Wednesday, October 24, 2018

25-10-2018 प्रात:मुरली

25-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - यह पढ़ाई बहुत सस्ती और सहज है, पद का आधार गरीबी वा साहूकारी पर नहीं, पढ़ाई पर है, इसलिए पढ़ाई पर पूरा ध्यान दो''
प्रश्नः-
ज्ञानी तू आत्मा का पहला लक्षण कौन सा है?
उत्तर:-
वह सभी के साथ अति मीठा व्यवहार करेंगे। किसी से दोस्ती, किसी से दुश्मनी रखना यह ज्ञानी तू आत्मा का लक्षण नहीं। बाप की श्रीमत है - बच्चे, अति मीठा बनो। प्रैक्टिस करो - मैं आत्मा इस शरीर को चला रही हूँ। अब मुझे घर जाना है।
गीत:-
तू प्यार का सागर है ........  
ओम् शान्ति।
बच्चों ने किसकी महिमा सुनी? निराकार बेहद के बाप की। वह ज्ञान का सागर ऊंच ते ऊंच है, उनको ही ऊंच ते ऊंच बाप कहा जाता है। परम शिक्षक अर्थात् ज्ञान का सागर भी कहा जाता है। अभी तुम समझते हो यह महिमा हमारे बाप की है, जिस द्वारा हम बच्चों की भी वही अवस्था होनी है। वह बड़े ते बड़ा बाप है, कोई साधू-सन्यासी तो नहीं है। यह तो बेहद का बाप निराकार परमपिता परमात्मा है। तुम बच्चों की बुद्धि में है कि यह हमारा बेहद का मात-पिता, पति आदि सब है फिर भी वह नशा स्थाई नहीं रहता। घड़ी-घड़ी बच्चों को भूल जाता है। यह तो ऊंच ते ऊंच और अति मीठे ते मीठा बाप है, जिसको सभी आधाकल्प याद करते हैं। लक्ष्मी-नारायण को इतना याद नहीं करेंगे। भक्तों का भगवान् एक ही निराकार है, उनको ही सब याद करते हैं। भल कोई लक्ष्मी-नारायण को, कोई गणेश आदि को मानने वाले होंगे फिर भी मुख से ‘हे भगवान्' शब्द ही निकलेगा। ‘हे परमात्मा' अक्षर जरूर सबके मुख से निकलता है। आत्मा उनको याद करती है। जिस्मानी भक्त जिस्मानी चीज को याद करते हैं तो भी आत्मा इतनी पिताव्रता है जो अपने बाप को जरूर याद करती है। दु:ख में झट आवाज निकलता है - हे परमात्मा। यह जरूर समझते हैं कि वह परमात्मा निराकार है परन्तु उनका महत्व नहीं जानते। अभी तुम महत्व को जानते हो कि वह तो अब हमारे सम्मुख आये हैं। वह है स्वर्ग का रचयिता। हमको सम्मुख पढ़ा रहे हैं। यह एक ही पढ़ाई है। वह जिस्मानी पढ़ाईयां तो भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है। कोई का मन पढ़ाई में नहीं लगता है तो छोड़ भी देते हैं। यहाँ इस पढ़ाई में पैसे आदि की कोई बात नहीं। वह गवर्मेन्ट भी गरीबों को फ्री पढ़ाती है। यहाँ तो यह है ही मुफ्त में पढ़ाई, फीस कुछ भी नहीं। बाप को गरीब निवाज़ कहा जाता है। गरीब ही पढ़ते हैं। यह है बहुत सहज और सस्ती पढ़ाई। मनुष्य अपने को इनश्योर भी करते हैं। यहाँ भी तुम इनश्योर करते हो। कहते हो बाबा आप हमें स्वर्ग में 21 जन्मों का एवज़ा देना। भक्ति मार्ग में ऐसे नहीं कहते कि - हे परमपिता परमात्मा, हमको 21 जन्म लिए वर्सा दो। यह तुम अभी जानते हो हम डायरेक्ट अपने को इनश्योर करते हैं। यह तो हमेशा कहते हैं फल देने वाला ईश्वर है। सबको ईश्वर ही देते हैं। भल कोई भी साधू-सन्त अथवा रिद्धि-सिद्धि वाला हो, देने वाला सबको ईश्वर है। आत्मा कहेगी देने वाला ईश्वर है। दान-पुण्य आदि करते हैं फिर भी उसका फल देने वाला ईश्वर ही है।

