Saturday, September 10, 2016

मुरली 11 सितंबर 2016

11-09-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:13-11-81 मधुबन 

परखने और निर्णय शक्ति का आधार- साइलेंस की शक्ति
आज निर्वाण अर्थात् वाणी से परे शान्त स्वरूप स्थिति का अनुभव करा रहे हैं। आप आत्माओं का स्वधर्म और सुकर्म, स्व स्वरूप, स्वदेश है ही शान्त। संगम युग की विशेष शक्ति भी साइलेंस की शक्ति है। आप सभी संगमयुगी आत्माओं का लक्ष्य भी यही है कि अब स्वीट साइलेन्स होम में जाना है। इसी अनादि लक्षण– शान्त स्वरूप रहना और सर्व को शान्ति देना– इसी शक्ति की विश्व में आवश्यकता है। सर्व समस्याओं का हल इसी साइलेन्स की शक्ति से होता है। क्यों? साइलेन्स अर्थात् शान्त स्वरूप आत्मा एकान्तवासी होने के कारण सदा एकाग्र रहती है और एकाग्रता के कारण विशेष दो शक्तियाँ सदा प्राप्त होती हैं। एक– परखने की शक्ति। दूसरी– निर्णय करने की शक्ति। यही विशेष दो शक्तियाँ व्यवहार वा परमार्थ दोनों की सर्व समस्याओं का सहज साधन है। परमार्थ मार्ग में विघ्न-विनाशक बनने का साधन है– माया को परखना और परखने के बाद निर्णय करना। न परखने के कारण ही भिन्न-भिन्न माया के रूपों को दूर से भगा नहीं सकते हैं। परमार्था बच्चों के सामने माया भी रॉयल ईश्वरीय रूप रच करके आती है। जिसको परखने के लिए एकाग्रता की शक्ति चाहिए और एकाग्रता की शक्ति साइलेन्स की शक्ति से ही प्राप्त होती है। वर्तमान समय ब्राह्मण आत्माओं में तीव्रगति का परिवर्तन कम है क्योंकि माया के रॉयल ईश्वरीय रोल्ड गोल्ड को रीयल गोल्ड समझ लेते हैं। जिस कारण वर्तमान न परखने के कारण बोल क्या बोलते हैं? मैंने जो किया वा कहा– वह ठीक बोला। मैं किसमें रांग हूँ! ऐसे ही तो चलना पड़ेगा! रांग होते भी अपने को रांग नहीं समझेंगे। कारण? परखने की शक्ति की कमी। माया के रॉयल रूप को रीयल समझ लेते। परखने की शक्ति न होने के कारण यथार्थ निर्णय भी नहीं कर सकते। स्व-परिवर्तन करना है वा पर-परिवर्तन होना है, यह निर्णय नहीं कर सकते, इसलिए परिवर्तन की गति तीव्र चाहिए। समय तीव्रगति से आगे बढ़ रहा है। लेकिन समय प्रमाण परिवर्तन होना और स्व के श्रेष्ठ संकल्प से परिवर्तन होना– इसमें प्राप्ति की अनुभूति में रात-दिन का अन्तर है। जैसे आजकल की सवारी कार चलाते हो ना! एक है सेल्फ स्टार्ट होना और दूसरा है धक्के से स्टार्ट होना। तो दोनों में अन्तर है ना। तो समय के धक्के से परिवर्तन होना– यह है पुरूषार्थ की गाड़ी धक्के से चलना। सवारी में चलना नहीं हुआ, सवारी को चलाना हुआ। समय के आधार पर परिवर्तन होना अर्थात् सिर्फ थोड़ा सा हिस्सा प्राप्ति का प्राप्त करना। जैसे एक होते हैं मालिक, दूसरे होते हैं थोड़े से शेयर्स लेने वाले। कहाँ मालिकपन, अधिकारी और कहाँ अंचली लेने वाले। इसका कारण क्या हुआ? साइलेन्स के शक्ति की अनुभूति नहीं है, जिसके द्वारा परखने और निर्णय करने की शक्ति प्राप्त होने के कारण परिवर्तन तीव्रगति से होता है। समझा– साइलेन्स की शक्ति कितनी महान है? साइलेन्स की शक्ति, क्रोध-अग्नि को शीतल कर देती है। साइलेन्स की शक्ति व्यर्थ संकल्पों की हलचल को समाप्त कर सकती है। साइलेन्स की शक्ति ही कैसे भी पुराने संस्कार हों, ऐसे पुराने संस्कार समाप्त कर देती है। साइलेन्स की शक्ति अनेक प्रकार के मानसिक रोग सहज समाप्त