Wednesday, September 28, 2016

मुरली 29 सितंबर 2016

29-09-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– सत्य बाप सचखण्ड स्थापन करते हैं, तुम बाप के पास आये हो नर से नारायण बनने की सच्ची-सच्ची नॉलेज सुनने”
प्रश्न:
तुम बच्चों को अपने गृहस्थ व्यवहार में बहुत-बहुत सम्भाल कर चलना है– क्यों?
उत्तर:
क्योंकि तुम्हारी गति मत सबसे न्यारी है। तुम्हारा गुप्त ज्ञान है इसलिए विशाल बुद्धि बन सबसे तोड़ निभाना है। अन्दर में समझना है हम सब भाई-भाई वा भाई-बहिन हैं। बाकी ऐसे नहीं स्त्री अपने पति को कहे तुम मेरे भाई हो। इससे सुनने वाले कहेंगे इनको क्या हो गया। युक्ति से चलना है।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। रूहानी अक्षर न कह सिर्फ बाप कहें तो भी अन्डरस्टुड है यह रूहानी बाप है। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। सब अपने को भाई-भाई तो कहते ही हैं। तो बाप बैठ समझाते हैं बच्चों को। सबको तो नहीं समझाते होंगे। गीता में भी लिखा हुआ है भगवानुवाच। किसके प्रति? भगवान के हैं सब बच्चे। वह भगवान बाप है तो भगवान के बच्चे सब ब्रदर्स हैं। भगवान ने ही समझाया होगा। राजयोग सिखाया होगा। अभी तुम्हारी बुद्धि का ताला खुला हुआ है, तुम्हारे सिवाए ऐसे ख्यालात और कोई के चल न सकें। जिन-जिन को सन्देश मिलता जायेगा वह स्कूल में आते जायेंगे, पढ़ते जायेंगे। समझेंगे प्रदर्शनी तो देखी, अब जाकर ज्यादा सुनें। पहली-पहली मुख्य बात है ज्ञान सागर पतित-पावन, गीता ज्ञान दाता शिव भगवानुवाच। उनको यह पता पड़े कि इन्हों को सिखलाने वाला, समझाने वाला कौन है। वह सुप्रीम सोल, ज्ञान सागर निराकार है। वह है ही ट्रथ। वह सत्य ही बतायेगा, फिर उसमें कोई प्रश्न उठ ही नहीं सकता। तुमने सब छोड़ दिया, ट्रुथ के ऊपर। तो पहले-पहले तो इस पर समझाना है कि हमको परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा राजयोग सिखलाते हैं। यह राजाई पद है, जिसको निश्चय हो जायेगा कि जो सभी का बाप है वह पारलौकिक बाप बैठ समझाते हैं, वही सबसे बड़ी अथॉरिटी है। तो दूसरा कोई प्रश्न उठ ही नहीं सकता। वह है पतित-पावन। वह जब यहाँ आते हैं तो जरूर अपने टाइम पर आते होंगे। तुम देखते भी हो यह वही महाभारत की लड़ाई है। विनाश के बाद वाइसलेस दुनिया होनी है। यह मनुष्य जानते नहीं कि भारत ही वाइसलेस था। बुद्धि चलती नहीं। गॉडरेज का ताला लगा हुआ है। उसकी चाबी एक बाप के पास ही है इसलिए यह किसको पता नहीं है कि तुमको पढ़ाने वाला कौन है। दादा समझ लेते हैं, तब टीका करते हैं, कुछ बोलते हैं इसलिए पहले-पहले यह समझाओ– इसमें लिखा है शिव भगवानुवाच। वह तो है ही ट्रथ। बाप है ही नॉलेजफुल। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज समझाते हैं। यह शिक्षा अभी तुमको उस बेहद के बाप से मिलती है। वही सृष्टि का रचयिता है, पतित सृष्टि को पावन बनाने वाला है। तो पहले-पहले बाप का ही परिचय देना है। उस परमपिता परमात्मा से आपका क्या सम्बन्ध है। वह नर से नारायण बनने की सच्ची नॉलेज देते हैं। बच्चे जानते हैं बाप सत्य है, जो बाप ही सचखण्ड बनाते हैं। तुम यहाँ आए ही हो नर से नारायण बनने। बैरिस्टर पास जायेंगे तो समझेंगे हम बैरिस्टर बनने आये हैं। अभी तुमको निश्चय है हमको भगवान पढ़ाते हैं। कई निश्चय करते भी हैं फिर