इस पढ़ाई में कोई खर्चा नहीं है। बाबा ने समझाया है गरीब का भी इतना ही इनश्योर होता है। साहूकार लाख करेगा तो उनको लाख का मिलेगा। गरीब एक रूपया करेंगे, साहूकार 5 हजार करे तो भी एवजा दोनों को इक्वल (बराबर) मिलना है। गरीबों के लिए बहुत सहज है, कोई फीस नहीं लगती। गरीब अथवा साहूकार दोनों बाप से वर्सा पाने के हकदार हैं। सारा मदार पढ़ाई पर है। गरीब अच्छा पढ़ते हैं तो उनका पद साहूकार से भी ऊंच हो जाता है। पढ़ाई ही कमाई है। बड़ी सस्ती और सहज पढ़ाई है। सिर्फ इस मनुष्य सृष्टि झाड़ के आदि, मध्य, अन्त को जानना है। जिसको कोई भी मनुष्य मात्र जानता नहीं है। त्रिकालदर्शी कोई हो नहीं सकता। सब कह देते बेअन्त है। समझते हैं मनुष्य सृष्टि का बीज परमात्मा है। यह उल्टा झाड़ है। फिर भी कह देते हम यथार्थ रीति नहीं जानते हैं। बरोबर यथार्थ तो बाप ही बतायेंगे, जो नॉलेजफुल है। सारा मदार तुम बच्चों की पढ़ाई पर है। अभी तुम नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हो। तुम मास्टर ज्ञान सागर हो। सब एक जैसे तो नहीं हैं। कोई बड़ी नदी, कोई छोटी नदी है। पढ़ते सब अपने-अपने पुरुषार्थ अनुसार हैं। तुम बच्चे जानते हो यह बेहद का बाप है। उनका बनकर उनकी श्रीमत पर चलना है। कोई के लिए कहा जाता है यह बिचारा परवश है। माया के वश हो उल्टी मत चलाते हैं। श्रीमत भगवानुवाच है ना। जिससे श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ देवी-देवता बनना है। जब पहले निश्चय हो जाए तब फिर शिवबाबा से मिलना है। बाबा समझ जाते हैं इनको यथार्थ निश्चय नहीं है। आत्माओं का बाप एक है, यह तो समझते हैं परन्तु वह इनमें आकर वर्सा दे रहा है - यह निश्चय बैठना बड़ा मुश्किल है। जब यह बुद्धि में बैठे और लिखकर दे तब बाबा के पास लिखत ले आनी चाहिए। समझेंगे यह तो बरोबर ठीक है। इतना समय जो समझते आये सो रांग है। ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है वह तो बेहद का बाप है। बरोबर भारत को कल्प-कल्प संगम पर बेहद के बाप द्वारा वर्सा मिलता है। संगम पर और इसी समय ही मिला था, अब फिर मिल रहा है - यह लिखाना है। बरोबर बाप संगम पर ही आते हैं, आकर बी.के. द्वारा स्वर्ग की रचना रचते हैं। जब लिखकर दे तब उस पर समझा सकेंगे - तुम किसके पास आये हो, क्या लेने आये हो?

