Monday, October 1, 2018

02-10-2018 प्रात:मुरली

02-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - तुम अभी पुजारी से पूज्य, बेगर से प्रिन्स बन रहे हो, इसलिए तुम्हें खुशी में खग्गियां मारनी है, कभी भी रोना नहीं है''
प्रश्नः-
अविनाशी ज्ञान रत्नों की वर्षा से भारत को साहूकार बनाने के लिए बाप तुम्हें किस बात में आप समान बनाते हैं?
उत्तर:-
बाबा कहते - बच्चे, जैसे मैं रूप बसन्त हूँ, ऐसे तुम्हें भी रूप बसन्त बनाता हूँ। जो अविनाशी ज्ञान रत्न तुम्हें मिले हैं उन्हें धारण कर मुख से दान करो। इसी महादान से भारत साहूकार बनेगा। जैसे तुम बच्चे बाप से वर्सा ले रहे हो ऐसे औरों को भी दो। तुम्हारा फर्ज है सबको रास्ता बताना, सुखदाई बनना।
गीत:-
इन्साफ की डगर पर.......  
ओम् शान्ति।
यह गीत कांग्रेस से भी लगता है और तुम बच्चों से भी लगता है क्योंकि उन्होंने भी तो सहन करके अंग्रेजों से भारत को छुड़ाया। तो यह गीत उनकी खुशी में है। खुशियां तो मनाते रहते हैं, भल कितना भी किया परन्तु पुरानी दुनिया तो नहीं बदली ना। दुनिया तो वही पुरानी है। तुम बच्चे जानते हो श्रीमत पर हम इस दुनिया को बदल रहे हैं। वह श्रीमत नहीं कहेंगे। श्रीमत है ही एक भगवान् की। तुम हो अभी बाप की श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ श्रीमत पर। उन्होंने फिर श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। अभी तुम बच्चे जानते हो यह है श्री शिवबाबा की मत। कृष्ण को बाबा कहना शोभता नहीं। श्री शिवबाबा की मत। श्री कृष्ण बाबा की मत तो नहीं कहेंगे। तुम इस भारत को फिर से पवित्र बना रहे हो। भारत खण्ड ही मुख्य है क्योंकि यह बेहद के बाप का बर्थप्लेस है। सारी दुनिया के मनुष्य-मात्र का जो बाप है अर्थात् सर्व का सद्गति दाता है, उनका यह बर्थ प्लेस है। इसको सर्वोत्तम तीर्थ कहा जाता है, इस जैसा ऊंच ते ऊंच तीर्थ कोई है नहीं। परन्तु गीता में नाम बदल दिया है। यह भारतवासी खुद नहीं जानते कि यह भारत बेहद के बाप का बर्थ प्लेस है। भल शिवरात्रि मनाते हैं परन्तु यह पता नहीं है कि शिव कौन है? कब आया? उनका नाम-रूप क्या है? तुम अब जान गये हो। अभी शिवलिंग के चित्र में सफेद स्टॉर दिखाते हैं, जो मनुष्य क्लीयर समझें कि परमात्मा का यह रूप है। परन्तु पूजा आदि कैसे की जाए - इसलिए बड़ा रूप बनाया है। है वास्तव में स्टॉर। बाबा जौहरी भी है। बाबा को मालूम है एक पत्थर भी होता है जिसको स्टॉर रूबी, स्टॉर फाइन माणिक, स्टॉर नीलम आदि कहते हैं। वह मोस्ट वैल्युबुल होता है। अखबार में भी पड़ा था कि सबसे बड़ा स्टॉर फलाने ख़ज़ाने से चोरी हो गया है। तो यह शिवलिंग लाल तो है, इनमें बीच में है सफेद स्टॉर, स्टॉर लाइट। समझाने में बहुत सहज होगा। स्टॉर सफेद होता है ना। आत्मा का भी सफेद ही साक्षात्कार होता है। चीज़ तो यही है। सिर्फ स्टॉर लगाना है। और कुछ लिखने की दरकार नहीं रहेगी। समझाना बहुत सहज होगा। नीचे यह लिखत तो है ही - आपका जन्म सिद्ध अधिकार स्वर्ग की राजाई क्योंकि हेविनली गॉड फादर है। तो स्टॉर लाइट डालना है। अब बाबा डायरेक्शन दे रहे हैं। झट काम कर लेना चाहिए। ऐसे पत्थर भी होते हैं जिसमें स्टॉर बड़ा फर्स्टक्लास दिखाई दे। यहाँ उनकी बहुत वैल्यु है। फिर सतयुग में तो इन चीज़ों की वैल्यु होती नहीं। वहाँ यह जवाहरात तो पत्थर गिने