Friday, July 27, 2018

28-07-18 प्रात:मुरली

28-07-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति" बापदादा" मधुबन

''मीठे-बच्चे - अर्थ सहित बाप को याद करने से ही तुम्हारे पाप नाश होंगे, आत्मा पतित से पावन बनेगी, नम्बरवन सब्जेक्ट है याद की''
प्रश्न:
मनुष्यों की अर्जी क्या है और बाप उस अर्जी को कैसे पूरा करते हैं?
उत्तर:
मनुष्य बाप से अर्जी करते हैं - ओ गॉड फादर, हमें पापों से मुक्त करो, ओ रहमदिल बाबा, रहम करो। बाबा सभी की अर्जी सुनकर स्वयं आते हैं और पापों से मुक्त होने की युक्ति बताते हैं - बच्चे, तुम मुझे याद करो। सिर्फ बाप की महिमा गाने से कोई फ़ायदा नहीं, चरित्र गाने नहीं हैं लेकिन राजयोग सीखकर चरित्रवान बनना है।
गीत:-
भोलेनाथ से निराला...
ओम् शान्ति।
यह महिमा किसकी सुनी? बिगड़ी को बनाने वाले की। आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज सुनाने वाला वह है ऊंच ते ऊंच। जब कोई समझने के लिए आते हैं तो हमेशा उनको पहली बात समझानी है कि ऊंच ते ऊंच भगवान् गाया जाता है। ऊंच ते ऊंच उनका नाम भी है, ऊंच ते ऊंच उनका ठांव (रहने का स्थान) भी है। ग्रंथ में भी है ऊंचा जिसका नाम ऊंचा जिसका ठांव। ऊंच ते ऊंच रहने वाला है परमपिता परमात्मा। वह है निराकारी दुनिया, जहाँ निराकार परमपिता परमात्मा रहते हैं। फिर नीचे है आकारी और साकारी दुनिया। तो पहले-पहले परिचय उनका देना है। परमपिता परमात्मा तो है ही ट्रूथ। वह है रचयिता। फिर है उनकी रचना। ऊंच ते ऊंच बीजरूप, फिर उनके नीचे सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा-विष्णु-शंकर। वह है रचना। रचयिता सबके ऊपर है। वह रचयिता है बाप, बाकी है रचना। सब एक परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं, इसलिए हम आत्मायें सब भाई-भाई ठहरे। तो परमपिता परमधाम में रहते हैं। उनको ही परमात्मा कहा जाता है। शारीरिक पितायें तो बहुत हैं ना। पहले-पहले परिचय देना है रूहानी बाप का। उनकी है सब रचना। चित्रों पर भी ध्यान खिंचवाना है। पहले-पहले है ऊंच ते ऊंच परमपिता परमात्मा, जिसको मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का चैतन्य बीजरूप कहा जाता है। वह सतचित-आनंद स्वरूप है। सत अर्थात् सच कहने वाला। आत्मा भी सत है, वह भी जलती-मरती नहीं। सत के बच्चे भी सच्चे होने चाहिए। तुम पहले-पहले देवी-देवता सच्चे थे। सचखण्ड स्थापन करने वाला सच्चा बाबा है। ऐसे नहीं कि परमपिता परमात्मा झूठ खण्ड स्थापन करते हैं, नहीं। सचखण्ड था फिर यह भारत झूठ खण्ड बना है। सच्चा है परमपिता परमात्मा। पतित बनाने वाले को सच्चा नहीं कहेंगे। और सब हैं झूठे। 5 विकार रूपी माया रावण झूठा बनाती है। राम सच्चा, रावण झूठा। रावण ही भारत को झूठा बनाते हैं। कहानी सारी भारत पर है। समझाना है भारत स्वर्ग था अब नर्क है। बाप को स्वर्ग बनाने वाला वा स्वर्ग का रचयिता कहा जाता है। महिमा भी भारत की है। आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान तुमको सुनाते हैं, जिससे तुम त्रिकालदर्शी बनते हो। इसको कहा जाता है - स्वदर्शन चक्र। तुम जानते हो कि हम आत्मायें फिर से परमपिता परमात्मा से वर्सा ले रही हैं। गाया भी जाता है आत्मायें और परमात्मा अलग रहे बहुकाल। अभी यह मिलन बहुत सुन्दर