Monday, February 1, 2016

मुरली 02 फरवरी 2016

02-02-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

"मीठे बच्चे– तुमने अपनी जीवन डोर एक बाप से बांधी है, तुम्हारा कनेक्शन एक से है, एक से ही तोड़ निभाना है।"  
प्रश्न:
संगमयुग पर आत्मा अपनी डोर परमात्मा के साथ जोड़ती है, इसकी रस्म अज्ञान में किस रीति से चलती आ रही है?
उत्तर:
शादी के समय स्त्री का पल्लव पति के साथ बांधते हैं। स्त्री समझती है जीवन भर उनका ही साथी होकर रहना है। तुमने तो अब अपना पल्लव बाप के साथ जोड़ा है। तुम जानते हो हमारी परवरिश आधाकल्प के लिए बाप द्वारा होगी।
गीतः
जीवन डोर तुम्हीं संग बांधी........
ओम् शान्ति।
देखो, गीत में कहते हैं जीवन डोर तुम से बांधी। जैसे कोई कन्या है, वह अपनी जीवन की डोर पति के साथ बांधती है। समझती है कि जीवन भर उनका ही साथी होकर रहना है। उनको ही परवरिश करनी है। ऐसे नहीं कि कन्या को उनकी परवरिश करनी है। नहीं, जीवन तक उनको परवरिश करनी है। तुम बच्चों ने भी जीवन डोर बांधी है। बेहद का बाप कहो, टीचर कहो, गुरू कहो जो कहो........ यह आत्माओं की जीवन की डोर परमात्मा के साथ बांधने की है। वह है हद की स्थूल बात, यह है सूक्ष्म बात। कन्या के जीवन की डोर पति के साथ बांधी जाती है। वह उनके घर जाती है। देखो, हर एक बात समझने की बुद्धि चाहिए। कलियुग में हैं सब आसुरी मत की बातें। तुम जानते हो हमने जीवन की डोर एक से बांधी है। तुम्हारा कनेक्शन एक से है। एक से ही तोड़ निभाना है क्योंकि उनसे हमको बहुत अच्छा सुख मिलता है। वह तो हमको स्वर्ग का मालिक बनाता है। तो ऐसे बाप की श्रीमत पर चलना चाहिए।

यह है रूहानी डोर। रूह ही श्रीमत लेती है। आसुरी मत लेने से तो नीचे गिरे हैं। अब रूहानी बाप की श्रीमत पर चलना चाहिए। तुम जानते हो हम अपनी आत्मा की डोर परमात्मा के साथ बांधते हैं, तो हमें उनसे 21 जन्म सदा सुख का वर्सा मिलता है। उस अल्पकाल की जीवन डोर से तो नीचे गिरते आये हैं। यह 21 जन्मों के लिए गैरन्टी है। तुम्हारी कमाई कितनी जबरदस्त है, इसमें ग़फलत नहीं करनी चाहिए। माया ग़फलत बहुत कराती है। इन लक्ष्मी-नारायण ने जरूर कोई से जीवन डोर बांधी जिससे 21 जन्म का वर्सा मिला। तुम आत्माओं की परमात्मा से जीवन डोर बांधी जाती है, कल्प-कल्प। उनकी तो गिनती नहीं। बुद्धि में बैठता है– हम शिवबाबा के बने हैं, उनसे जीवन डोर बांधी है। हर एक बात बाप बैठ समझाते हैं। तुम जानते हो कल्प पहले भी बांधी थी। अब शिव जयन्ती मनाते हैं परन्तु किसकी मनाते हैं, पता नहीं है। शिवबाबा जो पतित-पावन है वह जरूर संगम पर ही आयेगा। यह तुम जानते हो, दुनिया नहीं जानती है इसलिए गाया हुआ है कोटों में कोऊ। आदि सनातन देवी-देवता धर्म प्रायःलोप हो गया है और सब शास्त्र कहानियां आदि हैं। यह धर्म है ही नहीं तो जाने कैसे। अभी तुम जीवन की डोर बांध रहे हो। आत्माओं की परमात्मा के साथ डोर जुटी हुई है, इसमें शरीर की कोई बात