संशय बुद्धि हो जाते हैं, तो उनको सब कहते हैं तुम तो कहते थे– हमें भगवान पढ़ाते हैं। फिर भगवान को क्यों छोड़ आये हो? संशय आने से ही भागन्ती हो जाते हैं। कोई न कोई विकर्म करते हैं। भगवानुवाच– काम महाशत्रु है, उन पर जीत पाने से ही जगतजीत बनेंगे। जो पावन बनेंगे वही पावन दुनिया में जायेंगे। यहाँ है ही राजयोग की बात, तुम जाकर राजाई करेंगे। बाकी जो आत्मायें हैं वह अपना हिसाब चुक्तू कर वापिस चली जायेंगी। यह कयामत का समय है। अब यह बुद्धि कहती है– सतयुग की स्थापना जरूर होनी है। पावन दुनिया सतयुग को कहा जाता है। बाकी सब मुक्तिधाम में चले जायेंगे। उनको फिर अपना पार्ट रिपीट करना है। तुम भी अपना पुरूषार्थ करते रहते हो। पावन बन और पावन दुनिया का मालिक बनने के लिए। मालिक तो अपने को समझेंगे ना। प्रजा भी मालिक है। अभी प्रजा भी कहती है ना– हमारा भारत। तुम समझते हो अभी सब नर्कवासी हैं। अभी हम स्वर्गवासी बनने के लिए राजयोग सीख रहे हैं। सब तो स्वर्गवासी नहीं बनेंगे। बाप कहते हैं जब भक्ति मार्ग पूरा होगा तब ही मैं आऊंगा। मुझे ही आकर सब भक्तों को भक्ति का फल देना है। मैजारिटी तो भक्तों की है ना। सब पुकारते रहते हैं हे गॉड फादर। भक्तों के मुख से ओ गॉड फादर, हे भगवान– यह जरूर निकलेगा। अब भक्ति और ज्ञान में फर्क है। तुम्हारे मुख से कभी हे ईश्वर, हे भगवान नहीं निकलेगा। मनुष्यों को तो यह आधाकल्प की प्रैक्टिस पड़ी हुई है। तुम जानते हो वह हमारा बाप है, तुमको हे बाबा थोड़ेही कहना है। बाप से तुमको तो वर्सा लेना है। पहले तो यह निश्चय हो कि हम बाप से वर्सा लेते हैं। बाप बच्चों को वर्सा लेने के अधिकारी बनाते हैं। यह तो सच्चा बाप है ना। बाप जानते हैं हमने जिन बच्चों को ज्ञान अमृत पिलाए, ज्ञान-चिता पर बिठाय विश्व का मालिक देवता बनाया था वही काम-चिता पर बैठ भस्मीभूत हो गये हैं। अब मैं फिर ज्ञान-चिता पर बिठाए, घोर नींद से जगाए स्वर्ग में ले जाता हूँ। बाप ने समझाया है– तुम आत्मायें वहाँ शान्तिधाम और सुखधाम में रहती हो। सुखधाम को कहा जाता है वाइसलेस वर्ल्ड, सम्पूर्ण निर्विकारी। वहाँ देवतायें रहते हैं और वह है स्वीट होम, आत्माओं का घर। सभी एक्टर्स उस शान्तिधाम से आते हैं, यहाँ पार्ट बजाने। हम आत्मायें यहाँ की रहवासी नहीं हैं। वह एक्टर्स यहाँ के रहवासी होते हैं। सिर्फ घर से आकर ड्रेस बदली कर पार्ट बजाते हैं। तुम तो समझते हो हमारा घर शान्तिधाम है, जहाँ हम फिर वापिस जाते हैं। जब सभी एक्टर्स स्टेज पर आ जाते हैं तब बाप आकर सबको ले जायेंगे, इसलिए उनको लिबरेटर, गाइड भी कहा जाता है। दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है तो इतने सारे मनुष्य कहाँ जायेंगे। विचार तो करो– पतित-पावन को बुलाते हैं किसलिए? अपने मौत के लिए। दु:ख की दुनिया में रहने नहीं चाहते हैं, इसलिए कहते हैं घर ले चलो। यह सब मुक्ति को ही मानने वाले हैं। भारत का प्राचीन योग भी कितना मशहूर है, विलायत में भी जाते हैं प्राचीन राजयोग सिखलाने। क्रिश्चियन में बहुत हैं जो सन्यासियों का मान रखते हैं। गेरू कफनी की जो पहरवाइस है– वह है हठयोग की। तुमको तो घरबार छोड़ना नहीं है। न कोई सफेद कपड़े का बन्धन है। परन्तु सफेद अच्छा है। तुम भठ्ठी में रहे हो तो ड्रेस भी यह हो गई है। आजकल सफेद पसन्द करते हैं। मनुष्य मरते हैं तो सफेद चादर डालते हैं। तो पहले कोई को भी बाप का परिचय देना है। दो बाप हैं, यह बातें समझने में टाइम लेती हैं। प्रदर्शनी में इतना समझा नहीं सकेंगे। सतयुग में एक बाप, इस समय हैं तुमको तीन बाप, क्योंकि भगवान आते हैं प्रजापिता ब्रह्मा के तन में। वह भी तो बाप है सबका। अच्छा अब तीनों बाप में ऊंच वर्सा किसका? निराकार बाप वर्सा कैसे दें? वह फिर देते हैं ब्रह्मा द्वारा। ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते और ब्रह्मा द्वारा वर्सा भी देते हैं। इस चित्र पर तुम बहुत अच्छी रीति समझा सकते हो। शिवबाबा है, फिर यह प्रजापिता ब्रह्मा आदि देव, आदि देवी। यह है ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर। बाप कहते हैं मुझ शिव को ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर नहीं कहेंगे। मैं सबका बाप हूँ। यह है प्रजापिता ब्रह्मा। तुम हो गये भाई-बहिन, आपस में क्रिमिनल एसाल्ट कर न सकें। अगर दोनों की आपस में विकार की दृष्टि खींचती है तो फिर गिर पड़ते हैं, बाप को भूल जाते हैं। बाप कहते हैं-तुम हमारा बच्चा बन काला मुँह करते हो। बेहद का बाप बच्चों को समझाते हैं। तुमको यह नशा चढ़ा हुआ है। जानते हो गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है। लौकिक सम्बन्धियों को भी मुँह देना है। लौकिक बाप को तुम बाप कहेंगे ना। उनको तो तुम भाई नहीं कह सकते। आर्डनरी वे में बाप को बाप ही कहेंगे। बुद्धि में है कि यह हमारा लौकिक बाप है। ज्ञान तो है ना। यह ज्ञान बड़ा विचित्र है। आजकल करके नाम भी ले लेते हैं परन्तु कोई विजीटर आदि बाहर के आदमी के सामने भाई कह दो तो वह समझेंगे इनका माथा खराब हुआ है। इसमें बड़ी युक्ति चाहिए। तुम्हारा गुप्त ज्ञान, गुप्त सम्बन्ध है। अक्सर करके स्त्रियाँ पति का नाम नहीं लेती हैं। पति स्त्री का नाम ले सकते हैं। इसमें बड़ी युक्ति से चलना है। लौकिक से भी तोड़ निभाना है। बुद्धि चली जानी चाहिए ऊपर। हम बाप से वर्सा ले रहे हैं। बाकी चाचे को चाचा, बाप को बाप कहना पड़ेगा ना। जो ब्रह्माकुमार-कुमारी नहीं बने हैं वह भाई-बहन नहीं समझेंगे। जो बी.के. बने हैं, वही इन बातों को समझेंगे। बाहर वाले तो पहले ही चमकेंगे। इसमें समझने की बुद्धि अच्छी चाहिए। बाप तो बच्चों को विशालबुद्धि बनाते हैं। तुम पहले हद की बुद्धि में थे। अभी बुद्धि चली जाती है बेहद में। वह हमारा बेहद का बाप है। यह सब हमारे भाई-बहिन हैं। लेकिन घर में सासू को सासू ही कहेंगे, बहन थोड़ेही कहेंगे। घर में रहते बड़ी युक्ति से चलना है, नहीं तो लोग कहेंगे यह तो पति को भाई, सासू को बहन कह देते, यह क्या है? यह ज्ञान की बातें तुम ही जानो और न जाने कोई। कहते हैं ना– प्रभू तेरी गति मत तुम ही जानो। अब तुम उनके बच्चे बनते हो तो तुम्हारी गत मत तुम ही जानो। बड़ी सम्भाल से चलना पड़ता है। कहाँ कोई मूँझे नहीं। तो प्रदर्शनी में तुम बच्चों को पहले-पहले यह समझाना है कि हमको पढ़ाने वाला भगवान है। अब तुम बताओ भगवान कौन? निराकार शिव या देहधारी श्रीकृष्ण। जो गीता में भगवानुवाच है वह शिव परमात्मा ने महावाक्य उच्चारे हैं या श्रीकृष्ण ने? कृष्ण तो है स्वर्ग का पहला प्रिन्स। ऐसे तो कह नहीं सकते कि कृष्ण जयन्ती सो शिव जयन्ती। शिव जयन्ती के बाद फिर कृष्ण जयन्ती। शिव जयन्ती से