Saturday, September 14, 2019

15-09-2019 प्रात:मुरली

15-09-19 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 28-01-85 मधुबन

विश्व सेवा का सहज साधन मन्सा सेवा
आज सर्व शक्तिवान बाप अपने शक्ति सेना, पाण्डव सेना, रूहानी सेना को देख रहे हैं। सेना के महावीर अपनी रूहानी शक्ति से कहाँ तक विजयी बने हैं। विशेष तीन शक्तियों को देख रहे हैं। हर एक महावीर आत्मा की मन्सा शक्ति कहाँ तक स्व परिवर्तन प्रति और सेवा के प्रति धारण हुई है? ऐसे ही वाचा शक्ति, कर्मणा शक्ति अर्थात् श्रेष्ठ कर्म की शक्ति कहाँ तक जमा की है? विजयी रत्न बनने के लिए यह तीनों ही शक्तियाँ आवश्यक हैं। तीनों में से एक शक्ति भी कम है तो वर्तमान प्राप्ति और प्रालब्ध कम हो जाती है। विजयी रत्न अर्थात् तीनों शक्तियों से सम्पन्न। विश्व सेवाधारी सो विश्व राज्य अधिकारी बनने का आधार यह तीनों शक्तियों की सम्पन्नता है। सेवाधारी बनना और विश्व सेवाधारी बनना, विश्व राजन बनना वा सतयुगी राजन बनना इसमें भी अन्तर है। सेवाधारी अनेक हैं विश्व सेवाधारी कोई-कोई हैं। सेवाधारी अर्थात् तीनों शक्तियों की नम्बरवार यथाशक्ति धारणा। विश्व सेवाधारी अर्थात् तीनों शक्तियों की सम्पन्नता। आज हरेक के तीनों शक्तियों की परसेन्टेज देख रहे थे।
सर्वश्रेष्ठ मन्सा शक्ति द्वारा चाहे कोई आत्मा सम्मुख हो, समीप हो वा कितना भी दूर हो - सेकण्ड में उस आत्मा को प्राप्ति की शक्ति की अनुभूति करा सकते हैं। मन्सा शक्ति किसी आत्मा की मानसिक हलचल वाली स्थिति को भी अचल बना सकती है। मानसिक शक्ति अर्थात् शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना इस श्रेष्ठ भावना द्वारा किसी भी आत्मा को, संशय बुद्धि को भावनात्मक बुद्धि बना सकते हैं। इस श्रेष्ठ भावना से किसी भी आत्मा का व्यर्थ भाव परिवर्तन कर समर्थ भाव बना सकते हैं। श्रेष्ठ भाव द्वारा किसी भी आत्मा के स्वभाव को भी बदल सकते हैं। श्रेष्ठ भावना की शक्ति द्वारा आत्मा को भावना के फल की अनुभूति करा सकते हैं। श्रेष्ठ भावना द्वारा भगवान के समीप ला सकते हैं। श्रेष्ठ भावना किसी आत्मा की भाग्य की रेखा बदल सकती है। श्रेष्ठ भावना हिम्मतहीन आत्मा को हिम्मतवान बना देती है। इसी श्रेष्ठ भावना की विधि प्रमाण मन्सा सेवा किसी भी आत्मा की कर सकते हो। मन्सा सेवा वर्तमान समय के प्रमाण अति आवश्यक है। लेकिन मन्सा सेवा वही कर सकता है जिसकी स्वयं की मन्सा अर्थात् संकल्प सदा सर्व के प्रति श्रेष्ठ हो, नि:स्वार्थ हो। पर-उपकार की सदा भावना हो। अपकारी पर भी उपकार की श्रेष्ठ भावना हो। सदा दातापन की भावना हो। सदा स्व परिवर्तन, स्व के श्रेष्ठ कर्म द्वारा औरों को श्रेष्ठ कर्म की प्रेरणा देने वाले हों। यह भी करें, तब मैं करूँगी कुछ यह करें कुछ मैं करूँ वा थोड़ा तो यह भी करें, इस भावना से भी परे। कोई नहीं कर सकता है, फिर भी रहम की भावना, सदा सहयोग की भावना, हिम्मत बढ़ाने की भावना हो। इसको कहा जाता है मन्सा सेवाधारी। मन्सा सेवा एक स्थान पर स्थित रहकर भी चारों ओर की सेवा कर सकते हो। वाचा और कर्म के लिए तो जाना पड़े। मन्सा सेवा कहाँ भी बैठे हुए कर सकते हो।
