Thursday, February 25, 2016

मुरली 26 फरवरी 2016

26-02-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– तुम्हें कमाई का बहुत शौक होना चाहिए, इस पढ़ाई में ही कमाई है”   
प्रश्न:
ज्ञान के बिगर कौन सी खुशी की बात भी विघ्न रूप बन जाती है?
उत्तर:
साक्षात्कार होना, यह है तो खुशी की बात लेकिन अगर यथार्थ रूप से ज्ञान नहीं है तो और ही मूँझ जाते हैं। समझो किसी को बाप का साक्षात्कार हुआ, बिन्दू देखा तो क्या समझेंगे और ही मूँझेंगे, इसलिए ज्ञान के बिगर साक्षात्कार से कोई भी फायदा नहीं। इसमें और ही माया के विघ्न पड़ने लगते हैं। कइयों को साक्षात्कार का उल्टा नशा भी चढ़ जाता है।
गीत:–
तकदीर जगाकर आई हूँ........   
ओम् शान्ति।
तकदीर बनाने आये हो। वह बाप ही तुम्हारा बाप भी है, टीचर भी है, गुरू भी है। और वह आते भी हैं संगम पर। भविष्य के लिए कमाई करना सिखाते हैं। अब इस पुरानी दुनिया में थोड़े रोज हैं। यह दुनिया के मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। नयों ने भी सुना, पुरानों ने भी सुना। कुमारों ने भी सुना कि यह पाठशाला है। पाठशाला में कोई न कोई तकदीर बनाई जाती है। वहाँ तो अनेक प्रकार की तकदीर है। वोई सर्जन बनने की, कोई बैरिस्टर बनने की तकदीर बनाते हैं। तकदीर को एम-ऑब्जेक्ट कहा जाता है। तकदीर बनाने बिगर पाठशाला में क्या पढ़ेंगे। अब यहाँ बच्चे जानते हैं कि हम भी तकदीर बनाकर आये हैं। नई दुनिया के लिए अपना राज्य-भाग्य लेने आये हैं। यह राजयोग है ही नई दुनिया के लिए। वह है पुरानी दुनिया के लिए। वह पुरानी दुनिया के लिए बैरिस्टर, इन्जीनियर, सर्जन आदि बनते हैं। वह बनते-बनते अभी पुरानी दुनिया का तो टाइम बहुत थोड़ा रहा है। वह तो खत्म हो जायेंगे। वह तकदीर है इस मृत्युलोक के लिए यानि इस जन्म के लिए। तुम्हारी यह पढ़ाई है नई दुनिया के लिए। तुम नई दुनिया के लिए तकदीर बनाकर आये हो। नई दुनिया में तुमको राज्य-भाग्य मिलेगा। कौन पढ़ाते हैं? बेहद का बाप, जिनसे ही वर्सा पाना है। जैसे डॉक्टर से डॉक्टरी का वर्सा पाते हैं, वह हो जाता है इस जन्म का वर्सा। एक तो वर्सा मिलता है बाप से, दूसरा वर्सा मिलता है अपनी पढ़ाई का। अच्छा, फिर जब बूढ़े होते हैं तब गुरू के पास जाते हैं। क्या चाहते हैं? कहते हैं हमको शान्तिधाम में जाने की शिक्षा दो। हमको सद्गति दो। यहाँ से निकाल शान्तिधाम ले जाओ। अब बाप से वर्सा मिलता है, टीचर से भी वर्सा मिलता है इस जन्म के लिए, बाकी गुरू से कुछ भी मिलता नहीं। टीचर से पढ़कर कुछ न कुछ वर्सा पाते हैं। टीचर बनें, सुविंग टीचर (सिलाई टीचर) बनें, क्योंकि आजीविका तो चाहिए ना। बाप का वर्सा होते हुए भी पढ़ते हैं कि हम भी अपनी कमाई करें। गुरू से तो कुछ भी कमाई होती नहीं। हाँ कोई-कोई गीता आदि अच्छी रीति पढ़कर फिर गीता