Tuesday, June 26, 2018

26-06-18 प्रात:मुरली

26-06-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - अशरीरी बनने की मेहनत करो, अशरीरी अर्थात् कोई भी दैहिक धर्म नहीं, सम्बन्ध नहीं, अकेली आत्मा बाप को याद करती रहे"
प्रश्नः-
तुम बच्चों में 100 परसेन्ट बल कब आयेगा, उसका पुरुषार्थ क्या है?
उत्तर:-
तुम बच्चे जब याद की दौड़ी लगाते अन्तिम समय पर पहुँचेंगे, तब 100 परसेन्ट बल आ जायेगा, उस समय किसको भी समझायेंगे तो फौरन तीर लग जायेगा। इसके लिए देही-अभिमानी बनने का पुरुषार्थ करो, अपने दिल दर्पण में देखो कि पुराने सब खाते याद द्वारा भस्म किये हैं!
गीत:-
तू प्यार का सागर है...  
ओम् शान्ति।
अब बच्चे जानते हैं, अल्फ (बाप) आया हुआ है। गायन भी है ना - बाप से एक सेकेण्ड में जीवन्मुक्ति अर्थात् स्वर्ग की बादशाही मिलती है क्योंकि बाप है स्वर्ग का रचयिता। सेकेण्ड में जीवन्मुक्ति बाप से ही मिलती है। मनुष्य को मनुष्य से नहीं मिलती। बच्चा पैदा हुआ और वारिस बना। पहले-पहले जब कोई आते हैं तो उनसे फॉर्म भराया जाता है कि आत्मा का बाप कौन है? कहा भी जाता है जीवात्मा, पुण्य आत्मा.....। ऐसे नहीं कहा जायेगा - जीव परमात्मा, पाप परमात्मा, पुण्य परमात्मा। नहीं, महात्मा, पुण्यात्मा कहा जाता है। गाया भी जाता है आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल.... तो जरूर परमात्मा को ही आना है दु:ख से लिबरेट करने। तो पहले-पहले कोई आये तो उनसे फॉर्म भराया जाता है - तुम्हारी आत्मा का बाप कौन है? शरीर का बाप कौन है? दो चीज अलग-अलग हैं - मैं और मेरा। मैं आत्मा, मेरा शरीर। अहम् आत्मा का रहने का स्थान कहाँ है? फिर तुम्हारी आत्मा का बाप कौन है? ऐसे नहीं कहा जायेगा परमात्मा का बाप कौन है? पहले अल्फ को जानना है। वह है ट्रूथ। ज्ञान का सागर। वह सबका बाप है। कोई मनुष्य, जज आदि को भी पता नहीं कि हम आत्मा हैं। आत्मा ही शरीर के आरगन्स द्वारा कहती है - मैं जज हूँ, मैं सर्जन हूँ। आत्म-अभिमानी एक बाप ही बनाते हैं। अभी तुम जानते हो हम आत्मा हैं। बाकी यह सब शरीर के सम्बन्ध हैं। शरीर के सम्बन्ध में भी यह माँ, यह बाप.... लगते हैं। आत्मा के सम्बन्ध में भाई-भाई हैं। पहले तो यह समझाना चाहिए। गाया भी जाता है सेकेण्ड में जीवन्मुक्ति का वर्सा। जीवन्मुक्ति कौन देने वाला है? सतयुग में है जीवन्मुक्ति, कलियुग में है जीवनबन्ध। यह भी समझाना पड़े। तो यहाँ फार्म भराने का कायदा बड़ा अच्छा है।

तुम बच्चे जानते हो हम आत्माओं के बाप का यहाँ यादगार है। वह निराकार हम आत्माओं का बाप है। हम साकार हैं। निराकार का भी यादगार है। तो जरूर आया होगा ना। पतित को पावन बनाने वाला, पुराने को नया बनाने वाला। दुनिया नई से फिर पुरानी होती है। दुनिया एक ही है। जरूर दुनिया का रचयिता एक होगा, दो नहीं हो सकते। गॉड इज क्रियेटर। वह पुरानी दुनिया को नया बनाते हैं। नई दुनिया अथवा भारत स्वर्ग था। गॉड इज वन। वर्ल्ड इज वन। सतयुग था, अब कलियुग है। प्राचीन भारत था तो जरूर नई दुनिया रचने वाले ने भारत को नया बनाया है। पहले जब कोई आते हैं तो उनको यह राज़ समझाना है। तुम