Thursday, July 5, 2018

05-07-18 प्रात:मुरली

05-07-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - देह सहित सब कुछ भूल पूरा बेगर बनो, शिवपुरी और विष्णुपुरी से अपना बुद्धि-योग लगाओ''
प्रश्नः-
किस बात में तुम बच्चों को बाप समान फ्राकदिल बनना है?
उत्तर:-
जैसे बाबा फ्राकदिल बन तुम बच्चों से कखपन ले तुम्हें विश्व की बादशाही देते हैं। ऐसे तुम्हें भी फ्राकदिल बनना है। जगह-जगह पर गाडली युनिवर्सिटी खोल दो। 3-4 ने भी अच्छा पद पाया तो अहो सौभाग्य। सपूत बन सतगुरू का शो करो। कभी भी किसी से पैसा आदि नहीं मांगो।
गीत:-
बचपन के दिन भुला न देना...  
ओम् शान्ति।
बच्चों को बहलाने के लिए यह सब गीत हैं। बापदादा और मम्मा। मम्मायें दो होती हैं। दादी (ग्रैन्ड मदर) और माता। यह तुम्हारी दादी भी है। तुम ब्रह्मा की बच्चियां हो और शिव की पोत्रियां हो। मम्मा भी ब्रह्मा की बच्ची सरस्वती है। शिवबाबा की पोत्री है। बच्चों को सम्भालने के लिए जगत अम्बा निमित्त बनी हुई है। शिवबाबा है बहुरूपी। वह बहुत खेलपाल करते हैं। स्वहेज़ (मनोरंजन) होते हैं ना। जब सगाई होती है तो बहुत स्वहेज़ करते हैं और जब शादी का समय होता है तो दोनों ही फटे हुए कपड़े पहनते हैं। तेल लगाते हैं। यह रसम भी यहाँ की है। तुम बच्चों को भी बाबा समझाते हैं पूरा बेगर बनना है। कुछ भी नहीं होगा तो सब कुछ मिल जायेगा। देह सहित कुछ भी न रहे। शिवपुरी, विष्णुपुरी तरफ ही बुद्धियोग लगाना है। और कोई चीज़ में आसक्ति नहीं हो, तो देखो बाबा बच्चों को बहलाते हैं। यह भी बाबा के अनेक राज़ हैं। देखो मीरा का कितना गायन है। लोकलाज़ खोई सिर्फ इस पवित्रता के कारण। कितना नाम निकला है। उनको तो अमृत भी नहीं मिला। सिर्फ कृष्ण से प्रीत थी। कृष्णपुरी में जाऊंगी इसलिए विष को छोड़ा। जैसे पति के पिछाड़ी स्त्री सती बनती है ना। अब ऐसे तो नहीं मीरा याद करते-करते कृष्णपुरी में गई। कृष्णपुरी तो है नहीं। मीरा को 5-7 सौ वर्ष हुआ होगा। भक्तिन बहुत अच्छी थी इसलिए कोई अच्छे भक्त के घर जन्म लिया होगा। उनका नामाचार कितना चला आता है। यह तो भक्त मीरा थी, तुम सच्ची ज्ञान मीरायें बनती हो। तुम आई ही हो सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी महारानी बनने के लिए। भल पहले अनपढ़े पढ़े आगे भरी ढोते हैं। परन्तु महारानी तो बनेंगी ना। अगर बचपन को भूल हाथ छोड़ दिया फिर तो कभी नहीं महारानी बनेंगी और ही प्रजा में भी कम पद पायेंगी। वैकुण्ठ में तो आयेंगे परन्तु कम पद। बाबा ने समझाया है भक्ति करने वालों से भी पूछना चाहिए कि तुम क्या चाहते हो? कृष्ण की भक्ति क्यों करते हो? जरूर दिल होगी उनकी राजधानी में जायें। परन्तु वहाँ जायेंगे कैसे? बहुत मनुष्य कहते हैं हमको शान्ति चाहिए। परन्तु अशान्ति तो सारी दुनिया में है ना। तुम एक को शान्ति मिलने से क्या होगा। हम तुमको 21जन्मों के लिए सदा सुखी बना सकते हैं। देवतायें इस भारत में ही सदा सुखी थे। अब वह राजधानी स्थापन हो रही है। यहाँ तो है ही माया का राज्य। शान्ति मिल नहीं सकती। शान्ति के लिए अलग जगह है, सुख के लिए अलग जगह है। सुखधाम माना सब सुखी। कोई एक भी दु:खी नहीं रहता। और दु:खधाम में फिर एक भी सुखी नहीं रहता। यथा राजा