कर सकती है। साइलेन्स की शक्ति, शान्ति के सागर बाप से अनेक आत्माओं का मिलन करा सकती है। साइलेन्स की शक्ति– अनेक जन्मों से भटकती हुई आत्माओं को ठिकाने की अनुभूति करा सकती है। महान आत्मा, धर्मात्मा सब बना देती है। साइलेन्स की शक्ति– सेकण्ड में तीनों लोकों की सैर करा सकती है। समझा कितनी महान है? साइलेन्स की शक्ति– कम मेहनत, कम खर्चा बालानशीन करा सकती है। साइलेन्स की शक्ति– समय के खजाने में भी एकॉनामी करा देती है अर्थात् कम समय में ज्यादा सफलता पा सकते हो। साइलेन्स की शक्ति– हाहाकार से जयजयकार करा सकती है। साइलेन्स की शक्ति सदा आपके गले में सफलता की मालायें पहनायेगी। जयजयकार भी हो गई, मालायें भी पड़ गई, बाकी क्या रहा? सब कुछ हो गया ना। तो सुना आप कितने महान हो? महान शक्ति को कार्य में कम लगाते हो। वाणी से तीर चलाना आ गया है, अब “शान्ति” का तीर चलाओ। जिससे रेत में भी हरियाली कर सकते हो। कितना भी कड़ा सा पहाड़ हो लेकिन पानी निकाल सकते हो। वर्तमान समय “शान्ति की शक्ति” प्रैक्टिकल में लाओ। मधुबन की धरनी भी क्यों आकर्षण करती है? शान्ति की अनुभूति होती है ना। ऐसे ही चारों और के सेवाकेन्द्र और प्रवृत्ति के स्थान– “शान्ति कुण्ड” बनाओ। तो चारों ओर शान्ति की किरणें विश्व की आत्माओं को शान्ति की अनुभूति की तरफ आकर्षित करेंगी। चुम्बक बन जायेंगे। ऐसा समय आयेगा जो आपके सर्व स्थान शान्ति प्राप्ति के चुम्बक बन जायेंगे, आपको नही जाना पड़ेगा, वह स्वयं आयेंगे। लेकिन तब, जब सर्व में शान्ति की महान शक्ति निरन्तर संकल्प बोल और कर्म में हो जायेगी तब ही मास्टर शान्ति देवा बन जायेंगे। तो अभी समझा क्या करना है? अच्छा। (आज सुबह मधुबन में कर्नाटक जोन के एक भाई ने अचानक हार्ट फेल होने से शरीर छोड़ दिया जिसका अन्तिम संस्कार आबू में ही किया गया) आज क्या पाठ पढ़ा? कर्नाटक के ग्रुप ने क्या पाठ पक्का कराया? सदा एवररेडी रहने का पाठ पक्का किया? सदा देह, देह के सम्बन्ध, पदार्थ, संस्कार सब का पेटी बिस्तरा सदा ही बन्द हो। चित्रों में भी समेटने की शक्ति को क्या दिखाते हो? पेटी बिस्तर पैक, यही दिखाते हो ना! संकल्प भी न आये यह करना था, यह बनना था, अभी कुछ रह गया है– सेकण्ड में तैयार। समय का बुलावा हुआ और एवररेडी। तो यह पाठ पक्का किया ना? यह भी आत्मा के भाग्य की लकीर खींच गई। वैसे तो संस्कार के समय एक पण्डित को या ब्राह्मण को बुलाते हैं और वह भी नामधारी और यहाँ कितने ब्राह्मणों का हाथ लगा? महान तीर्थ स्थान और सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण। “स्मृति भव” का सहयोग, कितना श्रेष्ठ भाग्य हो गया! तो सदा एवररेडी रहने का विशेष पाठ सभी ने पढ़ लिया। (उसकी युगल को देखते हुए बाबा बोले) क्या पाठ पढ़ा? अपना सफलता स्वरूप दिखाया। बहादुर हो। शक्ति रूप का प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाया। अच्छा। सदा अपने स्व-स्वरूप, स्वधर्म, श्रेष्ठ कर्म, स्वदेश की स्मृति स्वरूप, शान्त मूर्त, सदा शान्ति की शक्ति द्वारा सर्व को शान्त स्वरूप बनाने वाले, शान्ति के सागर की, शान्ति की लहरों में सदा लहराते हुए अनेकों प्रति धर्मात्मा, महान आत्मा बनने वाले, ऐसे शान्ति के शक्ति स्वरूप श्रेष्ठ पुण्य आत्मा बनने वाले, आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

