Sunday, June 10, 2018

11-06-18 प्रात:मुरली

11-06-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे-देह सहित जो कुछ भी तुम्हारा है उससे ममत्व मिटाओ, ट्रस्टी होकर रहो इसको ही जीते जी मरना कहा जाता है”
प्रश्न:
संगमयुगी ब्राह्मणों का टाइटिल कौन-सा है, बाप द्वारा उन्हें कौन-सी बेस्ट प्राइज मिलती है?
उत्तर-
तुम संगमयुगी ब्राह्मण हो राजऋषि, राजयोगी। तुम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण यज्ञ की सम्भाल करने के निमित्त हो, तुम्हें बड़े से बड़े सेठ द्वारा बहुत बड़ी दक्षिणा मिलती है। स्वर्ग की बादशाही बेस्ट प्राइज है।
गीत:
मरना तेरी गली में....  
ओम् शान्ति।
बेहद का बाप बैठकर बेहद के बच्चों को जीते जी मरने की अच्छी-अच्छी प्वाइन्ट्स सुनाते हैं। बच्चों ने गीत सुना कि जीते जी मरना है। काशी में बलि चढ़ते हैं। वह तो शरीर को खत्म कर देते हैं। वह कोई ज्ञान और योग आदि नहीं सीखते हैं। यहाँ तो जीते जी बाप का बनना है। ज्ञान सुनने लिए जीते जी देह सहित सब बन्धन तोड़ अपने को आत्मा समझना है। बाप अभी आत्माओं से बात करते हैं। बच्चे अभी यह पुरानी दुनिया, पुराना शरीर सब कुछ मेरे हवाले कर दो। बस, हम तो बाबा के बन गये। तुम जीते जी कह रहे हो-हम शिवबाबा के हैं। हम अभी वानप्रस्थी प्रैक्टिकल में हैं। वह वानप्रस्थी घर छोड़ जाकर हरिद्वार में बैठते हैं। फिर भी इस मृत्युलोक में ही जन्म लेते हैं। अभी बाप समझाते हैं कि तुमको अब इस मृत्युलोक में जन्म नहीं मिलना है। मृत्युलोक, कलियुगी दुनिया मुर्दाबाद। अमरलोक, सतयुगी दुनिया जिन्दाबाद होती है इसलिए बाप कहते हैं रहो भल गृहस्थ व्यवहार में, सिर्फ देह सहित जो कुछ तुम्हारा है, इससे ममत्व मिटाओ। समझो, हम सब कुछ शिवबाबा को देते हैं। सब कुछ शिवबाबा का ही है। फिर शिवबाबा कहते हैं अच्छा, ट्रस्टी होकर सम्भालो। समझो, शिवबाबा की भण्डारी से हम अपना शरीर निर्वाह करते हैं। अज्ञान काल में भी कहते हैं ना सब कुछ परमात्मा का ही है। परमात्मा का ही दिया हुआ है। फिर कोई बच्चा मर जाता था तो रो लेते थे। अब बाप कहते हैं पुरानी चीज की याद भूल जाओ। एक बाप को याद करो। जो बाप नई दुनिया के लिए नया राज्य-भाग्य देते हैं। घर गृहस्थ में रहते समझो यह सब कुछ शिवबाबा का है। हम शिवबाबा के भण्डारे से खाते हैं। हम श्रीमत पर चलते हैं। कहेंगे बाबा हम मोटर लेवें? हाँ बच्चे, भल लो। जो बच्चे समझते हैं सब कुछ बाबा का है, तो वह राय पूछते हैं। जीते जी मरना इसको कहा जाता है। भक्ति मार्ग में भी शिवबाबा के आगे बलि चढ़ते थे परन्तु यह ज्ञान नहीं था। यहाँ तो परमपिता परमात्मा बैठ ज्ञान सुनाते हैं। कितना सहज रीति 21 जन्मों के लिए वर्सा देते हैं! बाबा कहते हैं मैं कब आया था-यह कोई जानते नहीं। कहते भी हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था, अब वह स्वर्ग किसने स्थापना किया? देवी-देवतायें स्वर्ग में कहाँ से आये? गाते भी हैं मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार। वह कब आये? जरूर आयेंगे कलियुग के अन्त और सतयुग के आदि के संगम पर। बाप कहते हैं अब तुमको मनुष्य से देवता बनाने आया हूँ। इतने ढेर पढ़ने आते हैं। इसमें अन्धश्रद्धा की बात नहीं। यह दूसरे सतसंगों मुआिफक नहीं है। सत्य बाप बैठ बच्चों को पढ़ाते हैं। बाबा ने समझाया है भक्ति मार्ग