःख नहीं। वह है दैवी संबंध। यहाँ पहले-पहले दुःख होता है स्त्री-पुरूष के सम्बन्ध में क्योंकि विकारी बनते हैं। तुमको अब मैं उस दुनिया का लायक बनाता हूँ, जहाँ विकार की बात नहीं रहती। यह काम महाशत्रु गाया हुआ है जो आदि-मध्य-अन्त दुःख देता है। क्रोध के लिए ऐसे नहीं कहेंगे कि यह आदि-मध्य-अन्त दुःख देता है, नहीं। काम को जीतना है। वही आदि-मध्य-अन्त दुःख देता है। पतित बनाता है। पतित अक्षर विकार पर लगता है। इस दुश्मन पर जीत पानी है। तुम जानते हो हम स्वर्ग के देवी-देवता बन रहे हैं। जब तक यह निश्चय नहीं तो कुछ पा नहीं सकेंगे।

बाप समझाते हैं बच्चों को मन्सा-वाचा-कर्मणा एक्यूरेट बनना है। मेहनत है। दुनिया में यह किसको पता नहीं कि तुम भारत को स्वर्ग बनाते हो। आगे चलकर समझेंगे। चाहते भी हैं वन वर्ल्ड, वन राज्य, वन रिलीजन, वन भाषा हो। तुम समझा सकते हो– सतयुग में आज से 5 हज़ार वर्ष पहले एक राज्य, एक धर्म था जिसको स्वर्ग कहा जाता है। रामराज्य और रावण राज्य को भी कोई नहीं जानते। 100 प्रतिशत तुच्छ बुद्धि से अब तुम स्वच्छ बुद्धि बनते हो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। बाप बैठ तुमको पढाते हैं। सिर्फ बाप की मत पर चलो। बाप कहते हैं कि पुरानी दुनिया में रहते कमल फूल समान पवित्र रहो। मुझे याद करते रहो। बाप आत्माओं को समझाते हैं। मैं आत्माओं को ही पढाने आया हूँ इन आरगन्स द्वारा। तुम आत्मायें भी आरगन्स द्वारा सुनती हो। बच्चों को आत्म-अभिमानी बनना है। यह तो पुराना छी-छी शरीर है। तुम ब्राह्मण पूजा के लायक नहीं हो। तुम गायन लायक हो, पूजने लायक देवतायें हैं। तुम श्रीमत पर विश्व को पवित्र स्वर्ग बनाते हो इसलिए तुम्हारा गायन है। तुम्हारी पूजा नहीं हो सकती। गायन सिर्फ तुम ब्राह्मणों का है, न कि देवताओं का। बाप तुमको ही शूद्र से ब्राह्मण बनाते हैं। जगत अम्बा वा ब्रह्मा आदि के मन्दिर बनाते हैं परन्तु उनको यह पता नहीं है कि यह कौन हैं? जगत पिता तो ब्रह्मा हुआ ना। उनको देवता नहीं कहेंगे। देवताओं की आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं। अब तुम्हारी आत्मा पवित्र होती जाती है। पवित्र शरीर नहीं है। अब तुम ईश्वर की मत पर भारत को स्वर्ग बना रहे हो। तुम भी स्वर्ग के लायक बन रहे हो। सतोप्रधान जरूर बनना है। सिर्फ तुम ब्राह्मण ही हो जिनको बाप बैठ पढाते हैं। ब्राह्मणों का झाड़ वृद्धि को पाता रहेगा। ब्राह्मण जो पक्के बन जायेंगे वह फिर जाकर देवता बनेंगे। यह नया झाड़ है। माया के तूफान भी लगते हैं। सतयुग में कोई तूफान नहीं लगता। यहाँ माया बाबा की याद में रहने नहीं देती। हम चाहते हैं बाबा की याद में रहें। तमो से सतोप्रधान बनें। सारा मदार है याद पर। भारत का प्राचीन योग मशहूर है। विलायत वाले भी चाहते हैं प्राचीन योग कोई आकर सिखलाये। अब योग भी दो प्रकार के हैं– एक हैं हठयोगी, दूसरे हैं राजयोगी। तुम हो राजयोगी। यह भारत का प्राचीन राजयोग है जो बाप ही सिखलाते हैं। सिर्फ गीता में मेरे बदले कृष्ण का नाम डाल दिया है। कितना फर्क हो गया है। शिवजयन्ती होती है तो तुम्हारी वैकुण्ठ की भी जयन्ती होती है, जिसमें श्रीकृष्ण का राज्य है। तुम जानते हो शिवबाबा की जयन्ती है तो गीता की भी जयन्ती है। बैकुण्ठ की भी जयन्ती होती है जिसमें तुम पवित्र बन जायेंगे। कल्प पहले मुआफिक स्थापना करते हैं। अब बाप कहते हैं मुझे याद करो। याद न करने से माया कुछ न कुछ विकर्म करा देती है। याद नहीं किया और लगी चमाट। याद में रहने से चमाट नहीं खायेंगे। यह बॉक्सिंग होती है। तुम जानते हो– हमारा दुश्मन कोई मनुष्य नहीं है। रावण है दुश्मन।

