Saturday, February 20, 2016

मुरली 21 फरवरी 2016

21-02-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:19-03-81 मधुबन

“विश्व के राज्य-अधिकारी कैसे बने?”
आज बापदादा अपने राइट हैन्डस को देख रहे हैं। बाप की कितनी भुजायें अथक सेवा में तत्पर हैं। एक-एक भुजा में अपनी-अपनी विशेषता है। राइट हैन्ड अर्थात् जो सदा बापदादा के डायरेक्शन प्रमाण हर संकल्प वा हर कदम उठावें। बाप की भुजायें बने हो इसलिए बापदादा भी अपनी भुजाओं को देख हर्षित हो रहे हैं। सभी राइट हैण्डस के हाथ में क्या है? राज्य भाग्य का गोला हाथ में हैं। चित्र भी देखा है ना - कृष्ण के हाथ में गोला दिखाया है। तो एक कृष्ण अकेला थोड़ेही राज्य करेगा। आप सब भी साथ होंगे ना। तो आपका भी चित्र है क्योंकि अधिकारी तो अब बनते हो। अभी के अधिकारीपन के संस्कार 21 जन्म तक चलेंगे। अभी भी राजे और भविष्य में भी राजे बनेंगे। अभी के राज्य अधिकारी ही विश्व के राज्य अधिकारी बनते हैं। तो अभी के राज्य अधिकारी हो? राज्य करोबार सबकी ठीक चल रही है? आप सबके राज्य का क्या हालचाल है? सभी राज्य कारोबारी ला एण्ड आर्डर में हैं? यहाँ ही अगर कभी-कभी के रूलर्स होंगे तो वहाँ क्या करेंगे? वहाँ भी एक-दो जन्म के राजे बन जायेंगे। बनना 21 जन्मों का है तो यहाँ फिर कभी-कभी का क्यों? यहाँ के संस्कार ही वहाँ चलेंगे इसलिए सदा के राजे बनना पड़े। आस्ट्रेलिया निवासी तो रेस कर रहे हैं ना सभी से? कितने नम्बर तक पहुँचे हो? (दिलतख्त तक) उसमें भी नम्बर कौन-सा है? फिर भी पुरुषार्थी अच्छे हैं। मर्यादा पुरूषोत्तम के संस्कार भरने का लक्ष्य रखने में अच्छे हैं। सच्ची सीतायें बन लकीर के अन्दर रहने के लक्ष्य में अच्छे हिम्मतवान हैं। रावण की अट्रैक्शन में तो नहीं आते हो ना। रावण के बहुरूपों को अच्छी तरह से जान गये हो? रावण के भी नॉलेजफुल बन गये हो? नॉलेज कम होने के कारण ही वह (रावण) अपना बना सकता है। नॉलेजफुल के आगे वह नजदीक भी नहीं आ सकता। चाहे सोने का, चाहे हीरे का रूप धारण करे। आस्ट्रेलिया में रावण आता है? वार करने नहीं, सिखाने आता है ना। रावण को भी आप सब आधाकल्प के मित्र बड़े प्यारे लगते हो इसलिए छोड़ने नहीं चाहता। फिर क्या करेंगे? उसकी मित्रता नहीं निभायेंगे? (नहीं) अभी रावण 10 भुजाओं से आपकी 10 प्रकार की सेवा करेगा। इतनी भुजायें सेवा में तो लगायेगा ना। 10 भुजाओं के जोर से आपके लिए बहुत जल्दी-से-जल्दी और बहुत सुन्दर से सुन्दर राज्य तैयार करेगा क्योंकि रावण भी समझ गया है कि अभी हम राज्य नहीं कर सकेंगे लेकिन राज्य तैयार करके देना पड़ेगा। कोई भी कार्य करना होता तो कहने में आता है 10 नाखून का जोर दे यह कार्य करना है। तो यह प्रकृति के 5 तत्व और साथ-साथ जो 5 विकार हैं वह ट्रान्सफर होकर 5 विशेष दिव्य गुणों के रूप में आपकी सेवा के लिए आयेंगे। फिर तो रावण को धन्यवाद देंगे ना। रावण की सेना आपके लिए बहुत मेहनत कर रही है। कितने लगे हुए हैं। देखते हो? विदेश में तो विज्ञान द्वारा कितनी तैयारियाँ कर रहे हैं। यह सब किसके लिए हो रहा है? बोलो हमारे लिए।