में भी बरोबर दो बाप रहते हैं। एक जिस्म का लौकिक बाप, दूसरा आत्माओं का पारलौकिक बाप। आत्मायें उस पारलौकिक बाप को याद करती हैं-ओ गॉड फादर, भिन्न-भिन्न नाम रूप से याद करती हैं। लौकिक बाप से द्वापर से लेकर जन्म बाई जन्म वर्सा लेते आये हो। ऐसे तो नहीं सतयुग में भी लौकिक बाप का वर्सा लेते आये हैं। नहीं, सतयुग में जो लौकिक बाप से वर्सा लेते हैं वह इस समय की यहाँ की कमाई है। यहाँ तुम इतनी कमाई करते हो जो 21 जन्मों लिए वर्सा ले लेते हो। सतयुग में वर्सा तुम अभी के पुरूषार्थ से पाते हो। बेहद के बाप से बेहद का वर्सा पाते हो। बाप ही पतित दुनिया को पावन दुनिया बनाते हैं। यह लक्ष्य सोप है, जिससे पवित्र बनते हैं। बाप कहते हैं अपने को अशरीरी समझो। तुम आत्मायें कानों से सुनती हो। सतयुग-त्रेता का 21 जन्मों का वर्सा अभी पारलौकिक बाप से मिलता है। फिर द्वापर से लेकर लौकिक बाप से अल्पकाल के लिए वर्सा लेते आये हो। भिन्न नाम, रूप, देश, काल से। याद भल उस पारलौकिक बाप को करते। आत्मा याद करती है, कहती है यह मेरा शरीर लौकिक बाप ने दिया है। तो दो बाप हुए ना। अभी तुम बच्चे जानते हो कि तीसरा बाप भी है प्रजापिता ब्रह्मा। तुम प्रैक्टिकल में ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हो। एक लौकिक बाप, दूसरा पारलौकिक निराकारी बाप, तीसरा है यह अलौकिक बाप। प्रजापिता गाया हुआ है। परन्तु मनुष्य जानते नहीं। समझते हैं ब्रह्मा तो सूक्ष्मवतनवासी है। तुम जानते हो ब्रह्मा तो साकारी बाप है। अब तुम परलोक जाने लिए तैयारी कर रहे हो। तुम जीते जी सभी वानप्रस्थी हो। वाणी से परे जाना है। यह शरीर छोड़ जाना है जरूर। मौत सबका होना है। मनुष्य वानप्रस्थ लेते हैं, साधू-सन्त आदि से मन्त्र लेते हैं। परन्तु वह जानते नहीं कि यह शरीर छोड़कर हम स्वीट होम जायेंगे। यह जरूर तुम जानते हो अभी हमको आतुरवेला (उतावली) होती है कि यह पुराना शरीर छोड़ हम आत्मा बाप की याद में रहने से पावन बन बाबा के पास जायेंगे। बाबा से 21 जन्मों के लिए वर्सा लेंगे। तो लौकिक बाप भी है, ब्रह्मा बाबा भी है तो शिवबाबा भी है। तीनों बाप हैं ना बरोबर। इसमें अन्धश्रद्धा की तो बात नहीं।

भ्रमरी विष्टा के कीड़े को ले आती है, आकर भूँ-भूँ करती है फिर उन कीड़ों में जो उनकी जात वाले होते हैं वह आप समान बन जाते हैं। बाकी जो और जात वाले होते हैं वह सड़ जाते हैं। यहाँ भी तुम्हारे पास जो आते हैं उनमें भी जो देवीदेवता धर्म वाला होगा, उनको अच्छी रीति समझ में आयेगा। बाकी की बुद्धि में बैठेगा नहीं। वह है भ्रमरी और तुम हो ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ। तुम्हारा धन्धा है-विषय सागर के विकारी कीड़ों को ले आकर भूँ-भूँ करना। भूँ-भूँ क्या करना है? यह तुम्हारा पारलौकिक बाप है। बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुम बच्चों को वर्सा देने। हम जो भी ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हैं बेहद के बाप से वर्सा ले रहे हैं। तुम भी लो। अभी जाना है निर्वाणधाम में, जहाँ से आकर पार्ट बजाया है। यह बहुत जन्मों के अन्त के जन्म का भी अन्त है। अभी तुम अमरलोक जाने के लिए अमरकथा सुन रहे हो। ज्ञान का सागर एक ही परमपिता परमात्मा है। ब्रह्मा ज्ञान सागर वा विष्णु ज्ञान सागर वा शंकर ज्ञान सागर कभी नहीं कहेंगे। एक