जाते हैं, महलों में लगाते रहते हैं। यह दुनिया अब बदल रही है। तुम बच्चे जानते हो हम स्वर्ग का मालिक बनने लिए बाप से वर्सा ले रहे हैं, पढ़ रहे हैं। जितना जो पढ़ेगा उतना ऊंच पद पायेगा। पढ़ना और फिर पढ़ाना भी है, यानी आप समान बनाना है तब ही ऊंच पद पा सकेंगे। बच्चे समझते हैं हम ब्राह्मण हैं, हमको सच्ची यात्रा सिखलानी है। हरेक को बाप का परिचय देना है। कोई भी मनुष्यमात्र बाप को नहीं जानते। बाप तो एक ही है। बाकी सबको अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। एक आत्मा का पार्ट न मिले दूसरे से। आत्मा तो अविनाशी है, उनके रूप में कोई फ़र्क नहीं हो सकता। शरीरों में फ़र्क है और हर एक आत्मा के पार्ट का फ़र्क है। हर एक आत्मा जो स्टॉर लाइट है, उसमें अविनाशी पार्ट भरा हुआ है। इम्पेरिसिबुल पार्ट है। यह बातें भी तुम ही जानते हो, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। जैसे आत्मा है, गाते भी हैं चमकता है भ्रकुटी के बीच अजब सितारा। अजब है ना। कितना छोटा-सा स्टॉर, उसमें 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। यह बातें जब सुनेंगे तो बहुत आ़फरीन देंगे कि बरोबर इन्हों को तो पढ़ाने वाला वह परमात्मा है। तुमको तो सबको पढ़ाना है। भल क्रिश्चियन लोग अंग्रेजी जानने वाले हैं, तुम हिन्दी में बोलो, फिर इन्टरप्रेटर इंगलिश में ट्रांसलेट कर सुनाता जायेगा। उनके पास इन्टरप्रेटर (अनुवाद करने वाले) होते हैं। बाप का परिचय तो देना है। जैसे बाप दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है, वैसे तुम बच्चों को भी बनना है। हर एक को रास्ता बताना है। औरों को भी सुखदाई बनाना - यह तुम बच्चों का फ़र्ज है। तुम खुद बाप से इतना वर्सा ले रहे हो तो फिर औरों को भी देना पड़े। यह है महादान। यह एक-एक वर्शन्स लाखों रूपयों का है। शास्त्रों के वर्शन्स अगर लाखों रूपये के होते तो फिर भारत इतना कंगाल क्यों होता?

तो तुम बच्चों को समझाना है, बाप का परिचय देना है, वह भी परम आत्मा है। रूप भी है, बसन्त भी है। परन्तु अविनाशी ज्ञान रत्नों की वर्षा कैसे करें? जरूर शरीर चाहिए। तो बाप आकर तुम बच्चों को अर्थात् तुम्हारी आत्मा को रूप-बसन्त बनाते हैं। अविनाशी ज्ञान रत्नों की धारणा करनी है। मुख द्वारा फिर यह दान देना चाहिए, जिन रत्नों का कोई मूल्य नहीं कर सकता। उस पर भी एक कहानी है। तो यह धारणा करनी चाहिए। कहते हैं ना शिवबाबा बम-बम भोलानाथ भर दे झोली। यह अविनाशी ज्ञान रत्नों से झोली भरनी है। फिर वहाँ तो तुम्हारे महल हीरे जवाहरों के बन जायेंगे। तो यह हर एक को समझाना है। जहाँ बाप रहते हैं वह है निर्वाणधाम अथवा मुक्तिधाम। बुद्ध आदि के लिए कहते हैं पार निर्वाण गया। तो वह सभी का होम (घर) हुआ ना। वह बाप का भी होम है। बाप अभी आये हैं सबको ले जाने लिए। अथाह धन दे रहे हैं। तो बाप का परिचय तुम नहीं देंगे तो कौन देंगे? बाप कहते हैं यह सब देह के धर्म हैं कि मैं क्रिश्चियन हूँ, फलाना हूँ........ यह सब छोड़ अब मुझ बाप को याद करो। जिसको तुम भक्ति मार्ग में याद करते आये हो। गाया भी जाता है अन्त मती सो गति। ग्रंथ में भी है ना - अन्तकाल जो स्त्री सिमरे........ अब कूकर, सूकर तो बन नहीं सकते। फिर भी जन्म तो मिलता है ना। यहाँ बाप कहते हैं - देही-अभिमानी बनो, मुझे याद करो। तुम अपने बाप को और घर को भूल गये हो। अब नाटक पूरा होता है फिर रिपीट होना है। इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन सब अपना पार्ट रिपीट करते आये हैं। यह ड्रामा अनेक बार रिपीट होता आया है। उनका कोई आदि अन्त नहीं। ड्रामा का आदि, अन्त तो है। फिर-फिर रिपीट होता रहता है, आटोमेटिकली। यह बातें जिनकी समझी हुई हैं उनको औरों को समझाना पड़े कि आकर बाप को जानो। बाप को न जानने से मनुष्य आरफन बन गये हैं। अभी समझो, पोप कहते हैं कि लड़ाई न करो तो भी वह मानेंगे थोड़ेही। क्रिश्चियन लोगों का बड़ा है पोप। सबका गुरू है। फिर गुरू की मत पर क्यों नहीं चलते? यह कोई की भी बात मानने वाले नहीं हैं। बाप ही आकरके मत देते हैं तो सबको समझाना है। धीरे-धीरे सब धर्म वाले समझेंगे। पहले तुम सिर्फ सिन्धी थे, अभी सब आने लगे हैं। क्रिश्चियन्स को भी बाप का परिचय देना चाहिए जिससे वे भी बाप से वर्सा लेने के हकदार बनें। इसमें थकना नहीं चाहिए। यह प्रदर्शनी तो बहुत जोर से चलेगी। सर्विसएबुल बच्चों के ऊपर सर्विस की बड़ी जिम्मेवारी है। वही दिल पर चढ़ेंगे और फिर तख्त पर सवार होंगे। महादानी बनना है और फिर याद करना है बाप को। वह इन्श्योर करते हैं दूसरे जन्म लिए। ईश्वर अर्थ वा कृष्ण अर्थ दान करते हैं। वास्तव में कृष्ण तो है ही साहूकार, उनका तो दान लिया हुआ है, बाप से वर्सा लिया हुआ है। स्वर्ग का प्रिन्स बना तो स्वर्ग स्थापन करने वाले से वर्सा लिया ना। परन्तु कैसे लिया? यह किसकी बुद्धि में नहीं बैठता। बाप ने ही कृष्ण को भी वर्सा दिया। वर्से को ही दान भी कहा जाता है। कन्या दान करते हैं ना। अभी बाप कहते हैं मैं तुमको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करने आया हूँ, इसके लिए प्रबन्ध रचना पड़े। भल खर्चा हो, हर्जा नहीं। हमारे पास बच्चों ने साक्षात्कार तो किया है। इब्राहम, बुद्ध, क्राइस्ट आदि सब बड़े-बड़े अन्त में आते हैं। जरूर सुनेंगे तब तो पद पायेंगे ना। बच्चों को तो खुश होना चाहिए। क्रिश्चियन का भारत से कनेक्शन बहुत है। राजाई भी ली फिर रिटर्न भी कर रहे हैं। उन्हों को तो भारत की बहुत सम्भाल करनी है। अगर भारत पर कोई चढ़ाई कर ले तो सब पैसे खत्म हो जाएं। उन्हों के पैसे तो बहुत दिये हुए हैं। सारी रकम ही खलास हो जाए इसलिए हर तरह से कोशिश करेंगे भारत को बचाने की। इन्हों को मदद तो चाहिए जरूर और रिटर्न भी चाहिए। उनको तो सम्भाल करनी ही है। बाबा जानते हैं भारत गरीब है तो वहाँ से भी मदद कराते हैं और खुद भी आकर मदद दे रहे हैं। अभी वह मदद देते हैं और भविष्य के लिए फिर बाप मदद देते हैं। तो बहुत अच्छा एक मण्डप बनाकर वहाँ सब क्रिश्चियन को निमंत्रण देना है। कितने अच्छे-अच्छे चित्र हैं, इनमें सारी नॉलेज है। दिन-प्रतिदिन बुद्धि का ताला खुलता जायेगा।

तुम जानते हो छोटी आत्मा में कितना भारी पार्ट भरा हुआ है! साइंसदान भी इस बात पर बड़ा वन्डर खायेंगे। साइंसदान भी समझते हैं कि कोई हमको प्रेरता है। विनाश तो होना है जरूर। यह ड्रामा में नूँध है। शंकर की कोई बात नहीं, यह तो निमित्त करके नाम रखा है। नैचुरल कैलेमिटीज भी होनी है। यह बातें सुनने से वह बड़े खुश होंगे, तुमको बहुत थैंक्स देंगे। बहुत फॉरेनर्स आयेंगे। घर बैठे आते हैं तो दान जरूर देना है। अपने लिए तो इस समय सब आरफन, कंगाल हैं। सारी दुनिया