Thursday, September 19, 2019

19-09-2019 प्रात:मुरली

19-09-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम बेहद के बाप पास आये हो विकारी से निर्विकारी बनने, इसलिए तुम्हारे में कोई भी भूत नहीं होना चाहिए''
प्रश्नः-
बाप अभी तुम्हें ऐसी कौन-सी पढ़ाई पढ़ाते हैं जो सारे कल्प में नहीं पढ़ाई जाती?
उत्तर:-
नई राजधानी स्थापन करने की पढ़ाई, मनुष्य को राजाई पद देने की पढ़ाई इस समय सुप्रीम बाप ही पढ़ाते हैं। यह नई पढ़ाई सारे कल्प में नहीं पढ़ाई जाती। इसी पढ़ाई से सतयुगी राजधानी स्थापन हो रही है।
ओम् शान्ति।
यह तो बच्चे जानते हैं हम आत्मा हैं, न कि शरीर। इनको कहा जाता है देही-अभिमानी। मनुष्य सब हैं देह-अभिमानी। यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया अथवा विकारी दुनिया। रावण राज्य है। सतयुग पास्ट हो गया है। वहाँ सब निर्विकारी रहते थे। बच्चे जानते हैं - हम ही पवित्र देवी-देवता थे, जो 84 जन्मों के बाद फिर पतित बने हैं। सब तो 84 जन्म नहीं लेते हैं। भारतवासी ही देवी-देवता थे, जिन्हों ने 82, 83, 84 जन्म लिए हैं। वही पतित बने हैं। भारत ही अविनाशी खण्ड गाया हुआ है। जब भारत में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तब इसे नई दुनिया, नया भारत कहा जाता था। अभी है पुरानी दुनिया, पुराना भारत। वह तो सम्पूर्ण निर्विकारी थे, कोई विकार नहीं थे। वह देवतायें ही 84 जन्म ले अभी पतित बने हैं। काम का भूत, क्रोध का भूत, लोभ का भूत - यह सब कड़े भूत हैं। इनमें मुख्य है देह-अभिमान का भूत। रावण का राज्य है ना। यह रावण है भारत का आधाकल्प का दुश्मन, जब मनुष्य में 5 विकार प्रवेश करते हैं। इन देवताओं में यह भूत नहीं थे। फिर पुनर्जन्म लेते-लेते इनकी आत्मा भी विकारों में आ गई। तुम जानते हो हम जब देवी-देवता थे तो कोई भी विकार का भूत नहीं था। सतयुग-त्रेता को कहा ही जाता है राम राज्य, द्वापर-कलियुग को कहा जाता है रावण राज्य। यहाँ हर एक नर-नारी में 5 विकार हैं। द्वापर से कलियुग तक 5 विकार चलते हैं। अब तुम पुरूषोत्तम संगमयुग पर बैठे हो। बेहद के बाप के पास आये हो विकारी से निर्विकारी बनने के लिए। निर्विकारी बन अगर कोई विकार में गिरते हैं तो बाबा लिखते हैं तुमने काला मुँह किया, अब गोरा मुँह होना मुश्किल है। 5 मंजिल से गिरने जैसा है। हड्डियाँ टूट जाती हैं। गीता में भी है भगवानुवाच - काम महाशत्रु है। भारत का वास्तविक धर्मशास्त्र है ही गीता। हर एक धर्म का एक ही शास्त्र है। भारतवासियों के तो ढेर शास्त्र हैं। उसको कहा जाता है भक्ति। नई दुनिया सतोप्रधान गोल्डन एज है, वहाँ कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं था। बड़ी आयु थी, एवरहेल्दी-वेल्दी थे। तुमको स्मृति आई हम देवतायें बहुत सुखी थे। वहाँ अकाले मृत्यु होती नहीं। काल का डर रहता नहीं। वहाँ हेल्थ, वेल्थ, हैप्पीनेस सब रहती है। नर्क में हैप्पीनेस होती नहीं। कुछ न कुछ शरीर का रोग लगा रहता है। यह है अपार दु:खों की दुनिया। वह है अपार सुखों की दुनिया। बेहद का बाप दु:खों की दुनिया थोड़ेही रचेंगे। बाप ने तो सुख की दुनिया रची। फिर रावण राज्य आया तो उनसे दु:ख-अशान्ति मिली। सतयुग है सुखधाम, कलियुग है दु:खधाम। विकार में जाना गोया एक-दो पर काम कटारी चलाना। मनुष्य कहते हैं यह तो