शिवबाबा ही ज्ञान का सागर है। ज्ञान सूर्य प्रगटा ... बाप कहते हैं-बच्चे, अब यह सारी पुरानी दुनिया कब्रिस्तान होनी है। परिस्तान की स्थापना हो रही है, जिसको स्वर्ग कहते हैं। तो यहाँ तुम आकर जीते जी मरते हो। बाबा, हम आपके हैं। आधा-कल्प से तुम बाप का आह्वान करते आये हो। कहते हो-बाबा, हम बहुत धक्के खाते आये हैं। यह ड्रामा की भावी। अब फिर मैं तुमको 21 जन्मों लिए वर्सा देता हूँ। तुम जानते हो बाप का बनने से मनुष्य से देवता बनते हैं। एक तो वारिस बनते हैं, जिनको मातेले कहा जाता है, दूसरे फिर हैं सौतेले, जो पवित्र नहीं बनते। सिर्फ बाबा-बाबा कहते हैं परन्तु जीते जी मरते नहीं। जो जीते जी मरते हैं वे हुए सगे। बाकी हैं लगे। यहाँ कोई विकारी आते हैं तो पूछा जाता है कि जीते जी मरे हो? प्रतिज्ञा करते हो कि बाकी आयु पवित्र रहेंगे? तब बाबा कहते हैं प्रतिज्ञा कर बाप के पास आयेंगे, तब वर्सा मिलेगा। मातायें अपना जीवन सफल बना रही हैं। यह राजधानी स्थापना हो रही है। शिवबाबा तो दाता है। तुम ऐसे मत समझो कि हम शिवबाबा को देते हैं। नहीं, हम उनसे स्वर्ग की बादशाही का वर्सा लेते हैं। शिवबाबा को थोड़े-ही मकान आदि बनाना है। वह तुम बच्चों के ही काम में लगाते हैं। इस दादा का भी सब कुछ मैंने काम में लगाया ना, जिससे मातायें, अबलायें अपना जीवन सफल बना रही हैं। तुम भविष्य 21 जन्मों के लिए कमाई कर रहे हो। लौकिक बाप का वर्सा मिलना बन्द होने का है। स्वर्ग में जो तुमको लौकिक बाप से वर्सा मिलेगा वह यहाँ की कमाई से। एक कहानी है-बाप ने पूछा तुम किसका हक खाती हो? तो बोली अपना। तो यहाँ भी हरेक अपना पुरूषार्थ कर अपना हक लेते हो। सबकी आत्मा हकदार है - 21 जन्मों के लिए वर्सा पाने। अज्ञान काल में बाप से बच्ची को वर्सा नहीं मिलता, सिर्फ बच्चे को वर्सा मिलता है। इस समय सब आत्माओं को वर्सा मिलना है। मेल हो वा फीमेल। गाया भी जाता है कुमारी वह जो 21 कुल का उद्धार करे। ब्रह्माकुमारकुमारि याँ तुम हो। तुम जानते हो कि हम भारत के मनुष्य मात्र को 21 जन्मों के लिए वर्सा दिलाने पुरूषार्थ कराते हैं श्रीमत पर। हर एक को समझाओ-अब लौकिक बाप से वर्सा लेना बन्द होता है। अब पारलौकिक बाप से 21 जन्मों के लिए वर्सा मिलता है। कितनी कमाई जबरदस्त है! कितनी अच्छी बातें समझने की हैं! दिल भी होती है पुरूषार्थ करें परन्तु माया फिर तूफान में ला देती है। माया का तूफान लगने से दीवे बुझ जाते हैं। बात बिल्कुल सहज है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है-यह है बुद्धि की बात। हमको बाप को याद करना है, शरीर का भान छोड़ देना है। तुम गुरू लोगों को याद करते हो। बहुत गुरू अपना चित्र बनाए शिष्यों को दे देते हैं-गले में डाल दो। ऐसे बहुत हैं। पति का भी चित्र निकाल गुरू का डाल देते हैं। बाबा कहते हैं यहाँ कोई चित्र डालने की बात नहीं। सिर्फ बाप को याद करना है। छोटे-बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। अब स्वीट होम जाना है जरूर। तो क्यों न हम प्रतिज्ञा करें पवित्र रहने की और याद में रहें तो विकर्म विनाश हों। कोई को भी दु:ख नहीं देना चाहिए। सबसे बड़ा दु:ख है काम कटारी चलाना। यह है ही कंसपुरी। कहा जाता है-कृष्णपुरी में काम कटारी नहीं चलती। यहाँ काम कटारी चलती है इसलिए इनको कंसपुरी कहा जाता है। बाकी कोई असुरों