रानी तथा प्रजा यहाँ सब दु:खी ही दु:खी हैं। सुखधाम में तो जानवर भी कभी दु:खी नहीं होते। शान्ति की दुनिया अलग है, जिसको निर्वाणधाम कहते हैं। बुद्ध पार निर्वाण गया। परन्तु गया कोई भी नहीं है। अगर खुद चला गया फिर क्या करके गया। सब दु:खी ही दु:खी हैं। सब लड़ रहे हैं। बर्मा, सीलान बौद्धियों की है। वह भी कहते हिन्दू निकल जाएं। सहन नहीं कर सकते। अब बाबा भी देखते हैं अनेक धर्म हो गये हैं तो सहन नहीं कर सकते हैं, इसलिए सबको एकदम निकाल देते। सतयुग में सिर्फ एक धर्म रहता है। यह सब ज्ञान तुम बच्चों की बुद्धि में है। चित्र हाथ में उठाए वानप्रस्थियों की सर्विस करनी चाहिए। मन्दिरों में घुस जाना चाहिए। उन्हों से जाकर चिटचैट करनी चाहिए। शंकर के आगे शिवलिंग दिखाते हैं। तो जरूर वह शंकर से बड़ा हुआ ना! अगर शंकर भगवान का रूप है तो फिर उनके सामने शिवलिंग रखने की क्या दरकार है! यह सब सन्यासियों का फैलाव है, वह अपने को ब्रह्म ज्ञानी तत्व ज्ञानी कहलाते हैं। शिव का तो उन्हें पता भी नहीं है। ब्रह्म तत्व तो रहने का स्थान है। वे तो ब्रह्म और तत्व को एक नहीं मानते हैं। अच्छा ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी हैं फिर अपने को शिव क्यों कहलाते हैं? वह तो समझते शिव भी एक ही है, ब्रह्म भी एक ही है। अगर एक ही है तो भला तीन नाम अलग-अलग क्यों किये हैं? शिव की तो लिंग रूप में पूजा होती है। ब्रह्म अथवा तत्व की पूजा किकस रूप में दिखलाई है? वह तो है रहने का स्थान। मनुष्य तो बहुत मूँझे हुए हैं। तुम बच्चों को अब होशियार होना है। सन्यासियों से भी कोई निकलेंगे, जो असुल देवी-देवता धर्म के होंगे वह झट उठा लेंगे। कोई 3-4 जन्मों से कनवर्ट हुए होंगे तो इतना जल्दी नहीं निकलेंगे। ताजे गये हुए होंगे तो झट निकलेंगे। बाबा में कशिश है ना। आत्मायें हैं सुई, बाबा है चुम्बक। अब सुईयों पर कट चढ़ी हुई है। कट वाली सुई ऊपर जाये कैसे। जंक वाली चीज़ घासलेट में डाली जाती है। बाबा इस ज्ञान अमृत से सबकी कट निकालते हैं, फिर हम सच्चा सोना बन जायेंगे। तुम पत्थरनाथ से अब पारसनाथ बनते हो। भारत पारसपुरी थी। अब सोने का दाम कितना चढ़ गया है। फिर वहाँ बहुत सस्ता हो जायेगा। अब यह भारत पत्थरपुरी बना है। फिर पारसपुरी बनेगा। हमारी बुद्धि में वह चक्र फिरता रहता है। सारा दिन चक्र बुद्धि में फिरेगा तब ही चक्रवर्ती राजे-रानी बनेंगे। दुनिया में इन बातों को कोई भी नहीं जानते हैं। तुम जानते हो सतयुग में जो राज्य करते उनके 84 जन्म, फिर त्रेता वालों के जरूर कम होंगे। कहाँ 84जन्म कहाँ 84 लाख दिखलाते हैं। फिर तो कल्प भी इतना लम्बा चाहिए, जो इतने जन्म हों। हैं सब गपोड़े। हमेशा पहले तो चित्र सामने दे देना चाहिए। पैसा तुम कभी नहीं मांगो। तुम्हारा काम है उनको देना। कुछ भी देना होगा तो आपेही देगा। कोई दाम पूछे तो बोलो बाबा तो गरीबनिवाज है। गरीबों के लिए तो फ्री है। बाकी साहूकार जितना देंगे उतना हम और भी छपायेंगे। पैसा कोई हम अपने काम में नहीं लगाते हैं। जो मिलता है वह औरों के ही काम में लगाया जाता है। साहूकार ही तो धर्मशाला आदि बनायेंगे ना। हाँ गरीब भी बना सकते हैं, इसमें खर्चा कुछ नहीं है। जैसे ककोड़ गांव की माता कहती है मैं सेन्टर खोलूँ। ऐसी गाडली युनिवर्सिटी में 3-4 ने भी अच्छा पद पा लिया तो अहो भाग्य उनका। इसमें फ्राकदिल होना चाहिए। बाबा देखो कितना फ्राकदिल है। कखपन ले और बादशाही दे देते हैं। सपूत बच्चे ही बाबा की सर्विस कर सकते हैं। कपूत क्या करेंगे। कपूत को थोड़ेही बाप वर्सा देंगे। तुमको भी सतगुरू का शो करना है। काम अथवा क्रोध में आये तो गोया सतगुरू की निंदा कराई फिर पद पा नहीं सकेंगे। बहुत सम्भाल करनी चाहिए।

