Tuesday, June 5, 2018

05-06-18 प्रात:मुरली

05-06-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम्हारा है सतोप्रधान सन्यास, तुम देह सहित इस सारी पुरानी दुनिया को बुद्धि से भूलते हो"
प्रश्नः-
तुम ब्राह्मण बच्चों पर कौन सी जवाबदारी बहुत बड़ी है?
उत्तर:-
तुम्हारे पर जवाबदारी है पावन बनकर सारे विश्व को पावन बनाने की। इसके लिए तुम्हें निरन्तर शिवबाबा को याद करते रहना है। याद ही योग अग्नि है जिससे आत्मा पावन बनती है। विकर्म विनाश हो जाते हैं।
गीत:-
दु:खियों पर रहम करो...  
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना कि हम बच्चे हैं। तुम्हारा जरूर वह बाप है। अब बाप को बच्चे कभी भी सर्वव्यापी नहीं कहते। लौकिक बाप के बच्चे कभी ऐसे नहीं कहेंगे कि हमारा बाप सर्वव्यापी है। यह बेहद का बाप बैठ समझाते हैं तुम सब बच्चे हो, तुम्हारा बाप है, जिसको परमपिता कहते हैं। परमात्मा को सुप्रीम सोल भी कहते हैं। परम माना सुप्रीम, आत्मा माना सोल। तो जरूर सब बच्चे हैं और एक बाप है। सब भक्त एक भगवान को याद करते हैं जिसको याद किया जाता है उनका जरूर नाम, रूप, देश, काल होता है। उनको बेअन्त नहीं कहा जा सकता। मनुष्य ईश्वर बाप को बेअन्त कहते आये हैं, उनका कोई अन्त पा नहीं सकते हैं और फिर कहते हैं सर्वव्यापी है। यह तो बड़ा अनर्थ हो गया। पत्थर-ठिक्कर सबमें ईश्वर है उनको फिर बेअन्त कहते हैं। बच्चे बाप को भूल गये हैं इसलिए सारी मनुष्य सृष्टि नास्तिक पतित कही जाती है। हर एक नर-नारी पतित हैं तब तो पतित से पावन बनाने वाले को याद करते हैं। इस दुनिया में कोई को भी महान् आत्मा नहीं कहा जा सकता। पवित्र आत्मा पतित दुनिया में हो नहीं सकती। बापू गांधी जी भी कहते थे पतित-पावन सीताराम - यह मनुष्य के लिए कहते, पानी की गंगा के लिए तो नहीं कहा। यह है झूठ। झूठी माया, झूठी काया, है ही झूठ खण्ड। सचखण्ड था जबकि नई दुनिया में नया भारत था। अब वही भारत पुराना हो गया है। भारत जब नया था तो उनको स्वर्ग कहा जाता है, जिसको 5 हजार वर्ष हुए। त्रेता में दो कलायें कम हुई। इस समय तो कलियुग है, इनको कहा जाता है पुरानी दुनिया। पुरानी दुनिया में पुराना भारत। वर्ल्ड नई भी होती है तो पुरानी भी होती है। अब है पुरानी दुनिया, सब मनुष्य नास्तिक हैं, इसलिए दु:खधाम कहा जाता है। फिर इस दु:खधाम को सुखधाम तो एक ही बाप बना सकते हैं। भारत जो पावन था पतित बन गया है, जब प्युरिटी थी तो पीस प्रासपर्टी थी। भारत की आयु एवरेज बड़ी थी। अभी तो बहुत छोटी है। भारत रोगी कब से बना है - दुनिया नहीं जानती। ऐसे नहीं कहेंगे कि परम्परा से रोगी है। भक्ति शुरू ही द्वापर से होती है। कलियुग का जब अन्त होता है तब बाप आकर ज्ञान देते हैं। ज्ञान है ही ज्ञान सागर के पास। ज्ञान का सागर नॉलेजफुल - यह उस बाप की ही महिमा है। मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। सर्वव्यापी कहने से बाप-बच्चे का लव नहीं रहता। यह है आरफन दुनिया। सब आपस में लड़ते रहते हैं इसलिए इसको रौरव नर्क कहा जाता है। भारत स्वर्ग था, अब नर्क है। यह किसको भी पता नहीं पड़ता है कि हम नर्कवासी हैं तो जरूर नर्क से ट्रांसफर होंगे। परन्तु ऐसे नहीं कि नर्कवासी पुनर्जन्म फिर स्वर्ग में ले सकते हैं। वह पुनर्जन्म सब नर्क में ही लेते हैं। नर्क को ही पतित दुनिया कहा जाता है। निर्वाणधाम आत्माओं के रहने का स्थान है जिसको निराकारी दुनिया कहा जाता है। आत्मा स्टार इमार्टल है। शरीर मार्टल है। आत्मा को एक शरीर छोड़ दूसरा लेना पड़ता है। 84 जन्मों का भी गायन है। 84 लाख जन्म कहना भी गपोड़ा है। बाप समझाते हैं जो भी आत्मा पार्ट बजाने आती है, आकर आरगन्स में प्रवेश करती है। परन्तु सबके 84 जन्म भी नहीं हो सकते। सतयुग में जो देवी-देवता होंगे उन्हों के ही 84 जन्म होंगे। बाप कहते हैं आगे भी कहा था तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं बतलाता हूँ। तुम हो ब्रह्माकुमार कुमारियां। अच्छा, ब्रह्मा का बाप कौन है? शिव। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर है शिवबाबा के बच्चे। उन्हों को भी अपना सूक्ष्म शरीर है। परमपिता परमात्मा को अपना शरीर नहीं है। बाप कहते हैं मेरा नाम ही शिव है। भल कोई रूद्र भी कहते, कोई सोमनाथ कहते हैं। हूँ तो मैं निराकार। बरोबर भारत में शिव के मन्दिर भी हैं। ज्ञान का सागर परमपिता परमात्मा को ही कहा जाता है, कृष्ण को नहीं कहेंगे। वह तो सतयुग का प्रिन्स है। उनमें यह आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान नहीं है। सतयुगी देवताओं में भी यह ज्ञान नहीं है। तुम जानते हो अभी हम हीरे तुल्य बन रहे हैं। परमपिता परमात्मा के सिवाए कोई राजयोग सिखला न सके। कृष्ण को परमात्मा नहीं कह सकते। परमात्मा सिर्फ एक निराकार को ही कहा जाता है। उस बाप को ही सब भूले हुए हैं।

