Wednesday, February 17, 2016

मुरली 18 फरवरी 2016

18-02-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - यह कयामत का समय है, रावण ने सबको कब्रदाखिल कर दिया है, बाप आये हैं अमृत वर्षा कर साथ ले जाने''   
प्रश्न:
शिवबाबा को भोला भण्डारी भी कहा जाता है - क्यों?
उत्तर:
क्योंकि शिव भोलानाथ जब आते हैं तो गणिकाओं, अहिल्याओं, कुब्जाओं का भी कल्याण कर उन्हें विश्व का मालिक बना देते हैं। आते भी देखो पतित दुनिया और पतित शरीर में हैं तो भोला हुआ ना। भोले बाप का डायरेक्शन है - मीठे बच्चे, अब अमृत पियो, विकारों रूपी विष को छोड़ दो।
गीतः
दूरदेश का रहने वाला........  
ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चों ने गीत सुना अर्थात् रूहों ने इस शरीर के कान कर्मेन्द्रियों द्वारा गीत सुना। दूर देश के मुसाफिर आते हैं, तुम भी मुसाफिर हो ना। जो भी मनुष्य आत्मायें हैं वह सब मुसाफिर हैं। आत्माओं का कोई भी घर नहीं है। आत्मा है निराकार। निराकारी दुनिया में रहने वाली निराकारी आत्मायें हैं। उसको कहा जाता है निराकारी आत्माओं का घर, देश वा लोक, इनको जीव आत्माओं का देश कहा जाता है। वह है आत्माओं का देश फिर आत्मायें यहाँ आकर शरीर में जब प्रवेश करती हैं तो निराकार से साकार बन जाती हैं। ऐसे नहीं कि आत्मा का कोई रूप नहीं है। रूप भी जरूर है, नाम भी है। इतनी छोटी आत्मा कितना पार्ट बजाती है इस शरीर द्वारा। हर एक आत्मा में पार्ट बजाने का कितना रिकार्ड भरा हुआ है। रिकार्ड एक बार भर जाता है फिर कितना बारी भी रिपीट करो, वही चलेगा। वैसे आत्मा भी इस शरीर के अन्दर रिकार्ड है, जिसमें 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। जैसे बाप निराकार है, वैसे आत्मा भी निराकार है, कहाँ-कहाँ शास्त्रों में लिख दिया है वह नाम रूप से न्यारा है, परन्तु नाम रूप से न्यारी कोई वस्तु होती नहीं। आकाश भी पोलार है। नाम तो है ना “आकाश”। बिगर नाम कोई चीज़ होती नहीं। मनुष्य कहते हैं परमपिता परमात्मा। अब दूर देश में तो सब आत्मायें रहती हैं। यह साकार देश है, इसमें भी दो का राज्य चलता है - राम राज्य और रावण राज्य। आधाकल्प है राम राज्य, आधाकल्प है रावण राज्य। बाप कभी बच्चों के लिए दु:ख का राज्य थोड़ेही बनायेंगे। कहते हैं ईश्वर ही दु:ख-सुख देते हैं। बाप समझाते हैं मैं कभी बच्चों को दु:ख नहीं देता हूँ। मेरा नाम ही है दु:ख हर्ता सुख कर्ता। यह मनुष्यों की भूल है। ईश्वर कभी दु:ख नहीं देंगे। इस समय है ही दु:खधाम। आधाकल्प रावण राज्य में दु:ख ही दु:ख मिलता है। सुख की रत्ती नहीं। सुखधाम में फिर दु:ख होता ही नहीं। बाप स्वर्ग की रचना रचते हैं। अभी तुम हो संगम पर। इनको नई दुनिया तो कोई भी नहीं कहेंगे। नई दुनिया का नाम ही है सतयुग। वही फिर पुरानी होती है, तो उनको कलियुग कहा जाता है। नई चीज़ अच्छी और पुरानी चीज़ खराब दिखाई देती है तो पुरानी चीज़ को खलास किया जाता है। मनुष्य विष को ही सुख समझते हैं। गाया भी जाता है - अमृत छोड़ विष काहे को खाए। फिर कहते तेरे भाने सर्व