आस्ट्रेलिया वालों ने धैर्यता का गुण बहुत अच्छा दिखाया है इसलिए बापदादा आज विशेष पिकनिक आस्ट्रेलिया वालों से करेंगे। हरेक स्थान की अपनी-अपनी विशेषता है। जो औरों को चांस दिया, ऐसे चान्सलर्स बनने के लिए बापदादा सभी को विशेष एक गिफ्ट दे रहे हैं। कौन-सी? विशेष एक श्रृंगार दे रहे हैं। वह है सदा `शुभ-चिन्तक की चिन्दी'। ताज के साथ-साथ यह चिन्दी जरूर होती है। जैसे आत्मा बिन्दी चमक रही है, ऐसे मस्तक के बीच यह चिन्दी की मणी भी चमक रही है। यह सारा ही शुभचिन्तक ग्रुप है ना। परचिन्तन को तलाक देने वाले सदा शुभ चिन्तक। जब भी कोई ऐसी बात सामने आये तो शुभ-चिन्तक की मणी की गिफ्ट सदा स्मृति में रखो। तो आस्ट्रेलिया में सदा पावरफुल वायब्रेशन, पावरफुल सर्विस और सदा फरिश्तों की सभा दिखाई देगी। शक्तियों और पाण्डवों का संगठन भी अच्छा है, सेवा का उमंग भी अच्छा है। सेवा तो सब करते हैं लेकिन सफलता स्वरूप सेवा वह है जिस सेवा में किसी भी संस्कार वा संकल्प का विघ्न न हो। यही बातें सर्विस की वृद्धि में समय लगा देती हैं इसलिए सदा निर्विघ्न सेवाधारी बनो। आस्ट्रेलिया निवासियों ने कितने सेवाकेन्द्र खोले हैं? सेवा का उमंग अच्छा रहे फिर भले कहाँ भी जाओ। अपनी सेवा समझ कार्य करो। ऐसा नहीं यह जर्मनी की है, यह आस्ट्रेलिया की है, नहीं। बाबा की सेवा वा विश्व की सेवा हमारी है। इसको कहा जाता है बेहद की वृत्ति। बेहद वृत्ति वाले हो ना। जहाँ जाओ अपना ही है। विश्व के कल्याणकारी हो, न कि सिर्फ आस्ट्रेलिया के वा आस-पास के। यह तो निमित्त सेवा की वृद्धि कारण नियम बनाये हैं। अच्छी तहर से सेवा को सम्भाल सकें इसलिए निमित्त बनाया है। अभी आगे क्या करना है? सेवाकेन्द्र भी खोले, गीता पाठशाला भी खोली। अभी क्या करेंगे? (सूक्ष्म सेवा) सूक्ष्म सेवा के साथ-साथ और भी कुछ करना है। अभी आस्ट्रेलिया से कोई ऐसा वी.आई.पी. नहीं लाये हो। ऐसा वी.आई.पी. लाओ जो भारत की सरकार को उनका स्वागत करना पड़े। गवर्मेन्ट तक आवाज जाना अर्थात् आवाज़ बुलन्द होना। अभी सारे विदेश में से कोई भी स्थान ऐसी सेवा करे। जो न चाहते भी भारत वालों के कानों में जबरदस्ती भी आवाज पड़े। जैसे कुम्भकरण के चित्र में दिखाते हो ना अमृत कान में डाल रहे हैं। तो ऐसी सेवा हो तब कहेंगे विदेश का आवाज भारत तक पहुँचा। अभी छोटी-छोटी तूतारियाँ तक पहुँचे हो, बिगुल बजाना पड़ेगा। फिर आप सबको बापदादा बहुत अच्छी गिफ्ट देंगे। जब ऐसा आवाज निकलेगा तब जय-जयकार की शहनाईयाँ बजेंगी। नहीं तो भारत के कुम्भकरण ऐसे सहज जागने वाले नहीं हैं। अब तो सिर्फ `क्या' कह करके खर्राटे मारते रहते। समझा, अब क्या करना है। विदेश में हर स्थान पर ऐसी हिम्मत वाले हैं। इस बारी नैरोबी वालों ने कोशिश बहुत अच्छी की। मेहनत अच्छी की, आफ़ीशल प्रोग्राम बनायेंगे तब आवाज होगा। पर्सनल प्रोग्राम बनाते तो आवाज बुलन्द नहीं हो सकता। आप फिर जब ऐसी सेवा करेंगे तब महायज्ञ की समाप्ति समारोह करेंगे। अभी तो आरम्भ किया है।