तुमको सब धर्म वालों को समझाना है। मुसलमानों को भी समझाओ - तुम खुदा की बन्दगी करते हो तो जरूर बन्दे ठहरे। भला खुदा कहाँ है? खुदा ही रचयिता और रचना का नॉलेज बता सकते हैं। वह तो रहते हैं शान्तिधाम में। उनको याद करने से तुम शान्ति का वर्सा ले सकते हो। वर्सा लेते-लेते विकर्म विनाश हो जायेंगे और फिर तुम खुदा के पास चले जायेंगे। यह ज्ञान सब धर्मो के लिए है। यह है बिल्कुल नई बात। ज्ञान से तुम्हारा बेड़ा पार हो जाता है और कहीं जाने की दरकार ही नहीं रहती। तो मीठे बच्चे अब तुम स्वर्ग में चलते हो तो पवित्र जरूर बनना है। देखो भारत में पवित्रता नहीं है तो धक्के खाते रहते हैं। कितने हंगामें हैं - जो गांधी सिखलाकर गये हैं, प्रजा फॉलो कर रही है। मेहतर, मजदूर, ड्राइवर आदि स्ट्राइक करते हैं तो गवर्मेन्ट का दम ही नाक में चढ़ा देते हैं। गवर्मेन्ट उन्हों को साफ कह देती इतना खर्चा हम लायें कहाँ से। तो वह कहते तुम तो मौज उड़ाते हो, धन ही धन इकट्ठा करते रहते हो। हमने गुनाह थोड़ेही किया है, हमको तलब (पघार) चाहिए। स्ट्राइक कर लेते तो धंधा ठहर जाता है। यह सब होना ही है। कहाँ अनाज सब्जी नहीं मिलेगी, दूध नहीं मिलेगा। जहाँ तहाँ खिटपिट है। यह सब हंगामा होकर शान्ति होगी। अर्जुन को विनाश का और विष्णुपुरी का साक्षात्कार कराया है ना। तुमको भी अब हो रहा है। देखो तुम कितने लाडले बच्चे हो। बहुत जन्मों के अन्त में आकर मिले हो तो पूरा सौभाग्य लो।

(बारिश बहुत तेज पड़ रही थी) देखो बाबा की भी ज्ञान वर्षा बहुत हुई है तो उस बारिश की भी बहुत वर्षा हुई है। बारिश के लिए भी यज्ञ रचते हैं तो पीस के लिए भी यज्ञ रचते हैं, परन्तु पीसफुल तो एक भगवान है। वह जब आये तो शान्ति का ज्ञान देवे। देने वाला तो वही है ना। अच्छे बच्चों को टोलपुट कहा जाता है। मिठाई खिलाई जाती है वह जिस्मानी मिठाई, यह है रूहानी मिठाई जो रूहानी बाप देते हैं। देही-अभिमानी हो रहना बड़ी मंजिल है, इसमें मेहनत है। बाबा कहते 8 घण्टा तो देही-अभिमानी बनो। फिर भल शरीर निर्वाह अर्थ काम भी करो। रात को जागो तो बहुत अच्छी लगन लगेगी। कमाई है ना। हे नींद को जीतने वाले बच्चे मुझे श्वाँसों श्वाँस याद करो। विचार सागर मंथन करो। रात दिन जितना योग में रहेंगे, विकर्म विनाश होंगे। जितना-जितना ज्ञान का सिमरण करेंगे उतनी कमाई होगी। बाकी सर्विस तो बहुत है। बाबा से पूछेंगे तो बाबा कहेंगे बैठे रहो। आराम करो। इसमें पूछने की दरकार नहीं। बाबा ने लोकलाज कुल का कुछ ख्याल किया क्या! अरे बादशाही मिलती है। बाकी हाँ हरेक का अपना-अपना पार्ट है। फिर बाबा से पूछना है। हरेक को अपनी-अपनी राय पूछनी है क्योंकि हरेक का कर्मबन्धन अलग है। पैसे हैं तो अलौकिक सर्विस में सफल करने