मंगलकारी है। तुम पहले-पहले बाप का परिचय देते हो। रचयिता बाप को सर्वव्यापी कहने से फिर यह सिद्ध नहीं होता कि हम सब बच्चे हैं। बच्चे ऐसे नहीं कहेंगे कि हम सब परमपिता परमात्मा हैं। सर्वव्यापी कहने से बाप के साथ वह लव नहीं रहता, न बुद्धियोग रहता है। भारत का प्राचीन योग मशहूर है। वास्तव में बुद्धि का योग लगाना है बाप से। सर्वव्यापी है तो फिर योग किससे लगायें? क्या अपने आपसे लगायें? कोई अर्थ ही नहीं निकलता। यहाँ तो तुम अर्थ सहित जानते हो। बाप खुद कहते हैं मेरे साथ योग लगाने से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। विकर्म तो होते रहते हैं। सम्पूर्ण कर्मातीत अवस्था अन्त में होगी। जब ज्ञान का अन्त होगा तब रिजल्ट निकलेगी। स्कूल में भी कोई किस सब्जेक्ट में तीखे जाते हैं, कोई किसमें तीखे जाते हैं। सहज सब्जेक्ट है याद की। बाप को याद किया जाता है। याद से फिर आत्मा अच्छी होगी। बर्तन साफ होगा। आत्मा जो इमप्योर बनी है वह प्योर बनती जायेगी। ऊंच ते ऊंच बाप आकर पढ़ाते हैं और ऊंच ते ऊंच पद प्राप्त कराते हैं। तुम मनुष्य से देवता बनते हो। समझते हो कि बरोबर आदि सनातन देवता धर्म था। उनको हिन्दू नहीं कहेंगे। हिन्दू धर्म शोभा नहीं देता, भारत का नाम ही बदलकर हिन्दुस्तान नाम रख दिया है। आदि सनातन पवित्र देवी-देवता धर्म था, जिसको वैकुण्ठ अथवा स्वर्ग कहा जाता है। वह तो सतयुग है। उनको कहा जाता है नई दुनिया। उनको रचने वाला बाप है। वह है निराकार। सभी कहते भी हैं ओ गॉड फादर। वह ऊंच ते ऊंच रहते हैं। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को सूक्ष्म देह मिली हुई है। उसको सूक्ष्म लोक कहा जाता है। और वह है शान्तिधाम, साइलेन्स वर्ल्ड। यह है स्थूलवतन। तो पहले-पहले जब कोई भी आते हैं तो उनसे फॉर्म भराना है। आत्मा का बाप कौन है? ऊंच ते ऊंच तो भगवान् को ही कहा जाता है। साधू सन्त आदि सब प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना को रिक्वेस्ट भी कहा जाता है। ओ गॉड फादर, हम अर्जी करते हैं, हमारे पापों को दग्ध करो और रहमदिल बाबा रहम करो। ऐसे-ऐसे पुकारते हैं। रहम सभी तो नहीं करेंगे। सब पर रहम करने वाला तो एक ही बाप है। सर्वोदया कहते हैं ना। अब वह क्या करते हैं? कितने पर रहम करते होंगे। वह भी ड्रामा में नूँध है। इस समय जो कुछ चलता है उनसे तुम भेंट करते हो। गीता भागवत में यह बातें हैं नहीं। गीता है ज्ञान बाकी चरित्र आदि की तो कोई दरकार नहीं। स्टूडेन्ट टीचर के चरित्र गाते हैं क्या? मास्टर की बैठ महिमा करने से कोई भी फ़ायदा नहीं। बाप की सिर्फ महिमा करना - वह ज्ञान का सागर है, सुख का सागर है इससे कुछ भी मिलता नहीं है। अभी तुम बच्चे समझते हो कि बाबा हमको राजयोग सिखलाए त्रिकालदर्शी बनाता है अर्थात् तीनों कालों और तीनों लोकों की नॉलेज देता है। तो तुम मास्टर त्रिलोकी के नाथ भी कहला सकते हो। त्रिकालदर्शी भी कहला सकते हो। बरोबर हम तीनों लोकों को जानने वाले नाथ बनते हैं। यह राजयोग है। हम बादशाह बन रहे हैं। बनाने वाला बाप है। पारसनाथ कहते हैं ना। वह है लक्ष्मी-नारायण, भल उन्हों के मन्दिर हैं लेकिन मनुष्य जानते नहीं कि यह कौन हैं? लक्ष्मी-नारायण हैं पारसपुरी के नाथ। पारसपुरी सतयुग को कहा जाता है।