पार्टियों से:-

1. महावीर बच्चों का वाहन है– श्रेष्ठ स्थिति और अलंकार हैं– सर्वशक्तियां सभी अपने को महावीर समझते हो ना? महावीर अर्थात् सदा शस्त्रधारी। शक्तियों को वा पाण्डवों को सदा वाहन में दिखाते हैं और शस्त्र भी दिखाते हैं। शस्त्र अर्थात् अलंकार। तो वाहनधारी भी और अलंकारधारी भी। वाहन है श्रेष्ठ स्थिति और अलंकार हैं सर्वशक्तियां। ऐसे वाहनधारी और अलंकारधारी ही साक्षात्कारमूर्त बन सकते हैं। तो साक्षात बन सबको बाप का साक्षात्कार कराना– यह है महावीर बच्चों का कर्तव्य। महावीर अर्थात् सदा उड़ने वाले। तो सभी उड़ने वाले अर्थात् उड़ती कला वाले हो ना। अब चढ़ती कला भी समाप्त हो गई, जम्प भी समाप्त हो गया, अब तो उड़ना है। उड़ा और पहुंचा। उड़ती कला में जाने से और सब बातें नीचे रह जायेंगी। नीचे की चीजों को, परिस्थितियों को, व्यक्तियों को पार करने की जरूरत ही नहीं, उड़ते जाओ तो नदी नाले, पहाड़, वृक्ष सब पार करते जायेंगे। बड़ा पहाड़ भी एक गेंद हो जायेगा। उड़ती कला वाले के लिए परिस्थितियाँ भी एक खिलौना हैं। ऊपर जाओ तो इतने बड़े-बड़े देश गाँव सब क्या लगते हैं? खिलौने लगते हैं ना, माडल लगते हैं। तो यहाँ भी उड़ती कला वाले के लिए कोई भी परिस्थिति वा विघ्न खेल वा खिलौना है, चींटी समान है। चीटीं भी मरी हुई, जिन्दा नहीं, जिन्दा चींटी भी कभी-कभी महावीर को गिरा देती है। तो चींटी भी मरी हुई। पहाड़ भी राई नहीं, रूई समान। ऐसे महावीर हो ना।

2. मायाजीत बनने के साथ-साथ प्रकृतिजीत भी बनो सदा मायाजीत और प्रकृतिजीत हो? मायाजीत तो बन ही रहे हो लेकिन प्रकृतिजीत भी बनो क्योंकि अभी प्रकृति की हलचल तो बहुत होनी है ना। हलचल में अचल रहो, ऐसे अचल बने हो? कभी समुद्र का जल अपना प्रभाव दिखायेगा तो कभी धरनी अपना प्रभाव दिखायेगी। अगर प्रकृतिजीत होंगे तो प्रकृति की कोई भी हलचल अपने को हिला नहीं सकेगी। सदा साक्षी होकर सब खेल देखते रहेंगे। जैसे फरिश्तों को सदा ऊंची पहाड़ी पर दिखाते हैं, तो आप फरिश्ते सदा ऊंची स्टेज अर्थात् ऊंची पहाड़ी पर रहने वाले। ऐसी ऊंची स्टेज पर रहते हो? जितना ऊंचे होंगे उतना हलचल से स्वत: परे रहेंगे। अभी देखो यहाँ पहाड़ी पर आते हो तो नीचे की हलचल से स्वत: ही परे हो ना! शहरों में कितनी हलचल और यहाँ कितनी शान्ति! जब स्थूल के स्थान पर भी अन्तर है तो ऊंची स्थिति और साधारण स्थिति में भी कितना रात-दिन का अन्तर होगा।

प्रश्न:- कौन सी पहचान बुद्धि में स्पष्ट है तो समर्थ आत्मा बन जायेंगे।

उत्तर:- समय और स्वयं की पहचान अगर बुद्धि में स्पष्ट है तो समर्थ आत्मा बन जायेंगे, क्योंकि यह संगम का समय ही है श्रेष्ठ तकदीर बनाने का। सारे कल्प की श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ तकदीर अभी ही बना सकते हो। संगम पर ही बाप द्वारा सर्व अधिकार प्राप्त होते हैं। तो अधिकारी आत्मा हो, श्रेष्ठ आत्मा हो, श्रेष्ठ प्रालब्ध पाने वाले हो। सदा यह स्मृति में रखो तो समर्थ हो जायेंगे। समर्थ होने से मायाजीत बन जायेंगे। समर्थ आत्मा विघ्न-विनाशक होती है। संकल्प में भी विघ्न आ नहीं सकता। मास्टर सर्वशक्तिवान सदा विघ्न-विनाशक होंगे। अच्छा!
वरदान:
ज्ञान की गुह्य बातों को सुनकर उन्हें स्वरूप में लाने वाले ज्ञानी तू आत्मा भव   
ज्ञानी तू आत्मायें हर बात के स्वरूप का अनुभव करती हैं। जैसे सुनना अच्छा लगता है, गुह्य भी लगता है लेकिन सुनने के साथ-साथ समाना अर्थात् स्वरूप बनना-इसका भी अभ्यास होना चाहिए। मैं आत्मा निराकार हूँ-यह बार-बार सुनते हो लेकिन निराकार स्थिति के अनुभवी बनकर सुनो। जैसी प्वाइंट वैसा अनुभव। इससे शुद्ध संकल्पों का खजाना जमा होता जायेगा और बुद्धि इसी में बिजी होगी तो व्यर्थ संकल्पों से सहज किनारा हो जायेगा।
स्लोगन:
नॉलेज एवं अनुभव की डबल अथॉरिटी वाले ही मस्त फकीर रमता योगी हैं।