पर भाषण आदि करते हैं। यह सब हैं अल्पकाल सुख के लिए। अब तो इस मृत्युलोक में हैं थोड़ा समय। पुरानी दुनिया खत्म होनी है। तुम जानते हो हम नई दुनिया की तकदीर बनाने आये हैं। यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है। बाप की वा अपनी मिलकियत भी भस्म हो जायेगी। हाथ फिर खाली हो जायेंगे। अभी तो कमाई चाहिए– नई दुनिया के लिए। पुरानी दुनिया के मनुष्य तो वह करा नहीं सकेंगे। नई दुनिया के लिए कमाई कराने वाला है शिवबाबा। यहाँ तुम नई दुनिया के लिए मनुष्य नहीं जानते। कहेंगे नई दुनिया फिर कब आयेगी, यह गपोड़ा मारने वाले हैं। ऐसे समझने वाले भी बहुत हैं। बाप कहेंगे नई दुनिया स्थापन होती है। बच्चा कहेगा यह गपोड़ा है। तुम बच्चे समझते हो नई दुनिया के लिए यह हमारा बाप, टीचर, सतगुरू है। बाप आते ही हैं शान्तिधाम, सुखधाम में ले जाने। कोई तकदीर नहीं बनाते हैं गोया कुछ भी समझते नहीं हैं। एक ही घर में ð पढ़ती है, पुरूष नहीं पढ़ेगा; बच्चे पढ़ेंगे, माँ-बाप नहीं पढ़ेंगे। ऐसे होता रहता है। शुरू में कुटुम्ब के कुटुम्ब आये परन्तु माया का तूफान लगने से आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती, बाप को छोड़ चले गये। गाया हुआ भी है आश्चर्यवत् सुनन्ती, बाप का बनेंगे, पढ़ाई पढ़ेंगे फिर भी.... हाय कुदरत ड्रामा की। बाप खुद कहते हैं हाय ड्रामा, हाय माया। ड्रामा की ही बात हुई ना। स्त्री-पुरूष एक-दो को डायओर्स देते हैं। बच्चे बाप को फारकती देते हैं यहाँ तो वह नहीं है। यहाँ तो डायओर्स दे न सकें। बाप तो आये ही हैं बच्चों को सच्ची कमाई कराने। बाप थोड़ेही किसको खड्डे में डालेंगे। बाप तो है ही पतित-पावन, रहमदिल। बाप आकर दु:ख से लिबरेट करते हैं और गाइड बन साथ ले जाने वाला है। ऐसे कोई लौकिक गुरू नहीं कहेंगे कि मैं तुमको साथ ले जाऊंगा। ऐसे गुरू कभी देखा, कभी सुना? गुरू लोगों से तुम पूछो– इतने आपके जो फालोअर्स हैं, तुम शरीर छोड़ जायेंगे फिर क्या इन फालोअर्स को भी साथ ले जायेंगे? ऐसे तो कभी कोई नहीं कहेगा कि मैं फालोअर्स को साथ ले जाऊंगा। यह तो हो न सके। कभी कोई कह न सके कि मैं तुम सबको निर्वाणधाम वा मुक्तिधाम में ले जाऊंगा। ऐसा प्रश्न कोई पूछ भी न सके कि हमको आप साथ ले जायेंगे? शास्त्रों में है भगवानुवाच, मैं तुमको ले जाऊंगा। मच्छरों सदृश्य सब जाते हैं। सतयुग में तो मनुष्य थोड़े होते हैं। कलियुग में तो ढेर मनुष्य हैं। शरीर छोड़ बाकी आत्मायें हिसाबकिताब चुक्तू कर चली जायेंगी। भागना जरूर है, इतने मनुष्य रह न सकें। तुम बच्चे अच्छी रीति जानते हो– अभी हमको जाना है घर। यह शरीर तो छोड़ना है। आप मुये मर गई दुनिया। अपने को सिर्फ आत्मा समझ बाप को याद करना है। यह पुराना चोला तो छोड़ना है। यह दुनिया भी पुरानी है। जैसे पुराने घर में बैठे हुए नया घर