मंसा सेवा - रूहानी वायरलेस सेट है। जिस द्वारा दूर का संबंध समीप बना सकते हो। दूर बैठे किसी भी आत्मा को बाप के बनने का उमंग-उत्साह पैदा करने का सन्देश दे सकते हो। जो वह आत्मा अनुभव करेगी कि मुझे कोई महान शक्ति बुला रही है। कुछ अनमोल प्रेरणायें मुझे प्रेर रही हैं। जैसे कोई को सम्मुख सन्देश दे उमंग-उत्साह में लाते हो। ऐसे मन्सा शक्ति द्वारा भी वह आत्मा ऐसे ही अनुभव करेगी जैसे कोई सम्मुख बोल रहा है। दूर होते भी सम्मुख का अनुभव करेगी। विश्व सेवाधारी बनने का सहज साधन ही मन्सा सेवा है। जैसे साइंस वाले इस साकार सृष्टि से, पृथ्वी से ऊपर अन्तरिक्ष यान द्वारा अपना कार्य शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। स्थूल से सूक्ष्म में जा रहे हैं। क्यों? सूक्ष्म शक्तिशाली होता है। मन्सा शक्ति भी अन्तर्मुखीयान है। जिस द्वारा जहाँ भी चाहो, जितना जल्दी चाहो पहुँच सकते हो। जैसे साइंस द्वारा पृथ्वी की आकर्षण से परे जाने वाले स्वत: ही लाइट (हल्के) बन जाते हैं। ऐसे मंसा शक्तिशाली आत्मा स्वत: ही डबल लाइट स्वरूप सदा अनुभव करती है। जैसे अन्तरिक्ष यान वाले ऊंचे होने के कारण सारे पृथ्वी के जहाँ के भी चित्र खींचने चाहें खींच सकते हैं, ऐसे साइलेन्स की शक्ति से अन्तर्मुखी यान द्वारा मंसा शक्ति द्वारा किसी भी आत्मा को चरित्रवान बनने की, श्रेष्ठ आत्मा बनने की प्रेरणा दे सकते हो। साइंस वाले तो हर चीज पर समय और सम्पत्ति खूब लगाते हैं। लेकिन आप बिना खर्चे थोड़े समय में बहुत सेवा कर सकते हो। जैसे आजकल कहाँ-कहाँ फ्लाइंग सासर (उड़न तश्तरी) देखते हैं। सुनते हो ना - समाचार। वह भी सिर्फ लाइट ही देखने में आती है। ऐसे आप मंसा सेवाधारी आत्माओं का आगे चल अनुभव करेंगे कि कोई लाइट की बिन्दी आई, विचित्र अनुभव कराके गई। यह कौन थे? कहाँ से आये? क्या देकर गये, यह चर्चा बढ़ती जायेगी। जैसे आकाश के सितारों की तरफ सबकी नज़र जाती है, ऐसे धरती के सितारे दिव्य ज्योति चारों ओर अनुभव करेंगे। ऐसी शक्ति मन्सा सेवाधारियों की है। समझा? महानता तो और भी बहुत है लेकिन आज इतना ही सुनाते हैं। मंसा सेवा को अब तीव्र करो तब 9 लाख तैयार होंगे। अभी गोल्डन जुबली तक कितनी संख्या बनी है? सतयुग की डायमण्ड जुबली तक 9 लाख तो चाहिए ना। नहीं तो विश्व राजन किस पर राज्य करेगा? 9 लाख तारे गाये हुए हैं ना। सितारा रूपी आत्मा का अनुभव करेंगे तब 9 लाख सितारे गाये जायेंगे इसलिए अब सितारों का अनुभव कराओ। अच्छा - चारों ओर के आये हुए बच्चों को मधुबन निवासी बनने की मुबारक हो वा मिलन मेले की मुबारक हो। इसी अविनाशी अनुभव की मुबारक सदा साथ रखना। समझा।
सदा महावीर बन मन्सा शक्ति की महानता से श्रेष्ठ सेवा करने वाले, सदा श्रेष्ठ भावना और श्रेष्ठ कामना की विधि से बेहद के सेवा की सिद्धि पाने वाले, अपनी ऊंची स्थिति द्वारा चारों ओर की आत्माओं को श्रेष्ठ प्रेरणा देने के विश्व सेवाधारी, सदा अपनी शुभ भावना द्वारा अन्य आत्माओं को भी भावना का फल देने वाले, ऐसे विश्व कल्याणकारी, पर-उपकारी, विश्व सेवाधारी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
कुमारों के प्रति विशेष अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य
कुमार, ब्रह्माकुमार तो बन ही गये, लेकिन ब्रह्माकुमार बनने के बाद फिर क्या बनना है? शक्तिशाली कुमार। जब तक शक्तिशाली नहीं बने तो वियजी नहीं बन सकते। शक्तिशाली कुमार सदा नॉलेजफुल और पावरफुल आत्मा होंगे। नॉलेजफुल अर्थात रचता को भी जानने वाले, रचना को भी जानने वाले और माया के भिन्न-भिन्न रूपों को भी जानने वाले। ऐसे नॉलेजफुल पावरफुल सदा विजयी हैं। नॉलेज जीवन में धारण करना अर्थात नॉलेज को शस्त्र बना देना। तो शस्त्रधारी शक्तिशाली होंगे ना। आज मिलिट्री वाले