Tuesday, July 10, 2018

10-07-18 प्रात:मुरली

11-07-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - सारी सृष्टि का पालनकर्ता एक बाप है, वह कभी किसी की पालना नहीं लेते, सदा निराकार हैं - यह बात सिद्ध कर सबको समझाओ''
प्रश्नः-
गॉडली स्टूडेन्ट की पहली मुख्य निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
गॉडली स्टूडेन्ट कभी भी मुरली सुनने बिगर नहीं रह सकते। वह ऐसे नहीं कहेंगे कि हमें मुरली सुनने की फुर्सत ही नहीं मिलती। जहाँ भी हैं प्वाइन्ट्स मंगाकर भी पढ़ेंगे। कितनी अथाह प्वाइन्ट्स चलती हैं! अगर मुरली नहीं सुनेंगे तो धारणा कैसे होगी? यह पढ़ाई है, सुप्रीम टीचर पढ़ाने वाला है तो बच्चों को मुरली कभी मिस नहीं करनी चाहिए।
गीत:-
तुम्हें पाके हमने........  
ओम् शान्ति।
अब तुम आत्मायें बाप को जान गई हो। बच्चे जानते हैं एक ही शिवबाबा है जिसको कोई भी सूक्ष्म वा स्थूल शरीर नहीं मिलता है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी सूक्ष्म शरीर दिखाते हैं। नाम भी है। बच्चे समझते हैं - उनमें आत्मा है, सूक्ष्म शरीर है। इस समय तुम बच्चे त्रिलोकीनाथ बनते हो। लक्ष्मी-नारायण को कोई त्रिलोकीनाथ नहीं कहेंगे। लक्ष्मी-नारायण इन तीन लोक (मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन) को नहीं जानते। हर एक बात बुद्धि से निर्णय करनी है कि राइट है या रांग है! सिर्फ जो सुना सत-सत कहना - यह तो भक्ति मार्ग है। यहाँ तो अच्छी रीति समझना है। बरोबर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को सूक्ष्म शरीर है। सिर्फ एक ही शिव निराकार है। मन्दिर तो उनके अनेक प्रकार के बने हुए हैं और नाम भी अनेक प्रकार के रख दिये हैं। ढेर मन्दिर हैं, जहाँ लिंग रखा रहता है। बाम्बे में है उसको बाबुरीनाथ कहते हैं। है तो एक शिव, विलायत आदि तरफ भी बहुत नाम रखे हुए हैं। अभी बच्चे जानते हैं - हम आत्मा हैं। परमपिता परमात्मा हम बच्चों को समझा रहे हैं। तीनों लोकों का ज्ञान दे रहे हैं। इस समय ही तुम त्रिलोकीनाथ हो क्योंकि तुम जानते हो। जब तक कोई जाने नहीं तो नाथ बन कैसे सकते? कृष्ण को भी त्रिलोकीनाथ नहीं कहेंगे। सिर्फ ब्रह्मा की औलाद ब्राह्मण ही त्रिलोकीनाथ हैं, जिनको तीनों लोकों की नॉलेज है। नॉलेजफुल, ब्लिसफुल बाप है। वह निराकार बाप हमको नॉलेज दे रहे हैं। कोई साकार मनुष्य को गॉड नहीं कहा जा सकता। यहाँ तो सर्वव्यापी कह देते हैं।

अभी तुम बच्चे समझ गये हो - गॉड फादर एक ही निराकार शिव है, जिसकी पालना भी नहीं होती है। और सभी की पालना होती है। आत्मा छोटे शरीर में आती है। गर्भ में तो अपना अंगूठा चूसती है। शिवबाबा को अंगूठा नहीं, जो चूसना पड़े। शिवबाबा कहते हैं - मैं तो गर्भ में ही नहीं जाता हूँ, और सब तो गर्भ में जाते हैं। फिर उनकी पालना भी होती है। माँ जैसे खाना आदि खाती है, कोई खट्टी चीज़ खाती है तो उसका असर बच्चे पर पड़ता है तो बच्चे को नुकसान होता है। शिवबाबा पूछते हैं - हमारी तुम पालना कैसे करेंगे? हमको तो कहते ही हैं सारी सृष्टि का पालनकर्ता। तो मेरे ऊपर कोई है नहीं। इन बातों को अच्छी रीति समझना चाहिए। विचार सागर मंथन कर प्वाइन्ट्स निकालनी चाहिए। बरोबर शिवबाबा बाबा है। उनको माशूक भी कहा जाता है। सभी मनुष्य मात्र आशिक हैं उस माशूक के। तुम सब सजनियां हो, वह साजन ठहरा। साजन है निराकार। कोई साकार वा आकार को साजन नहीं कहा जा सकता। सभी का माशूक एक ही निराकार बाबा है। निराकार आत्मायें अपने माशूक को याद करती हैं। याद क्यों करती हैं? जरूर कुछ न कुछ तकलीफ है। सभी भक्त भगवान् को याद करते हैं। यह आशिक-माशूक निराकारी हैं। वह जो साकारी आशिक-माशूक होते हैं उन्हों की भी महिमा है और वह बहुत थोड़े होते हैं। एक-दूसरे के शरीर पर फिदा होते हैं। उनका कोई विकार के लिए प्यार नहीं होता है। सिर्फ एक-दो को देखते रहते। देखने बिगर सुख नहीं आयेगा। शरीर को याद करते हैं। कहाँ भी बैठे रहेंगे। समझेंगे हमारे सामने माशूक खड़ा है। उनको साक्षात्कार होता है क्योंकि वह पवित्रता का प्रेम है। शरीर की भी शोभा होती है ना। विकार के लिए नहीं, एक-दो को देख खुश होते हैं। खाते हुए उनकी याद आई, बस, खाना भूल जायेगा। उनको ही देखते रहेंगे। वह भी थोड़े होते हैं। यहाँ तो सभी के सभी आशिक हैं। उस माशूक (शिवबाबा) के, परन्तु कितने थोड़े सच्चे आशिक बनते हैं जो पास विथ ऑनर्स होते हैं! 8 दानों की कितनी महिमा है! तो जब भक्तों को भगवान् मिला है तो उनको कितना याद करना चाहिए! बाप कहते हैं - बच्चे, निरन्तर मुझे याद करो क्योंकि मेरे से तुमको बहुत सुख मिलता है। वह तो करके अल्प काल का सुख मिल जाता है। आपस में बहुत लव रहता है। यह फिर है बेहद के बाप से बेहद का लव। बेहद का प्यार एक में रहता है। बच्चे जानते हैं - उनका कोई शारीरिक नाम नहीं है।

विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण की जरूर डिनायस्टी होगी। सतयुग आदि में लक्ष्मी-नारायण का राज्य होगा तो जरूर प्रजा भी होगी। बुद्धि भी कहती है - सतयुग आदि में इतने होंगे फिर वृद्धि होती जायेगी। सतयुग आदि में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। बरोबर जमुना के कण्ठे पर राधे-कृष्ण की राजधानी थी। गंगा-जमुना आदि यह तो बहुत नदियां हैं। नदी किनारे रहते थे। यह जो दिखाते हैं सागर में द्वारिका डूबी आदि - ऐसी कोई बात नहीं। न कोई सागर के किनारे देवताओं के गांव होते हैं। यह बम्बई थोड़ेही होगी। अभी यह तुम्हारी बुद्धि में है। मोस्ट बिलवेड गॉड फादर, क्राइस्ट को गॉड फादर नहीं कहेंगे। जानते हैं क्राइस्ट मैसेन्जर है। परमपिता परमात्मा ने उनको भेजा है। आते हैं निराकारी दुनिया से। उनको गॉड फादर नहीं समझते। प्रीसेप्टर समझते हैं। हिन्दुओं को पता नहीं है - हिन्दू धर्म कब और किसने स्थापन किया? हिन्दू धर्म तो है नहीं। आदि सनातन देवी-देवता धर्म है। आदम-शुमारी (जन-गणना) में अगर हमसे पूछते हैं तो हम कहेंगे हम तो ब्राह्मण हैं। इस समय