स्वर्ग का प्रिन्स श्रीकृष्ण कैसे बना, वह है समझने की बात। शिव जयन्ती फिर गीता जयन्ती फिर फट से है कृष्ण जयन्ती क्योंकि बाप राजयोग सिखलाते हैं ना। बच्चों की बुद्धि में आया है ना। जब तक शिव परमात्मा ना आये तब तक शिव जयन्ती मना नहीं सकते। जब तक शिव आकर कृष्णपुरी स्थापन न करे तो कृष्ण जयन्ती भी कैसे मनाई जाये। कृष्ण का जन्म तो मनाते हैं परन्तु समझते थोड़ेही हैं। कृष्ण प्रिन्स था तो जरूर सतयुग में होगा ना। देवी-देवताओं की राजधानी होगी जरूर। सिर्फ एक कृष्ण को बादशाही तो नहीं मिलेगी ना। जरूर कृष्णपुरी होगी ना! कहते भी हैं कृष्णपुरी... और फिर यह है कंसपुरी। कृष्णपुरी नई दुनिया, कंसपुरी है पुरानी दुनिया। कहते हैं देवताओं और असुरों की लड़ाई लगी। देवताओं ने जीता। परन्तु ऐसे तो है नहीं। कंसपुरी खत्म हुई फिर कृष्णपुरी स्थापन हुई ना। कंसपुरी पुरानी दुनिया में होगी। नई दुनिया में थोड़ेही यह कंस दैत्य आदि होंगे। यहाँ तो देखो कितने मनुष्य हैं। सतयुग में बहुत थोड़े हैं। यह भी तुम समझ सकते हो, अभी तुम्हारी बुद्धि चलती है। देवताओं ने तो कोई लड़ाई की नहीं। दैवी सम्प्रदाय सतयुग में ही होते हैं। आसुरी सम्प्रदाय यहाँ हैं। बाकी न देवताओं और असुरों की लड़ाई हुई, न कौरवों और पाण्डवों की हुई है। तुम रावण पर जीत पाते हो। बाप कहते हैं- इन विकारों पर जीत पानी है तो जगतजीत बन जायेंगे। इसमें कोई लड़ना नहीं है। लड़ने का नाम लें तो वॉयलेन्स (हिंसक) बन जायें। रावण पर जीत पानी है परन्तु नानवायलेन्स। सिर्फ बाप को याद करने से हमारे विकर्म विनाश होते हैं। भारत का प्राचीन राजयोग मशहूर है। बाप कहते हैं- मेरे साथ बुद्धि का योग लगाओ तो तुम्हारे पाप भस्म होंगे। बाप पतित-पावन है तो बुद्धि योग उस बाप से ही लगाना है, तो तुम पतित से पावन बन जायेंगे। अभी तुम प्रैक्टिकल में उनसे योग लगा रहे हो, इसमें लड़ाई की कोई बात ही नहीं। जो अच्छी रीति पढ़ेंगे, बाप के साथ योग लगायेंगे, वही बाप से वर्सा पायेंगे– कल्प पहले मुआिफक। इस पुरानी दुनिया का विनाश भी होगा। सब हिसाब-किताब चुक्तू कर जायेंगे। फिर क्लास ट्रांसफर हो नम्बरवार जाकर बैठते हैं ना। तुम भी नम्बरवार जाकर वहाँ राज्य करेंगे। कितनी समझ की बातें हैं। अच्छा–

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) इस कयामत के समय जबकि सतयुग की स्थापना हो रही है तो पावन जरूर बनना है। बाप और बाप के कार्य में कभी संशय नहीं उठाना है।
2) ज्ञान और सम्बन्ध गुप्त है, इसलिए लौकिक में बहुत युक्ति से विशाल बुद्धि बनकर चलना है। कोई ऐसे शब्द नहीं बोलने हैं जो सुनने वाले मूँझ जाएं।
वरदान:
अपने हाइएस्ट पोजीशन में स्थित रहकर हर संकल्प, बोल और कर्म करने वाले सम्पूर्ण निर्विकारी भव
सम्पूर्ण निर्विकारी अर्थात् किसी भी परसेन्ट में कोई भी विकार तरफ आकर्षण न जाए, कभी उनके वशीभूत न हों। हाइएस्ट पोजीशन वाली आत्मायें कोई साधारण संकल्प भी नहीं कर सकती। तो जब कोई भी संकल्प वा कर्म करते हो तो चेक करो कि जैसा ऊंचा नाम वैसा ऊंचा काम है? अगर नाम ऊंचा, काम नीचा तो नाम बदनाम करते हो इसलिए लक्ष्य प्रमाण लक्षण धारण करो तब कहेंगे सम्पूर्ण निर्विकारी अर्थात् होलीएस्ट आत्मा।
स्लोगन:
कर्म करते करन-करावनहार बाप की स्मृति रहे तो स्व-पुरूषार्थ और योग का बैलेन्स ठीक रहेगा।