वा देवताओं की, पाण्डवों और कौरवों की लड़ाई लगी नहीं है। लड़ाई है यवनों और कौरवों की। बच्चों ने साक्षात्कार किया है। मक्खन हमको मिलना है। हम आकर राज्य-भाग्य करने वाले हैं। बच्चे पूछते हैं-बाबा, इतना मकान क्यों बनाते हो? अभी तो टर्न बाई टर्न आते हैं, तब पूरा होता है। अरे, एसलम लेने इतने सब बच्चे आकर कहाँ रहेंगे। दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती जाती है। प्रजापिता ब्रह्मा के तो बहुत बच्चे हो जायेंगे। शिवबाबा कहते हैं मैं कितना बचड़ेवाल हूँ। यह कोटों में से कोई जानते हैं। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। समझते भी हैं कि हम शिवबाबा से वर्सा ले रहे हैं फिर कभी कोई बच्चे मुरझा भी जाते हैं। बच्चे जानते हैं हम इस ब्रह्मा के द्वारा शिवबाबा की श्रीमत पर चलते हैं। बाप कहते यह लोन का शरीर बहुत जन्मों के अन्त के जन्म के भी अन्त का है। पुरानी दुनिया, पुराने तन में आया हूँ। अब मामेकम् याद करो। मैं गाइड बन आया हूँ। गॉड फादर को लिबरेटर कहा जाता है। मनुष्य, मनुष्य को कह न सके। सारी दुनिया को लिबरेट करते हैं। इस समय सारी विश्व लंका है, शोक वाटिका है। भल धनवान लोग समझते हैं हम स्वर्ग में हैं। परन्तु यह सब मिट्टी में मिल जायेगा। खुद भी अमेरिव्न लोग लिखते हैं कि हमें कोई विनाश के लिए प्रेर रहा है। बाम्ब्स बनवा रहे हैं। कितना भारी खर्च हो रहा है। कलियुग पूरा हो तो सतयुग जरूर चाहिए। अब फिर से स्थापना होती है। बाबा वही राजयोग सिखलाते हैं। तुम हो राजऋषि। वह हैं हठयोग ऋषि। राजयोगी सिवाए ब्राह्मणों के कोई कहला न सके। यह कहाँ लिखा हुआ थोड़ेही है कि राजयोगी ब्राह्मण थे। कृष्ण हो तो वह ब्राह्मण कैसे रचेंगे! ब्रह्मा हो तब तो मुख वंशावली ब्राह्मण बनें। यज्ञ ब्राह्मणों द्वारा ही रचा जाता है। बाबा कितना बड़ा सेठ है! कितनी बड़ी दक्षिणा मिलती है! दक्षिणा मिलती है स्वर्ग की राजाई। यह सबसे बेस्ट प्राइज है। ब्राह्मण ही फिर देवता बन जाते हैं। चाहे सूर्यवंशी बनो, चाहे चन्द्रवंशी बनो। बाबा कहते हैं तुम पूछ सकते हो-बाबा, कल अगर हमारा शरीर छूट जाये तो हम क्या पद पायेंगे? बाबा झट बता सकते हैं। अभी तो समय ही थोड़ा है। शरीर छूट जाये फिर आप ज्ञान थोड़े-ही ले सकेंगे। छोटा बच्चा क्या समझेगा। बच्चे अभी समझते हैं कि अब कलियुग पूरा हो सतयुग आना है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा स्मृति रखनी है कि यह हमारी वानप्रस्थ अवस्था है, हमें वाणी से परे स्वीट होम जाना है, अशरीरी बनने का अभ्यास करना है।
2) 21 जन्मों के लिए अपना हक लेने के लिए पवित्र रहने की प्रतिज्ञा करनी है। सदा श्रीमत पर चलना है। जीते जी मरना है।
वरदानः
व्यक्त भाव से ऊपर रह फरिश्ता बन उड़ने वाले सर्व बन्धनों से मुक्त भव
देह की धरनी व्यक्त भाव है, जब फरिश्ते बन गये फिर देह की धरनी में कैसे आ सकते। फरिश्ता धरती पर पांव नहीं रखते। फरिश्ता अर्थात् उड़ने वाले। उन्हें नीचे की आकर्षण खींच नहीं सकती। नीचे रहेंगे तो शिकारी शिकार कर देंगे, ऊपर उड़ते रहेंगे तो कोई कुछ नहीं कर सकता इसलिए कितना भी कोई सुन्दर सोने का पिंजड़ा हो, उसमें भी फंसना नहीं। सदा स्वतन्त्र, बंधनमुक्त ही उड़ती कला में जा सकते हैं।
स्लोगनः
असम्भव को सम्भव कर सफलता की अनुभूति करने वाले ही सफलता के सितारे हैं।