का भला। आप जो आकर करेंगे उससे भला ही होगा। नहीं तो रावणराज्य में मनुष्य बुरा काम ही करेंगे। यह तो अब बच्चों को पता पड़ा है कि गुरूनानक को 500 वर्ष हुए फिर कब आयेंगे? तो कहेंगे उनकी आत्मा तो ज्योति ज्योत समा गई। आयेंगे फिर कैसे। तुम कहेंगे आज से 4500 वर्ष बाद फिर गुरूनानक आयेंगे। तुम्हारी बुद्धि में सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी चक्र लगाती रहती है। इस समय सब तमोप्रधान हैं, इनको कयामत का समय कहा जाता है। सभी मनुष्य जैसेकि मरे पड़े हैं। सबकी ज्योति उझाई हुई है। बाप आते हैं सबको जगाने। बच्चे जो काम चिता पर बैठ भस्म हो गये हैं, उन्हों को अमृत वर्षा से जगाए साथ ले जायेंगे। माया रावण ने काम चिता पर बिठाए कब्रदाखिल कर दिया है। सभी सो गये हैं। अब बाप ज्ञान अमृत पिलाते हैं। अब ज्ञान अमृत कहाँ और वह पानी कहाँ। सिक्ख लोगों का बड़ा दिन होता है तो बड़े धूमधाम से तालाब को साफ करते हैं, मिट्टी निकालते हैं इसलिए नाम ही रखा है - अमृतसर। अमृत का तलाब। गुरूनानक ने भी बाप की महिमा की है। खुद कहते एकोअंकार, सत नाम...... वह सदैव सच बोलने वाला है। सत्यनारायण की कथा है ना। मनुष्य भक्तिमार्ग में कितनी कथायें सुनते आये हैं। अमरकथा, तीजरी की कथा...... कहते हैं शंकर ने पार्वती को कथा सुनाई। वह तो सूक्ष्मवतन में रहने वाले, वहाँ फिर कथा कौनसी सुनाई? यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं कि वास्तव में तुमको अमरकथा सुनाए अमरलोक में ले जाने मैं आया हूँ। मृत्युलोक से अमरलोक में ले जाता हूँ। बाकी सूक्ष्मवतन में पार्वती ने क्या दोष किया जो उनको अमर-कथा सुनायेंगे। शास्त्रों में तो अनेक कथायें लिख दी हैं। सत्य नारायण की सच्ची कथा तो है नहीं। तुमने कितनी सत्य नारायण की कथायें सुनी होंगी। फिर सत्य नारायण कोई बनते हैं क्या और ही गिरते जाते हैं। अभी तुम समझते हो हम नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनते हैं। यह है अमरलोक में जाने के लिए सच्ची सत्य नारायण की कथा, तीजरी की कथा। तुम आत्माओं को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। बाप समझाते हैं तुम ही गुल- गुल पूज्य थे फिर 84 जन्मों के बाद तुम ही पुजारी बने हो इसलिए गाया हुआ है-आपेही पूज्य, आपेही पुजारी। बाप कहते हैं-मैं तो सदैव पूज्य हूँ। तुमको आकर पुजारी से पूज्य बनाता हूँ। यह है पतित दुनिया। सतयुग में पूज्य पावन मनुष्य, इस समय हैं पुजारी पतित मनुष्य। साधू-सन्त गाते रहते हैं पतित-पावन सीताराम। यह अक्षर हैं राइट...... सब सीतायें ब्राइड्स हैं। कहते हैं हे राम आकर हमको पावन बनाओ। सब भक्तियां पुकारती हैं, आत्मा पुकारती है-हे राम। गांधी जी भी गीता सुनाकर पूरी करते थे तो कहते थे-हे पतित-पावन सीताराम। अभी तुम जानते हो गीता कोई कृष्ण ने नहीं सुनाई है। बाबा कहते हैं-ओपीनियन लेते रहो कि ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है। गीता का भगवान शिव है, न कि कृष्ण। पहले तो पूछो गीता का भगवान किसको कहा जाता है। भगवान