Saturday, September 24, 2016

मुरली 25 सितंबर 2016

25-09-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:18-11-81 मधुबन 

सम्पूर्णता के समीपता की निशानी
आज दिलाराम बाप अपने दिलतख्तनशीन बच्चों से दिल की बातें करने आये हैं। सभी बच्चे जानते हैं कि दिलाराम के दिल में कौन सी एक बात रहती है? दिलाराम बाप की दिल में सदा सर्व को आराम देने वाले, ऐसे दिल वाले बच्चे दिल में रहते हैं। बाप की दिल में सर्व बच्चों के प्रति एक ही बात यही है कि हर एक बच्चा विशेष आत्मा विश्व का मालिक बने। विश्व के राज्य भाग्य अधिकारी बनें। हरेक बच्चा एक दो से श्रेष्ठ सजा-सजाया, गुण सम्पन्न, शक्ति सम्पन्न नम्बर वन बने। हर एक की विशेषता एक दो से ज्यादा आर्कषणमय हो जो विश्व देखकर हरेक के गुण गाये। हरेक विश्व की आत्माओं के लिए लाइट हाउस हो, माइट हाउस हो, धरती के चमकते हुए सितारे हो। हरेक सितारे की श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ संकल्प द्वारा जमा की हुई विशेषताएं वा खजाने इतने अखुट हों जो हरेक सितारे की अपनी विशेष दुनिया दिखाई दे। जिसे हरेक देखदेख अपने दु:ख भूलकर सुख की अनुभूति कर हर्षित हो जाए। सर्व प्राप्तियों की हरेक की अलौकिक दुनिया देख वाह- वाह के गीत गाएं। यह है दिलाराम बापदादा के दिल की बात। अब बच्चों के दिल में क्या है, हरेक अपनी-अपनी दिल को अच्छी तरह से जानते हो? दूसरों की दिल को भी जानते हो? वा सिर्फ अपने को जानते हो? जब आपस में रूह-रिहान करते हो तो अपने दिल के उमंग-उत्साह सुनाते हो ना। उसमें मुख्य क्या वर्णन करते हो? सबका विशेष यही संकल्प रहता ही है कि जो बाप कहते हैं वह करके दिखायेंगे वा बाप समान बन ही जायेंगे। तो बाप के दिल और बच्चों के दिल की बात तो एक ही है। फिर भी नम्बरवार पुरूषार्थी क्यों? सभी नम्बरवन क्यों नहीं? क्या सभी नम्बरवन हो सकते हैं? सब विश्व के राजे बन सकते हैं कि वह भी नहीं बन सकते हैं? सिर्फ एक विश्व का राजा बनेगा या और भी बनेंगे अपने-अपने समय पर विश्व के राजे बनेंगे? फिर सभी क्यों कहते हो कि हम विश्व का राज्य ले रहे हैं वा विश्व के राज्य अधिकारी बन रहे हैं? राज्य में आयेंगे या राज्य करेंगे, कोई करने वाले और कोई राज्य में आने वाले बनेंगे वा सब करने वाले बनेंगे, क्या होगा प्रजा तो और बहुत मिल जायेगी, उसकी चिंता नहीं करो। बस सिर्फ राज्य में आने के लिए ही इतनी मेहनत कर रहे हो? राज्य पाने के लिए नहीं, राज्य में आने के लिए? तो राज्य सब करेंगे ना? हरेक समझता है मैं तो करूँगा, बाकी कोई आवे, करे.... वह वो जाने। राजयोग सीख रहे हो ना? राजा बनने का योग सीख रहे हो या राज्य में आने का योग सीख रहे हो? राजयोगी हो ना? राज्य में आने वाले योगी तो नहीं हो ना? ऐसे ही सब नम्बरवन बनेंगे या नम्बरवार ही अन्त तक रहेंगे। पहले भी सुनाया था कि