भगवान की रचना है ना। परन्तु नहीं, भगवान की रचना नहीं, यह रावण की रचना है। भगवान ने तो स्वर्ग रचा। वहाँ काम कटारी होती नहीं। ऐसे नहीं दु:ख-सुख भगवान देता है। अरे, भगवान बेहद का बाप बच्चों को दु:ख कैसे देगा। वह तो कहते हैं मैं सुख का वर्सा देता हूँ फिर आधाकल्प के बाद रावण श्रापित करते हैं। सतयुग में तो अथाह सुख थे, मालामाल थे। एक ही सोमनाथ के मन्दिर में कितने हीरे-जवाहरात थे। भारत कितना सालवेन्ट था। अभी तो इनसालवेन्ट है। सतयुग में 100 प्रतिशत सालवेन्ट, कलियुग में 100 प्रतिशत इनसालवेन्ट - यह खेल बना हुआ है। अभी है आइरन एज, खाद पड़ते-पड़ते बिल्कुल तमोप्रधान बन गये हैं। कितना दु:ख है। यह एरोप्लेन आदि भी 100 वर्ष में बने हैं। इनको कहा जाता है माया का पाम्प। तो मनुष्य समझते साइंस ने तो स्वर्ग बना दिया है। परन्तु यह है रावण का स्वर्ग। कलियुग में माया का पाम्प देख तुम्हारे पास मुश्किल आते हैं। समझते हैं हमारे पास तो महल मोटरें आदि हैं। बाप कहते हैं स्वर्ग तो सतयुग को कहा जाता है, जब इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। अब इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य थोड़ेही है। अब कलियुग के बाद फिर इनका राज्य आयेगा। पहले भारत बहुत छोटा था। नई दुनिया में होते ही हैं 9 लाख देवतायें। बस। पीछे वृद्धि को पाते रहते हैं। सारी सृष्टि वृद्धि को पाती है ना। पहले-पहले सिर्फ देवी-देवता थे। तो बेहद का बाप वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी बैठ समझाते हैं। बाप बिगर और कोई बतला न सके। उनको कहा जाता है नॉलेजफुल गॉड फादर। सब आत्माओं का फादर। आत्मायें सब भाई-भाई हैं फिर भाई और बहन बनती हैं। तुम सब हो एक प्रजापिता ब्रह्मा के एडाप्टेड चिल्ड्रेन। सभी आत्मायें उनकी सन्तान तो हैं ही। उनको कहा जाता है परमपिता, उनका नाम है शिव। बस। बाप समझाते हैं - मेरा नाम एक ही शिव है। फिर भक्ति मार्ग में मनुष्यों ने बहुत मन्दिर बनाये हैं तो बहुत नाम रख दिये हैं। भक्ति की सामग्री कितनी ढेर हैं। उसको पढ़ाई नहीं कहेंगे। उसमें एम ऑबजेक्ट कुछ भी नहीं। है ही नीचे उतरने की। नीचे उतरते-उतरते तमोप्रधान बन जाते हैं फिर सतोप्रधान बनना है सबको। तुम सतोप्रधान बनकर स्वर्ग में आयेंगे, बाकी सब सतोप्रधान बन शान्तिधाम में रहेंगे। यह अच्छी रीति याद करो। बाबा कहते हैं तुमने हमको बुलाया है - बाबा, हम पतितों को आकर पावन बनाओ तो अब मैं सारी दुनिया को पावन बनाने आया हूँ। मनुष्य समझते हैं गंगा स्नान करने से पावन बन जायेंगे। गंगा को पतित-पावनी समझते हैं। कुएं से पानी निकला, उसको भी गंगा का पानी समझ स्नान करते हैं। गुप्त गंगा समझते हैं। तीर्थ यात्रा पर वा कोई पहाड़ी पर जायेंगे, उसको भी गुप्त गंगा कहेंगे। इसको कहा जाता है झूठ। गॉड इज़ ट्रूथ कहा जाता है। बाकी रावण राज्य में सब हैं झूठ बोलने वाले। गॉड फादर ही सचखण्ड स्थापन करते हैं। वहाँ झूठ की बात नहीं होती। देवताओं को भोग भी शुद्ध लगाते हैं। अभी तो है आसुरी राज्य, सतयुग-त्रेता में है ईश्वरीय राज्य, जो अब स्थापन हो रहा है। ईश्वर ही आकर सबको पावन बनाते हैं। देवताओं में कोई विकार होता नहीं। यथा राजा रानी तथा प्रजा सब पवित्र होते हैं। यहाँ सब हैं पापी, कामी, क्रोधी। नई दुनिया को स्वर्ग और इसको नर्क कहा जाता है। नर्क को स्वर्ग बाप के सिवाए कोई बना न सके। यहाँ सब हैं नर्कवासी पतित। सतयुग में हैं पावन। वहाँ ऐसे नहीं कहेंगे कि हम पतित से पावन होने के लिए स्नान करने जाते हैं।