तुम यह जानते हो कि बरोबर कृष्ण के हीरों-जवाहरों के महल थे। पारसनाथ थे। तो पहले-पहले यह समझाओ कि यह मानते हो कि सभी का रचयिता बाप है। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर का भी वह रचयिता ठहरा। पहले तो यह निश्चय करो कि वह बाप स्वर्ग का रचयिता है। स्वर्ग में आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले थे। उन्हों को यह नॉलेज कब मिली? बाप कहते हैं कि मैं कल्प-कल्प संगमयुगे आता हूँ नॉलेज देने। बरोबर तुम सतयुग आदि के पारसनाथ बन रहे हो। कितनी फर्स्टक्लास नॉलेज है। यहाँ बैठे हो, तुम समझते हो हम बाबा से स्वर्ग का वर्सा पाए पारसनाथ पारसपुरी के मालिक बनेंगे। बुद्धि जानती है कि लक्ष्मी-नारायण आदि देवी-देवतायें कितने धनवान थे। बहुत जेवर आदि थे। बड़े साहूकार होते हैं। तो पहले-पहले बाप को जान उनसे वर्सा लेना है। याद से वर्सा लेना है। सूक्ष्म बात यह है। हीरे जवाहरों के कितने बड़े-बड़े महल थे। अभी वह खत्म हो गये हैं। फिर अपने समय पर खड़े हो जायेंगे। पहले थे, फिर खत्म हुए, फिर होंगे जरूर, ड्रामा में नूँध है। यह बुद्धि से समझने की बात है। लड़ाई में भी सब टूट फूट जाते हैं। फिर नयेसिर महल बनाते हैं। महल जरूर बनाये होंगे। तुमको साक्षात्कार होता है कि बरोबर महल हैं। हमने बनाये थे। ऐसे नहीं कि सागर के नीचे चले गये जो अब निकलने हैं। नहीं। यह तो ड्रामा का चक्र फिरता रहता है। वह समझते है कि लंका रावण की अथवा सोने की द्वारिका नीचे चली गई है जो फिर निकलेगी। परन्तु ऐसे तो है नहीं। अभी तुम द्वारिका के मालिक बन रहे हो। कितने मालामाल थे! धन दौलत सब था। अब सब गायब हो गया है। सब ले गये। फिर ऐसे ही होगा। पहले-पहले बाप का परिचय देकर फिर चक्र का राज़ समझाना है कि यह कैसे फिरता है? सतयुग की स्थापना बाप ही करेंगे। अब बाबा सम्मुख बैठ कहते हैं कि मुझे याद करो। इस याद की योग अग्नि से ही तुम पतित से पावन बनते हो और कोई उपाय नहीं है। योग अग्नि से आत्मा पतित से पावन बनती है। पतित-पावन बाप ही आकर पावन दुनिया स्थापन करते हैं। फिर तुम गंगा के लिए क्यों कहते हो कि यह पतित-पावनी है। जप, तप, गंगा स्नान आदि करना यह सब भक्ति मार्ग की सामग्री है। भक्ति मार्ग पहले अव्यभिचारी था फिर व्यभिचारी बना है। आधाकल्प लगा है व्यभिचारी बनने में। 16 कला से 14 कला, फिर कलायें कम होती जाती हैं। यह ज्ञान सागर बाप समझाते हैं। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को ज्ञान सागर, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप नहीं कहा जाता। परमपिता कहने से बुद्धि ब्रह्मा-विष्णु-शंकर तरफ नहीं जाती है। आत्मायें परमपिता परमात्मा बाप को ही याद करती रहती हैं। जब उन्हों को दु:ख होता है। सतयुग में सुख है तो कोई भी पुकारता नहीं। अब आत्मायें जानती हैं कि आधाकल्प से दु:ख पाया है। अभी फिर स्वर्ग में जायेंगे। वहाँ कोई भी दु:ख नहीं इसलिए सतयुग में बाबा को याद करने की दरकार नहीं पड़ती। ड्रामा अनुसार बाबा हमको सुख का वर्सा देकर ही जायेंगे। मनुष्य जब बुढ़े होते हैं तो वानप्रस्थ में जाकर बैठते हैं। गुरू करते हैं। यहाँ तो बाप स्वयं आकर सतगुरू बनते हैं। कहते हैं कि तुम सबको साथ ले जाऊंगा। ऐसे और कोई भी कह न सकें। साथ में तो कोई भी नहीं ले