Friday, February 12, 2016

मुरली 13 फरवरी 2016

13-02-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– संगम पर तुम्हें नई और निराली नॉलेज मिलती है, तुम जानते हो हम सब आत्मायें एक्टर्स हैं, एक का पार्ट न मिले दूसरे से|”  
प्रश्न:
माया पर जीत पाने के लिए तुम रूहानी योद्धों को (क्षत्रियों को) कौन-सी युक्ति मिली हुई है?
उत्तर:
हे रूहानी क्षत्रिय, तुम सदा श्रीमत पर चलते रहो। आत्म-अभिमानी बन बाप को याद करो, रोज़ सवेरेसवेरे उठ याद में रहने का अभ्यास डालो तो माया पर विजय प्राप्त कर लेंगे। उल्टे-सुल्टे संकल्पों से बच जायेंगे। याद की मीठी युक्ति मायाजीत बना देगी।
गीतः
जिसका साथी है भगवान.......  
ओम् शान्ति।
यह मनुष्यों के बनाये हुए गीत हैं। इनका अर्थ कोई कुछ भी नहीं जानते। गीत भजन आदि गाते हैं, महिमा करते हैं भक्त लोग परन्तु जानते कुछ नहीं। महिमा बहुत करते हैं। तुम बच्चों को कोई महिमा नहीं करनी है। बच्चे बाप की कभी महिमा नहीं करते। बाप जानते हैं यह हमारे बच्चे हैं। बच्चे जानते हैं यह हमारा बाबा है। अभी यह बेहद की बात है। फिर भी सब बेहद के बाप को याद करते हैं। अब तक भी याद करते रहते हैं। भगवान को कहते हैं– हे बाबा, इनका नाम शिवबाबा है। जैसे हम आत्मायें हैं वैसे शिवबाबा है। वह है परम आत्मा, जिसको सुप्रीम कहा जाता है, उनके हम बच्चे हैं। उनको सुप्रीम सोल कहा जाता है। उनका निवास स्थान कहाँ हैं? परमधाम में। सब सोल्स वहाँ रहती हैं। एक्टर्स ही सोल्स हैं। तुम जानते हो नाटक में एक्टर्स नम्बरवार होते हैं। हर एक के पार्ट अनुसार इतनी तनख्वाह (पगार) मिलती है। सब आत्मायें जो वहाँ रहती हैं, सब पार्टधारी हैं, परन्तु नम्बरवार सबको पार्ट मिला हुआ है। रूहानी बाप बैठ समझाते हैं कि रूहों में कैसे अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है। सब रूहों का पार्ट एक जैसा नहीं हो सकता। सबमें ताकत एक जैसी नहीं। तुम जानते हो कि सबसे अच्छा पार्ट उनका है जो पहले शिव की रूद्र माला में हैं। नाटक में जो बहुत अच्छे-अच्छे एक्टर्स होते हैं उनकी कितनी महिमा होती है। सिर्फ उनको देखने लिए भी लोग जाते हैं। तो यह बेहद का ड्रामा है। इस बेहद के ड्रामा में भी ऊंच एक बाप है। ऊंच ते ऊंच एक्टर, क्रियेटर, डायरेक्टर भी कहें, वह सब हैं हद के एक्टर्स, डायरेक्टर्स आदि। उनको अपना छोटा पार्ट मिला हुआ है। पार्ट आत्मा बजाती है परन्तु देह-अभिमान के कारण कह देते कि मनुष्य का ऐसा पार्ट है। बाप कहते पार्ट सारा आत्मा का है। आत्म-अभिमानी बनना पड़ता है। बाप ने समझाया है कि सतयुग में आत्म-अभिमानी होते हैं। बाप को नहीं जानते। यहाँ कलियुग में तो आत्म-अभिमानी भी नहीं और बाप को भी नहीं जानते। अभी तुम आत्म-अभिमानी बनते हो। बाप को भी जानते हो।

तुम ब्राह्मणों को निराली नॉलेज मिलती है। तुम आत्मा को जान गये हो कि हम सब आत्मायें एक्टर्स हैं। सबको पार्ट मिला हुआ है, जो एक न मिले दूसरे से। वह पार्ट सारा आत्मा में है। यूँ तो जो नाटक बनाते हैं वह भी पार्ट आत्मा ही धारण करती है। अच्छा पार्ट भी आत्मा ही लेती है। आत्मा ही कहती है मैं गवर्नर हूँ, फलाना हूँ। परन्तु आत्म-अभिमानी नहीं बनते। सतयुग में समझेंगे कि मैं आत्मा हूँ। एक शरीर छोड़ दूसरा लेना है। परमात्मा को वहाँ कोई नहीं जानते इस समय तुम सब कुछ जानते हो। शूद्रों और देवताओं से तुम ब्राह्मण उत्तम हो। इतने ढेर ब्राह्मण कहाँ से