इस समय सब पतित तमोप्रधान हैं। बाप कहते हैं यह सारा वैराइटी मनुष्य सृष्टि का झाड़ है। तमोप्रधान रोगी दु:खी हैं। भारत कितना ऊंच था, अभी तो कंगाल है। शास्त्रों में तो कल्प की आयु ही लाखों वर्ष लिख दी है। समझते हैं कलियुग को अभी 40 हजार वर्ष चलना है। बाप समझाते हैं यह है घोर अन्धियारा। अब ज्ञान सूर्य प्रगटा अज्ञान अन्धेर विनाश। बाप है ज्ञान सूर्य। वह आकर अज्ञान घोर अन्धियारे को मिटाते हैं। अभी है ब्रह्मा की रात। सतयुग-त्रेता को ब्रह्मा का दिन कहा जाता है। तो तुम हो ब्रह्माकुमार कुमारियां, ब्रह्मा के बच्चे। ब्रह्मा तो विश्व अथवा स्वर्ग का रचयिता नहीं है। निराकार हेविनली गॉड फादर की ही महिमा है। वह बाप ही आकर राजयोग सिखलाते हैं। बाप कहते हैं - हे बच्चे, आत्माओं से बात करते हैं। आत्मा ही सब कुछ सुनती है, धारण करती है और संस्कार ले जाती है। जैसे बाबा ने समझाया है लड़ाई के मैदान में मरते हैं तो संस्कारों अनुसार जन्म ले फिर लड़ाई मे चले जायेंगे। इस समय सबकी आत्मायें तमोप्रधान हैं। सब एक-दो को दु:ख देते रहते हैं। सबसे बड़ा दु:ख कौन देते हैं? जो तुम्हें परमात्मा से बेमुख करते हैं इसलिए शिवबाबा कहते हैं - बच्चे, तुम उन सबको छोड़ो। गॉड इज वन कहा जाता है।