शक्ति सेना ऐसे लग रही है जैसे बनी बनाई है। सूरत और सीरत दोनों ही शक्ति रूप के दिखाई दे रहे हैं। यूनीफार्म भी अच्छी है, सबके बैज भी अच्छे चमक रहे हैं। मेहनत अच्छी की है। आस्ट्रेलिया निवासी जितने ही शुरू में स्वतन्त्र संस्कार के रहे उतना ही अभी मर्यादा में भी अच्छे रहे हैं। अभी बाप के मीठे बन्धन में आ गये हैं। सब अच्छे हैं। जैसे जेवर होता है उनको स्वरूप में लाया जाता है, यह भी जेवर अच्छे तैयार हो गये हैं। पालिश हो गई। पाण्डव भी सर्विसएबुल अच्छे हैं। रिगार्ड देना और रिगार्ड लेना, इस मंत्र से सदा सहज सेवा की वृद्धि होती रहती है। अभी रिगार्ड देने भी सीख गये हैं, लेने भी सीख गये हैं। रिगार्ड देना ही लेना है - यह सदा याद रखो। सिर्फ रिगार्ड लेने से नहीं मिलेगा, लेकिन देने से मिलेगा इसलिए एक दो में स्नेह और युनिटी अच्छी रहती। यह मंत्र पक्का याद है ना।

दीदी-दादी से - वायरलेस सेट आपके पास है ना। जो सेकेण्ड से भी जल्दी जहाँ कर्तव्य कराना हो वहाँ वायरलेस द्वारा डायरेक्शन दे सकते क्योंकि जितनी सेवा वृद्धि को प्राप्त होती जायेगी तो फिर यह पत्र व्यवहार या टेलीग्राम, टेलीफोन आदि क्या कर सकेंगे। आज यह ठीक हैं कल नहीं। फिर सारी सेवा कैसे हैन्डल करेंगे? इसका भी साधन अपनाना पड़े। हाल भी बनायेंगे, भण्डारा भी बना दिया यह तो जो आयेंगे उन्हों के लिए ठीक हैं लेकिन चारों ओर के सेवाकेन्द्रों के इतने विस्तार को कैसे हैन्डल करेंगे? सबको यहाँ बुलायेंगे? क्यू तो प्रजा की होगी, वारिस तो क्यू में नहीं आयेंगे ना इसलिए विशेष सेकेण्ड में कर्मातीत स्टेज के आधार से आपने संकल्प किया और वहाँ ऐसे पहुंचेगा जैसे आप कहते जा रहे हैं और पहुँच रहा है। ऐसे भी अनुभव बहुत होते रहेंगे जो समाचार में भी आयेगा कि आज ऐसा अनुभव हुआ। साक्षात्कार भी होंगे और संकल्पों की सिद्धि भी होगी। अभी यह विशेषता आती जायेगी। महारथियों का पुरूषार्थ अभी विशेष इसी अभ्यास का ही है। अभी-अभी कर्मयोगी, अभी-अभी कर्मातीत स्टेज। एक स्थान पर खड़े होते भी चारों ओर संकल्प की सिद्धि द्वारा सेवा में सहयोगी बन सकते हो।

बहुत समय देना पड़ता है। जितना टाइम देते हो उतना ही खुशी की खान सबके पास भरती जा रही है। आपका टाइम देना अर्थात् खुशी की खान भरना। दूसरों की खुशी को देख और ही उन्हों को उमंग-उत्साह दिलाने के लिए संकल्प होता है। सब अच्छा ही अनुभव कर रहे हैं। समय जरूर देना पड़ता है लेकिन समय की सफलता हजार गुणा ज्यादा हो जाती इसलिए मधुबन की आकर्षण सबको दिन-प्रतिदिन और ही बढ़ती जाती। यह आप निमित्त आत्माओं की सेवा का फल है।

आस्ट्रेलिया के भिन्न-भिन्न सेवाकेन्द्रों से आये हुए भाई-बहनों के साथ अव्यक्त बापदादा की मधुर मुलाकात

1. हर कदम में पदमों की कमाई जमा हो रही है? ऐसे अपने को पदमापदम भाग्यशाली अनुभव करते हो? सारे दिन में कितने पदम जमा होते हैं? हिसाब निकाल सकते हो? पाण्डव मिलकर सेवा को वृद्धि में ला रहे हैं, यह बहुत अच्छा है। सदा एक दो से सन्तुष्ट रहते हो? सब सदा एकमत और एकरस हैं, यह भी एक बहुत अच्छा एग्जाम्पल है। एक ने कहा दूसरे ने माना - यह है सच्चे स्नेह का रेसपान्ड। ऐसे एग्जाम्पल को देख और भी सम्पर्क में आने के लिए हिम्मत रखते हैं। संगठन भी सेवा का साधन बन जाता है। एक बाप, एक मत - यही संस्कार सतयुग में एक राज्य की स्थापना करते हैं। निर्विघ्न सेवा चल रही है ना? कोई खिटखिट तो नहीं है? जहाँ माया देखती है कि इनकी युनिटी अच्छी है, घेराव है तो वहाँ आने की हिम्मत ही नहीं रखती। एक-एक अपने को सेवा के निमित्त समझकर चलते हैं। एक नहीं लेकिन हम सब निमित्त हैं। बाप ने निमित्त बनाया है, यह स्मृति रहे तो सफलता होती रहेगी। मनन की शक्ति से स्वयं की स्टेज भी पावरफुल होती जायेगी।

