Monday, September 19, 2016

मुरली 20 सितंबर 2016

20-09-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– तुम अपनी तकदीर भविष्य नई दुनिया के लिए बना रहे हो, यह तुम्हारा राजयोग है ही नई दुनिया के लिए”
प्रश्न:
तकदीरवान बच्चों की मुख्य निशानियां क्या होंगी?
उत्तर:
1. तकदीरवान बच्चे कायदेसिर श्रीमत पर चलेंगे। कोई भी कायदे के विरूद्ध कार्य करके अपने को वा बाप को ठगेंगे नही। 2. उन्हें पढ़ाई का पूरा-पूरा शौक होगा। समझाने का भी शौक होगा। 3. पास विद् ऑनर बन स्कॉलरशिप लेने का पुरूषार्थ करेंगे। 4. कभी किसी को दु:ख नहीं देंगे। कभी कोई उल्टा कर्म नहीं करेंगे।
गीत:-
तकदीर जगाकर आई हूँ...   
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। नयों ने भी सुना तो पुरानों ने भी सुना, कुमारियों ने भी सुना। यह पाठशाला है। पाठशाला में कोई न कोई तकदीर बनाने जाते हैं। वहाँ तो अनेक प्रकार की तकदीर है, कोई सर्जन बनने की, कोई बैरिस्टर बनने की तकदीर बनाते हैं। तकदीर को एम आब्जेक्ट कहा जाता है। तकदीर बनाने बिगर पाठशाला में क्या पढ़ेंगे। अब यहाँ बच्चे जानते हैं कि हम भी तकदीर बनाकर आये हैं– नई दुनिया के लिए अपना राज्य भाग्य लेने। यह है नई दुनिया के लिए राजयोग। वह पुरानी दुनिया के लिए बैरिस्टर, इन्जीनियर, सर्जन आदि बनते हैं। वह बनते-बनते, अभी पुरानी दुनिया का टाइम बहुत थोड़ा रहा है, वह तो खत्म हो जायेगा। वह तकदीर है इस मृत्युलोक के लिए, इस जन्म के लिए। तुम्हारी पढ़ाई है नई दुनिया के लिए। तुम नई दुनिया के लिए तकदीर बनाकर आये हो। नई दुनिया में तुमको राज्य-भाग्य मिलेगा। कौन पढ़ाते हैं? बेहद का बाप, जिससे ही वर्सा पाना है। जैसे डॉक्टर लोगों को डॉक्टरी का वर्सा मिलता है अपनी पढ़ाई का। अच्छा जब बूढ़े होते हैं तब गुरू के पास जाते हैं। क्या चाहते हैं? कहते हैं हमको शान्तिधाम जाने की शिक्षा दो, हमको सद्गति दो। यहाँ से निकल शान्तिधाम ले जाओ। बाप से भी वर्सा मिलता है– इस जन्म के लिए। बाकी गुरू से तो कुछ नहीं मिलता। टीचर से कुछ न कुछ वर्सा पाते हैं क्योंकि आजीविका तो चाहिए ना। बाप का वर्सा होते हुए भी पढ़ते हैं कि हम भी अपनी कमाई करें। गुरू से कमाई कुछ हुई नहीं। हाँ, कोई-कोई गीता आदि अच्छी पढ़कर फिर गीता पर भाषण आदि करते हैं। यह सब है अल्पकाल सुख के लिए। अब तो इस मृत्युलोक का अन्त है। तुम जानते हो हम नई दुनिया की तकदीर बनाने आये हैं। यह पुरानी दुनिया खत्म हो जानी है। बाप की वा अपनी मिलकियत भी सब भस्म जो जायेगी। हाथ फिर भी खाली जायेंगे। अभी तो कमाई चाहिए नई दुनिया के लिए। पुरानी दुनिया के मनुष्य तो वह कर नहीं सकेंगे। नई दुनिया की कमाई कराने वाला है ही शिवबाबा। यहाँ तुम नई दुनिया के लिए तकदीर बनाने आये हो। वह बाप ही तुम्हारा बाप भी है, टीचर भी है, गुरू भी है। और वह आते ही हैं संगम पर, भविष्य के लिए कमाई सिखलाने। अब इस पुरानी दुनिया में तो थोड़े रोज हैं। यह दुनिया के मनुष्य नहीं जानते। तुम बच्चे जानते हो नई दुनिया के लिए यह हमारा बाप टीचर सतगुरू है। बाप आते ही हैं शान्तिधाम, सुखधाम में ले जाने। कोई तकदीर नहीं बनाते हैं, गोया कुछ भी समझते नहीं। एक ही घर में स्त्री पढ़ती है, पुरूष नहीं पढ़ता, बच्चे पढ़ेंगे माँ-बाप नहीं पढ़ेंगे। ऐसे होता रहता है। शुरू में परिवार के परिवार