जायेंगे। हर एक को पुनर्जन्म जरूर लेना पड़े। पार्ट में तो आना ही है। मैं तो घड़ी-घड़ी जन्म नहीं लेता हूँ। अगर मैं भी घड़ी-घड़ी जन्म लूँ तो तमोप्रधान बन जाऊं। आत्मा ही इमप्योर बनती है। आत्मा में खाद पड़ती है। गोल्डन एज, सिलवर एज अक्षर अभी है। बरोबर अभी आइरन एज हैं। अब संगम है। बाप को जरूर आना ही है। पुरानी सृष्टि को नया बनाना - यह बाप का ही काम है। बाप ही पतित-पावन है अर्थात् सृष्टि को बदलने वाला है। सृष्टि का रचयिता नहीं, बदलने वाला है। रचने वाला कहने से मनुष्य समझते हैं बड़ी प्रलय होती है। पतित-पावन अक्षर ठीक है। साधू लोग भी गाते हैं पतित-पावन सीताराम, ऐसे तो कभी नहीं कहते कि पतित-पावनी गंगा। पतित-पावन कहने से बुद्धि परमात्मा की तरफ चली जाती है। गंगा तो पतित-पावन है नहीं। यह तो पानी है सो तो वहाँ भी होता है। परन्तु वहाँ सब चीज़ें सतोप्रधान हो जाती हैं, गंगा भी सतोप्रधान। यहाँ तो तमोप्रधान है, फ्लड्स कर देती है, गांवड़ों को डुबो देती है। ब्रह्मपुत्रा कितने गांव को डुबो देती है। यह है ही दु:खधाम। सतयुग में थोड़ेही दु:ख भोगेंगे। वहाँ तो कायदेसिर अपना रास्ता लेकर चलेगी। यहाँ रास्ता छोड़ देती है। कभी किस तरफ चली जाती है। वहाँ 5 तत्व सतोप्रधान होने कारण जल भी कभी दु:ख नहीं देता। यहाँ जल भी दु:ख देता है। पहले तो यह समझना है कि स्वर्ग का सुख देने वाला कौन है? जरूर बाप ही होगा। अभी तो नर्क है। बाबा आया है। हम प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। प्रजापिता ब्रह्मा हो तब नई सृष्टि रचे। मनुष्य से देवता किये........ किसने किया? परमपिता परमात्मा ने। कृष्ण तो स्वयं देवता है। बाप ही आकर मनुष्य को देवता बनाते हैं। यह तुम अभी जानते हो। आगे तो सिर्फ गाते थे मनुष्य से देवता किये........ जानते नहीं थे कि सतयुग किसने स्थापन किया? रचयिता कौन है? सतयुगी सृष्टि फिर कलियुगी बन जाती है। तो तुम बच्चे समझ गये हो कि यह बड़ा माण्डवा है - आकाश तत्व का। इसमें खेल होता है, ओपेन स्टेज चाहिए ना। मनुष्य पार्ट बजाते हैं तो रोशनी भी चाहिए। इसके लिए फिर सूरज, चांद सेवा करते हैं। सितारे भी चमकते हैं। जब रात होती है तो रोशनी अर्थात् सुख देते हैं इसलिए सूर्य देवता, चांद देवता कहते हैं। रोशनी आदि का सुख देते हैं ना। अच्छा!



मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ड्रामा के चक्र को यथार्थ रीति समझकर पुरुषार्थ करना है। बाप समान रहमदिल बन सभी पर रहम करना है।
2) बाप सचखण्ड स्थापन कर रहे हैं इसलिए सच्चा होकर रहना है। बाप की याद से आत्मा को स्वच्छ बनाना है।
वरदान:
सर्व पुराने खातों को संकल्प और संस्कार रूप से भी समाप्त करने वाले अन्तर्मुखी भव!
बापदादा बच्चों के सभी चौपड़े अब साफ देखने चाहते हैं। थोड़ा भी पुराना खाता अर्थात् बाह्यमुखता का खाता संकल्प वा संस्कार रूप में भी रह न जाए। सदा सर्व बन्धनमुक्त और योगयुक्त - इसी को ही अन्तर्मुखी कहा जाता है इसलिए सेवा खूब करो लेकिन बाह्यमुखी से अन्तर्मुखी बनकर करो। अन्तर्मुखता की सूरत द्वारा बाप का नाम बाला करो, आत्मायें बाप का बन जाएं - ऐसा प्रसन्नचित बनाओ।
स्लोगन:
अपने परिवर्तन द्वारा संकल्प, बोल, सम्बन्ध, सम्पर्क में सफलता प्राप्त करना ही सफलता-मूर्त बनना है।