बाप कहते हैं इस समय की शादी बरबादी है। एक-दो की बरबादी करते हैं। (पतित बना देते हैं) अब पारलौकिक बाप ने आर्डीनेन्स निकाला है, बच्चे यह काम महाशत्रु है। इन पर जीत पहनो और पवित्रता की प्रतिज्ञा करो। कोई भी पतित न बनें। जन्म-जन्मान्तर तुम पतित बने हो इस विकार से इसलिए काम महाशत्रु कहा जाता है। साधू-सन्त सब कहते हैं पतितपावन आओ। सतयुग में पतित कोई होता नहीं। बाप आकर ज्ञान से सर्व की सद्गति करते हैं। अब सभी दुर्गति में हैं। ज्ञान देने वाला कोई नहीं है। ज्ञान देने वाला एक ही ज्ञान सागर है। ज्ञान से दिन है। दिन है राम का, रात है रावण की। इन अक्षरों का यथार्थ अर्थ भी तुम बच्चे समझते हो। सिर्फ पुरूषार्थ में कमजोरी है। बाप तो बहुत अच्छी रीति समझाते हैं। तुमने 84 जन्म पूरे किये हैं, अब पावित्र बनकर वापस जाना है। तुमको तो शुद्ध अहंकार होना चाहिए। हम आत्मायें बाबा की मत पर इस भारत को स्वर्ग बना रहे हैं, जिस स्वर्ग में फिर राज्य करेंगे। जितनी मेहनत करेंगे उतना पद पायेंगे। चाहे राजारानी बनो, चाहे प्रजा बनो। राजा-रानी कैसे बनते हैं, वह भी देख रहे हो। फालो फादर गाया जाता है, अब की बात है। लौकिक सम्बन्ध के लिए नहीं कहा जाता। यह बाप मत देते हैं– मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। तुम समझते हो हम अभी श्रीमत पर चलते हैं। बहुतों की सेवा करते हैं। बच्चे, बाप के पास आते हैं तो शिवबाबा भी ज्ञान से बहलाते हैं। यह भी तो सीखते हैं ना। शिवबाबा कहते हैं मैं आता हूँ सवेरे को। अच्छा फिर कोई मिलने के लिए आते हैं तो क्या यह नहीं समझायेंगे। ऐसे कहेंगे क्या कि बाबा आप आकर समझाओ, मैं नहीं समझाऊंगा। यह बड़ी गुप्त गुह्य बातें हैं ना। मैं तो सबसे अच्छा समझा सकता हूँ। तुम ऐसे क्यों समझते हो कि शिवबाबा ही समझाते हैं, यह नहीं समझाते होंगे। यह भी जानते हो कल्प पहले इसने समझाया है, तब तो यह पद पाया है। मम्मा भी समझाती थी ना। वह भी ऊंच पद पाती है। मम्मा-बाबा को सूक्ष्मवतन में देखते हैं तो बच्चों को फालो फादर करना है। सरेन्डर होते भी गरीब हैं, साहूकार हो न सकें। गरीब ही कहते हैं– बाबा यह सब कुछ आपका है। शिवबाबा तो दाता है। वह कभी लेता नहीं है। बच्चों को कहते हैं– यह सब कुछ तुम्हारा है। मैं अपने लिए महल न यहाँ, न वहाँ बनाता हूँ। तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। अब इन ज्ञान रत्नों से झोली भरनी है। मन्दिर में जाकर कहते हैं मेरी झोली भरो। परन्तु किस प्रकार की, किस चीज़ की झोली भर दो... झोली भरने वाली तो लक्ष्मी है, जो पैसा देती है। शिव के पास तो जाते नहीं, शंकर के पास जाकर कहते हैं। समझते हैं शिव और शंकर एक हैं परन्तु ऐसे थोड़ेही है।