ईश्वर का रूप तो निराकार है। ईश्वर का रूप न जानने कारण ब्रह्म तत्व कह देते हैं। बच्चों को समझाया है - वह तो बिन्दी है। यह बात और किसकी बुद्धि में नहीं बैठेगी कि परमात्मा एक बिन्दी है। आत्मा के लिए कहते हैं - चमकता है सितारा भ्रकुटी के बीच में। वह छोटी-सी चीज़ है। तो विचार करना है - पार्टधारी कौन है? इतनी छोटी आत्मा में कितना अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है! इन बातों में जब कोई डीप जाये तब उनको समझाना है। तुम्हारी आत्मा कहती है हमने 84 जन्म लिए हैं, वह सारा पार्ट छोटी-सी बिन्दी रूप आत्मा में मर्ज है, जो फिर इमर्ज होता है। इस बात से मनुष्य वन्डर खायेंगे। यह बात तो कोई समझते नहीं। 84 जन्म हमारे रिपीट होते हैं। यह बना बनाया ड्रामा है। आत्मा में कैसे पार्ट नूँधा हुआ है - सुनकर मनुष्य वन्डर खायेंगे। बरोबर मैं आत्मा कहती हूँ, हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ। यह हमारा पार्ट नूँधा हुआ है, जो ड्रामा अनुसार रिपीट होता है। यह बातें कमजोर बुद्धि वाले कभी धारण कर न सकें। यह सिमरण करना है - हम 84 जन्म ले पार्ट बजाता हूँ, शरीर धारण करता हूँ। जब यह सिमरण चलता रहे तब कहें यह पूरा त्रिकालदर्शी है और दूसरे को भी त्रिकालदर्शी बनाने का पुरुषार्थ कर रहे हैं। समझाने की भी बच्चों में हिम्मत चाहिए। अन्धों की लाठी बन नींद से सुजाग करना है।

जाग सजनियां, अब नई दुनिया स्थापन होती है। पुरानी दुनिया का विनाश हो रहा है। तुमने त्रिमूर्ति ब्रह्मा-विष्णु-शंकर नाम नहीं सुना है? ब्रह्मा द्वारा स्थापना होती है। यह सब ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं ना। अकेले ब्रह्मा तो नहीं करेंगे। प्रजापिता के साथ जरूर ब्रह्माकुमार-कुमारियां होंगे। इनका बाप भी जरूर होगा, जो इनको सिखलाने वाला है। इन (ब्रह्मा) को तो ज्ञान सागर नहीं कहेंगे। ब्रह्मा के हाथ में शास्त्र दिखाते हैं। परन्तु परमपिता परमात्मा इनमें आकर इन द्वारा सभी वेद-शास्त्रों का सार बताते हैं। ब्रह्मा शास्त्रों का सार नहीं सुनाते, वह कहाँ से सीखे? उनका कोई भी बाप वा गुरू होगा ना। प्रजापिता तो जरूर मनुष्य होगा और यहाँ ही होगा, वह ठहरा प्रजा को रचने वाला। उनको क्रियेटर, ज्ञान सागर, नॉलेजफुल नहीं कह सकते। ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा ही है। वह आकर प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा पढ़ाते हैं। इसको ज्ञान का कलष कहा जाता है। यह सारा मदार धारणा पर है। इनश्योर करो, न करो, यह तुम्हारे ऊपर है। बाबा तो बहुत अच्छी रीति इनश्योर करते हैं। इनश्योरेन्स मैगनेट है, भक्ति मार्ग में भी, तो ज्ञान मार्ग में भी। बाप को सब आत्मायें भक्ति मार्ग में याद करती हैं कि बाबा आकर हमको दु:ख से छुड़ाओ। बाप वर्सा देंगे - या तो शान्तिधाम, या तो सुखधाम भेज देंगे। जिनको शान्ति का वर्सा मिलना है तो कल्प-कल्प वही शान्ति का वर्सा लेंगे। तुम अब पुरुषार्थ कर रहे हो सुख का वर्सा लेने के लिए। इसमें पढ़ना है और फिर पढ़ाना है। जैसे बाप मीठे ते मीठा है वैसे उनकी रचना भी मीठे से मीठी है। स्वर्ग कितना मीठा है! स्वर्ग नाम तो सब मुख से लेते रहते हैं। कोई भी मरता है तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ। तो जरूर नर्क में था, अब स्वर्ग में गया। जाता नहीं है तो भी कहते हैं। तुमको लिखना चाहिए जरूर हेल में था ना। यह हेल है फिर उनको यहाँ मंगाने की, खिलाने की क्यों कोशिश करते हैं। पित्र बुलाते हैं ना। आत्मा को बुलाना यह है पित्र को बुलाना। तुम फिर सभी पित्रों के बाप को बुलाते हो। सभी आत्माओं का बाप बैठ तुमको पढ़ाते हैं। तुम कितनी गुप्त सेना हो, शिवशक्तियां। शिव तो निराकार है ना। तुम शक्तियां हो उनके बच्चे। शक्ति आत्मा में आती है। मनुष्य जिस्मानी शक्ति दिखलाते हैं, तुम रूहानी शक्ति दिखलाते हो। तुम्हारा है योग-बल। योग रखने से तुम्हारी आत्मा पवित्र होती है। आत्मा में जौहर आता है। तुम्हारे में मम्मा की ज्ञान तलवार सबसे तीखी है। यह कोई स्थूल कटारी वा तलवार की बात नहीं है।