हम कोई हिन्दू थोड़ेही हैं। इस समय हम हैं ही ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण। परन्तु तुम भल ब्राह्मण धर्म बतायेंगे वो फिर भी हिन्दू में डाल देंगे। वहाँ स्वर्ग में तो आदम-शुमारी होती ही नहीं क्योंकि है ही एक देवी-देवता धर्म। तो पूछने की दरकार ही नहीं। यहाँ बहुत धर्म हैं इसलिए पूछते हैं। यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं। तो बुद्धि से बाप को याद करना है। वह है ही निराकार और उनका एक ही नाम है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के भी आकारी चित्र देखने में आते हैं। शिव का कहाँ है? समझते भी हैं कि यह भगवान् है। हम अपने को भगवान् कहला नहीं सकते। आत्मायें तो पुनर्जन्म लेती हैं। ऐसे नहीं, बाप भी पुनर्जन्म लेते हैं।

अभी तुम तीनों लोकों को जानते हो इसलिए तुम्हारा त्रिलोकीनाथ नाम है। जानने वाले ही नाथ हुए। तुमको अब त्रिलोकी का ज्ञान है। तुम ब्राह्मण ही जानते हो और कोई भी जान न सके। कृष्ण भी त्रिलोकीनाथ नहीं है। वहाँ यह ज्ञान ही नहीं रहता। यह सिर्फ तुमको मिलता है, इसलिए तुम्हारा नाम बाला है। देलवाड़ा मन्दिर में शिव, आदि देव, आदि देवी और तुम बच्चे हो क्योंकि तुम अभी सर्विस करते हो। बाप आते हैं पतितों को पावन बनाने तो तुम बच्चों की मदद लेते हैं। बाप कहते हैं जो-जो मेरे मददगार बनते हैं, उन्हों को मैं जानता हूँ। यह तो कोई भी समझ सकते हैं, जिसकी एवज़ फिर तुमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। स्टूडेन्ट सब एक जैसे तो नहीं होंगे। शिवबाबा की दुकान है मनुष्य को देवता बनाने की फिर उनमें नम्बरवार हैं। महारथियों का सेन्टर जरूर अच्छा चलता होगा। समझेंगे अच्छे सेल्समैन हैं। शिवबाबा के सब दुकान हैं। तुम अविनाशी ज्ञान-रत्नों का व्यापार करते हो। यह बाप कितना साधारण है! कितना फ़र्क है सच और झूठ का! सच बताने वाला तो एक ही बाप है। बाकी सब झूठ ही झूठ है। बड़े ते बड़ी झूठ - जो श्रीमत देने वाले परमपिता परमात्मा को सर्वव्यापी कह देते हैं! आगे तो बेअन्त कह देते थे। रावण कौन है, कब से आये हैं - यह भी कोई नहीं जानते। रावण को वो लोग त्रेता में ले गये हैं। कृष्ण को द्वापर में ले जाते हैं। सतयुग को जानते ही नहीं। राम-सीता थे त्रेता में। वहाँ रावण की तो बात ही नहीं उठ सकती है। सब यहाँ की बातें हैं। यह तो एक गपोड़ा लगा दिया है। कोई को समझाओ तो फिर कह देते यह इन बी.के. की कल्पना है। अब बच्चों को समझाया गया है। प्वाइन्ट्स निकलती हैं वह धारण करनी है। जहाँ भी हो प्वाइन्ट्स मंगाकर पढ़ना चाहिए। ऐसे नहीं कि फुर्सत नहीं है। अरे, गॉडली स्टूडेन्ट कहे - हमको फुर्सत नहीं तो उनको क्या कहेंगे? कोई को धारण कैसे करा सकेंगे? इतनी अथाह प्वाइन्ट्स चलती हैं, वह अगर मुरली नहीं सुनेंगे अथवा नहीं पढ़ेंगे तो धारणा कैसे होगी? यह तो एज्यूकेशन है। सुप्रीम टीचर पढ़ाने वाला एक ही है। अगर मुरली नहीं सुनेंगे तो प्वाइन्ट्स सुना कैसे सकेंगे?

