Sunday, September 1, 2019

01-09-2019 प्रात:मुरली

01-09-19 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 21-01-85 मधुबन

ईश्वरीय जन्म दिन की गोल्डन गिफ्ट -'दिव्य बुद्धि'
आज विश्व रचता बाप अपने जहान के नूर, नूरे जहान बच्चों को देख रहे हैं। आप श्रेष्ठ आत्मायें जहान के नूर हो अर्थात् जहान की रोशनी हो। जैसे स्थूल नूर नहीं तो जहान नहीं क्योंकि नूर अर्थात् रोशनी। रोशनी नहीं तो अंधकार के कारण जहान नहीं। तो आप नूर नहीं तो दुनिया में रोशनी नहीं। आप हैं तो रोशनी के कारण जहान है। तो बापदादा ऐसे जहान के नूर बच्चों को देख रहे हैं। ऐसे बच्चों की महिमा सदा गाई और पूजी जाती है। ऐसे बच्चे ही विश्व के राज्य भाग्य के अधिकारी बनते हैं। बापदादा हर ब्राह्मण बच्चे को जन्म लेते ही विशेष दिव्य जन्म दिन की दिव्य दो सौगात देते हैं। दुनिया में मनुष्य आत्मायें मनुष्य आत्मा को गिफ्ट देती हैं लेकिन ब्राह्मण बच्चों को स्वयं बाप दिव्य सौगात इस संगमयुग पर देते हैं। क्या देते हैं? एक दिव्य बुद्धि और दूसरा दिव्य नेत्र अर्थात् रूहानी नूर। यह दो गिफ्ट हर एक ब्राह्मण बच्चे को जन्म दिन की गिफ्ट है। इसी दोनों गिफ्ट को सदा साथ रखते इन द्वारा सदा सफलता स्वरूप रहते हो। दिव्य बुद्धि ही हर बच्चे को दिव्य ज्ञान, दिव्य याद, दिव्य धारणा स्वरूप बनाती है। दिव्य बुद्धि ही धारणा करने की विशेष गिफ्ट है। तो दिव्य बुद्धि सदा है अर्थात् धारणा स्वरूप हैं। दिव्य बुद्धि में अर्थात् सतोप्रधान गोल्डन बुद्धि में जरा भी रजो तमो का प्रभाव पड़ता है तो धारणा स्वरूप के बजाए माया के प्रभाव में आ जाते हैं इसलिए हर सहज बात भी मुश्किल अनुभव करते हैं। सहज गिफ्ट के रूप में प्राप्त हुई दिव्य बुद्धि कमजोर होने के कारण मेहनत अनुभव करते हैं। जब भी मुश्किल वा मेहनत का अनुभव करते हो तो अवश्य दिव्य बुद्धि किसी माया के रूप से प्रभावित है तब ऐसा अनुभव होता है। दिव्य बुद्धि द्वारा सेकण्ड में बापदादा की श्रीमत धारण कर, सदा समर्थ सदा अचल, सदा मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति का अनुभव करते हैं। श्रीमत अर्थात् श्रेष्ठ बनाने वाली मत। वह कभी मुश्किल अनुभव नहीं कर सकते। श्रीमत सदा सहज उड़ाने वाली मत है। लेकिन धारण करने की दिव्य बुद्धि जरूर चाहिए। तो चेक करो - अपने जन्म की सौगात सदा साथ है? कभी माया अपना बनाकर दिव्य-बुद्धि की गिफ्ट छीन तो नहीं लेती? कभी माया के प्रभाव से भोले तो नहीं बन जाते जो परमात्म गिफ्ट भी गंवा दो। माया को भी ईश्वरीय गिफ्ट अपना बनाने की चतुराई आती है। तो स्वयं चतुर बन जाती और आपको भोला बना देती है इसलिए भोलेनाथ बाप के भोले बच्चे भले बनो लेकिन माया के भोले नहीं बनो। माया के भोले बनना अर्थात् भूलने वाला बनना। ईश्वरीय दिव्य बुद्धि की गिफ्ट सदा छत्रछाया है और माया अपनी छाया डाल देती है। छत्र उड़ जाता है, छाया रह जाती है इसलिए सदा चेक करो - बाप की गिफ्ट कायम है? दिव्य बुद्धि की निशानी गिफ्ट, लिफ्ट का कार्य करती है। जो श्रेष्ठ संकल्प रूपी स्विच आन किया उस स्थिति में सेकण्ड में स्थित हुए। अगर दिव्य बुद्धि के बीच माया की छाया है तो यह गिफ्ट की लिफ्ट कार्य नहीं करेगी। जैसे स्थूल लिफ्ट भी खराब हो जाती है तो क्या हालत होती है? न ऊपर न नीचे, बीच में लटक जाते। शान के बजाए परेशान हो जाते। कितना भी स्विच आन