हरेक अपनी स्टेज के अनुसार, अपने हिसाब से नम्बरवन तो बनेंगे ना। उनके लिए तो वही नम्बरवन गोल्डन स्टेज होगी ना। सबसे श्रेष्ठ नम्बरवन स्टेज, उसके हिसाब से तो अन्त में बन ही जायेंगे ना। अपने हिसाब से सम्पन्न और सम्पूर्ण तो बनेंगे ही ना। सारे कल्प के अन्दर उस आत्मा की नम्बरवन श्रेष्ठ स्टेज तो वही होगी ना। उस हिसाब में नम्बरवार होते भी नम्बरवन बन जायेंगे। हरेक आत्मा की अपनी सम्पूर्ण स्टेज है। जैसे ब्रह्मा की पुरूषार्थी और सम्पूर्ण स्टेज दोनों देखी और अनुभव भी कर रहे हो कि सम्पूर्ण स्टेज पर पहुंचने से क्या-क्या विशेषतायें अव्यक्त रूप में भी पार्ट में ला रहे हैं। जैसे ब्रह्मा बाप की सम्पूर्ण स्टेज और पुरूषार्थी स्टेज दोनों का अन्तर अनुभव कर रहे हो, वैसे हर एक ब्राह्मण आत्मा का भी सम्पूर्ण स्टेज का स्वरूप है। जो अव्यक्त वतन में बापदादा इमर्ज कर देखते रहते हैं और दिखा भी सकते हैं। उसी सम्पूर्ण स्वरूप को देखते हुए बापदादा देख रहे हैं कि हरेक के सम्पूर्ण स्वरूप कितने रूहानी झलक और फलक वाले हैं। अभी सम्पूर्णता को पा रहे हो और पाना भी जरूर है। लेकिन कोई बच्चों की सम्पूर्ण स्टेज समीप है। जिसकी निशानी जैसे ब्रह्मा बाप को देखा– सदा अपने सम्पूर्ण स्टेज और भविष्य प्रालब्ध अर्थात् फरिश्ता स्वरूप और देवपद स्वरूप दोनों ही सदा ऐसे स्पष्ट स्मृति में रहते थे जो सामने जाने वाले भी पुरूषार्थी स्वरूप होते हुए भी फरिश्ता रूप और भविष्य श्रीकृष्ण का रूप देखते और वर्णन करते थे। ऐसे बच्चों में भी सम्पूर्णता के समीप आने की निशानी स्वयं भी समीपता का अनुभव करेंगे और औरों को भी अनुभव होगा। व्यक्त में होते अव्यक्त रूप की अनुभूति करेंगे। जिससे सामने आने वाली आत्मायें व्यक्त भाव को भूल अव्यक्त स्थिति का अनुभव करेंगी। यह है समीपता की निशानी। और कई बच्चों को अभी सम्पूर्णता स्पष्ट और समीप नहीं अनुभव होती, उनकी निशानी क्या होगी? जो स्पष्ट और समीप चीज होती है उसको अनुभव करना सहज होता है। और दूर की चीज को अनुभव करना, उसमें विशेष बुद्धि लगानी पड़ती है। ऐसे ही ऐसी आत्मायें भी नॉलेज के आधार से बुद्धियोग द्वारा सम्पूर्ण स्टेज को खींचकर मेहनत से उसमें स्थित रह सकती हैं। दूसरी बात– ऐसी आत्माओं को स्पष्ट और समीप न होने के कारण कभी-कभी यह भी संकल्प उत्पन्न होता है कि बनना तो चाहिए लेकिन बन सकूँगी? स्वयं के प्रति जरा सा व्यर्थ संकल्प के रूप में शक पैदा होगा– जिसको कहा जाता है “संशय का रॉयल रूप”। शक जरा सा लहर के मुआिफक भी आया तो गया लेकिन निश्चयबुद्धि विजयन्ति। उसमें यह स्वप्न मात्र संकल्प, लहर मात्र संकल्प भी फाइनल नम्बर में दूर कर देता है। उसका विशेष संस्कार वा स्वभाव अभी-अभी बहुत उमंग-उत्साह में उड़ने वाले और अभी अभी स्वयं से दिलशिकस्त। बार-बार जीवन में यह सीढ़ी उतरते और चढ़ते रहेंगे। दिलखुश