आत्मा हो, आत्मा पुनर्जन्म लेती रहती है। बाप आकर देही-अभिमानी बनाते हैं। मैं जज हूँ, बैरिस्टर हूँ अथवा मैं क्रिश्चियन धर्म का हूँ। यह सब शरीर के धर्म हैं। आत्मा अशरीरी है तो कोई सम्बन्ध नहीं है। कोई धर्म नहीं है। आत्मा अलग कर्मातीत हो जाती है। फिर नये सिर माँ-बाप आदि सम्बन्ध बनते हैं। चोला बदला, पार्ट बदला, माँ-बाप सब नये बन जाते हैं। आत्मा पुनर्जन्म लेती रहती है। वास्तव में आत्मा निराकार है, निराकारी दुनिया में रहती है। फिर आत्मा शरीर धारण करती है तो कहते हैं यह मेरा नाम रूप है। अब बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं - तुम अपने को आत्मा समझो। तुमको वापिस जाना है। तुमने 84 जन्मों का पार्ट बजाया, तुम बैरिस्टर बने, राजा बने। अब तुम विश्व के मालिक बनते हो। आत्माओं से बात परमपिता परमात्मा ही कर सकते हैं। यह बातें कोई की बुद्धि में नहीं हैं। वह तो कह देते आत्मा सो परमात्मा है। बाप आकर सृष्टि के चक्र का राज़ समझाते हैं। अभी तुम जानते हो कि बरोबर हमने 84 जन्मों का चक्र लगाया है। अब यह अन्तिम जन्म है, वापस घर जाना है। मनुष्य कोशिश भी मुक्तिधाम में जाने की करते हैं। हम आत्मा मुक्तिधाम की रहवासी हैं। परन्तु देह-अभिमान होने के कारण जानते नहीं। हम आत्मा निराकारी दुनिया में रहते हैं। वहाँ से आये हैं पार्ट बजाने। अब भगवान को याद करते हैं, भगवान के पास जाने के लिए। तो पहले-पहले यह समझाना है - आत्मा और शरीर दो चीज़ें हैं। आत्मा में मन-बुद्धि है, चैतन्य है। आत्मा अविनाशी है। शरीर तो विनाशी है। सब आत्माओं का बाप वह निराकार परमपिता परमात्मा है नॉलेजफुल। उनको ही गीता का भगवान कहा जाता है। सब भक्तों का प्यार है, प्यार के सागर परमात्मा से। भक्तों को कितना खैंचते हैं। भगवान तो एक होना चाहिए। इतने सब भक्त हैं। सभी पतित हैं। पतित-पावन को याद करते हैं, तो जरूर एक निराकार होगा ना। बाकी सब उनकी रचना हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर भी रचना हैं। मनुष्य सृष्टि भी रचना है। ऊंच ते ऊंच बाप परमधाम का रहने वाला है। जैसे आत्मा स्टार है, वैसे परमपिता परमात्मा भी स्टार है।

बच्चों को समझाया है वर्ल्ड भी एक है, उनको रिपीट करना है। जो भी धर्म हैं सबको चक्र लगाना है। सब एक्टर पार्टधारी हैं। कोई का भी पार्ट बदल नहीं सकता। तो पार्ट बजाना ही है। पहले-पहले यह समझाना बहुत जरूरी है कि आत्मा का बाप कौन है? कहते हैं ओ गॉड फादर। यह किसने कहा? आत्मा शरीर द्वारा बोलती है। आत्मा का बाप परमपिता परमात्मा है। यह है मुख्य बात। तुम्हें कोई से जास्ती डिबेट आदि नहीं करनी है। है ही सेकेण्ड में जीवन्मुक्ति। बाप बच्चों को समझाते हैं - बच्चे, तुम देही-अभिमानी बनो। इस समय यह पतित दुनिया है, गॉड फादर को न जानने कारण आरफन बन पड़े हैं। सतयुग में तो प्रालब्ध भोगते हैं। वहाँ बाप को याद करने की कोई दरकार ही नहीं। दुनिया को यह पता नहीं कि भारतवासियों को बाप से प्रालब्ध मिलती है। भारत स्वर्ग बन जाता है। नर्क बनाने वाली है माया (रावण)। भारत को नये से फिर पुराना होना ही है। समझो मकान की आयु 100 वर्ष होगी