करेंगे लेकिन मंजिल पर पहुँचने की प्राप्ति नहीं कर सकेंगे। तो यह गिफ्ट की लिफ्ट खराब कर देते हो इसलिए मेहनत रूपी सीढ़ी चढ़नी पड़ती है। फिर क्या कहते हो? हिम्मत रूपी टांगे चल नहीं सकतीं। तो सहज को मुश्किल किसने बनाया और कैसे बनाया? अपने आपको अलबेला बनाया। माया की छाया में आ गये इसलिए सेकण्ड की सहज बात को बहुत समय की मेहनत अनुभव करते हो। दिव्य बुद्धि की गिफ्ट अलौकिक विमान है। जिस दिव्य विमान द्वारा सेकण्ड के स्विच आन करने से जहाँ चाहो वहाँ पहुँच सकते हो। स्विच है संकल्प। साइन्स वाले तो एक लोक का सैर कर सकते। आप तीनों लोकों का सैर कर सकते हो। सेकण्ड में विश्व कल्याणकारी स्वरूप बन सारे विश्व को लाइट और माइट दे सकते हो। सिर्फ दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा ऊंची स्थिति में स्थित हो जाओ। जैसे उन्होंने विमान द्वारा हिमालय के ऊपर राख डाली, नदी में राख डाली, किसलिए? चारों ओर फैलाने के लिए ना! उन्होंने तो राख डाली, आप दिव्य बुद्धि रूपी विमान द्वारा सबसे ऊंची चोटी की स्थिति में स्थित हो विश्व की सर्व आत्माओं के प्रति लाइट और माइट की शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना के सहयोग की लहर फैलाओ। विमान तो शक्तिशाली है ना? सिर्फ यूज़ करना आना चाहिए।
बापदादा की रिफाइन श्रेष्ठ मत का साधन चाहिए। जैसे आजकल रिफाइन से भी डबल रिफाइन चलता है ना। तो बापदादा का यह डबल रिफाइन साधन है। जरा भी मन-मत, परमत का किचड़ा है तो क्या होगा? ऊंचे जायेंगे या नीचे? तो यह चेक करो - दिव्य बुद्धि रूपी विमान में सदा डबल रिफाइन साधन है? बीच में कोई किचड़ा तो नहीं आ जाता? नहीं तो यह विमान सदा सुखदाई है। जैसे सतयुग में कभी भी कोई एक्सीडेंट हो नहीं सकते क्योंकि आपके श्रेष्ठ कर्मों की श्रेष्ठ प्रालब्ध है। ऐसे कोई कर्म होते नहीं जो कर्म के भोग के हिसाब से यह दु:ख भोगना पड़े। ऐसे संगमयुगी गाडली गिफ्ट दिव्य बुद्धि सदा सर्व प्रकार के दु:ख और धोखे से मुक्त हैं। दिव्य बुद्धि वाले कभी धोखे में आ नहीं सकते, दु:ख की अनुभूति कर नहीं सकते। सदा सेफ हैं। आपदाओं से मुक्त हैं इसलिए इस गाडली गिफ्ट के महत्व को जान इस गिफ्ट को सदा साथ रखो। समझा, इस गिफ्ट का महत्व? गिफ्ट सभी को मिली है या किसी की रह गई है? मिली तो सबको हैं ना। सिर्फ सम्भालने आती या नहीं वह आपके ऊपर है। सदा अमृतवेले चेक करो - जरा भी कमी हो तो अमृतवेले ठीक कर देने से सारा दिन शक्तिशाली रहेगा। अगर स्वयं ठीक नहीं कर सकते हो तो ठीक कराओ। लेकिन अमृतेवेले ही ठीक कर दो। अच्छा - दिव्य दृष्टि की बात फिर सुनायेंगे। दिव्य दृष्टि कहो, दिव्य नेत्र कहो, रूहानी नूर कहो, बात एक ही है। इस समय तो दिव्य बुद्धि की यह गिफ्ट सभी के पास है ना। सोने का पात्र (बर्तन) हो ना। यही दिव्य बुद्धि है। मधुबन में सभी दिव्य बुद्धि रूपी सम्पूर्ण सोने का पात्र लेकर आये हो ना। सच्चे सोने में सिल्वर वा कापर मिक्स तो नहीं है ना। सतोप्रधान अर्थात् सम्पूर्ण सोना, इसको ही दिव्य बुद्धि कहा जाता है। अच्छा - जिस भी तरफ से आये हो, सब तरफ से ज्ञान नदियाँ आए सागर में समाई। नदी और सागर का मेला है। महान मेला मनाने आये हो ना। मिलन मेला मनाने आये हो। बापदादा भी सर्व ज्ञान नदियों को देख हर्षित होते हैं कि कैसे उमंग उत्साह से, कहाँ-कहाँ से इस मिलन मेले में पहुँच गये हैं। अच्छा!
