Thursday, July 19, 2018

20-07-18 प्रात:मुरली

20-07-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - बाप को अपनी अवस्था का समाचार खुले दिल से दो, खुली व सच्ची दिल में ही बाप की याद टिक सकती है''
प्रश्न:
इस समय छोटे-बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था होते भी तुम कौन-से बोल मुख से नहीं कह सकते हो?
उत्तर:
बाबा, अभी जल्दी करो, अभी हम घर चलें, यहाँ तो बहुत दु:ख है। बाबा कहते - तुम बच्चे ऐसा कभी नहीं कह सकते क्योंकि तुम अभी ईश्वर के सम्मुख बैठे हो। अभी तुम्हें शीतल गोद मिली है। इस समय तुम ऊंचे ते ऊंचे बने हो। सतयुग में डिग्री कम हो जायेगी। दैवी सन्तान बनेंगे, ईश्वरीय नहीं इसलिये तुम जल्दी नहीं कर सकते।
गीत:-
तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है........
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बुलाने वाले बच्चों ने अब जाना। भक्त भगवान् को बुलाते हैं। अब तुम भक्त तो नहीं ठहरे। तुम हो बच्चे। बच्चे तो याद भी करते हैं। लिखते भी हैं कि बाबा, हम सम्मुख सुनने चाहते हैं। निमंत्रण देते रहते हैं - बाबा, आपसे सम्मुख सुनें। अब सिवाए ब्रह्मा मुख के डायरेक्ट सुनना तो मुश्किल है। बच्चे जानते हैं - बाबा कल्प पहले माफिक आये हुए हैं। ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण नाम कितना अच्छा दिया हुआ है। ब्रह्माकुमार-कुमारियां तो बहुत हैं। उन्हों को ज्ञान मिला हुआ है। परमपिता परमात्मा जो ज्ञान का सागर है, उनको ही सुख का सागर भी कहा जाता है। गाया भी हुआ है - दु:ख हर्ता, सुख कर्ता। वह तो शिवबाबा ही है। नाम कितने भिन्न-भिन्न दिये हैं। गायन तो बहुत हैं ना। गाते हैं - हर-हर अर्थात् दु:ख को हरो। भगवान् के लिये ही गाते हैं। परन्तु भगवान् का पता न होने कारण ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के लिये कह देते हैं। देव-देव महादेव। शिव को भूल शंकर के लिये कह देते - हर-हर महादेव........। ब्रह्मा और विष्णु को महादेव नहीं कहेंगे। वह तो दोनों स्थूल पार्ट में आते हैं। शंकर सूक्ष्मवतन में ही रहता है। दु:ख हरने वाला पतित-पावन तो एक निराकार भगवान् है। शंकर को पतित-पावन नहीं कहेंगे। महिमा सारी एक की है। विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण वा राधे-कृष्ण हैं जिनका अलग-अलग जन्म होता है। विष्णु अवतरण भी गाया हुआ है। चतुर्भुज दिखाते हैं। परन्तु यह किसको पता नहीं है कि पहले लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग में प्रिन्स-प्रिन्सेज राधे-कृष्ण बनते हैं। यह तुम ही जानते हो। यह भी जानते हो - माया का बड़ा भारी तूफान सूक्ष्म में आता है। माया भुला देती है। बहुत तूफान लाती है। कोई भी बात खुली दिल से बच्चे पूछते रहें तो प्रश्न का उत्तर मिल सकता है। तूफान भी अनेक प्रकार के आते हैं। स्वप्न, छी-छी विकल्प अनेक प्रकार के आते हैं। आंधी, तूफान को कहा जाता है। अब यह ब्रह्मा तो नामीग्रामी है। बाकी भी बाबा ने प्रवेश किया है तो बहुत नामीग्रामी हो गया है। जैसा-जैसा मनुष्यों का देश वैसा वेष भी होता है। अभी तो देखो कोई लूले-लंगड़े, कोई कुब्जा, किसकी आंख नहीं होगी। वहाँ तो नैचुरल ब्युटी है क्योंकि पांच तत्व भी सतोप्रधान हैं। तो यह ज्ञान सम्मुख सुनने के लिये बच्चियां बुलाती है। गीतों में भी कुछ न कुछ ठीक है। जैसे देवता धर्म प्राय:लोप है फिर भी मन्दिर यादगार तो हैं ना। यादगार सभी धर्म वालों का है। यह तुम बच्चे ही समझते हो बरोबर ऊंच ते ऊंच एक निराकार भगवान् को कहा जाता है। उनका ही गायन है और है भी संगमयुग, जब आत्मायें और परमात्मा मिलते हैं। आत्मायें तो बहुत हैं ना। वृद्धि होती रहेगी। अभी तुम बच्चे सम्मुख सुन रहे हो औरों की भी दिल होती है सम्मुख सुनें। यहाँ आ नहीं सकते। बांधेलियां हैं। और कोई भी सतसंगों में जाने लिये कभी किसको मना नहीं करते। बम्बई में गीता सुनाते हैं, कोई भी धर्म वाले जा सकते हैं। फीस नहीं है। भिन्न-भिन्न गुरू पास जाते रहते हैं कि कहाँ से सहज रास्ता मिल जाये। मुक्ति और जीवन्मुक्ति के रास्ते का किसको पता नहीं है इसलिये बहुत ढूँढते हैं। यहाँ तो कोई गुरू-गोसाई हैं नहीं। ब्रह्माकुमार और कुमारियां, बस। महात्मा कोई नहीं। जैसे तुम हो वैसे यह (दादा) है। फ़र्क कुछ नहीं है। वेष आदि में कोई फ़र्क नहीं है। यह शॉल आदि भी कभी उतार देता हूँ। परन्तु ड्रामानुसार यह जैसे आफीशल ड्रेस है। ड्रेस को तो देखना नहीं है। बुद्धि शिवबाबा तरफ चली जाती है। और सभी मनुष्य शरीर को देखेंगे। तुम अपने शरीर को भी भूलते हो और इस दादा के शरीर को भी भूलते हो। देही-अभिमानी बनना है। इनके शरीर को नहीं याद करना है। शिवबाबा इन द्वारा हमको राजयोग सिखलाते हैं। वही नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी है। आदि-मध्य-अन्त का राज़ इस समय बैठ सुनाते हैं।



बुढ़ियों आदि के लिये भी बड़ा सहज है। उन स्कूलों में तो बुढ़ियायें कुछ समझ न सकें। यह सबके लिये सहज है। बाप सिर्फ कहते हैं - मुझे याद करो। जैसे मनुष्य मरने पर होते हैं तो मंत्र देते हैं - राम-राम कहो, यह कहो। बहुत करके वानप्रस्थ के बाद ही गुरू का मंत्र लेते हैं। परन्तु अभी तो बाप कहते हैं - सारी पुरानी दुनिया का विनाश होना है। बुढ़े, जवान, छोटे - सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। ऐसे तो और कोई कह न सकें। कहेंगे - सबका मौत लाने तैयार हुए हो क्या? हाँ, मौत तो सबका होना ही है। कोई-कोई कहते हैं - बाबा, यहाँ अजुन कब तक रहेंगे, हम जल्दी जावें? यहाँ बहुत दु:ख है। आगे चलकर भी ऐसे-ऐसे कहेंगे। बाबा कहते हैं - ऐसे क्यों कहते हो? अरे, इस समय तो तुम ईश्वर के सम्मुख हो। फिर तो डिग्री डिग्रेड हो जायेगी। जाकर दैवी सन्तान बनेंगे। अभी यह शीतल गोद अच्छी है। वहाँ (स्वर्ग) तो होगा ही शीतल। परन्तु यहाँ तो तत्ते (गर्म) को भी शीतल बनाया जाता है तो वह अच्छा रहता है। ऐसे नहीं कि अभी जल्दी करो। अभी तो हम ऊंच ते ऊंच हैं। नामाचार ही सारा इस समय का है। देलवाड़ा मन्दिर भी इस समय का है। सारी सृष्टि के आत्माओं की दिल लेने वाला है बाप। दिलवाला मन्दिर सभी के लिये है। आत्मा शरीर द्वारा पुकारती है - बाबा, आओ, आकर हमको नया बनाओ, हम पुराने हो गये हैं। आत्मा और शरीर दोनों ही पुराने हैं। आत्मा बुद्धिहीन अंधी बनी है। मनुष्य को थोड़ेही अंधा कहा जाता है। आंखे तो हैं ना। परन्तु बुद्धि अंधी है। आत्मा में जो बुद्धि है याद करने की वह बिल्कुल भूल गई है। तो गोपिकायें कोई कहाँ, कोई कहाँ से बुलाती है। बांधेली गोपिकायें छोटे-छोटे गांव से बुलाती रहती हैं। बाप समझाते हैं - बच्चे, सतयुग में गृहस्थ आश्रम था, पवित्र था। अभी तो विष के लिये कितना