शक्तिशाली किस आधार से होते हैं? शस्त्र हैं, बन्दूक हैं तो निर्भय हो जाते हैं। तो नॉलेजफुल जो होगा वह पावरफुल जरूर होगा। तो माया की भी पूरी नॉलेज है। क्या होगा, कैसे होगा, पता नहीं पड़ा, माया कैसे आ गई, तो नॉलेजफुल नहीं हुए। नॉलेजफुल आत्मा पहले से ही जानती है। जैसे समझदार जो होते हैं वह बीमारी को पहले से ही जान लेते हैं। बुखार आने वाला होता तो पहले से ही समझेंगे कि कुछ हो रहा है, पहले से ही दवा लेकर अपने को ठीक कर देंगे और स्वस्थ हो जायेंगे। बेसमझ को बुखार आ भी जायेगा तो चलता-फिरता रहेगा और बुखार बढ़ता जायेगा। ऐसे ही माया आती है लेकिन आने के पहले समझ लेना और उसे दूर से ही भगा देना। तो ऐसे समझदार शक्तिशाली कुमार हो ना! सदा विजयी हो ना! या आपको भी माया आती और भगाने में टाइम लगाते हो। शक्ति को देखकर दूर से ही दुश्मन भाग जाता है। अगर आ जाये फिर उसे भगाओ तो टाइम ही वेस्ट और कमजोरी की आदत पड़ जाती है। कोई बार-बार बीमार हो तो कमजोर हो जाता है ना! या बार-बार पढ़ाई में फेल हो तो कहेंगे यह पढ़ने में कमजोर है। ऐसे माया बार-बार आये और वार करती रहे तो हार खाने के आदती हो जायेंगे और बार-बार हार खाने से कमजोर हो जायेंगे इसलिए शक्तिशाली बनो। ऐसी शक्तिशाली आत्मा सदा प्राप्ति का अनुभव करती है, युद्ध में अपना समय नहीं गंवाती। विजय की खुशी मनाती है। तो कभी किसी बात में कमजोरी न हो। कुमार बुद्धि सालिम है। अधरकुमार बनने से बुद्धि बंट जाती है। कुमारों को एक ही काम है, अपनी ही जीवन है। उन्हों को तो कितनी जिम्मेवारियां होती हैं। आप जिम्मेवारियों से स्वतंत्र हो, जो स्वतंत्र होगा वह आगे बढ़ेगा। बोझ वाला धीरे-धीरे चलेगा। स्वतंत्र हल्का होगा वह तेज चलेगा। तो तेज़ रफतार वाले हो, एकरस हो? सदा तीव्र अर्थात् एकरस। ऐसे भी नहीं 6 मास बीत जाये, जैसे हैं वैसे ही चल रहे हैं, इसको भी तीव्रगति नहीं कहेंगे। तीव्रगति वाले आज जो हैं कल उससे आगे, परसों उससे आगे, इसको कहा जाता है - 'तीव्रगति वाले'। तो सदा अपने को शक्तिशाली कुमार समझो। ब्रह्माकुमार बन गये सिर्फ इस खुशी में रहे, शक्तिशाली नहीं बने तो विजयी नहीं बन सकते। ब्रह्माकुमार बनना बहुत अच्छा लेकिन शक्तिशाली ब्रह्माकुमार सदा समीप होते हैं। अब के समीप वाले राज्य में भी समीप होंगे। अभी की स्थिति में समीपता नहीं तो राज्य में भी समीपता नहीं। अभी की प्राप्ति सदा की प्रालब्ध बना देती है इसलिए सदा शक्तिशाली। ऐसे शक्तिशाली ही विश्व-कल्याणकारी बन सकते हैं। कुमारों में शक्ति तो है ही, चाहे शारीरिक शक्ति, चाहे आत्मा की। लेकिन विश्व-कल्याण के प्रति शक्ति है या श्रेष्ठ विश्व को विनाशकारी बनाने के कार्य में लगने की शक्ति है? तो कल्याणकारी कुमार हो ना! अकल्याण करने वाले नहीं। संकल्प में भी सदा सर्व के प्रति कल्याण की भावना हो। स्वप्न में भी कल्याण की भावना हो, इसको कहा जाता है - श्रेष्ठ शक्तिशाली। कुमार शक्ति द्वारा जो सोचें वह कर सकते हैं। जो वही संकल्प और कर्म, दोनों साथ-साथ हों। ऐसे नहीं संक्ल्प आज किया कर्म पीछे। संकल्प और कर्म एक हो और साथ-साथ हों। ऐसी शक्ति हो। ऐसी शक्ति वाले ही अनेक आत्माओं का कल्याण कर सकते हैं। तो सदा सेवा में सफल बनने वाले हो या खिट-खिट करने वाले हो? मन में, कर्म में, आपस में सबमें ठीक। किसी में भी खिट-खिट न हो। सदा अपने को विश्व-कल्याणकारी कुमार समझो तो जो भी कर्म करेंगे उसमें कल्याण की भावना समाई होगी। अच्छा!