आये। परन्तु माया का तूफान लगने से आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती बाप को छोड़ चले गये। गाया हुआ भी है आश्चर्यवत सुनन्ती कथन्ती बाप का बनन्ती, पढ़ाई पढ़ावन्ती फिर भी... हाय कुदरत, ड्रामा की। ड्रामा की ही बात हुई ना। बाप खुद कहते हैं अहो ड्रामा, अहो माया। किसको फारकती दे दी! स्त्री-पुरूष एक-दो को डायओर्स देते हैं। बच्चे बाप को फारकती देते हैं। यहाँ तो वह नहीं है। यहाँ तो डायओर्स दे न सकें। बाप तो आये हैं बच्चों को सच्ची कमाई कराने। बाप थोड़ेही किसको खड्डे में डालेंगे। बाप तो है ही पतित-पावन, रहमदिल। बाप आकर दु:ख से लिबरेट करते हैं और गाइड बन साथ ले जाने वाला है। ऐसे कोई लौकिक गुरू नहीं कहेंगे कि मैं तुमको साथ ले जाऊंगा। शास्त्रों में है भगवानुवाच– कि मैं तुम सबको ले जाऊंगा। मच्छरों सदृश्य सब जाने हैं। तुम बच्चे अच्छी रीति जानते हो अभी हमको जाना है घर। यह शरीर छोड़ना है। आप मुये मर गई दुनिया। अपने को सिर्फ आत्मा समझ बाप को याद करना है। यह तो पुराना चोला छी-छी है। यह दुनिया भी पुरानी है। जैसे पुराने घर में बैठे होते हैं, नया घर सामने बनता रहता है तो बाप भी समझेगा हमारे लिए, बच्चे भी समझते हमारे लिए बन रहा है। बुद्धि चली जायेगी नये घर तरफ। इसमें यह बनाओ, यह करो। बुद्धि उसमें ही लगी रहेगी फिर पुराना तोड़ देते हैं। ममत्व सारा पुराने से मिटाए नये से जुट जाता है। यह है बेहद दुनिया की बात। पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाना है और नई दुनिया से लगाना है। जानते हैं यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है। नई दुनिया है स्वर्ग। उसमें हम राजाई पद पाते हैं। जितना योग में रहेंगे, ज्ञान की धारणा करेंगे औरों को समझायेंगे, उतना खुशी का पारा चढ़ेगा। बड़ा भारी इम्तहान है। हम 21 जन्म के लिए वर्सा पा रहे हैं। साहूकार बनना तो अच्छा है ना। बड़ी आयु मिले तो अच्छा है ना। सृष्टि चक्र को जितना याद करेंगे, जितने को आप समान बनायेंगे उतना फायदा है। राजा बनना है तो प्रजा भी बनानी है। प्रदर्शनी में इतने ढेर आते हैं, वह सारी प्रजा बनती जायेगी क्योंकि इस अविनाशी ज्ञान का विनाश नहीं होता। बुद्धि में आयेगा– पवित्र बन पवित्र दुनिया का मालिक बनना है। रामराज्य की स्थापना हो रही है, रावण राज्य का विनाश हो जायेगा। सतयुग में तो होंगे ही देवतायें। बाबा ने समझाया था– लक्ष्मी-नारायण का चित्र जो बनाते हैं, उसमें लिखना चाहिए कि पास्ट जन्म में यह तमोप्रधान दुनिया में थे फिर इस पुरूषार्थ से तमोप्रधान दुनिया से सतोप्रधान विश्व के मालिक बनेंगे। मालिक राजा-प्रजा सब होती है ना। प्रजा भी कहेगी भारत हमारा सबसे ऊंचा है। बरोबर भारत ही सबसे ऊंच था। अभी नहीं है, था जरूर। अभी तो बिल्कुल गरीब हो गया है। प्राचीन भारत सबसे साहूकार था। हम भारतवासी सबसे ऊंच देवता कुल के थे। दूसरे कोई को देवी-देवता नहीं कहा जाता। अब तुम बच्चियां भी पढ़ती हो फिर औरों को समझाना है ना। बाबा ने डायरेक्शन दिया ना। कैसे प्रदर्शनी आदि में तार दी जाये, सो लिखकर आओ। तुम्हारे पास चित्र भी हैं, तुम सिद्ध कर बतला सकते हो कि उन्होंने यह पद कैसे पाया। अब फिर से यह पद पा रहे हैं शिवबाबा से। उनका चित्र भी है। शिव है परमपिता परमात्मा। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के भी चित्र हैं। परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा स्थापना कर रहे हैं। विष्णुपुरी सामने खड़ी है। विष्णु द्वारा नई दुनिया की पालना। विष्णु है राधे-कृष्ण के दो रूप। अब गीता का भगवान कौन ठहरा? पहले तो यह लिखो कि गीता का भगवान निराकार शिव है न कि कृष्ण। ब्रहमा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे बनते हैं। एक ही चित्र पर समझाने में कितना टाइम लगाता है। जब बुद्धि में बात बैठे। पहले-पहले तो यह समझाकर और फिर लिखना चाहिए। बाप कहते हैं- ब्रह्मा द्वारा तुमको योगबल से 21 जन्म का अधिकार मिलता है। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा वर्सा दे रहे हैं। पहले-पहले इनकी आत्मा सुनती है। आत्मा ही धारण करती है। मूल बात है ही यह। चित्र तो शिव का दिखाते हैं। यह है परमपिता परमात्मा शिव फिर प्रजापिता ब्रह्मा तो जरूर चाहिए। यहाँ प्रजापिता ब्रह्मा के ब्रह्माकुमार-कुमारियां ढेर के ढेर हैं। जब तक ब्रह्मा के बच्चे न बनें, ब्राह्मण न बनें तो शिवबाबा से वर्सा कैसे लेंगे। कुख की पैदाइस तो हो न सके। यह भी गाया जाता है मुख वंशावली। तुम कहेंगे हम प्रजापिता ब्रह्मा के मुख वंशावली हैं। वो गुरूओं के चेले अथवा फॉलोअर्स होते हैं। यहाँ तुम एक को ही बाप टीचर सतगुरू कहते हो। सो भी उनको कहते हो जो निराकार शिवबाबा ज्ञान का सागर, नॉलेजफुल है। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान देते हैं। वह टीचर भी है। निराकार, आकर साकार द्वारा सुनाते हैं। आत्मा ही बोलती है ना। आत्मा कहती है मेरे शरीर को तंग मत करो। आत्मा दु:खी होती है। इस समय है पतित आत्मा। पतितों को पावन बनाने वाला परमपिता परमात्मा है। आत्मा बुलाती है हे पतित-पावन, हे गॉड फादर। अब फादर तो एक बैठा है फिर भी याद किसको करते हैं। आत्मा कहती है यह हमारी आत्मा का फादर है। वह है शरीर का फादर। समझाया जाता है अब आत्माओं का बाप जो निराकार है, वह बड़ा या शरीर का रचयिता साकार बाप है, वह बड़ा? साकार तो निराकार को याद करता है। अब सबको समझानी दी जाती है, जबकि विनाश सामने खड़ा है। पारलौकिक बाप आते ही हैं अन्त में, सभी को वापिस ले जाने। बाकी जो कुछ भी है वह विनाश होने का है, इसको कहा ही जाता है मृत्युलोक। जब कोई मरता है तो कहते हैं फलाना परलोक पधारा, शान्तिधाम गया। मनुष्यों को पता नहीं है कि परलोक सतयुग को कहा जाता है या शान्तिधाम को? सतयुग तो यहाँ ही होता है। परलोक, शान्तिधाम को कहेंगे। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। मन्दिरों में जाकर समझाना चाहिए। यह शिवबाबा का यादगार है, जो शिवबाबा हमको पढ़ा रहे हैं। शिव है वास्तव में बिन्दी। परन्तु बिन्दी की पूजा कैसे करें। फल फूल आदि कैसे चढ़ाये जायें, इसलिए बड़ा रूप बनाया है। इतना बड़ा रूप कोई होता नहीं। गाया भी जाता है भ्रकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा... बड़ी चीज हो तो साइंस वाले झट उनको पकड़ लें। बाबा समझाते हैं उनको परमपिता परमात्मा का पूरा परिचय मिला नहीं है। जब तक तकदीर खुले, अभी तकदीर ही नहीं खुली है। जब तक बाप को न जानें, यह न समझें कि हमारी आत्मा बिन्दी समान है। शिवबाबा भी बिन्दी है, हम बिन्दी को याद करते हैं। ऐसे समझ याद करें तब विकर्म विनाश हों। बाकी यह