तो 50 वर्ष के बाद पुराना कहेंगे। वैसे दुनिया नये से पुरानी बनती है। फिर नई कौन बनायेंगे? रिपीट कैसे होती है? दुनिया पावन थी, किसने तो बनाया होगा। पतित-पावन एक ही बाप है। वही पावन बनायेंगे। पतित कौन बनाते हैं? पावन कौन बनाते हैं? यह कोई भी समझ नहीं सकते। अभी तुम बाप के बने हो। बाप माना बाप। बाप को आधा पौना थोड़े-ही माना जाता है। परन्तु माया देह-अभिमान में ले आती है। मेहनत सारी अशरीरी बन बाप को याद करने में है। नहीं तो माया बड़ी दुश्मन है। याद के बल से ही तुम राज्य लेते हो। याद द्वारा ही तुम बाप से वर्सा लेते हो। याद का ही बल है। बाप कहते हैं देह सहित सभी सम्बन्धों को भूल मेरे को याद करो क्योंकि मेरे पास वापिस आना है। सतयुग है जीवन्मुक्त, कलियुग है जीवन बन्ध। पाँच विकारों रूपी रावण का बन्धन है। वहाँ यह होता नहीं। बाप आकर लिबरेट करते हैं।

तुम जानते हो - भारत में सुप्रीम पीस-प्रासपर्टी थी। अब नहीं है। तो जरूर सुप्रीम फादर ने स्थापन किया होगा। आया होगा। संगम पर आकर भारत को जीवन्मुक्त बनाते हैं। बाकी सब धर्म तो बाइप्लाट्स हैं। यह भारत ओल्ड है। नये भारत में देवी-देवताओं का राज्य था, एक धर्म था। उसको स्वर्ग कहा जाता है। तो पहले-पहले बाप का परिचय देने से फिर आरग्यू नहीं करेंगे। बाप तो सत ही बताते हैं। उनकी है श्रीमत। नेक्स्ट है ब्रह्मा की मत। जरूर बाप से ब्रह्मा को मत मिलती है। ब्रह्मा अब रात में है। दिन में था। ब्रह्मा का दिन और रात तो ब्रह्माकुमार और कुमारियों का भी दिन और रात। प्रजापिता ब्रह्मा की रात तो जरूर बच्चों की भी रात होगी। बाप समझाते हैं मैं आता हूँ, ब्रह्मा के मुख से पहले-पहले ब्राह्मणों को रचता हूँ। ब्राह्मण वर्ण चाहिए। यह यज्ञ रचा है ना। कृष्ण यज्ञ नहीं कहेंगे। यह है रुद्र ज्ञान यज्ञ। रुद्र माला। बाप शिव ने इस समय यज्ञ रचा है। यह बाप बैठ पढ़ाते हैं। बच्चे, हम तुमको नर से नारायण, राजाओं का राजा बनाता हूँ। यह है राजयोग। कृष्ण को परमात्मा नहीं कहेंगे। परमात्मा राजयोग सिखाते हैं जिससे तुम श्रीकृष्ण के समान बनते हो। मुख्य बात है पहले-पहले बच्चों को देही-अभिमानी बनना है। नहीं तो किसको तीर लगा नहीं सकेंगे। देही-अभिमानी हो बाप को याद करने से ही बल मिलेगा। जब तुम अच्छी रीति पहलवान हो जायेंगे तो भीष्म पितामह आदि को बाण लगेंगे। धीरे-धीरे होना है। अभी तुम्हारे में बल आता जाता है। अन्त तक 100 परसेन्ट बनना है। दौड़ी लगानी है। अभी तुम पढ़ रहे हो। बहुत पहलवान हो जायेगे। समझाना चाहिए तुम तो जीव आत्मा हो, परमात्मा तो फादर एक है। फिर तुम लोग आत्मा सो परमात्मा क्यों कहते हो? पतित-पावन परमात्मा तो एक ही है। तुम तो पुनर्जन्म लेने वाले हो। परमात्मा को तो अपना शरीर नहीं है। वह है रुद्र शिव। मनुष्य को परमात्मा कह नहीं सकते। आत्मा के शरीर का नाम पड़ता है। आत्मा तो सबकी एक जैसी है। कहाँ आत्मा ने बैरिस्टर का शरीर लिया है। बाकी ऐसे नहीं आत्मा कुत्ता, बिल्ली आदि बनती है। बाप कहते हैं - लाडले बच्चे, मनुष्य, मनुष्य ही बनते हैं। जानवरों की वैराइटी अलग है। इस समय मनुष्य जैसे जानवर से भी बदतर हैं। माया ने खाना खराब कर दिया है ड्रामा अनुसार, अब बाप आकर खाना आबाद करते हैं।