यह वैराइटी मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ है। बीजरूप है भगवान। वही रचना रचते हैं। पहले-पहले रचते हैं देवी-देवताओं को। फिर वृद्धि को पाते-पाते इतने धर्म हो जाते हैं। पहले एक धर्म, एक राज्य था। सुख ही सुख था। मनुष्य चाहते भी हैं विश्व में शान्ति हो। वह अभी तुम स्थापन कर रहे हो। बाकी सब खत्म हो जायेंगे। बाकी थोड़े रहेंगे। यह चक्र फिरता रहता है। अभी है कलियुग अन्त और सतयुग आदि का पुरूषोत्तम संगमयुग। इसको कहा जाता है कल्याणकारी पुरूषोत्तम संगमयुग। कलियुग के बाद सतयुग स्थापन हो रहा है। तुम संगम पर पढ़ते हो इसका फल सतयुग में मिलेगा। यहाँ जितना पवित्र बनेंगे और पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। ऐसी पढ़ाई कहाँ होती नहीं। तुमको इस पढ़ाई का सुख नई दुनिया में मिलेगा। अगर कोई भी भूत होगा तो एक तो सजा खानी पड़ेगी, दूसरा फिर वहाँ कम पद पायेंगे। जो सम्पूर्ण बन औरों को भी पढ़ायेंगे तो ऊंच पद भी पायेंगे। कितने सेन्टर्स हैं, लाखों सेन्टर्स हो जायेंगे। सारे विश्व में सेन्टर्स खुल जायेंगे। पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बनना ही है। तुम्हारी एम ऑबजेक्ट भी है। पढ़ाने वाला एक शिवबाबा है। वह है ज्ञान का सागर, सुख का सागर। बाप ही आकर पढ़ाते हैं। यह नहीं पढ़ाते, इनके द्वारा वह पढ़ाते हैं। इनको गाया जाता है भगवान का रथ, भाग्यशाली रथ। तुमको कितना पद्मापद्म भाग्यशाली बनाते हैं। तुम बहुत साहूकार बनते हो। कभी भी बीमार नहीं पड़ते। हेल्थ, वेल्थ, हैप्पीनेस सब मिल जाता है। यहाँ भल धन है परन्तु बीमारियां आदि हैं। वह हैप्पीनेस रह न सके। कुछ न कुछ दु:ख रहता है। उनका तो नाम ही है सुखधाम, स्वर्ग, पैराडाइज़। इन लक्ष्मी-नारायण को यह राज्य किसने दिया? यह कोई भी नहीं जानते। यह भारत में रहते थे। विश्व के मालिक थे। कोई पार्टीशन आदि नहीं था। अभी तो कितने पार्टीशन हैं। रावण राज्य है। कितने टुकड़े-टुकड़े हो गये हैं। लड़ते रहते हैं। वहाँ तो सारे भारत में इन देवी-देवताओं का राज्य था। वहाँ वज़ीर आदि होते नहीं। यहाँ तो वजीर देखो कितने हैं क्योंकि बेअक्ल हैं। तो वजीर भी ऐसे ही तमोप्रधान पतित हैं। पतित को पतित मिले, कर-कर लम्बे हाथ.....। कंगाल बनते जाते हैं, कर्जा उठाते जाते हैं। सतयुग में तो अनाज फल आदि बहुत स्वादिस्ट होते हैं। तुम वहाँ जाकर सब अनुभव करके आते हो। सूक्ष्मवतन में भी जाते हो तो स्वर्ग में भी जाते हो। बाप कहते हैं सृष्टि चक्र कैसे फिरता है। पहले भारत में एक ही देवी-देवता धर्म था। दूसरा कोई धर्म नहीं था। फिर द्वापर में रावण राज्य शुरू होता है। अभी है विकारी दुनिया फिर तुम पवित्र बन निर्विकारी देवता बनते हो। यह स्कूल है। भगवानुवाच मैं तुम बच्चों को राजयोग सिखलाता हूँ। तुम भविष्य में यह बनेंगे। राजाई की पढ़ाई और कहीं नहीं मिलती। बाप ही पढ़ाकर नई दुनिया की राजधानी देते हैं। सुप्रीम फादर, टीचर, सतगुरू एक ही शिवबाबा है। बाबा माना जरूर वर्सा मिलना चाहिए। भगवान जरूर स्वर्ग का वर्सा ही देंगे। रावण जिसको हर वर्ष जलाते