आयेंगे, जो बनेंगे। लाखों आते हैं प्रदर्शनी में। जिसने अच्छी तरह समझा, ज्ञान सुना वह प्रजा बन गये। एक-एक राजा की प्रजा बहुत होती है। तुम प्रजा बहुत बना रहे हो। प्रदर्शनी, प्रोजेक्टर से कोई समझकर अच्छे भी बन जायेंगे। सीखेंगे, योग लगायेंगे। अभी वह निकलते जायेंगे। प्रजा भी निकलेगी फिर साहूकार, राजा-रानी, गरीब आदि सब निकलेंगे। प्रिन्स-प्रिन्सेज बहुत होते हैं। सतयुग से त्रेता तक प्रिन्स-प्रिन्सेज बनने हैं। सिर्फ 8 वा 108 तो नहीं होंगे। लेकिन अभी सब बन रहे हैं। तुम सर्विस करते रहते हो। यह भी नथिंगन्यु। तुमने कोई फंक्शन किया, यह भी नई बात नहीं। अनेक बार किया है फिर संगम पर यही धन्धा करेंगे और क्या करेंगे! बाप आयेंगे पतितों को पावन बनाने। इसको कहा जाता है वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी। नम्बरवार तो हर बात में होता ही है। तुम्हारे में जो अच्छा भाषण करते हैं तो सब कहेंगे कि इसने बहुत अच्छा भाषण किया। दूसरे का सुनेंगे तो भी कहेंगे कि पहले वाले अच्छा समझाते थे। तीसरे फिर उनसे तीखे होंगे तो कहेंगे यह उनसे भी तीखे हैं। हर बात में पुरुषार्थ करना होता है कि हम उनसे ऊपर जायें। होशियार जो होते हैं वह झट हाथ उठायेंगे, भाषण करने लिए। तुम सब पुरुषार्थी हो, आगे चल मेल ट्रेन बन जायेंगे। जैसे मम्मा स्पेशल मेल ट्रेन थी। बाबा का तो पता नहीं पड़ेगा क्योंकि दोनों इकट्ठे हैं। तुम समझ नहीं सकेंगे कि कौन कहते हैं। तुम सदैव समझो कि शिवबाबा समझाते हैं। बाप और दादा दोनों जानते हैं परन्तु वह अन्तर्यामी है। बाहर से कहते हैं यह तो बहुत होशियार है। बाप भी महिमा सुन खुश होते हैं। लौकिक बाप का भी कोई बच्चा अच्छी तरह पढकर ऊंच पद पाता है तो बाप समझते हैं कि यह बच्चा अच्छा नाम निकालेगा। यह भी समझते हैं कि फलाना बच्चा इस रूहानी सर्विस में होशियार है। मुख्य तो भाषण है, किसको बाप का सन्देश देना, समझाना। बाबा ने मिसाल भी बताया था कि किसको 5 बच्चे थे तो कोई ने पूछा कि तुमको कितने बच्चे हैं? तो बोला कि दो बच्चे हैं। कहा कि तुमको तो 5 बच्चे हैं! कहा सपूत दो हैं। यहाँ भी ऐसे है। बच्चे तो बहुत हैं। बाप कहेंगे कि यह डॉक्टर निर्मला बच्ची बहुत अच्छी है। बहुत प्रेम से लौकिक बाप को समझाए सेन्टर खुलवा दिया है। यह भारत की सर्विस है। तुम भारत को स्वर्ग बनाते हो। इस भारत को नर्क रावण ने बनाया। एक सीता कैद में नहीं थी लेकिन तुम सीतायें रावण की कैद में थी। बाकी शास्त्रों में सब दन्त कथायें हैं। यह भक्ति मार्ग भी ड्रामा में है। तुम जानते हो सतयुग से लेकर जो पास हुआ वह रिपीट होगा। आपेही पूज्य आपेही पुजारी बनते हैं। बाप कहते हैं मुझे आकर पुजारी से पूज्य बनाना है। पहले गोल्डन एजेड फिर आइरन एजेड बनना है। सतयुग में सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। रामराज्य तो चन्द्रवंशी था।

इस समय तुम सब रूहानी क्षत्रिय (योद्धे) हो। लड़ाई के मैदान में आने वाले को क्षत्रिय कहा जाता है। तुम हो रूहानी क्षत्रिय। बाकी वह हैं जिस्मानी क्षत्रिय। उनको कहा जाता है बाहुबल से लड़ना-झगड़ना। शुरू में मल्ल युद्ध होती थी बांहों आदि से। आपस में लड़ते थे फिर विजय को पाते थे। अभी तो देखो बॉम्ब्स आदि बने हुए हैं। तुम भी क्षत्रिय हो, वह भी क्षत्रिय हैं। तुम माया पर जीत पाते हो, श्रीमत पर चल। तुम हो रूहानी क्षत्रिय। रूहें ही सब कुछ कर रही हैं इन शरीर की कर्मेन्द्रियों