सामने तैयार होता रहता तो समझेंगे हमारे लिए बन रहा है। बुद्धि चली जायेगी नये घर तरफ। इसमें यह बनाओ, यह करो। ममत्व सारा पुराने से मिटकर नये में जुट जाता है। वह हुई हद की बात। यह है बेहद के दुनिया की बात। पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाना है और नई दुनिया में लगाना है। जानते हैं यह पुरानी दुनिया तो खत्म हो जानी है। नई दुनिया है स्वर्ग। उसमें हम राजाई पद पाते हैं। जितना योग में रहेंगे, ज्ञान की धारणा करेंगे, औरों को समझायेंगे, उतना खुशी का पारा चढ़ेगा। बडा भारी इम्तहान है। हम स्वर्ग का 21 जन्म के लिए वर्सा पा रहे हैं। साहूकार बनना तो अच्छा है ना। बड़ी आयु मिली तो अच्छा है ना। सृष्टि चक्र को याद करेंगे, जितना जो आपसमान बनायेंगे उतना फायदा है। राजा बनना है तो प्रजा भी बनानी है। प्रदर्शनी में इतने ढेर आते हैं। वह सारी प्रजा बनती जायेगी क्योंकि इस अविनाशी ज्ञान का विनाश तो होता नहीं है। बुद्धि में आ जायेगा– पवित्र बन पवित्र दुनिया का मालिक बनना है। पुरूषार्थ जास्ती करेंगे तो प्रजा में ऊंच पद पायेंगे। नहीं तो कम प्रजा बनेगी। नम्बरवार तो होते हैं ना। रामराज्य की स्थापना हो रही है। रावण राज्य का विनाश हो जायेगा। सतयुग में तो होंगे ही देवतायें। बाबा ने समझाया है– याद की यात्रा से तुम सतोप्रधान दुनिया के मालिक बनेंगे। मालिक तो राजा प्रजा सब होते हैं। प्रजा भी कहेगी भारत हमारा सबसे ऊंचा है। बरोबर भारत बहुत ऊंच था। अभी थोड़ेही है, था जरूर। अभी तो बिल्कुल ही गरीब हो गया है। प्राचीन भारत सबसे साहूकार था। तुम जानते हो– बरोबर हम भारतवासी सबसे ऊंच देवी-देवता कुल के थे। दूसरे कोई को देवता नहीं कहा जाता। अब तुम बच्चियां यह पढ़ती हो फिर औरों को समझाना है। मनुष्यों को समझाना तो है ना। तुम्हारे पास चित्र भी हैं, तुम सिद्ध कर बतला सकते हो-इन्होंने यह पद कैसे पाया? अंगे अक्षरे (तिथि-तारीख सहित) तुम सिद्ध कर सकते हो। अब फिर से यह पद पा रहे हैं शिवबाबा से। उनका चित्र भी है। शिव है परमपिता परमात्मा। बाप कहते हैं ब्रह्मा द्वारा तुमको योगबल से 21 जन्म का वर्सा मिलता है। सूर्यवंशी देवी-देवता विष्णुपुरी के तुम मालिक बन सकते हो। शिवबाबा दादा ब्रह्मा द्वारा यह वर्सा दे रहे हैं। पहले इनकी आत्मा सुनती है, आत्मा ही धारण करती है। मूल बात तो है ही यह। चित्र तो शिव का दिखाते हैं। यह चित्र परमपिता परमात्मा शिव का है। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर हैं सूक्ष्मवतन के देवतायें। प्रजापिता ब्रह्मा तो जरूर यहाँ चाहिए। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारियां ढेर हैं। जब तक ब्रह्मा के बच्चे न बनें, तो ब्राह्मण न बनें, तो शिवबाबा से वर्सा कैसे लेंगे। कुख की पैदाइस तो हो न सके। गाया भी जाता है मुख वंशावली। तुम कहेंगे हम प्रजापिता ब्रह्मा की मुख वंशावली हैं। वह गुरूओं के फालोअर्स होते हैं। यहाँ तुम एक को ही बाप-टीचर-सतगुरू कहते हो। सो भी इनको नहीं कहते हो। निराकार शिवबाबा भी है। ज्ञान का सागर है। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान देते हैं। टीचर भी वह निराकार है जो साकार द्वारा ज्ञान सुनाते हैं। आत्मा ही बोलती है। आत्मा कहती है मेरे शरीर को तंग मत करो। आत्मा दु:खी होती है तो समझानी दी जाती है जबकि विनाश सामने खड़ा है, पारलौकिक बाप आते ही हैं अन्त में सबको वापिस ले जाने। बाकी जो भी कुछ है, यह सब विनाश होने का है। इसको कहा जाता है मृत्युलोक। स्वर्ग तो यहाँ पृथ्वी पर होता है। देलवाड़ा मन्दिर बना हुआ है। नीचे तपस्या कर रहे हैं, ऊपर में है स्वर्ग। नहीं तो कहाँ दिखावें। ऊपर में देवताओं के चित्र दिखाये हैं। वह भी होंगे तो यहाँ ना। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। मन्दिरों में जाकर समझाना चाहिए– यह शिवबाबा का यादगार है, जो शिवबाबा हमको पढ़ा रहा है। शिव है वास्तव में बिन्दी। परन्तु बिन्दी की पूजा कैसे की जाए, फल फूल कैसे चढ़ाये जायें इसलिए बड़ा रूप बनाया है। इतना कोई होता नहीं है। गाया भी जाता है भृकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा। है भी अति सूक्ष्म, बिन्दी है। बड़ी चीज हो तो साइंस आदि वाले झट उनको पकड़ लें। न इतना हजार सूर्य से तेज वाला है, कुछ भी नहीं। कोई-कोई भगत लोग भी आते हैं ना, कहते हैं बस हमको यह चेहरा देखने में आता है। बाबा समझते हैं, उनको परमपिता परमात्मा का पूरा परिचय मिला नहीं है। अभी तकदीर ही नहीं खुली है। जब तक बाप को न जानें, यह न समझें कि हमारी आत्मा बिन्दी समान है, शिवबाबा भी बिन्दी है, उनको याद करना है। ऐसे समझ जब याद करें तब विकर्म विनाश हों। बाकी यह देखने में आता है, ऐसा दिखता, वैसा दिखता..., इसको फिर माया का विघ्न कहा जाता है। अभी तो खुशी में हैं, हमको बाप मिला है। बाप कहते हैं कृष्ण का साक्षात्कार कर बहुत खुशी में डांस आदि करते हैं परन्तु उनसे कोई सद्गति नहीं होती। यह साक्षात्कार तो अनायास ही हो जाता है। अगर अच्छी तरह से पढ़ेंगे नहीं तो प्रजा में चले जायेंगे। साक्षात्कार का भी फायदा तो मिलना है ना। भक्ति मार्ग में बड़ी मेहनत करते हैं तब साक्षात्कार होता है। यहाँ थोड़ी भी मेहनत करते हैं तो साक्षात्कार होता है लेकिन फायदा कुछ नहीं। कृष्णपुरी में साधारण प्रजा आदि जाकर बनेंगे। अभी तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा हमको यह नॉलेज सुना रहे हैं। बाप का फरमान है पवित्र जरूर बनना है। परन्तु कोई-कोई पवित्र भी रह नहीं सकते हैं, कभी पतित भी यहाँ छिपकर आ जाते हैं। वह अपना ही नुकसान करते हैं। अपने को ठगते हैं। बाप