नहीं है। भल घर में बैठे रहो, बुद्धि से याद करना है। तुम आत्माओं की जीवन डोर बांधी हुई है। पल्लव बांधते हैं ना। वह स्थूल पल्लव, यह है आत्माओं का परमात्मा के साथ योग। भारत में शिव जयन्ती भी मनाते हैं परन्तु वह कब आये थे, यह किसको भी पता नहीं है। कृष्ण की जयन्ति कब, राम की जयन्ति कब है, यह नहीं जानते। बच्चे तुम त्रिमूर्ति शिव जयन्ती अक्षर लिखते हो परन्तु इस समय तीन मूर्तियां तो हैं नहीं। तुम कहेंगे शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचते हैं तो ब्रह्मा साकार में जरूर चाहिए ना। बाकी विष्णु और शंकर इस समय कहाँ हैं, जो तुम त्रिमूर्ति कहते हो। यह बहुत समझने की बातें हैं। त्रिमूर्ति का अर्थ ही ब्रह्मा-विष्णु-शंकर है। ब्रह्मा द्वारा स्थापना वह तो इस समय होती है। विष्णु द्वारा सतयुग में पालना होगी। विनाश का कार्य अन्त में होना है। यह आदि सनातन देवी-देवता धर्म भारत का एक ही है। वह तो सब आते हैं धर्म स्थापन करने। हर एक जानता है यह धर्म स्थापन किया और उनका संवत यह है। फलाने टाइम, फलाना धर्म स्थापन किया। भारत का किसको पता नहीं है। गीता जयन्ती, शिव जयन्ती कब हुई, किसको पता नहीं है। कृष्ण और राधे की आयु में 2-3 वर्ष का फ़र्क होगा। सतयुग में जरूर पहले कृष्ण ने जन्म लिया होगा फिर राधे ने। परन्तु सतयुग कब था, यह किसको पता नहीं है। तुमको भी समझने में बहुत वर्ष लगे हैं, तो दो दिन में कोई कहाँ तक समझेंगे। बाप तो बहुत सहज बताते हैं, वह है बेहद का बाप, जरूर उनसे सबको वर्सा मिलना चाहिए ना। ओ गॉड फादर कह याद करते हैं। लक्ष्मीनारा यण का मन्दिर है। यह स्वर्ग में राज्य करते थे परन्तु उनको यह वर्सा किसने दिया? जरूर स्वर्ग के रचयिता ने दिया होगा। परन्तु कब कैसे दिया, वह कोई नहीं जानते हैं। तुम बच्चे जानते हो जब सतयुग था और कोई धर्म नहीं था। सतयुग में हम पवित्र थे, कलियुग में हम पतित हैं। तो संगम पर ज्ञान दिया होगा, सतयुग में नहीं। वहाँ तो प्रालब्ध है। जरूर अगले जन्म में ज्ञान लिया होगा। तुम भी अब ले रहे हो। तुम जानते हो आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना बाप ही करेगा। कृष्ण तो सतयुग में था, उसको यह प्रालब्ध कहाँ से मिली? लक्ष्मी-नारायण ही राधे-कृष्ण थे, यह कोई नहीं जानते हैं। बाप कहते हैं जिन्होंने कल्प पहले समझा था वही समझेंगे। यह सैपलिंग लगता है। मोस्ट स्वीटेस्ट झाड़ का कलम लगता है। तुम जानते हो आज से 5 हज़ार वर्ष पहले भी बाप ने आकर मनुष्य से देवता बनाया था। अभी तुम ट्रांसफर हो रहे हो। पहले ब्राह्मण बनना है। बाजोली खेलते हैं तो चोटी जरूर आयेगी। बरोबर हम अभी ब्राह्मण बने हैं। यज्ञ में तो जरूर ब्राह्मण चाहिए। यह शिव वा रूद्र का यज्ञ है। रूद्र ज्ञान यज्ञ ही कहा जाता है। कृष्ण ने यज्ञ नहीं रचा। इस रूद्र ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला प्रज्जवलित होती है। यह शिवबाबा का यज्ञ पतितों को पावन