निराकार को कहेंगे वा साकार को? कृष्ण तो है साकार। शिव है निराकार। वह सिर्फ इस तन का लोन लेते हैं। बाकी माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं। शिव को शरीर है नहीं। यहाँ इस मनुष्य लोक में स्थूल शरीर है। बाप आकर सच्ची सत्य नारायण की कथा सुनाते हैं। बाप की महिमा है पतित-पावन, सर्व का सद्गति दाता, सर्व का लिबरेटर, दु:ख हर्ता सुख कर्ता। अच्छा, सुख कहाँ होता है? यहाँ नहीं हो सकता। सुख मिलेगा दूसरे जन्म में, जब पुरानी दुनिया खत्म हो और स्वर्ग की स्थापना हो जायेगी। अच्छा, लिबरेट किससे करते हैं? रावण के दु:ख से। यह तो दु:खधाम है ना। अच्छा फिर गाइड भी बनते हैं। यह शरीर तो यहाँ खत्म हो जाते हैं। बाकी आत्माओं को ले जाते हैं। पहले साजन फिर सजनी जाती है। वह है अविनाशी सलोना साजन। सबको दु:ख से छुड़ाए पवित्र बनाए घर ले जाते हैं। शादी कर जब आते हैं तो पहले होता है घोट (पति)। पिछाड़ी में ब्राइड (पत्नी) रहती है फिर बरात होती है। अब तुम्हारी माला भी ऐसी है। ऊपर में शिवबाबा फूल, उसे नमस्कार करेंगे। फिर युगल दाना ब्रह्मा-सरस्वती। फिर हो तुम, जो बाबा के मददगार बनते हो। फूल शिवबाबा की याद से ही सूर्यवंशी, विष्णु की माला बने हो। ब्रह्मा-सरस्वती सो लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। लक्ष्मी-नारायण सो ब्रह्मा-सरस्वती बनते हैं। इन्होंने मेहनत की है तब पूजे जाते हैं। कोई को पता नहीं है माला क्या चीज़ है। ऐसे ही माला फेरते रहते हैं। 16108 की भी माला होती है। बड़े-बड़े मन्दिरों में रखी होती है फिर कोई कहाँ से, कोई कहाँ से खींचेंगे। बाबा बाम्बे में लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाते थे, माला जाकर फेरते थे, राम-राम जपते थे क्योंकि फूल एक ही बाप है ना। फूल को ही राम-राम कहते हैं। फिर सारी माला पर माथा टेकते हैं। ज्ञान कुछ भी नहीं। पादरी भी हाथ में माला फेरते रहते हैं। पूछो किसकी माला फेरते हो? उनको तो पता नहीं है। कह देंगे क्राइस्ट की याद में फेरते हैं। उनको यह पता नहीं है कि क्राइस्ट की खुद आत्मा कहाँ है। तुम जानते हो क्राइस्ट की आत्मा अब तमोप्रधान है। तुम भी तमोप्रधान बेगर थे। अब बेगर टू प्रिन्स बनते हो। भारत प्रिन्स था, अभी बेगर है फिर प्रिन्स बनते हैं। बनाने वाला है बाप। तुम मनुष्य से प्रिन्स बनते हो। एक प्रिन्स कॉलेज भी था, जहाँ प्रिन्स-प्रिन्सेज जाकर पढ़ते थे।

तुम यहाँ पढ़कर 21 जन्म लिए स्वर्ग में प्रिन्स-प्रिन्सेज बनते हो। यह श्रीकृष्ण प्रिन्स है ना। उनके 84 जन्मों की कहानी लिखी हुई है। मनुष्य क्या जानें। यह बातें सिर्फ तुम जानते हो। “भगवानुवाच” वह सबका फादर है। तुम गॉड फादर से सुनते हो, जो स्वर्ग की स्थापना करते हैं। उसे कहा ही जाता है सचखण्ड। यह है झूठ खण्ड। सचखण्ड तो बाप स्थापन करेंगे। झूठ खण्ड रावण स्थापन करते हैं। रावण का रूप बनाते हैं, अर्थ कुछ नहीं समझते हैं, किसको भी पता नहीं है कि आखरीन भी रावण है कौन, जिसको मारते हैं फिर जिंदा हो जाता है। वास्तव में 5 विकार स्त्री के, 5 विकार पुरूष के..... इनको कहा जाता है रावण। उनको मारते हैं। रावण को मारकर फिर सोना लूटते हैं।