को ठगने की बात ही नहीं। बाप से ठगी करके कोई पैसा लेना है क्या? शिवबाबा की श्रीमत पर कायदेसिर नहीं चलते हैं तो क्या हाल होगा। समझा जायेगा तकदीर में नहीं है। नहीं पढ़ते हैं और ही औरों को दु:ख देते रहेंगे, तो एक तो बहुत सजायें खानी पड़ेगी और दूसरा फिर पद भी भ्रष्ट हो ज्येगा। कोई भी कायदे के विरूद्ध काम नहीं करना चाहिए। बाप तो समझायेंगे ना कि तुम्हारी चलन ठीक नहीं है। बाप तो कमाई करने का रास्ता बताते हैं फिर कोई करे न करे, उनकी तकदीर। सजायें खाकर वापिस शान्तिधाम तो जाना ही है। पद भ्रष्ट हो जायेगा। कुछ भी मिलेगा नहीं। आते तो बहुत हैं परन्तु यहाँ तो बाप से वर्सा लेने की बात है। बच्चे कहते हैं बाबा हम तो स्वर्ग का सूर्यवंशी राजाई पद पायेंगे। राजयोग है ना। स्टूडेन्ट स्कॉलरशिप भी लेते हैं ना। पास होने वालों को स्कॉलरशिप मिलती है। यह माला उन्हों की बनी हुई है जिन्होंने स्कॉलरशिप ली है। जितना-जितना जैसा पास होगा ऐसे-ऐसे स्कॉलरशिप मिलेगी। यह माला बनी हुई है। स्कॉलरशिप वालों की वृद्धि होतेहोते हजारों बन जाते हैं। राजाई पद है स्कॉलरशिप। जो अच्छी रीति पढ़ाई पढ़ते हैं वह गुप्त नहीं रह सकते हैं। बहुत नयेन ये भी पुरानों से आगे निकल पड़ेंगे। जैसे देखो कई बच्चियां आती हैं, कहती हैं हमको यह पढ़ाई तो बहुत अच्छी लगती है, हम प्रण करती हैं यह जिस्मानी पढ़ाई का कोर्स पूरा कर फिर इस पढ़ाई में लग जायेंगी। अपना हीरे जैसा जीवन बनायेंगी। हम अपनी सच्ची कमाई कर 21 जन्मों के लिए वर्सा पायेंगी। कितना खुशी होती है। जानते हैं यह वर्सा अब नहीं लिया तो फिर कभी नहीं ले सकेंगे। पढ़ाई का शौक होता है ना। कोई को तो जरा भी शौक नहीं है समझने का। पुरानों को भी इतना शौक नहीं, जितना नयों को है। वन्डर है ना। कहेंगे ड्रामा अनुसार तकदीर में नहीं है तो भगवान भी क्या करें। टीचर तो पढ़ाते हैं। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपनी कमियों को छिपाना भी स्वयं को ठगना है– इसलिए कभी भी अपने से ठगी नहीं करनी है।
2) अपनी ऊंच तकदीर बनाने के लिए कोई भी काम कायदे के विरूद्ध नहीं करना है। पढ़ाई का शौक रखना है। आप समान बनाने की सेवा करनी है।
वरदान:
सदा अपने पवित्र स्वरूप में स्थित रह गुण रूपी मोती चुगने वाले होलीहंस भव   
आप होली हसों का स्वरूप है पवित्र और कर्तव्य है सदैव गुणों रूपी मोती चुगना। अवगुण रूपी कंकड कभी भी बुद्धि में स्वीकार न हो। लेकिन इस कर्तव्य को पालन करने के लिए सदैव एक आज्ञा याद रहे कि न बुरा सोचना है, न बुरा सुनना है, न बुरा देखना है, न बुरा बोलना है.... जो इस आज्ञा को सदा स्मृति में रखते हैं वह सदा सागर के किनारे पर रहते हैं। हंसों का ठिकाना है ही सागर।
स्लोगन:
चलते-फिरते फरिश्ता स्वरूप में रहना-यही ब्रह्मा बाप की दिल-पसन्द गिफ्ट है।