हैं, यह है भारत का नम्बरवन दुश्मन। रावण ने कैसा असुर बना दिया है। इनका राज्य 2500 वर्ष चलता है। तुमको बाप कहते हैं मैं तुमको सुखधाम का मालिक बनाता हूँ। रावण तुमको दु:खधाम में ले जाते हैं। तुम्हारी आयु भी कम हो जाती है। अचानक अकाले मृत्यु हो जाती है। अनेक बीमारियां होती रहती हैं। वहाँ ऐसी कोई बात नहीं होती। नाम ही है स्वर्ग। अभी अपने को हिन्दू कहलाते हैं क्योंकि पतित हैं। तो देवता कहलाने लायक नहीं हैं। बाप इस रथ द्वारा बैठ समझाते हैं, इनके बाजू में आकर बैठते हैं तुमको पढ़ाने। तो यह भी पढ़ते हैं। हम सब स्टूडेन्ट हैं। एक बाप ही टीचर है। अभी बाप पढ़ाते हैं। फिर आकर 5000 वर्ष के बाद पढ़ायेंगे। यह ज्ञान, यह पढ़ाई फिर गुम हो जायेगी। पढ़कर तुम देवता बनें, 2500 वर्ष सुख का वर्सा लिया फिर है दु:ख, रावण का श्राप। अभी भारत बहुत दु:खी है। यह है दु:खधाम। पुकारते भी हैं ना - पतित-पावन आओ, आकर पावन बनाओ। अभी तुम्हारे में कोई भी विकार नहीं होना चाहिए परन्तु आधाकल्प की बीमारी कोई जल्दी थोड़ेही निकलती है। उस पढ़ाई में भी जो अच्छी रीति नहीं पढ़ते हैं वह फेल होते हैं। जो पास विद् ऑनर होते हैं वह तो स्कॉलरशिप लेते हैं। तुम्हारे में भी जो अच्छी रीति पवित्र बन और फिर दूसरों को बनाते हैं, तो यह प्राइज़ लेते हैं। माला होती है 8 की। वह है पास विद् ऑनर। फिर 108 की माला भी होती है, वह माला भी सिमरी जाती है। मनुष्य इसका रहस्य थोड़ेही समझते हैं। माला में ऊपर है फूल फिर होता है डबल दाना मेरू। स्त्री और पुरूष दोनों पवित्र बनते हैं। यह पवित्र थे ना। स्वर्गवासी कहलाते थे। यही आत्मा फिर पुनर्जन्म लेते-लेते अब पतित बन गई है। फिर यहाँ से पवित्र बन पावन दुनिया में जायेंगे। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है ना। विकारी राजायें निर्विकारी राजाओं के मन्दिर आदि बनाकर उन्हों को पूजते हैं। वही फिर पूज्य से पुजारी बन जाते हैं। विकारी बनने से फिर वह लाइट का ताज भी नहीं रहता है। यह खेल बना हुआ है। यह है बेहद का वन्डरफुल ड्रामा। पहले एक ही धर्म होता है, जिसको राम राज्य कहा जाता है फिर और-और धर्म वाले आते हैं। यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता रहता है सो एक बाप ही समझा सकते हैं। भगवान तो एक ही है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) स्वयं भगवान टीचर बनकर पढ़ाते हैं इसलिए अच्छी रीति पढ़ना है। स्कॉलरशिप लेने के लिए पवित्र बनकर दूसरों को पवित्र बनाने की सेवा करनी है।
2) अन्दर में काम, क्रोध आदि के जो भी भूत प्रवेश हैं, उन्हें निकालना है। एम ऑबजेक्ट को सामने रखकर पुरूषार्थ करना है।
वरदान:-
महसूसता शक्ति द्वारा पुराने स्वभाव, संस्कार से न्यारा बनने वाले मायाजीत भव
इस पुरानी देह के स्वभाव और संस्कार बहुत कड़े हैं जो मायाजीत बनने में बड़ा विघ्न रूप बनते हैं। स्वभाव-संस्कार रूपी सांप खत्म भी हो जाता है लेकिन लकीर रह जाती है जो समय आने पर बार-बार धोखा दे देती है। कई बार माया के इतना वशीभूत हो जाते जो रांग को रांग भी नहीं समझते। परवश हो जाते हैं इसलिए चेक करो और महसूसता शक्ति द्वारा पुराने छिपे हुए स्वभाव संस्कार से न्यारे बनो तब मायाजीत बनेंगे।
स्लोगन:-
विदेहीपन का अभ्यास करो - यही अभ्यास अचानक के पेपर में पास करायेगा।