द्वारा। रूह को बाप आकर सिखलाते हैं– बच्चे, मुझे याद करने से फिर माया खायेगी नहीं। तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुमको उल्टा-सुल्टा संकल्प नहीं आयेगा। बाप को याद करने से खुशी भी रहेगी इसलिए बाप समझाते हैं कि सवेरे उठकर अभ्यास करो। बाबा आप कितने मीठे हो। आत्मा कहती है– बाबा। बाप ने पहचान दी है– मैं तुम्हारा बाप हूँ, तुमको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज सुनाने आया हूँ। यह मनुष्य सृष्टि का उल्टा झाड़ है। यह वैराइटी धर्मों की मनुष्य सृष्टि है, इसको कहा जाता है विराट लीला। बाप ने समझाया है कि इस मनुष्य झाड़ का मैं बीज रूप हूँ। मुझे याद करते हैं। कोई किस झाड़ का है, कोई किस झाड़ का है। फिर नम्बरवार निकलते हैं। यह ड्रामा बना हुआ है। कहावत है कि फलाने ने धर्म स्थापक पैगम्बर को भेजा। परन्तु वहाँ से भेजते नहीं हैं। यह ड्रामा अनुसार रिपीट होता है। यह एक ही है जो धर्म और राजधानी स्थापन कर रहे हैं। यह दुनिया में कोई भी नहीं जानते। अभी है संगम। विनाश की ज्वाला प्रज्जवलित होनी है। यह है शिवबाबा का ज्ञान यज्ञ। उन्हों ने रूद्र नाम रख दिया है। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा तुम ब्राह्मण पैदा हुए हो। तुम ऊंच ठहरे ना। पीछे और बिरादरियाँ निकलती हैं। वास्तव में तो सब ब्रह्मा के बच्चे हो। ब्रह्मा को कहा जाता है ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर। सिजरा है, पहले-पहले ब्रह्मा ऊंच फिर सिजरा निकलता है। कहते हैं भगवान सृष्टि कैसे रचते हैं। रचना तो है। जब वह पतित होते हैं तब उनको बुलाते हैं। वही आकर दुःखी सृष्टि को सुखी बनाते हैं इसलिए बुलाते हैं बाबा दुःख हर्ता सुख कर्ता आओ। नाम रखा है हरिद्वार। हरिद्वार अर्थात् हरी का द्वार। वहाँ गंगा बहती है। समझते हैं हम गंगा में स्नान करने से हरी के द्वार चले जायेंगे। परन्तु हरी का द्वार है कहाँ? वह फिर कृष्ण को कह देते हैं। हरी का द्वार तो शिवबाबा है। दुःख हर्ता सुख कर्ता। पहले तुमको जाना है अपने घर। तुम बच्चों को अपने बाप का और घर का अभी मालूम पड़ा है। बाप की गद्दी थोड़ी ऊंची है। फूल है ऊपर में फिर युगल दाना उससे नीचे। फिर रूद्र माला कहते हैं। रूद्र माला सो विष्णु की माला। विष्णु के गले का हार वही फिर विष्णुपुरी में राज्य करते हैं। ब्राह्मणों की माला नहीं है क्योंकि घड़ी-घड़ी टूट पड़ते हैं। बाप समझाते हैं कि नम्बरवार तो हैं ना। आज ठीक हैं कल तूफान आ जाते हैं, गृहचारी आने से ठण्डे हो जाते हैं। बाप कहते हैं कि मेरा बनन्ती, आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती, ध्यान में जावन्ती, माला में पिरवन्ती... फिर एकदम भागन्ती, चण्डाल बनन्ती। फिर माला कैसे बनें? तो बाप समझाते हैं कि ब्राह्मणों की माला नहीं बनती। भक्त माला अलग है, रूद्र माला अलग है। भक्त माला में मुख्य हैं फीमेल्स में मीरा और मेल्स में नारद। यह है रूद्र माला। संगम पर बाप ही आकर मुक्ति-जीवनमुक्ति देते हैं। बच्चे समझते हैं कि हम ही स्वर्ग के मालिक थे। अभी नर्क में हैं। बाप कहते हैं कि नर्क को लात मारो, स्वर्ग की बादशाही लो, जो तुम्हारी रावण ने छीन ली है। यह तो बाप ही आकर बताते हैं। वह इन सब शास्त्रों, तीर्थों आदि को जानते हैं। बीजरूप है ना। ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर..... यह आत्मा कहती है।