देखने में आता, वह आता... इसे माया का विघ्न कहा जाता है। अभी तो खुशी है कि हमको परमात्मा मिला है, परन्तु ज्ञान भी चाहिए ना। किसको कृष्ण का साक्षात्कार होता है तो खुश हो जाते हैं। बाबा कहते हैं- कृष्ण का साक्षात्कार कर बहुत खुशी में डांस आदि करते हैं परन्तु उनसे कोई सद्गति नहीं होती। यह साक्षात्कार तो अनायास ही हो जाता है। अगर अच्छी रीति नहीं पढ़ेंगे तो प्रजा में चले जायेंगे। थोड़ा भी सुनते हैं तो कृष्णपुरी में साधारण प्रजा आदि जाकर बनेंगे। अभी तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा हमको यह नॉलेज सुना रहे हैं। वह है ही नॉलेजफुल। बाबा का फरमान है कि पवित्र जरूर बनना है। परन्तु कोई पवित्र भी रह नहीं सकते। कभी-कभी पतित भी यहाँ छिपकर आ जाते हैं। वह अपना ही नुकसान करते हैं। अपने को ठगते हैं। बाप को ठगने की बात ही नहीं। बाप से ठगी कर कोई पैसा लेना है क्या! शिवबाबा की श्रीमत पर कायदेसिर नहीं चलते तो क्या हाल होगा। बहुत सजायें खानी पड़ेंगी, दूसरा फिर पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। कोई भी कायदे के विरूद्ध काम नहीं करना चाहिए। बाप तो समझायेंगे ना– तुम्हारी चलन ठीक नहीं है। बाप तो कमाई करने का रास्ता बताते हैं फिर कोई करे न करे उनकी तकदीर। सजायें तो खाकर वापिस शान्तिधाम में जाना ही है, पद भ्रष्ट हो जायेगा तो कुछ भी मिलेगा नहीं। आते तो बहुत हैं, परन्तु यहाँ बाप से वर्सा लेने की बात है। बच्चे कहते हैं, बाबा से तो हम स्वर्ग का सूर्यवंशी राजाई पद पायेंगे। राजयोग है ना। स्टूडेन्ट स्कॉलरशिप भी लेते हैं ना। पास होने वालों को स्कॉलरशिप मिलती है ना। यह माला उन्हों की बनी हुई है– जिन्होंने स्कॉलरशिप ली है। जितना-जितना जैसा पास होगा, ऐसी स्कॉलरशिप मिलेगी, वृद्धि होते-होते हजारों बन जाते हैं। राजाई पद है स्कॉलरशिप। जो अच्छी तरह पढ़ाई पढ़ते हैं, वह गुप्त नहीं रह सकते। बहुत नये-नये पुरानों से आगे निकल पड़ेंगे। हीरे जैसा जीवन बनायेंगे। अपनी सच्ची कमाई कर 21 जन्मों के लिए वर्सा पायेंगे, कितना खुशी होती है। जानते हैं यह वर्सा अब नहीं लिया तो फिर कभी नहीं ले सकेंगे। पढ़ाई का शौक होता है ना। कोई को तो जरा भी शौक नहीं है समझाने का। ड्रामा अनुसार तकदीर में नहीं है तो भगवान भी क्या करे। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कोई भी कार्य श्रीमत के विरूद्ध नहीं करना है। पढ़ाई अच्छी रीति पढ़कर ऊंच तकदीर बनानी है। किसी को भी दु:ख नहीं देना है।
2) इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटा देना है। बुद्धियोग नई दुनिया से लगाना है। खुशी में रहने के लिए ज्ञान को धारण कर दूसरों को धारण कराना है।
वरदान:
स्थूल कार्य करते भी मन्सा द्वारा विश्व परिवर्तन की सेवा करने वाली जिम्मेवार आत्मा भव
कोई भी स्थूल कार्य करते सदा यह स्मृति रहे कि मैं विश्व की स्टेज पर विश्व कल्याण की सेवा अर्थ निमित्त हूँ। मुझे अपनी श्रेष्ठ मन्सा द्वारा विश्व परिवर्तन के कार्य की बहुत बड़ी जिम्मेवारी मिली हुई है। इस स्मृति से अलबेलापन समाप्त हो जायेगा और समय भी व्यर्थ जाने से बच जायेगा। एक-एक सेकण्ड अमूल्य समझते हुए विश्व कल्याण के वा जड़-चैतन्य को परिवर्तन करने के कार्य में सफल करते रहेंगे।
स्लोगन:
अभी योद्धा बनने के बजाए निरन्तर योगी बनो।