हैं। बच्चों को महावीर बनना है। गाया भी हुआ है मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई। वही सबका बाप है। शिवबाबा कहते हैं मैं सभी को वापिस ले जाने आया हूँ। बाप कहते हैं इस दुनिया में एक भी मनुष्य त्रिकालदर्शी आस्तिक नहीं हैं। सब नास्तिक हैं। बाप को न जानने वाले। बाकी रिद्धि सिद्धि वाले बहुत हैं। माया भी कोई कम नहीं है, इस माया पर ही जीत पानी है इसलिए कवच पड़ा रहे। कवच का अर्थ ही है मनमनाभव। शिवबाबा को याद करो, देही-अभिमानी बनो। इस अन्तिम जन्म में तुम एक ही बार देही-अभिमानी बनते हो। फिर सतयुग से कलियुग तक यह देही-अभिमानी बनने की शिक्षा कोई देता ही नहीं। इस समय ही देही-अभिमानी बनना पड़ता है क्योंकि अब शरीर छोड़ मेरे पास आना है। देवतायें देही-अभिमानी क्यों बनें, उनको वापिस थोड़ेही जाना है। यह ज्ञान अभी तुमको मिलता है। तुम अशरीरी थे फिर यह शरीर धारण कर पार्ट बजाया, अब फिर शरीर छोड़ वापिस जाना है। अपनी अवस्था को जमाना है। माया पर जीत पानी है। गृहस्थ व्यवहार में तो रहना है। हंस बगुले इक्ट्ठे रहते हैं तो विघ्न पड़ते हैं। असुरों के सितम भी बहुत सहन करने हैं। घर बैठे प्रण कर लेते हैं, बाबा कुछ भी हो जाए हम आपसे वर्सा तो जरूर लेंगे। कितनी मार खाते हैं। ड्रामा अनुसार यह पार्ट कल्प पहले भी चला था। जो बहुत सितम सहन करते हैं वही सौभाग्यशाली हैं। फिर भी आकर मिले हैं ना! उनकी प्रालब्ध तो बन गई ना। हाँ इसमें मेहनत है, असुर से देवता बनना है। जब तक जीते हैं ज्ञान अमृत पीना ही है। बाबा नई-नई बातें समझाते रहते हैं। युक्तियां बताते रहते हैं। इसको विचार सागर मंथन कहा जाता है। बुद्धि की मथानी चलानी चाहिए। रात को भी शिवबाबा को याद कर सो जाओ, सर्विस का शौक होगा तो उनको नींद थोड़ेही आयेगी। ख्यालात चलता रहेगा। इस प्वाइंट पर क्या-क्या समझायें। ज्ञान को अच्छी रीति अन्दर घोटना है। जब ज्ञान घिसेंगे तब ही राजतिलक लेने के लायक बनेंगे। जो तीखे-तीखे बच्चे हैं उन्हों को फॉलो करना चाहिए, बड़ी जबरदस्त कमाई है, जिनके पास लाख करोड़ हैं वे सब खलास हो जायेंगे। थोड़े टाइम में देखना क्या होता है। फिर मनुष्य जागेंगे। लड़ाई आदि की रिहर्सल होती रहेगी। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी भी चीज़ में आसक्ति नहीं रखनी है। देही-अभिमानी होकर रहना है। याद का कवच सदा पहनकर रखना है।
2) नींद को जीत श्वाँसों श्वाँस बाप को याद करना है, ज्ञान का सिमरण कर कमाई जमा करनी है। बुद्धि की मथानी चलानी है।
वरदान:-
ब्राह्मण जीवन में सदा मेहनत से मुक्त रहने वाले सर्व प्राप्ति सम्पन्न भव
इस ब्राह्मण जीवन में दाता, विधाता और वरदाता - तीनों संबंध से इतने सम्पन्न बन जाते हो जो बिना मेहनत रूहानी मौज में रह सकते हो। बाप को दाता के रूप में याद करो तो रूहानी अधिकारीपन का नशा रहेगा। शिक्षक के रूप में याद करो तो गॉडली स्टूडेन्ट हूँ, इस भाग्य का नशा रहेगा और सतगुरू हर कदम में वरदानों से चला रहा है। हर कर्म में श्रेष्ठ मत-वरदाता का वरदान है। ऐसे सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न रहो तो मेहनत से मुक्त हो जायेंगे।
स्लोगन:-
बुद्धि का हल्कापन व महीनता ही सबसे सुन्दर पर्सनालिटी है।