बाप समझाते हैं कि यह लक्ष्मी-नारायण सतयुग के मालिक थे। उनके आगे क्या था? जरूर कलियुग का अन्त होगा तो संगमयुग हुआ होगा फिर अब स्वर्ग बनता है। बाप को स्वर्ग का रचयिता कहा जाता है, स्वर्ग स्थापन करने वाला। यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक थे। इन्हों को वर्सा कहाँ से मिला? स्वर्ग के रचता बाप से। बाप का ही यह वर्सा है। तुम कोई से भी पूछ सकते हो कि इन लक्ष्मी-नारायण को सतयुग की राजधानी थी। कैसे ली? कोई बता नहीं सकेंगे। यह दादा भी कहता है कि मैं नहीं जानता था। पूजा करता था परन्तु जानता नहीं था। अब बाप ने समझाया है– यह संगम पर राजयोग सीखते हैं। गीता में ही राजयोग का वर्णन है। सिवाए गीता के और कोई भी शास्त्र में राजयोग की बात नहीं है। बाप कहते हैं कि मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ। भगवान ने ही आकर नर से नारायण बनने की नॉलेज दी है। भारत का मुख्य शास्त्र है गीता। गीता कब रची गई, यह जानते नहीं। बाप कहते हैं कल्प-कल्प संगम पर आता हूँ। जिनको राज्य दिया था वो राज्य गँवाकर फिर तमोप्रधान दुःखी बन पड़े हैं। रावण का राज्य है। सारे भारत की ही कहानी है। भारत है आलराउण्ड, और तो सब बाद में आते हैं। बाप कहते हैं कि तुमको 84 जन्मों का राज़ बताता हूँ। 5 हज़ार वर्ष पहले तुम देवी-देवता थे फिर अपने जन्मों को नहीं जानते हो। हे भारतवासियों– बाप आते हैं अन्त में। आदि में आये तो आदि-अन्त का नॉलेज कैसे सुनाये? सृष्टि की वृद्धि ही नहीं हुई है तो समझाये कैसे? वहाँ तो नॉलेज की दरकार ही नहीं। बाप अभी संगम पर ही नॉलेज देते हैं। नॉलेजफुल है ना। जरूर नॉलेज सुनाने अन्त में आना पड़े। आदि में तुमको क्या सुनायेंगे! यह समझने की बातें हैं। भगवानुवाच कि मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ। यह युनिवर्सिटी है पाण्डव गवर्मेन्ट की। अभी है संगम– यादव, कौरव और पाण्डव, उन्होंने बैठ सेनायें दिखाई हैं। बाप समझाते हैं यादव-कौरव विनाश काले विपरीत बुद्धि। एक-दो को गाली देते रहते हैं। बाप से प्रीत नहीं है। कह देते कि कुत्ते-बिल्ली सबमें परमात्मा है। बाकी पाण्डवों की प्रीत बुद्धि थी। पाण्डवों का साथी स्वयं परमात्मा था। पाण्डव माना रूहानी पण्डे। वह हैं जिस्मानी पण्डे, तुम हो रूहानी पण्डे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1. आत्म-अभिमानी बन इस बेहद नाटक में हीरो पार्ट बजाना है। हर एक एक्टर का पार्ट अपना-अपना है इसलिए किसी के पार्ट से रीस नहीं करनी है।
2. सवेरे-सवेरे उठकर अपने आपसे बातें करनी है, अभ्यास करना है– मैं इन शरीर की कर्मेन्द्रियों से अलग हूँ, बाबा आप कितने मीठे हो, आप हमें सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान देते हो।
वरदान:
कैचिंग पावर द्वारा अपने असली संस्कारों को कैच कर उनका स्वरूप बनने वाले शक्तिशाली भव!   
पुरुषार्थ का मुख्य आधार कैचिंग पावर है। जैसे साइंसदान बहुत पहले के साउण्ड को कैच करते हैं ऐसे आप साइलेन्स की शक्ति से अपने आदि दैवी संस्कार कैच करो, इसके लिए सदैव यही स्मृति रहे कि मैं यही था और फिर बन रहा हूँ। जितना उन संस्कारों को कैच करेंगे उतना उसका स्वरूप बनेंगे। 5 हजार वर्ष की बात इतनी स्पष्ट अनुभव में आये जैसे कल की बात है। अपनी स्मृति को इतना श्रेष्ठ और स्पष्ट बनाओ तब शक्तिशाली बनेंगे।
स्लोगन:
ब्राह्मण जीवन का श्वांस खुशी है, शरीर भल चला जाए लेकिन खुशी न जाए।