यह तो बच्चे समझते हैं बाप जन्म-मरण रहित है। वह पुनर्जन्म नहीं लेते। परन्तु उनकी जयन्ती मनाते हैं। यह तो शिव जयन्ती को भी खत्म करते जाते हैं। अब कौन बताये शिव का जन्म कैसे हुआ? क्या किया होगा? गीता में कृष्ण का नाम डाला है परन्तु उसी रूप से तो आ न सके। कृष्ण को वैकुण्ठनाथ कहेंगे, त्रिलोकीनाथ नहीं। तो वैकुण्ठ अथवा स्वर्ग यहाँ ही था। कृष्ण भी यहाँ था। राधे-कृष्ण कोई भाई-बहन नहीं थे। दोनों अलग-अलग अपनी-अपनी राजधानी में थे। बच्चों ने साक्षात्कार किया है - कैसे स्वयंवर होते हैं? बाबा ने शुरू में तुमको बहुत बहलाया था। अकेले ही अन्दर भट्ठी में पड़े थे। कोई मित्र-सम्बन्धी आदि से नहीं मिलते थे। तो बाबा ने बहुत दिखाया। फिर भी पिछाड़ी में तुम बहुत देखेंगे। समझेंगे हम जैसे वैकुण्ठ में बैठे हैं। अन्त के समय मनुष्य हैरान होते हैं। बहुत आफतें आनी हैं, इनको कहा जाता है - अति खूने नाहेक। दुनिया नहीं जानती। ऐसे भी नहीं, वह गवर्मेन्ट कोई मत लेगी। अभी तो सबका विनाश होना है। तुम अविनाशी बाप से अविनाशी पद पा रहे हो। भल प्रजा में आयें तो भी अहो सौभाग्य। वहाँ सुख ही सुख है। यहाँ है दु:ख ही दु:ख। अब बाप पढ़ाने आये हैं तो पढ़ना भी चाहिए ना। भल काम है, हथ कार डे दिल यार डे........ बुद्धियोग बाप के साथ लगा हुआ हो। गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए याद उनको करना है। अरे, बाप स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, क्या समझते हो! 21जन्म राजाई करते हो। कोई फिक्र की बात नहीं। यहाँ तो देखो, मनुष्यों को कितना फिक्र रहता है! वहाँ फिक्र होता नहीं। तुम वहाँ प्रालब्ध भोगते हो। परन्तु वहाँ यह भी पता नहीं पड़ेगा। यह नॉलेज तुमको अभी है कि हम अविनाशी बाप से वर्सा ले रहे हैं। फिर आटोमेटिकली हम राजधानी का वर्सा लेते रहेंगे। ऐसे नहीं कि दान-पुण्य करने से राजा बनेंगे। नहीं। इस समय के पुरुषार्थ की वह प्रालब्ध है। तो कितना पुरुषार्थ करना चाहिए जिससे 21 जन्म की प्रालब्ध बनती है! वहाँ पुरुषार्थ-प्रालब्ध की बात होती नहीं। वहाँ कोई अप्राप्त वस्तु ही नहीं जिसके लिए पुरुषार्थ करना पड़े। सब धनवान हैं। यहाँ मनुष्य पढ़ते हैं कि हम जज बनें, डॉक्टर बनें........ वहाँ तो न जज, न डॉक्टर आदि होते। वहाँ कोई पाप करते ही नहीं। वहाँ कोई चोर-चकार होगा नहीं। तुम सारे विश्व के मालिक बनते हो। कोई बात की परवाह नहीं रहती। अन्न आदि पर पैसे लगते नहीं। यहाँ भी बाबा के होते 8-10 आने मण अनाज मिलता था। तो उनसे आगे क्या होगा? अब तो कितनी मंहगाई है! अजुन महंगाई और बढ़ेगी, फिर सस्ताई हो जायेगी। ड्रामा अनुसार सब कुछ तुमको मिलना है। उनकी मदद से तुमको राजधानी मिलनी है। दो बन्दर लड़ते हैं, मक्खन तुमको मिलता है। दुनिया थोड़ेही जानती है कि तुमको पढ़ाने वाला कौन है! यह है भी गुप्त वेष में। तुमको एक सेकेण्ड में वैकुण्ठ की राजधानी दे देते हैं। खुदा दोस्त की कहानी है ना। यह महिमा बाप की है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अच्छा होशियार सेल्समैन बन अविनाशी ज्ञान-रत्नों का व्यापार करना है। अविनाशी प्रालब्ध बनाने के लिए अपना बुद्धियोग एक बाप से लगाना है।
2) पास विद ऑनर होने के लिए सच्चा-सच्चा आशिक बनना है। निरन्तर एक माशूक की याद में रहना है।
वरदान:-
इस मरजीवा जीवन में सदा सन्तुष्ट रहने वाले इच्छा मात्रम् अविद्या भव
आप बच्चे मरजीवा बने ही हो सदा सन्तुष्ट रहने के लिए। जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ सर्वगुण और सर्वशक्तियां हैं क्योंकि रचयिता को अपना बना लिया, तो बाप मिला सब कुछ मिला। सर्व इच्छायें इक्ट्ठी करो उनसे भी पदमगुणा ज्यादा मिला है। उसके आगे इच्छायें ऐसे हैं जैसे सूर्य के आगे दीपक। इच्छा उठने की तो बात ही छोड़ो लेकिन इच्छा होती भी है - यह क्वेश्चन भी नहीं उठ सकता। सर्व प्राप्ति सम्पन्न हैं इसलिए इच्छा मात्रम् अविद्या, सदा सन्तुष्ट मणि हैं।
स्लोगन:-
जिनके संस्कार इज़ी हैं वे कैसी भी परिस्थिति में स्वयं को मोल्ड कर लेंगे।