तुम सब ब्राइड्स हो, मैं हूँ तुम्हारा ब्राइडग्रूम। हे सजनियां, तुम बिल्कुल लायक नहीं हो स्वर्ग मे चलने के लिए। माया ने तुमको बिल्कुल ना लायक बना दिया है। यह है रावण राज्य। सतयुग में है राम राज्य। राम शिव को कहा जाता है। अभी तुम हो ब्राह्मण, परमपिता परमात्मा जो स्वर्ग की स्थापना करते है उनसे तुम वर्सा ले रहे हो। भारत-वासियों को स्वर्ग का वर्सा मिल रहा है। कलष माताओं पर रखा है। माता गुरू बिगर किसका कल्याण नहीं होता। जिसके लिए गाते हैं त्वमेव माताश्च पिता.. उनको फिर सर्वव्यापी कहना कितनी बड़ी भूल है! मात-पिता को फिर बेअन्त कह देते हैं। गाते भी हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे, तुम्हारी कृपा से सुख घनेरे। फिर बाप पर दोष कैसे रखते हो। बाप तो आकर पतित से पावन बनाते हैं। पतित रावण बनाते हैं। अभी रावण राज्य खत्म हो रामराज्य फिर शुरू हो जायेगा। इस चक्र को अच्छी रीति समझना है। बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी बेहद का बाप ही सुनायेंगे। यह है रुद्र ज्ञान यज्ञ। कृष्ण का यज्ञ नहीं है। वही गीता का राजयोग है परन्तु कृष्ण कोई ज्ञान नहीं देते हैं। यह है रुद्र शिव भगवानुवाच। रुद्र ज्ञान यज्ञ से ही विनाश ज्वाला प्रगट हुई है। अब तुम बच्चे आये हो मात-पिता से स्वर्ग का वर्सा लेने। यह कोई अन्धश्रधा नहीं है। युनिवर्सिटी वा कॉलेज में कोई अन्धश्रधा होती नहीं। यहाँ पर अन्धश्रधा की बात नहीं। तुम बाप से बेहद का वर्सा लेने मनुष्य से देवता बनने आये हो। यह गॉड फादरली युनिवर्सिटी है। बाप समझाते हैं यह भारत दैवी राजस्थान था। हीरे जवाहरों के महल बनते थे। भक्ति मार्ग में भी सोमनाथ का मन्दिर कितना बड़ा बनाया है। उनसे पहले क्या होगा। अभी तो भारत कंगाल है। फिर सिरताज बनाना बाप का ही काम है। अभी तुम बच्चे जानते हो हम मात-पिता के सम्मुख बैठे हैं और 21 जन्मों का सुख पा रहे हैं। बाप कहते हैं - हे आत्माओं, अब तुम मुझे याद करो मैं तुम्हारा गाइड और लिबरेटर हूँ। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है - यह तो बच्चों को समझाया जाता है। इसमें अन्धश्रधा की तो बात ही नहीं। तुम्हारा है सतोप्रधान बेहद का सन्यास। तुम पुरानी दुनिया को बुद्धि से छोड़ते हो इसलिए बाप कहते हैं सर्व धर्मानि.... देह सहित देह के जो भी संबंध हैं सबको भूल अपने को अशरीरी आत्मा समझो। बाप कहते हैं इस देह का भान छोड़ो। मुझ बाप को याद करने से ही तुम्हारे पाप भस्म होंगे। निरन्तर मुझे याद करो और कोई उपाय नहीं। अन्त तक याद करना है। माया जीते जगत जीत बनना है। माया पर जीत एक शिवबाबा ही पहना सकते हैं।