सदा दिव्य बुद्धि के गोल्डन गिफ्ट को कार्य में लाने वाले, सदा बाप समान चतुर सुजान बन माया की चतुराई को जानने वाले, सदा बाप की छत्रछाया में रह माया की छाया से दूर रहने वाले, सदा ज्ञान सागर से मधुर मिलन मेला मनाने वाले, हर मुश्किल को सहज बनाने वाले, विश्व कल्याणकारी, श्रेष्ठ स्थिति में स्थित रहने वाले, श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
पर्सनल मुलाकात
1) दृष्टि बदलने से सृष्टि बदल गई है ना! दृष्टि श्रेष्ठ हो गई तो सृष्टि भी श्रेष्ठ हो गई! अभी सृष्टि ही बाप है। बाप में सृष्टि समाई हुई है। ऐसे ही अनुभव होता है ना! जहाँ भी देखो, सुनो तो बाप भी साथ में अनुभव होता है ना! ऐसा स्नेही सारे विश्व में कोई हो नहीं सकता जो हर सेकण्ड, हर संकल्प में साथ निभाये। लौकिक में कोई कितना भी स्नेही हो लेकिन फिर भी सदा साथ नहीं दे सकता। यह तो स्वप्न में भी साथ देता है। ऐसा साथ निभाने वाला साथी मिला है, इसलिए सृष्टि बदल गई। अभी लौकिक में भी अलौकिक अनुभव करते हो ना! लौकिक में जो भी सम्बन्ध देखते तो सच्चा सम्बन्ध स्वत: स्मृति में आता, इससे उन आत्माओं को भी शक्ति मिल जाती। जब बाप सदा साथ है तो बेफिकर बादशाह हो। ठीक होगा या नहीं, यह भी सोचने की जरूरत नहीं रहती। जब बाप साथ है तो सब ठीक ही ठीक है। तो साथ का अनुभव करते हुए उड़ते चलो। सोचना भी बाप का काम है, हमारा काम है साथ में मगन रहना, इसलिए कमजोर सोच भी समाप्त। सदा बेफिकर बादशाह रहो, अभी भी बादशाह और सदा के लिए बादशाह।
2) सदा अपने को सफलता के सितारे समझो और दूसरी आत्माओं को भी सफलता की चाबी देते रहो। इस सेवा से सभी आत्मायें खुश होकर आपको दिल से आशीर्वाद देंगी। बाप और सर्व की आशीर्वादें ही आगे बढ़ाती हैं।
विशेष चुने हुए अव्यक्त महावाक्य - सहयोगी बनो और सहयोगी बनाओ
जैसे प्रजा राजा की सहयोगी, स्नेही होती है, ऐसे पहले आपकी यह सर्व कर्मेन्द्रियां, विशेष शक्तियाँ सदा स्नेही, सहयोगी रहें तब इसका प्रभाव साकार में आपके सेवा के साथियों वा लौकिक सम्बन्धियों, साथियों पर पड़ेगा। जब स्वयं अपनी सर्व कर्मेन्द्रियों को आर्डर में रखेंगे तब आपके अन्य सभी साथी आपके कार्य में सहयोगी बनेंगे। जिससे स्नेह होता है उसके हर कार्य में सहयोगी जरूर बनते हैं। अति स्नेही आत्मा की निशानी सदा बाप के श्रेष्ठ कार्य में सहयोगी होगी। जितना-जितना सहयोगी, उतना सहजयोगी। तो दिन-रात यही लगन रहे - बाबा और सेवा, इसके सिवाए कुछ है ही नहीं। वह माया के सहयोगी हो नहीं सकते, माया से किनारा हो जाता है।