आत्मा को समझ है कि मेरे में ज्ञान शंख ध्वनि करने की अच्छी ताकत है। हम शंखध्वनि कर सकते हैं। कोई कहते हैं - मैं शंखध्वनि नहीं कर सकती हूँ। बाप कहते हैं ज्ञान की शंखध्वनि करने वाले मुझे अति प्रिय हैं। मेरा परिचय भी ज्ञान से देंगे ना। बेहद के बाप को याद करो, यह भी ज्ञान दिया ना। बाप को याद करना है, इसमें मुख से कुछ बोलना नहीं है, अन्दर में समझना है - बाप हमको नॉलेज दे रहे हैं। बाप कहते हैं तुमको वापिस चलना है। मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। भगवानुवाच - मनमनाभव। तो जरूर वह निराकार होगा ना। साकार कैसे कहेंगे मुझे याद करो? निराकार ही कहते हैं - हे आत्मायें मुझे याद करो, मैं तुम्हारा बाप हूँ। मुझे याद करेंगे तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। कृष्ण तो ऐसे कह न सके। वह तो मनुष्य है ना। तुम आत्मायें इस शरीर द्वारा कहती हो कि जीव की आत्मा अपने बाप को याद करो। बाप भी आत्माओं को कहते हैं मनमनाभव। तुम आत्माओं को हमारे पास ही आना है। देही-अभिमानी होना है। अच्छी तरह से प्रैक्टिस करनी है मैं आत्मा इस शरीर को चलाने वाली हूँ। अब मुझे वापिस बाप के पास जाना है। बाप कहते हैं चलते-फिरते, उठते-बैठते मुझे याद करो। जो अशान्ति फैलाते हैं वह अपना पद भ्रष्ट करते हैं। इसमें तो बहुत-बहुत मीठा बनना है। गीत भी है ना - कितना मीठा, कितना प्यारा, शिव भोला भगवान्। तुम भी उनके बच्चे भोले हो। फर्स्टक्लास रास्ता बताते हो कि बाप को याद करो तो स्वर्ग के मालिक बनोगे। और कोई ऐसे सौदा दे न सके। तो बाप को बहुत याद करना चाहिए, जिनसे इतना सुख मिलता है उनको ही याद करते हैं पतित-पावन आओ। आत्मायें पतित बनी हैं, उनके साथ शरीर भी पतित बना है। आत्मा और शरीर दोनों पतित बने हैं। वह लोग तो कह देते आत्मा निर्लेप है, पतित बन नहीं सकती। परन्तु नहीं, एक परमपिता परमात्मा में ही कभी खाद नहीं पड़ती, बाकी तो सबमें खाद पड़नी ही है। हर एक को सतो, रजो, तमो में आना ही है। यह सब प्वाइंट धारण कर बहुत मीठा बनना चाहिए। ऐसे नहीं कि कोई से दुश्मनी, कोई से दोस्ती। देह-अभिमान में आकर यहाँ ही बैठ कोई से सर्विस लेना बिल्कुल रांग है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ज्ञान का सिमरण कर त्रिकालदर्शी बनना और बनाना है। अंधों की लाठी बन उन्हें अज्ञान नींद से सुजाग करना है।
2) 21 जन्मों के लिए अपना सब कुछ इन्श्योर करना है। साथ-साथ ज्ञान की शंखध्वनि करनी है।
वरदान:-
अपसेट होने के बजाए हिसाब-किताब को खुशी-खुशी से चुक्तू करने वाले निश्चिंत आत्मा भव
यदि कभी कोई बात कहता है तो उसमें फौरन अपसेट नहीं हो जाओ, पहले स्पष्ट करो या वेरीफाय कराओ कि किस भाव से कहा है, अगर आपकी गलती नहीं है तो निश्चिंत हो जाओ। यह बात स्मृति में रहे कि ब्राह्मण आत्माओं द्वारा यहाँ ही सब हिसाब-किताब चुक्तू होने हैं। धर्मराजपुरी से बचने के लिए ब्राह्मण कहाँ न कहाँ निमित्त बन जाते हैं इसलिए घबराओ नहीं, खुशी-खुशी से चुक्तू करो। इसमें तरक्की (उन्नति) ही होनी है।
स्लोगन:-
"बाप ही संसार है" सदा इस स्मृति में रहना - यही सहजयोग है।