अच्छा! अब बाप शिव शक्तियों द्वारा भारत पर अविनाशी बृहस्पति की दशा लाते हैं। बाप कहते हैं - मैं इस तन का लोन लेकर इनका नाम ब्रह्मा रखता हूँ। तुम ब्रह्माकुमार कुमारियां वर्सा लेते हो शिवबाबा से। याद भी शिवबाबा को ही करना है। वह कहते हैं मेरा नाम एक ही शिव है। तुम भी आत्मा हो परन्तु तुम शरीर लेते और छोड़ते हो इसलिए जन्म बाई जन्म तुम्हारे नाम बदलते हैं। 84 जन्म लेंगे तो 84 नाम पड़ेंगे। सबके तो 84 जन्म नहीं होंगे। कोई के 80, कोई के 60, कोई के 5-6 जन्म भी हो सकते हैं। मेरा नाम एक ही है शिव। शिवबाबा को याद करते रहो तो विकर्म विनाश होंगे। योग अग्नि बिगर कोई पावन बन नहीं सकते। तुमने प्रतिज्ञा की है - बाबा, हम पवित्र बन भारत को पावन बनाए फिर राज्य करेंगे। शिवबाबा को याद नहीं करते तो गोया अपने को पतित बनाते हैं इसलिए फिर धर्मराज की बहुत कड़ी सजा खानी पड़ेगी। तुम्हारे पर बड़ी रेसपान्सिबिलिटी है। बाप को याद करते रहना, यह है रूहानी यात्रा। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) निरन्तर एक बाप की याद से मायाजीत जगतजीत बनना है। पवित्र बनकर भारत को पवित्र बनाना है।
2) बुद्धि से बेहद पुरानी दुनिया का सन्यास करना है। इस देह-भान को भूलने का अभ्यास करना है। देही-अभिमानी रहना है।
वरदान:-
कलियुगी वायुमण्डल में रहते हुए उसके वायब्रेशन से सेफ रहने वाले स्वराज्य अधिकारी भव
स्वराज्य अधिकारी उसे कहा जाता जिसे कोई भी कर्मेन्द्रिय अपनी तरफ आकर्षित न करे, सदा एक बाप की तरफ आकर्षित रहे। किसी भी व्यक्ति व वस्तु की तरफ आकर्षण न जाए। ऐसे राज्य अधिकारी ही तपस्वी हैं, वही हंस, बगुलों के कलियुगी वायुमण्डल में रहते हुए सदा सेफ रहते हैं। जरा भी दुनिया के वायब्रेशन, उन्हें आकर्षित नहीं करते। सब कम्पलेन समाप्त हो जाती हैं।
स्लोगन:-
बुरे को अच्छे में बदल देना ही ऊंच ब्राह्मणों की श्रेष्ठ शक्ति है।
मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य – 

'ओम् शब्द का यथार्थ अर्थ क्या है?"

जब हम ओम् शान्ति शब्द कहते हैं तो पहले पहले ओम् शब्द के अर्थ को पूर्ण रीति से समझना है। अगर कोई से पूछा जाए ओम् का अर्थ क्या है? तो वो लोग ओम् का अर्थ बहुत ही लम्बा चौड़ा सुनाते हैं। ओम् का अर्थ ओंकार बड़े चौड़े आवाज़ से सुनाते हैं, इस ओम पर फिर लम्बा चौड़ा शास्त्र बना देते हैं परन्तु वास्तव में ओम् का अर्थ कोई लम्बा चौड़ा नहीं है। अपने को तो स्वयं परमात्मा ओम् का अर्थ बहुत ही सरल और सहज अर्थ से समझाते हैं। वो भी अर्थ परमात्मा से मिलने के लिये ही समझाते हैं। परमात्मा साफ कहते हैं बच्चे ओम् का अर्थ है मैं आत्मा हूँ, मेरा असली धर्म शान्त स्वरूप है। अब इस ओम् के अर्थ में उपस्थित रहना है, तो ओम् का अर्थ मैं आत्मा परमात्मा की संतान हूँ। मुख्य बात यह हुई कि ओम् के अर्थ में सिर्फ टिकना है बाकी मुख से बैठ ओम् का उच्चारण नहीं करो, यह निश्चय बुद्धि में रखकर चलना है। ओम् का जो अर्थ है उस स्वरूप में स्थित रहना है, बाकी वो लोग भल ओम् का अर्थ लम्बा सुनाते हैं मगर उसके स्वरूप में स्थित नहीं रहते परन्तु हम तो ओम् का स्वरूप जानते हैं, तब ही उस स्वरूप में स्थित होते हैं। हम यह भी जानते हैं कि परमात्मा बीजरूप है और उस बीजरूप परमात्मा ने इस सारे झाड़ को कैसे रचा हुआ है, उसकी सारी नॉलेज हमें अभी मिल रही है। अच्छा। ओम् शान्ति।