विदाई के समय अमृतवेले सभी बच्चों को यादप्यार दी
हर कार्य मंगल हो। हर कार्य सदा सफल हो। उसकी सभी बच्चों को बधाई। वैसे तो हर दिन संगमयुग के शुभ हैं, श्रेष्ठ हैं, उमंग उत्साह दिलाने वाले हैं इसलिए हर दिन का महत्व अपना-अपना है। आज के दिन हर संकल्प भी मंगलमय हो अर्थात् शुभचिन्तक रूप वाला हो। किसी के प्रति मंगल कामना अर्थात् शुभ कामना करने वाला संकल्प हो। हर संकल्प मंगलम् अर्थात् खुशी दिलाने वाला हो। तो आज के दिन का यह महत्व संकल्प बोल और कर्म तीनों में विशेष स्मृति में रखना। और यह स्मृति रखना ही, हर सेकण्ड बापदादा की यादप्यार स्वीकार करना है। तो सिर्फ अभी यादप्यार नहीं दे रहे हैं लेकिन प्रैक्टिकल करना अर्थात् यादप्यार लेना। सारा दिन आज यादप्यार लेते रहना अर्थात् याद में रह हर संकल्प, बोल द्वारा प्यार की लहर में लहराते रहना। अच्छा - सभी को विशेष याद गुडमार्निंग!
सम्मेलन के प्रति अव्यक्त बापदादा का विशेष सन्देश
बापदादा बोले, बच्चे सम्मेलन कर रहे हैं। सम्मेलन का अर्थ है सम-मिलन। तो जो सम्मेलन में आने वाले हैं उन्हें बाप समान नहीं तो अपने समान निश्चय बुद्धि तो अवश्य बनाना। जो भी आये कुछ बनकर जाये सिर्फ बोलकर न जाये। यह दाता का घर है। तो आने वाले यह नहीं समझें कि हम इन्हें मदद करने आये हैं या इन्हें सहयोग देने आये हैं। लेकिन वह समझें कि यह स्थान लेने का स्थान है, देने का नहीं। यहाँ हरेक छोटा बड़ा जिससे भी मिले, जो उस समय यहाँ पर हो उनको यह संकल्प करना है कि दृष्टि से, वायुमण्डल से, सम्पर्क-सम्बन्ध से 'मास्टर दाता' बनकर रहना है। सबको कुछ न कुछ देकर ही भेजना है। यह हरेक का लक्ष्य हो, आने वाले को रिगार्ड तो देना ही है लेकिन सबका रिगार्ड एक बाप में बिठाना है। बाबा कह रहे थे- मेरे इतने सब लाइट हाउस बच्चे चारों ओर से मंसा सेवा द्वारा लाइट देंगे तो सफलता हुई ही पड़ी है। वह एक लाइट हाउस कितनों को रास्ता दिखाता - आप लाइट हाउस, माइट हाउस बच्चे तो बहुत कमाल कर सकते हो। अच्छा!
वरदान:-
ईश्वरीय सेवा के बंधन द्वारा समीप संबंध में आने वाले रॉयल फैमिली के अधिकारी भव
ईश्वरीय सेवा का बंधन नजदीक सम्बन्ध में लाने वाला है। जितनी जो सेवा करता है उतना सेवा का फल समीप सम्बन्ध में आता है। यहाँ के सेवाधारी वहाँ की रॉयल फैमिली के अधिकारी बनेंगे। जितनी यहाँ हार्ड सेवा करते उतना वहाँ आराम से सिंहासन पर बैठेंगे और यहाँ जो आराम करते हैं वह वहाँ काम करेंगे। एक-एक सेकण्ड का, एक एक काम का हिसाब-किताब बाप के पास है।
स्लोगन:-
स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन का वायब्रेशन तीव्रगति से फैलाओ। सूचना:- आज मास का तीसरा रविवार है, सभी संगठित रूप में सायं 6.30 से 7.30 बजे तक अन्तर्राष्ट्रीय योग में सम्मिलित होकर अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो, परमधाम की ऊंची स्थिति का अनुभव करें। स्वीट साइलेन्स में बैठ सबको शान्ति की सकाश देने की सेवा करें।