2. सदा अपने को निर्बन्धन आत्मा महसूस करते हो? किसी भी प्रकार का बन्धन तो नहीं महसूस करते? नॉलेजफुल की शक्ति से बन्धनों को खत्म नहीं कर सकते हो? नॉलेज में लाइट और माइट दोनों हैं ना। नॉलेजफुल बन्धन में कैसे रह सकते हैं? जैसे दिन और रात इकट्ठा नहीं रह सकते, वैसे मास्टर नॉलेजफुल और बन्धन, यह दोनों इकùा कैसे हो सकते। नॉलेजफुल अर्थात् निर्बन्धन। बीती सो बीती। जब नया जन्म हो गया तो पास्ट के संस्कार अभी क्यों इमर्ज करते हो? जब ब्रहमाकुमार कुमारी बन गये तो बन्धन कैसे हो सकता? ब्रहमा बाप निर्बन्धन है तो बच्चे बन्धन में कैसे रह सकते? इसलिए सदा यह स्मृति में रखो कि हम मास्टर नॉलेजफुल हैं। तो जैसा बाप वैसे बच्चे।

3. सदा सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है इतना नशा रहता है? सफलता होगी या नहीं होगी यह क्वेश्चन ही नहीं। सफलता मूर्त हैं - ऐसे नशा रहता है? मास्टर शिक्षक हो ना। जैसे बाप शिक्षक की क्वालीफिकेशन है वैसे मास्टर शिक्षक की भी होगी ना। बाप समान बने हो ना? (हाँ जी) यह हाँ-हाँ के गीत अच्छा गाते हैं। इससे सिद्ध है कि यह बाप के गुण सभी को सुनाकर डांस करते कराते हैं। कुमारियों को देख करके बापदादा बहुत खुश होते हैं क्योंकि कुमार और कुमारियाँ त्याग कर तपस्वी आकर बने हैं। बच्चों के त्याग की हिम्मत देख, तपस्या का उमंग देख बापदादा खुश होते हैं। बाप की महिमा तो भक्त करते हैं लेकिन बच्चों की महिमा बाप करते हैं। कितने जन्म आपने माला सिमरण की? अभी बाप रिटर्न में बच्चों की माला सिमरण करते हैं। आप लोग देखते हो किस समय बाप माला सिमरण करते हैं? (अमृतवेले) तो जिस समय बाप माला सिमरण करते, उस समय आप सो तो नहीं जाते हो। शक्तियाँ तो सोने वालों को जगाने वाली हैं। खुद कैसे सोयेंगी। रिजल्ट अच्छी है, सर्टीफिकेट मिलना भी लक है। आस्ट्रेलिया वालों को अच्छा सर्टीफिकेट मिल रहा है। अपनी फुलवाड़ी को निश्चय और हिम्मत के जल से सींचते रहने से वृद्धि को पाते रहेंगे। वृद्धि होती रहेगी।

डा. निर्मला बहन से:- बापदादा जितनी भी महिमा करे उतनी कम है, ऐसे महिमा योग्य रत्न हो। जैसा नाम है वैसे निर्माणचित के गुण से विजयी बनी हो। सहनशक्ति और सामना करने की शक्ति के आधार पर सर्व स्थानों को निर्विघ्न बनाया है। तो बापदादा प्रत्यक्षफल को देखकर बहुत खुश हैं इसलिए सदा विशेष आत्माओं की लिस्ट में हो। सदा बाप की मदद मिलती रहती है और मिलती रहेगी। विशेष बच्ची के मस्तक पर सदा बाप का हाथ है। सदा यही चित्र अपने पास रखना। सर्व दैवी परिवार का भी स्नेह और सर्टीफिकेट है।
वरदान:
सदा फरमान के तिलक को धारण कर फर्स्ट प्राइज लेने वाले फरमानवरदार भव!  
जिन बच्चों के मस्तक पर फरमानबरदारी की स्मृति का तिलक लगा हुआ है, एक संकल्प भी फरमान के बिना नहीं करते उन्हें फर्स्ट प्राइज़ प्राप्त होती है। जैसे सीता को लकीर के अन्दर बैठने का फरमान था, ऐसे हर कदम उठाते हुए, हर संकल्प करते हुए बाप के फरमान की लकीर के अन्दर रहो तो सदा सेफ रहेंगे। कोई भी प्रकार के रावण के संस्कार वार नहीं करेंगे और समय भी व्यर्थ नहीं जायेगा।
स्लोगन:
किसी से भी लगाव है तो वह लगाव पुरूषार्थ में अलबेला अवश्य बनायेगा।