बनाने के लिए है। रूद्र शिवबाबा निराकार है, वह यज्ञ कैसे रचे। जब तक मनुष्य तन में न आये। मनुष्य ही यज्ञ रचते हैं। सूक्ष्म वा मूल वतन में यह बातें नहीं होती। बाप समझाते हैं यह संगमयुग है। जब लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो सतयुग था। अब फिर तुम यह बन रहे हो। यह जीवन की डोर आत्माओं की परमात्मा के साथ है। यह डोर क्यों बांधी है? सदा सुख का वर्सा पाने के लिए। तुम जानते हो बेहद के बाप द्वारा हम यह लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। बाप ने समझाया है तुम सो देवी-देवता धर्म के थे। तुम्हारा राज्य था। पीछे तुम पुनर्जन्म लेते-लेते क्षत्रिय धर्म में आये। सूर्यवंशी राजाई चली गई फिर चन्द्रवंशी आये। तुमको मालूम है हम यह चक्र कैसे लगाते हैं। इतने-इतने जन्म लिए। भगवानुवाच– हे बच्चे, तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं जानता हूँ। अब इस समय इस तन में दो मूर्ति हैं। ब्रह्मा की आत्मा और शिव परम आत्मा। इस समय दो मूर्ति इकट्ठी हैं– ब्रह्मा और शिव। शंकर तो कभी पार्ट में आता नहीं। बाकी विष्णु सतयुग में है। अभी तुम ब्राह्मण सो देवता बनेंगे। हम सो का अर्थ वास्तव में यह है। उन्होंने कह दिया है– आत्मा सो परमात्मा। परमात्मा सो आत्मा। कितना फ़र्क है। रावण के आने से ही रावण की मत शुरू हो गई। सतयुग में तो यह ज्ञान ही प्रायःलोप हो जायेगा। यह सब होना ड्रामा में नूँध है ना तब तो बाप आकर स्थापना करे। अभी है संगम। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर आकर तुमको मनुष्य से देवता बनाता हूँ। ज्ञान यज्ञ रचता हूँ। बाकी जो हैं वह इस यज्ञ में स्वाहा हो जाने हैं। यह विनाश ज्वाला इस यज्ञ से प्रज्जवलित होनी है। पतित दुनिया का तो विनाश होना है। नहीं तो पावन दुनिया कैसे हो। तुम कहते भी हो हे पतित-पावन आओ तो पतित दुनिया पावन दुनिया इकट्ठी रहेगी क्या? पतित दुनिया का विनाश होगा, इसमें तो खुश होना चाहिए। महाभारत की लड़ाई लगी थी, जिससे स्वर्ग के गेट खुले। कहते हैं यह वही महाभारत लड़ाई है। यह तो अच्छा है, पतित दुनिया खत्म हो जायेगी। पीस के लिए माथा मारने की दरकार क्या है। तुमको जो अब तीसरा नेत्र मिला है वह कोई को नहीं है। तुम बच्चों को खुश होना चाहिए– हम बेहद के बाप से फिर से वर्सा ले रहे हैं। बाबा हमने अनेक बार आपसे वर्सा लिया है। रावण ने फिर श्राप दिया। यह बातें याद करना सहज है। बाकी सब दन्त कथायें हैं। तुमको इतना साहूकार बनाया फिर गरीब क्यों बनें? यह सब ड्रामा में नूँध है। गाया भी जाता है ज्ञान, भक्ति, वैराग्य। भक्ति से वैराग्य तब हो जब ज्ञान मिले। तुमको ज्ञान मिला तब भक्ति से वैराग्य हुआ। सारी पुरानी दुनिया से वैराग्य। यह तो कब्रिस्तान है। 84 जन्म का चक्र लगाया है। अभी घर चलना है। मुझे याद करो तो मेरे पास चले आयेंगे। विकर्म विनाश हो जायेंगे और कोई उपाय नहीं। योग अग्नि से पाप भस्म होंगे। गंगा स्नान से नहीं होंगे।