बाप आकर सत्य बात बताते हैं। बाप है ही दुःख हर्ता सुख कर्ता। तुम बच्चों को गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है। धंधा भी करना है। हर एक अपने लिए राय पूछते हैं– बाबा हमको इस बात में झूठ बोलना पड़ता है। बाप हर एक की नब्ज़ देख राय देते हैं क्योंकि बाप समझते हैं मैं कहूँ और कर न सकें ऐसी राय ही क्यों दूँ। नब्ज देख राय ही ऐसी दी जाती है जो कर भी सके। कहूँ और करे नहीं तो नाफरमानबरदार की लाइन में आ जाए। हर एक का अपना-अपना हिसाब-किताब है। सर्जन तो एक ही है, उनके पास आना पड़े। वह पूरी राय देंगे। सबको पूछना चाहिए– बाबा इस हालत में हमको कैसे चलना चाहिए? अब क्या करें? बाप स्वर्ग में तो ले जाते हैं। तुम जानते हो हम स्वर्गवासी तो बनने वाले हैं। अब हम संगमवासी हैं। तुम अब न नर्क में हो, न स्वर्ग में हो। जो-जो ब्राह्मण बनते हैं उनका लंगर इस छी-छी दुनिया से उठ चुका है। तुमने कलियुगी दुनिया का किनारा छोड़ दिया है। कोई ब्राह्मण तीखा जा रहा है याद की यात्रा में, कोई कम। कोई हाथ छोड़ देते हैं अर्थात् फिर कलियुग में चले जाते हैं। तुम जानते हो खिवैया हमको अब ले जा रहा है। वह यात्रा तो अनेक प्रकार की है। तुम्हारी एक ही यात्रा है। यह बिल्कुल न्यारी यात्रा है। हाँ तूफान आते हैं जो याद को तोड़ देते हैं। इस याद की यात्रा को अच्छी रीति पक्का करो। मेहनत करो। तुम कर्मयोगी हो। जितना हो सके हथ कार डे दिल यार डे... आधाकल्प तुम आशिक माशूक को याद करते आये हो। बाबा यहाँ बहुत दुःख है, अब हमको सुखधाम का मालिक बनाओ। याद की यात्रा में रहेंगे तो तुम्हारे पाप खलास हो जायेंगे। तुमने ही स्वर्ग का वर्सा पाया था, अब गँवाया है। भारत स्वर्ग था तब कहते हैं प्राचीन भारत। भारत को ही बहुत मान देते हैं। सबसे बड़ा भी है, सबसे पुराना भी है। अब तो भारत कितना गरीब है इसलिए सब उनको मदद करते हैं। वो लोग समझते हैं, हमारे पास बहुत अनाज हो जायेगा। कहाँ से मंगाना नहीं पड़ेगा परन्तु यह तो तुम जानते हो– विनाश सामने खड़ा है जो अच्छी तरह से समझते हैं उन्हों को अन्दर बहुत खुशी रहती है। प्रदर्शनी में कितने आते हैं। कहते हैं तुम सत्य कहते हो परन्तु यह समझें कि हमको बाप से वर्सा लेना है, यह थोड़ेही बुद्धि में बैठता है। यहाँ से बाहर निकले खलास। तुम जानते हो बाबा हमको स्वर्ग में ले जाता है। वहाँ न गर्भ जेल में, न उस जेल में जायेंगे। अभी जेल की यात्रा भी कितनी सहज हो गई है। फिर सतयुग में कभी जेल का मुंह देखने को नहीं मिलेगा। दोनों जेल नहीं रहेंगी। यहाँ सब यह माया का पाम्प है। बड़ों-बड़ों को जैसे खलास कर देते हैं। आज बहुत मान दे रहे हैं, कल मान ही खलास। आज हर एक बात क्वीक होती है। मौत भी क्वीक होते रहेंगे। सतयुग में ऐसे कोई उपद्रव होते नहीं। आगे चल देखना क्या होता है। बहुत भयंकर सीन है। तुम बच्चों ने साक्षात्कार भी किया है। बच्चों के लिए मुख्य है याद की यात्रा। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मन्सा-वाचा-कर्मणा बहुत-बहुत एक्यूरेट बनना है। ब्राह्मण बनकर कोई भी शूद्रों के कर्म नहीं करने हैं।
2) बाबा से जो राय मिलती है उस पर पूरा-पूरा चलकर फरमानबरदार बनना है। कर्मयोगी बन हर कार्य करना है। सर्व की झोली ज्ञान रत्नों से भरनी है।
वरदान:
ताज और तिलक को धारण कर बापदादा के मददगार बनने वाले दिलतख्तनशीन भव!  
जब कोई तख्त पर बैठते हैं तो तिलक और ताज उनकी निशानी होती है। ऐसे जो दिल तख्तनशीन हैं उनके मस्तक पर सदैव अविनाशी आत्मा की स्थिति का तिलक दूर से ही चमकता हुआ नजर आता है। सर्व आत्माओं के कल्याण की शुभ भावना उनके नयनों से वा मुखड़े से दिखाई देती है। उनका हर संकल्प, वचन और कर्म बाप के समान होता है।
स्लोगन:
सरल याद के लिए सरलता का गुण धारण करो, संस्कारों को सरल बनाओ।