स्वयं को कोई कितना भी अलग रास्ते वाला माने लेकिन ईश्वरीय स्नेह सहयोगी बनाए 'आपस में एक हो' आगे बढ़ने के सूत्र में बांध देता है। स्नेह पहले सहयोगी बनाता है, सहयोगी बनाते-बनाते स्वत: ही समय पर सहजयोगी बना देता है। ईश्वरीय स्नेह परिवर्तन का फाउन्डेशन है अथवा जीवन-परिवर्तन का बीज-स्वरूप है। जिन आत्माओं में ईश्वरीय स्नेह की अनुभूति का बीज पड़ जाता है, तो यह बीज सहयोगी बनने का वृक्ष स्वत: ही पैदा करता रहेगा और समय पर सहजयोगी बनने का फल दिखाई देगा क्योंकि परिवर्तन का बीज फल जरूर दिखाता है। सबके मन की शुभ भावना और शुभ कामना का सहयोग किसी भी कार्य में सफलता दिला देता है क्योंकि यह शुभ भावना, शुभ कामना का किला आत्माओं को परिवर्तन कर लेता है। वायुमण्डल का किला सर्व के सहयोग से ही बनता है। ईश्वरीय स्नेह का सूत्र एक हो तो अनेकता के विचार होते हुए भी सहयोगी बनने का विचार उत्पन्न हो जाता है। अभी सर्व सत्ताओं को सहयोगी बनाओ। बन भी रहे हैं लेकिन और भी समीप, सहयोगी बनाते चलो क्योंकि अभी प्रत्यक्षता का समय समीप आ रहा है। पहले आप उन्हों को सहयोगी बनाने की मेहनत करते थे लेकिन अभी वह स्वयं सहयोगी बनने की आफर कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे।
समय प्रति समय सेवा की रूपरेखा बदल रही है और बदलती रहेगी। अभी आप लोगों को ज्यादा कहना नहीं पड़ेगा लेकिन वह स्वयं कहेंगे कि यह कार्य श्रेष्ठ है, इसीलिए हमें भी सहयोगी बनना ही चाहिए। जो सच्ची दिल से, स्नेह से सहयोग देता है, वह पद्म गुणा बाप से सहयोग लेने का अधिकारी बनता है। बाप पूरा ही सहयोग का हिसाब चुक्तु करते हैं। बड़े कार्य को भी सहज करने का चित्र पर्वत को अंगुली देते हुए दिखाया है, यह सहयोग की निशानी है। तो हर एक सहयोगी बनकरके सामने आये, समय पर सहयोगी बने - अब उसकी आवश्यकता है। उसके लिए शक्तिशाली बाण लगाना पड़ेगा। शक्तिशाली बाण वही होता है जिसमें सर्व आत्माओं के सहयोग की भावना हो, खुशी की भावना हो, सद्भावना हो। अच्छा - ओम् शान्ति।
वरदान:-
स्नेह और नवीनता की अथॉरिटी से समर्पित कराने वाली महान आत्मा भव
जो भी सम्पर्क में आये हैं उन्हें ऐसा सम्बन्ध में लाओ जो सम्बन्ध में आते-आते समर्पण बुद्धि हो जाएं और कहें कि जो बाप ने कहा है वही सत्य है, इसको कहते हैं समर्पण बुद्धि। फिर उनके प्रश्न समाप्त हो जायेंगे। सिर्फ यह नहीं कहें कि इन्हों का ज्ञान अच्छा है। लेकिन यह नया ज्ञान है जो नई दुनिया लायेगा - यह आवाज हो तब कुम्भकरण जागेंगे। तो नवीनता की महानता द्वारा स्नेह और अथॉरिटी के बैलेन्स से ऐसा समर्पित कराओ तब कहेंगे माइक तैयार हुए।
स्लोगन:-
एक परमात्मा के प्यारे बनो तो विश्व के प्यारे बन जायेंगे।