Friday, October 12, 2018

12-10-2018 प्रात:मुरली

12-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - अभी घोर अन्धियारा, भयानक रात पूरी हो रही है, तुम्हें दिन में चलना है, यह ब्रह्मा के बेहद दिन और रात की ही कहानी है''
प्रश्नः-
सेकेण्ड में जीवनमुक्ति प्राप्त करने वा हीरे तुल्य जीवन बनाने का आधार क्या है?
उत्तर:-
सच्ची गीता। जो श्रीमद् भगवानुवाच है। बाप तुम्हें सम्मुख जो डायरेक्शन दे रहे हैं यह सच्ची गीता है, जिससे तुम्हें सेकेण्ड में जीवनमुक्ति पद की प्राप्ति होती है। तुम हीरे तुल्य बनते हो। उस गीता से तो भारत कौड़ी तुल्य बना है क्योंकि बाप को भूल गीता को खण्डन कर दिया है।
गीत:-
रात के राही थक मत जाना........  
ओम् शान्ति।
अभी यह गीत तुम बच्चों ने नहीं बनवाये हैं। यह तो फिल्म वालों ने बैठ बनवाये हैं। अर्थ तो कुछ भी समझते नहीं। हर एक बात का यथार्थ अर्थ न जानने से अनर्थ हो जाता है। गाते हैं, समझते कुछ भी नहीं हैं। अब तुम बच्चों को श्रीमत मिली हुई है। किसकी? भगवान् की। भगवान् को ही भक्त नहीं जानते तो उन भक्तों की सद्गति कैसे हो सकती है। भक्तों का रक्षक है भगवान्। रक्षा मांगते हैं, जरूर कोई दु:ख है। हमारी रक्षा करो। बहुत गाते हैं परन्तु भगवान् कौन है, किससे रक्षा करते हैं, जरा भी नहीं जानते। भक्त अथवा बच्चे अपने बाप को न जानने कारण कितने दु:खी हो पड़े हैं। अभी इनका अर्थ तुम बच्चे समझते हो। अभी है घोर अन्धियारी भयानक रात, आधाकल्प की रात है। कोई भी विद्वान, आचार्य, पण्डित नहीं जानते कि रात किसको कहा जाता है। यूँ तो यह जानवर भी जानते हैं रात सोने की, दिन जागने का होता है। चिड़ियायें भी रात को सो जाती हैं। सुबह होते ही उड़ने लगती हैं। वह दिन-रात तो कॉमन है। यह ब्रह्मा की बेहद की रात और बेहद का दिन है। बेहद का दिन सतयुग-त्रेता और रात द्वापर-कलियुग। आधा-आधा चाहिए ना। दिन की आयु भी 2500 वर्ष है। इस दिन-रात का तो किसको पता नहीं है। अभी तुम बच्चे जानते हो कि रात पूरी होती है अर्थात् 84 जन्म पूरे होते हैं अथवा ड्रामा का चक्र पूरा होता है फिर दिन शुरू होता है। रात को दिन और दिन को रात बनाने वाला कौन है, यह भी कोई नहीं जानते। भगवान् को ही नहीं जानते तो यह सब बातें कैसे जान सकते। मनुष्य पूजा करते हैं परन्तु समझते नहीं कि यह कौन हैं, जिसकी हम पूजा करते हैं। बाप बैठ समझाते हैं - पहली-पहली मुख्य बात है गीता को खण्डन करने की। कहते हैं श्रीमत भगवत गीता। गीता का पति है भगवान्, न कि कोई मनुष्य। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को देवता कहा जाता है और सतयुग के मनुष्यों को देवताई गुणों वाला कहा जाता है। दैवी धर्म वाले श्रेष्ठाचारियों को देवताई गुणों वाले कहते हैं। भारत के मनुष्य श्रेष्ठाचारी थे। वही फिर आसुरी गुण वाले बन पड़े हैं। मुख्य धर्म शास्त्र चार हैं। और कोई धर्म शास्त्र हैं नहीं। अगर हैं तो भी बहुत छोटे-छोटे मठ स्थापन किये हैं। जैसे सन्यासियों का मठ, बौद्धियों का मठ। बुद्ध ने बौद्धी धर्म स्थापन किया। वह कहेंगे हमारा फलाना धर्म शास्त्र है। अब भारतवासियों का धर्म शास्त्र है एक। सतयुगी देवी-देवता धर्म का शास्त्र है एक, उनको श्रीमत भगवत गीता कहा जाता है। गीता माता, उनका रचयिता है परमपिता परमात्मा। कृष्ण की आत्मा जब 84 जन्म पूरे करती है तब फिर गीता के भगवान्, ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा से सहज राजयोग और ज्ञान सीख ऊंच पद पाती है। ऐसे ऊंच ते ऊंच धर्म शास्त्र को खण्डन कर दिया है। जिस कारण ही भारत कौड़ी तुल्य बना है। यह भी ड्रामा में एकज़ भूल है, जो गीता को खण्डन कर दिया है। बाप अब जो सच्ची गीता सुना रहे हैं वह निकलनी चाहिए। सच्ची गीता गवर्मेंट को छपाना चाहिए। यह है श्रीमत भगवानुवाच। बच्चों प्रति बाप डायरेक्शन देते हैं - अच्छी रीति लिखना चाहिए शार्ट में। तुम जानते हो सच्ची गीता से सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिल जाती है। बाप का बन बाप से वर्सा लेना है। बीज, झाड़ और ड्रामा के चक्र को समझाना है, गाते भी हैं सतयुग आदि सत, है भी सत, होसी भी सत। झाड़ को जानना भी सहज है। इनका बीज ऊपर में है, यह वैरायटी धर्मों का झाड़ है। इसमें सब आ गये। बाकी छोटी-छोटी टालियां तो अथाह हैं, मठ-पन्थ बहुत हैं। भारत का आदि सनातन देवी-देवता धर्म है, वह किसने स्थापन किया? भगवान् ने। कोई मनुष्य ने नहीं किया। श्रीकृष्ण तो दैवी गुणों वाला मनुष्य था, वह 84 जन्म पूरे कर अब अन्तिम जन्म में है। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, वैश्यवंशी बनते-बनते कलायें कम होती जाती हैं। सूर्यवंशी राजधानी जो सतयुग में श्रेष्ठाचारी थी सो कलियुग में अब भ्रष्टाचारी है। अब फिर श्रेष्ठाचारी बन रही है। तुम्हारी बुद्धि में है कि ऊंच ते ऊंच पार्ट किसका होगा? अभी तुम जान गये हो। मुख्य है ही शिवाए नम:, जो उसकी महिमा है वह ब्रह्मा-विष्णु-शंकर के लिए नहीं गा सकेंगे। प्रेजीडेण्ट की महिमा प्राइममिनिस्टर को अथवा और कोई को देंगे क्या? नहीं। अलग-अलग टाइटिल हैं ना। सब एक तो नहीं हो सकते। तुम बच्चों को अभी बुद्धि मिली है। तुम जानते हो क्राइस्ट को भी अपना क्रिश्चियन धर्म स्थापन करने का पार्ट मिला हुआ है। आत्मा है तो बिन्दी। उस आत्मा में पार्ट भरा हुआ है। क्रिश्चियन धर्म की स्थापना कर फिर पुनर्जन्म लेते पालना करते सतो-रजो-तमो में आना है। पिछाड़ी में सारा झाड़ जड़जड़ीभूत होना ही है। हरेक को कितना-कितना समय पार्ट मिला हुआ है। बुद्ध को कितना समय पालना करनी है - यह तुम जानते हो। भिन्न-भिन्न नाम-रूप में जन्म लेते रहते हैं।

अभी बाबा तुम्हारी कितनी विशाल बुद्धि बनाते हैं। परन्तु कोई तो शिवबाबा को याद भी नहीं कर सकते। बेहद का बाप बेहद स्वर्ग का वर्सा देते हैं। यह भी तुम समझा नहीं सकते। बाबा ने बहुत बार समझाया है, आत्मा में अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है। एक शरीर छोड़ फिर दूसरा लेना है। कितनी गुह्य बातें हैं समझने की। जो स्कूल में रोज़ पढ़ते होंगे, वही समझेंगे। कोई तो चलते-चलते थक जाते हैं। गाते भी हैं तुम मात पिता हम बालक तेरे..... बाप कहते हैं हम तुमको स्वर्ग के सुख घनेरे देने का पुरुषार्थ करा रहे हैं। तुम थक नहीं जाना। इतनी ऊंच ते ऊंच पढ़ाई पढ़ना तुम छोड़ देते हो। कोई तो पढ़ाई छोड़ फिर विकार में भी चले जाते हैं। जैसे का तैसा बन जाते हैं। चलते-चलते गिर पड़ेंगे तो और क्या होगा। भल वहाँ सुख में हैं परन्तु पद में तो फ़र्क है ना। यहाँ सब दु:खी हैं। वहाँ राजा-प्रजा सबको सुख है। फिर भी पद तो ऊंचा लेना चाहिए ना। पढ़ाई छोड़ दी तो मात-पिता कहेंगे तुम तो लायक नहीं हो। बाप से स्वर्ग का वर्सा लेते-लेते कई बच्चे थक जाते हैं। चलते-चलते माया वार कर देती है तो लौट जाते हैं। जो जमा किया वह फिर ना हो जाती। बाकी क्या बनेंगे? स्वर्ग में भल जायेंगे, लेकिन बिल्कुल साधारण प्रजा जाकर बनेंगे। बाप कहते हैं हमारा बनकर फिर थक कर बैठ गये वा ट्रेटर बन गये तो प्रजा में चण्डाल जाकर बनेंगे। सभी चाहिए ना। स्वर्ग का मालिक बनते-बनते अगर पढ़ाई को छोड़ देते तो उन जैसा महान् मूर्ख दुनिया में कोई होता नहीं। लिखते भी हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे, तुम्हारी