छोरे और छोरियां हैं क्योंकि फादर-मदर का ही परिचय नहीं है। तो तुम विश्व के मालिक बनते हो। तो बच्चों को सर्विस का भी नशा होना चाहिए। तार भी देंगे कि आकर समझो, बाप आये हुए हैं सब आत्माओं को ले जाने। आत्मा खुश होती है - बरोबर अब नाटक पूरा हुआ, अब बाबा आये हैं ले जाने। फिर हम सुखधाम में आयेंगे। आधा-कल्प पुजारी बन बाप को याद किया है। अब फिर पूज्य बनना है। तो खुशी में खग्गियां मारनी चाहिए। खुशी न होने से फिर रोते रहते। जो रोते हैं सो खोते हैं। हाँ, ऐसे सुख देने वाले बाप की याद में प्रेम के आंसू आये तो वह माला के दाने हैं। बाप की श्रीमत से श्रेष्ठ बनेंगे। यह बाप भी कहते हैं कदम-कदम पर शिवबाबा की मत पर चलना है। श्रीमत ही श्रेष्ठ है। बड़ी ऊंची पढ़ाई है। तीर्थों पर मनुष्य जाते हैं, बहुत कठिनाईयाँ सामने आती हैं। आगे तो पैदल जाते थे, अभी गवर्मेन्ट ने सहज कर दिया है। तो बाप समझाते हैं कदम-कदम पर श्रीमत पर चलना है। सावधानी से चढ़े तो चाखे वैकुण्ठ रस, गिरे तो चकनाचूर। कदम-कदम पर राय लेनी है। चिट्ठी लिखो शिवबाबा थ्रू ब्रह्मा अथवा ब्रह्माकुमारियां, तो शिवबाबा याद पड़ेगा। परन्तु बहुत बच्चे लिखने में भूल जाते हैं। एक दिन सबकी बुद्धि का ताला जरूर खुलने का है। बच्चों को सर्विस का बहुत शौक चाहिए। सर्विस बहुत करनी है। यह भी ड्रामा में नूँध है। खर्चा आपेही आयेगा। अनायास ही सब कुछ होता जायेगा। बाप कहते हैं तुमको 3 पैर पृथ्वी का मिलना भी मुश्किल है। फिर भी तुमने कल्प पहले भारत को स्वर्ग बनाया ही है।

अच्छा, समझाते तो बहुत हैं, धारणा भी हो। जास्ती भारी माल खाने से फिर हज़म नहीं होता है। प्रदर्शनी में भल आते तो बहुत हैं परन्तु एक को भी यह निश्चय नहीं बैठता है कि इन्हों को पढ़ाने वाला अथवा राजयोग सिखलाने वाला बाप है। पहले-पहले यह निश्चय बिठाना है। तुम समझा सकते हो यह है प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियां। रचयिता तो एक ही परमपिता परमात्मा है। बाप से ही वर्सा मिलना है। बाप का जब तक बच्चा न बनें तो वर्सा मिल न सके। भक्तों को फल देने वाला है बाप। इतने सब ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। प्रजापिता ब्रह्मा को भी क्रियेटर कहते हैं। अभी रचना होती है नई दुनिया की। भगवानुवाच मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ। अच्छा!

मीठे-मीठे लकी सितारों प्रति ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप के दिलतख्त पर बैठने के लिए सर्विस की जवाबदारी लेनी है। महादानी जरूर बनना है। ज्ञान दान करने में कुछ खर्चा हो तो हर्जा नहीं।
2) ऊंची चढ़ाई है इसलिए बहुत सावधानी से चलना है। कदम-कदम पर श्रीमत लेते रहना है।
वरदान:-
भ्रकुटी की कुटिया में बैठ अन्तर्मुखता का रस लेने वाले सच्चे तपस्वीमूर्त भव
जो बच्चे अपने बोल पर कन्ट्रोल कर एनर्जी और समय जमा कर लेते हैं, उन्हें स्वत: अन्तर्मुखता के रस का अनुभव होता है। अन्तर्मुखता का रस और बोलचाल का रस - इसमें रात दिन का अन्तर है। अन्तर्मुखी सदा भ्रकुटी की कुटिया में तपस्वीमूर्त का अनुभव करता है। वो व्यर्थ संकल्पों से मन का मौन और व्यर्थ बोल से मुख का मौन रखता है इसलिए अन्तर्मुखता के रस की अलौकिक अनुभूति होती है।
स्लोगन:-
राज़युक्त बन हर परिस्थिति में राज़ी रहने वाले ही ज्ञानी तू आत्मा हैं।