परमात्मा को मात-पिता भी भारतवासी कहते हैं। बाहर वाले कहते हैं ओ गॉड फादर। अच्छा, फादर है तो साथ में मदर भी होनी चाहिए। ईव कहते हैं। परन्तु वह कौन है? ईव किसको कहा जाये? मम्मा को ईव नहीं कहेंगे। मम्मा तो जगदम्बा है। ईव इनको (ब्रह्मा) ही कहेंगे क्योंकि इनके मुख द्वारा रचे, तब तो तुम मात-पिता सिद्ध हो। एक को ही मात-पिता कहा जाता है। जगत अम्बा की भी माँ होनी चाहिए। वह भी ह्यूमन है। यह सब बातें धारण तब हों, जब निरन्तर देही-अभिमानी बनने का पुरुषार्थ करे। याद नहीं तो धारणा हो नहीं सकती। माया बड़ी जबरदस्त है, याद नहीं करेंगे तो घूंसा मारती रहेगी। दस-बारह वर्ष वाले को भी माया घूंसा मार देती है। मुंह फिरा देती है। भूल जाते हैं। फिर कहते हैं तकदीर में नहीं था। गीत है ना - आये हैं तकदीर बना करके.. कौनसी तकदीर बनाकर आये हो? लक्ष्मी को वरने की। बापदादा कहते हैं दिल दर्पण में देखो - तुम लायक हो? बाप मिसल मीठे बने हो? बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो। जितना मुझ बाप को याद करेंगे, उतना जमा होगा। याद नहीं करेंगे तो जमा नहीं होगा। याद से ही पुराना खाता भस्म होता जायेगा। योग अग्नि माना याद। अहम् आत्मा परमात्मा को याद करती हैं। बाप भी कहते हैं अपने को आत्मा निश्चय कर मुझे याद करो। आत्मा सो परमात्मा कहना भूल है। परमात्मा कभी पुनर्जन्म नहीं लेते हैं। तुम तो सदा पुनर्जन्म लेते हो। मेरा जन्म दिव्य अलौकिक है। मैं साधारण तन में प्रवेश करता हूँ। नहीं तो ब्राह्मण कहाँ से आयें। प्रजापिता ब्रह्मा भी बुजुर्ग चाहिए। छोटा बच्चा तो नहीं चाहिए। कृष्ण तो छोटा बच्चा है। राधे-कृष्ण को छोटा ही दिखाते हैं। छोटे बच्चे को इतने सब प्रजापिता कैसे कह सकते हैं। तुम मात-पिता कृष्ण को कैसे कहेंगे। अभी परमपिता परमात्मा गाइड बनकर आया है, सब आत्माओं को ले जायेंगे। बाप तो अच्छी रीति समझाते हैं। पहले-पहले फॉर्म भराओ। मूल बात है गीता का भगवान कौन है? यह यज्ञ किसने रचा? रुद्र यज्ञ वा ज्ञान यज्ञ कहेंगे। परमात्मा तो है ज्ञान सागर, सबका फादर। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) देही-अभिमानी बन, देह के सब धर्म भूल हम आत्मा भाई-भाई हैं - यह पक्का करना है। बाप मिसल मीठा बनना है।
2) देही-अभिमानी बन बाप का परिचय देना है। सेकेण्ड में जीवन्मुक्ति का वर्सा बाप से मिलता है। डिबेट किससे भी नहीं करनी है।
वरदान:-
उमंग-उत्साह द्वारा विघ्नों को समाप्त करने वाले बाप समान समीप रत्न भव
बच्चों के दिल में जो उमंग-उत्साह है कि मैं बाप समान समीप रत्न बन सपूत बच्चे का सबूत दूँ - यह उमंग-उत्साह उड़ती कला का आधार है। यह उमंग कई प्रकार के आने वाले विघ्नों को समाप्त कर सम्पन्न बनने में सहयोग देता है। यह उमंग-उत्साह का शुद्ध और दृढ़ संकल्प विजयी बनाने में विशेष शक्तिशाली शस्त्र बन जाता है इसलिए दिल में सदा उमंग-उत्साह को वा इस उड़ती कला के साधन को कायम रखना।
स्लोगन:-
जैसे तपस्वी सदा आसन पर बैठते हैं ऐसे आप एकरस अवस्था के आसन पर विराजमान रहो।