हैरान करते हैं। यह नहीं समझते कि यहाँ निर्विकारी बनाया जाता है। निर्विकारी बनने से फिर क्या बनेंगे - वह भी पता नहीं। सन्यासी भी पवित्र बनने लिये भागते हैं। परन्तु उनको यह पता नहीं कि हम पवित्र बन पवित्र दुनिया में जायेंगे। इन बातों को वह मानते ही नहीं। इस समय इतना दु:ख है जो समझते हैं इससे मुक्ति अथवा मोक्ष अच्छा है। बाप ने समझाया है - ड्रामा में मोक्ष किसको मिलता ही नहीं है। अभी तुम जानते हो। बाप कहते हैं - सिर्फ इतना याद करो कि 84 जन्म पूरे हुए, अब बाबा आया है लेने लिये। बाप को याद नहीं करेंगे तो तूफान बहुत लगेंगे। विवेक भी कहता है - निरन्तर याद करना बड़ा मुश्किल है। भल बाबा कहते हैं - तुम कर्मयोगी हो। परन्तु देखा गया है कर्म करने के समय याद भूल जाती है। ऐसी अवस्था को पाने में टाइम लगता है। इसमें बहुत पुरुषार्थ करना होता है। कॉलेज में पुरुषार्थी बच्चों को रात-दिन पढ़ने की हॉबी रहती है। कोशिश करते हैं गवर्मेन्ट से स्कॉलरशिप ले लेवें। बहुत माथा मारते हैं। फिर बड़े खुश होते हैं। यहाँ भी बाप कहते हैं - तुम अच्छी रीति पढ़कर स्कॉलरशिप लो। पहले-पहले तख्तनशीन बन जाओ। दौड़ी लगानी चाहिये। तुम जानते हो - अभी बाप सम्मुख बैठे हैं। डायरेक्ट इस रथ में बैठ बच्चे-बच्चे कह बात करते हैं। ब्रह्मा का तन तो मुकरर है। बाप कहते हैं - मैं आत्माओं से बात करता हूँ। तुम पुकारते थे - बाबा, आओ। अब मैं आया हूँ। तुम आत्मायें भी निराकार हो। हम भी निराकार हैं। तुम भक्ति मार्ग में भिन्न-भिन्न नाम, रूप, देश, काल धारण कर याद करते आये हो। अब सम्मुख तुमसे बात कर रहा हूँ। तुमको तो अपने शरीर का आधार है। हमको यह लोन लेना पड़ता है। बाप बच्चों को कहते हैं - अब यह पुराना चोला छोड़ना है। नाटक पूरा हुआ, अब निरन्तर बाप को याद करने की कोशिश करो। अगर और कुछ याद पड़ता रहेगा तो फिर सजायें खानी पड़ेगी। जितना हो सके औरों की याद निकाल दो। यात्रा पर जाते हैं तो बुद्धि में वही याद रहती है। बस, हम श्रीनाथ द्वारे जाते हैं। तुम्हारी है सच्ची रूहानी यात्रा। आत्मा परमात्मा के साथ योग लगाती है। फिर शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करने लिये यहाँ आते-जाते हैं। कहाँ भी हो याद रहनी चाहिये। तुम जानते हो भगवान् सर्वव्यापी नहीं, वह तो बाप है और बाप से तो वर्सा मिलता है। सर्वव्यापी कहने से कोई मतलब ही नहीं निकलता। बाप को तो वर्सा देना होता है। उनको यह आश नहीं रहती कि मुझे वर्सा मिलना है। आश रहेगी - बच्चों को वर्सा देना है। इस बाप की भी दिल में है - हमको वर्सा देना है। बाप और बच्चों का सम्बन्ध है। बच्चों को वर्सा लेना है, बाप को देना है। बाप फिर क्या लेंगे! उनको देना होता है। सच्ची आत्मा पर साहेब राज़ी होता है तो कितना सच्चा बनना चाहिये। परन्तु सभी बच्चे हो ना तो वर्सा देने वाले बाप को याद करना चाहिये। कच्चे बच्चों को याद नहीं रहता है। शरीर निर्वाह अर्थ भल कर्म करो फिर फुर्सत के समय बाप को याद करो। याद की यात्रा का रजिस्टर तुम्हारा ठीक होता जायेगा तो खुशी रहेगी। मनुष्य को जो आदत पड़ती है वह वृद्धि को पाती है। बुद्धि में रहना चाहिये हमारे 84 जन्म पूरे हुए। अब नाटक पूरा हुआ। अभी हम जाते हैं अपने घर इसलिये बाप कहते हैं - मुझे याद करो। गीता में भी दो बार मन्मनाभव लिखा हुआ है। कुछ-कुछ बातें आटे में लून हैं।