कृपा से स्वर्ग के बहुत सुख घनेरे मिलते हैं। कृपा करो। बाप कहेंगे कृपा की तो बात ही नहीं। मैं टीचर हूँ, पढ़ाऊंगा, पुरुषार्थ तुम करो, अच्छे मार्क्स से पास होने का। बाकी मैं थोड़ेही बैठ सब पर आशीर्वाद करुँगा। तुम योग में रहो तो ताकत मिलती रहेगी। सभी थोड़ेही गद्दी पर बैठेंगे। एक दो के सिर पर बैठेंगे क्या। तो धर्म मुख्य हैं ही 4, शास्त्र भी 4 हैं। उनमें मुख्य है गीता। बाकी सब उनके बच्चे हैं। वर्सा तो मात-पिता से ही मिलता है। अब बाप सम्मुख समझा रहे हैं। सिर्फ गीता पढ़ने से ही थोड़ेही राजाओं का राजा बन जायेंगे। बाबा ने तो गीता पढ़ी है। परन्तु उनसे होता कुछ भी नहीं है। यह सब है भक्ति मार्ग के शास्त्र, तुमको पुरुषार्थ कर 16 कला सम्पूर्ण बनना है। अभी तो तुम्हारे में कोई कला, कोई गुण नहीं रहा है। गाते भी हैं मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीं, आपेही तरस परोई.... हमको फिर 16 कला सम्पूर्ण बनाओ। जो हम थे फिर बनाओ। अब तुम जानते हो बाप सम्मुख आकर समझा रहे हैं। एक निर्गुण संस्था भी बना दी है। निर्गुण निराकार का अर्थ भी नहीं जानते हैं। शिव का तो आकार भी है। जिसका नाम है, तो जरूर चीज़ भी है ना। आत्मा इतनी सूक्ष्म है, उनका भी नाम है। ब्रह्म महतत्व, जहाँ आत्मायें निवास करती हैं, वह भी नाम है ना। नाम-रूप से न्यारी तो कोई चीज़ होती नहीं। भगवान् को कहते नाम-रूप से न्यारा, फिर उनको सर्वव्यापी कह देते हैं। यह कितनी बड़ी भूल है। मनुष्य जब इन बातों को समझें तब तो निश्चय करें। बाबा हमने आपको जाना है। कल्प-कल्प आपसे राज्य-भाग्य लेते आये हैं। ऐसा निश्चय हो तब पढ़ सकते हैं। यहाँ से बाहर निकलते और भूल जाते हैं इसलिए पहले-पहले तो लिखवा लेना चाहिए बरोबर शिवबाबा आया है - राजयोग सिखलाने। लिखकर भी देते फिर पढ़ते नहीं। ब्लड से भी लिखकर देते हैं। परन्तु आज हैं नहीं, माया कितनी तीखी है। बाप कितना बैठ समझाते हैं। तुम्हारी विहंग मार्ग की सर्विस तब होगी जब ऐसे-ऐसे पत्र लिखेंगे। तुम्हारी शक्ति सेना में भी नम्बरवार हैं। कोई चीफ कमान्डर है, कोई कैप्टन है, कोई मेजर्स हैं। कोई सिपाहियों के साथ बोझा उठाने वाले भी हैं। सारी सेना है। बाबा तो पुरुषार्थ करायेंगे ना। हर एक के पुरुषार्थ करने से समझ में आता है - यह राजा-रानी बनेंगे वा अच्छी साहूकार प्रजा में जायेंगे, यह साधारण प्रजा में जायेंगे, यह दास-दासी बनेंगे। यह तो बिल्कुल सहज है समझने का। तो पहली मुख्य बात को उठाना है। बाबा कितनी ललकार करते हैं महारथियों को। तो विहंग मार्ग की सेवा के लिए विचार चलने चाहिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पढ़ाई में थकना नहीं है। ऊंच ते ऊंच पढ़ाई रोज़ पढ़नी और पढ़ानी है।
2) विहंग मार्ग की सर्विस करने की युक्तियाँ निकालनी हैं। योग में रह बाप से ताकत लेनी है। कृपा, आर्शीवाद मांगनी नहीं है।
वरदान:-
ब्राह्मण जीवन में खुशी के वरदान को सदा कायम रखने वाले महान आत्मा भव
ब्राह्मण जीवन में खुशी ही जन्म सिद्ध अधिकार है, सदा खुश रहना ही महानता है। जो इस खुशी के वरदान को कायम रखते हैं वही महान हैं। तो खुशी को कभी खोना नहीं। समस्या तो आयेगी और जायेगी लेकिन खुशी नहीं जाये क्योंकि समस्या, परस्थिति है, दूसरे के तरफ से आई है, वह तो आयेगी, जायेगी। खुशी अपनी चीज़ है, अपनी चीज़ को सदा साथ रखते हैं इसलिए चाहे शरीर भी चला जाए लेकिन खुशी नहीं जाए। खुशी से शरीर भी जायेगा तो बढ़िया और नया मिलेगा।
स्लोगन:-
स्लोगन:- बापदादा के दिल की मुबारक लेनी है तो अनेक बातों को न देख अथक सेवा पर उपस्थित रहो।