तुम बच्चे जानते हो - यह है कांटों का जंगल। बाम्बे में बबुलनाथ का भी मन्दिर है। बाप आकर कांटों को फूल बनाते हैं। सब एक-दो को कांटा लगाते हैं अर्थात् काम कटारी चलाते रहते हैं, इसलिए इनको कांटों का जंगल कहा जाता है। सतयुग को गॉर्डन ऑफ अल्लाह कहा जाता है, वही फ्लावर्स कांटे बनते हैं फिर कांटों से फूल बनते हैं। अभी तुम 5 विकारों पर जीत पाते हो। इस रावण राज्य का विनाश तो होना ही है। आखरीन बड़ी लड़ाई भी होगी। सच्चा-सच्चा दशहरा भी होना है। रावणराज्य ही खलास हो जायेगा फिर तुम लंका लूटेंगे। तुमको सोने के महल मिल जायेंगे। अभी तुम रावण पर जीत प्राप्त कर स्वर्ग के मालिक बनते हो। बाबा सारे विश्व का राज्य-भाग्य देते हैं इसलिए इनको शिव भोला भण्डारी कहते हैं। गणिकायें, अहिल्यायें, कुब्जायें.. सबको बाप विश्व का मालिक बनाते हैं। कितना भोला है। आते भी हैं पतित दुनिया, पतित शरीर में। बाकी जो स्वर्ग के लायक नहीं हैं, वह विष पीना छोड़ते ही नहीं। बाप कहते हैं-बच्चे, अभी यह अन्तिम जन्म पावन बनो। यह विकार तुमको आदि-मध्य-अन्त दु:खी बनाते हैं। क्या तुम इस एक जन्म के लिए विष पीना नहीं छोड़ सकते हो? मैं तुमको अमृत पिलाकर अमर बनाता हूँ फिर भी तुम पवित्र नहीं बनते हो। विष बिगर, सिगरेट शराब बिगर रह नहीं सकते हो। मैं बेहद का बाप तुमको कहता हूँ-बच्चे, इस एक जन्म के लिए पावन बनो तो तुमको स्वर्ग का मालिक बनाऊंगा। पुरानी दुनिया का विनाश और नई दुनिया की स्थापना करना-यह बाप का ही काम है। बाप आया हुआ है सारी दुनिया को दु:ख से लिबरेट कर सुखधाम-शान्तिधाम में ले जाने। अभी सब धर्म विनाश हो जायेंगे। एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म की फिर से स्थापना होती है। ग्रंथ में भी परमपिता परमात्मा को अकालमूर्त कहते हैं। बाप है महाकाल, कालों का काल। वह काल तो एक-दो को ले जायेंगे। मैं तो सभी आत्माओं को ले जाऊंगा इसलिए महाकाल कहते हैं। बाप आकर तुम बच्चों को कितना समझदार बनाते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) इस अन्तिम जन्म में विष को त्याग अमृत पीना और पिलाना है। पावन बनना है। कांटों को फूल बनाने की सेवा करनी है।
2) विष्णु के गले की माला का दाना बनने के लिए बाप की याद में रहना है, पूरा-पूरा मददगार बन बाप समान दु:ख हर्ता बनना है।
वरदान:
सर्व शक्तियों की सम्पत्ति से सम्पन्न बन दाता बनने वाले विधाता, वरदाता भव!  
जो बच्चे सर्व शक्तियों के सम्पत्तिवान हैं-वही सम्पन्न और सम्पूर्ण स्थिति के समीपता का अनुभव करते हैं। उनमें कोई भी भक्तपन के वा भिखारीपन के संस्कार इमर्ज नहीं होते, बाप की मदद चाहिए, आशीर्वाद चाहिए, सहयोग चाहिए, शक्ति चाहिए-यह चाहिए शब्द दाता विधाता, वरदाता बच्चों के आगे शोभता ही नहीं। वे तो विश्व की हर आत्मा को कुछ न कुछ दान वा वरदान देने वाले होते हैं।
स्लोगन:
हर आत्मा को कोई न कोई प्राप्ति कराने वाले वचन ही सत वचन हैं।