बाबा कहते हैं माया ने तुमको फूल (मूर्ख) बना दिया है, अप्रैल फूल कहते हैं ना। अभी मैं तुमको लक्ष्मी-नारायण जैसा बनाने आया हूँ। चित्र तो बहुत अच्छे हैं– आज हम क्या हैं, कल हम क्या होंगे? परन्तु माया कम नहीं। माया डोर बांधने नहीं देती। खींचातान होती है। हम बाबा को याद करते हैं फिर पता नहीं क्या होता है? भूल जाते हैं। इसमें मेहनत है इसलिए भारत का प्राचीन योग मशहूर है। उन्हों को वर्सा किसने दिया, यह कोई समझते नहीं हैं। बाप कहते हैं बच्चों, मैं तुमको फिर से वर्सा देने आया हूँ। यह तो बाप का काम है। इस समय सब नर्कवासी हैं। तुम खुश हो रहे हो। यहाँ कोई आते हैं समझते हैं तो खुशी होती है, बरोबर ठीक है। 84 जन्मों का हिसाब है। बाप से वर्सा लेना है। बाप जानते हैं आधाकल्प भक्ति करके तुम थक गये हो। मीठे बच्चे– बाप तुम्हारी सब थक दूर करेंगे। अब भक्ति अन्धियारा मार्ग पूरा होता है। कहाँ यह दुःखधाम, कहाँ वह सुखधाम। मैं दुःखधाम को सुखधाम बनाने कल्प के संगम पर आता हूँ। बाप का परिचय देना है। बाप बेहद का वर्सा देने वाला है। एक ही की महिमा है। शिवबाबा नहीं होता तो तुमको पावन कौन बनाता। ड्रामा में सारी नूँध है। कल्प-कल्प तुम मुझे पुकारते हो कि हे पतित-पावन आओ। शिव की जयन्ती है। कहते हैं ब्रह्मा ने स्वर्ग की स्थापना की, फिर शिव ने क्या किया जो शिव जयन्ती मनाते हैं। कुछ भी समझते नहीं हैं। तुम्हारी बुद्धि में ज्ञान एकदम बैठ जाना चाहिए। डोर एक के साथ बांधी है तो फिर और कोई के साथ नहीं बांधो। नहीं तो गिर पड़ेंगे। परलौकिक बाप मोस्ट सिम्पल हैं। कोई ठाठ-बाठ नहीं। वह बाप तो मोटरों में, एरोप्लेन में घूमते हैं। यह बेहद का बाप कहते हैं मैं पतित दुनिया, पतित शरीर में बच्चों की सेवा के लिए आया हूँ। तुमने बुलाया है हे अविनाशी सर्जन आओ, आकर हमें इन्जेक्शन लगाओ। इन्जेक्शन लग रहा है। बाप कहते हैं योग लगाओ तो तुम्हारे पाप भस्म होंगे। बाप है ही 63 जन्मों का दुःख हर्ता। 21 जन्मों का सुख कर्ता। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपने बुद्धि की रूहानी डोर एक बाप के साथ बांधनी है। एक की ही श्रीमत पर चलना है।
2) हम मोस्ट स्वीटेस्ट झाड़ का कलम लगा रहे हैं इसलिए पहले स्वयं को बहुत-बहुत स्वीट बनाना है। याद की यात्रा में तत्पर रह विकर्म विनाश करने हैं।
वरदान:
स्वयं के संकल्पों की उलझन अथवा सजाओं से भी परे रहने वाले पास विद आनर भव!  
पास विद आनर अर्थात् मन में भी संकल्पों से सजा न खायें। धर्मराज के सजाओं की बात तो पीछे है परन्तु अपने संकल्पों की भी उलझन अथवा सजाओं से परे रहना– यह पास विद आनर होने वालों की निशानी है। वाणी, कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क की बात तो मोटी है लेकिन संकल्पों में भी उलझन पैदा न हो, ऐसी प्रतिज्ञा करो तब पास विद आनर बनेंगे।
स्लोगन:
ज्ञान घृत और योग की बत्ती ठीक हो तो खुशी का दीपक जगता रहेगा।