अन्य धर्म वालों के कोई चित्र आदि नहीं रहते हैं। तुम्हारे चित्र हैं। ब्रह्मा का भी अजमेर में चित्र है। ब्राह्मणों में भी बहुत प्रकार के हैं। भिन्न-भिन्न नाम रखे हुए हैं। भाषायें देखो कितनी हैं! बच्चे जानते हैं - हमारी राजधानी में एक ही भाषा होगी। वहाँ की भाषा ही और है। संस्कृत आदि नहीं होती है। बच्चियां वहाँ की भाषा आदि सुनाती थी। अब तुम बच्चों को खुशी रहनी चाहिये। हम राजधानी स्थापन कर रहे हैं। फिर वहाँ अपनी भाषा होगी। यहाँ की भाषायें वहाँ नहीं हो सकती। ड्रामा की नूँध अनुसार फिर वही अपने महल आदि बनायेंगे। कल्प पहले मुआफिक। यहाँ यह ब्रिटिश गवर्मेन्ट ने न्यु देहली बनाई ना। तुम जानते हो हम देहली नाम नहीं रखेंगे। यह पुरानी दुनिया तो खत्म होनी है। हमको नये ते नई दुनिया चाहिये। वहाँ तो हीरे-जवाहरों के महल बनेंगे। अभी तो वह महल नहीं हैं। बुद्धि कहती है हम बहुत फर्स्टक्लास महल बनायेंगे। यह तो छी-छी दुनिया है। ऐसी-ऐसी आपस में बातें करनी चाहिये। बहन जी, भाई जी हम तो जायेंगे फिर आकर अपनी राजधानी सम्भालेंगे। ऐसे लिबास पहनेंगे। आगे जेवर आदि सब सच्चे पहनते थे। लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में कितने जेवर आदि होंगे। शिव का मन्दिर क्या होगा? शिव का लिंग भी हीरों का बनाते हैं। यह भी समझने की बातें हैं। हमारे शिवबाबा के मन्दिर को बरोबर मुसलमानों ने आकर लूटा है। जो भक्ति मार्ग के शुरू में बनाया था। तुम जानते हो द्वापरयुग से शिवबाबा के मन्दिर बने हैं। आपेही पूज्य से फिर पुजारी बन जाते हैं। पहले-पहले सोमनाथ का मन्दिर बना है। सोमरस कहा जाता है नॉलेज को। नॉलेज देने वाला बाप है जिससे तुम धनवान बनते हो। फिर उसी धन से तुम बाप का मन्दिर बनाते हो। पूजा भी तो होगी ना। घर-घर में मन्दिर बनाते हैं। तुम जानते हो जब भक्ति मार्ग शुरू होगा तो फिर हम पुजारी बन मूर्ति आदि बनायेंगे। तुम बच्चे जानते हो - हम अभी आशिक बने हैं माशूक परमात्मा के, उनसे वर्सा लेने लिये। वह विकार के लिये आशिक होते हैं। यह फिर आत्मा परमात्मा माशूक की आशिक होती है। देखते हो - सभी भक्त उनको याद करते हैं। उस माशूक की महिमा बड़ी भारी है! आशिक जो पतित बन गये हैं उन्हों को पावन बनाते हैं। आत्मा ही पतित, आत्मा ही पावन बनती है। अच्छा!



मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) स्कॉलरशिप लेने के लिये अच्छी रीति पढ़ना है, तख्तनशीन बनने की दौड़ लगानी है। कर्म करते याद में रहना है।
2) हम रूहानी यात्रा पर हैं, इसलिये और सबकी याद बुद्धि से निकाल बाप की याद में निरन्तर रहना है। याद का रजिस्टर ठीक रखना है।
वरदान:
रूहानियत की शक्ति द्वारा दूर रहने वाली आत्माओं को समीपता का अनुभव कराने वाले मा. सर्वशक्तिमान भव!
जैसे साइन्स के साधनों द्वारा दूर की हर वस्तु समीप अनुभव होती है, ऐसे दिव्य बुद्धि द्वारा दूर की वस्तु समीप अनुभव कर सकते हो। जैसे साथ रहने वाली आत्माओं को स्पष्ट देखते, बोलते, सहयोग देते और लेते हो, ऐसे रूहानियत की शक्ति द्वारा दूर रहने वाली आत्माओं को समीपता का अनुभव करा सकते हो। सिर्फ इसके लिए मास्टर सर्वशक्तिमान, सम्पन्न और सम्पूर्ण स्थिति में स्थित रहो और संकल्प शक्ति को स्वच्छ बनाओ।
स्लोगन:
अपने हर संकल्प, बोल और कर्म द्वारा औरों को प्रेरणा देने वाले ही प्रेरणामूर्त हैं।