और दिलशिकस्त की सीढ़ी– कारण? अपनी सम्पूर्ण स्टेज स्पष्ट और समीप नहीं। तो अभी क्या करना है? अभी सम्पूर्ण स्टेज को समीप लाओ। कैसे लायेंगे? उसकी विधि को जानते भी हो। क्या जानते हो? है तो हंसी की बात। बापदादा क्या देखते हैं? कई बच्चे, सब नहीं लेकिन मैजारिटी, क्या करते हैं? ऊंचे ते ऊंचे बाप के लाडले होने के कारण ज्यादा लाडले हो जाते हैं। तो ज्यादा लाडले होने के कारण नाजुक बन जाते हैं। नाजुक तो नाज नखरे ही करेंगे। नाज नखरे भी कौन से करते हैं? बाप की बातें बाप को ही सुनाने लगते हैं। आप नाजुक बनते और बाप को कहते हैं हमारे तरफ से आप करो। सहनशक्ति की मजबूती कम है। सहनशक्ति है सर्व विघ्नों से बचने का कवच। कवच न पहनने के कारण नाजुक बन जाते हैं। मुझे करना है, यह पाठ बहुत कच्चा रहता है। लेकिन दूसरा करे या बाप करे, यह पाठ नाजुक बना देता है। इसी कारण अलबेलेपन का पर्दा आ जाता है और सम्पूर्ण स्टेज समीप और स्पष्ट नहीं दिखाई देती है इसलिए तीन लोकों में चक्कर लगाने के बजाए इसी दिलखुश और दिलशिकस्त की बातों में, इसी दुनिया में या इसी सीढ़ी पर उतरते चढ़ते हैं इसलिए क्या करना पड़े? लाड़ले भले बनो लेकिन अलबेलेपन के लाडले नहीं बनो। तो क्या हो जायेगा? अपनी सम्पूर्णता को सहज पा सकेंगे। पहले तो अपने सम्पूर्ण स्टेज को, स्वयं को वरना है अर्थात् सदा उमंग- उत्साह की वर माला पहननी है तब फिर लक्ष्मी को वरेंगे वा नारायण को वरेंगे। समझा क्या करना है? आप सबकी सम्पूर्ण स्टेज आप पुरूषार्थियों का आह्वान कर रही है। जब आप सब सम्पूर्ण स्टेज को पाओ तब ही सम्पूर्ण ब्रह्मा और ब्राह्मण साथ-साथ ब्रह्म घर में जा सकें और फिर राज्य अधिकारी बन सकें। अच्छा। ऐसे सम्पूर्ण स्टेज के समीप आत्मायें, ब्रह्मा बाप के साथ-साथ सम्पूर्ण स्टेज को वरने वाले, सदा अपने सम्पूर्ण स्टेज के अनुभूति द्वारा औरों को भी सम्पूर्ण बनने की प्ररेणा देने वाले, हरेक को अपने स्पष्टता द्वारा दर्पण बन, सम्पूर्ण स्टेज का स्पष्ट साक्षात्कार कराने वाले, सदा दिलखुश, ऐसे खुशनसीब बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। टीचर्स के साथ बाप समान रूहानी सेवाधारी। तो सेवाधारियों को कौन सी सौगात चाहिए? जब एक दो में समान मिलते हैं तो एक दो को सौगात देते हैं ना। तो सेवाधारी हैं ही बाप समान। तो बाप क्या सौगात देगा? वा आप देंगे? ज्ञान तो बहुत सुना है। मुरली भी सुनी। अभी बाकी क्या रह गया? सेवाधारी बापदादा के अति समीप आत्मायें हो, समीप आत्माओं को बापदादा कौन-सी सौगात देंगे? सेवाधारियों को आज बापदादा विशेष एक गोल्डन वर्शन्स की सौगात देते हैं। वह क्या है? `सदा हर दिन स्व उत्साह और सर्व को भी उत्साह दिलाने का उत्सव मनाओ।' यह है सेवाधारियों के लिए स्नेह की सौगात। इसी सौगात को फिर मुरली में स्पष्ट करेंगे लेकिन सौगात तो छोटी अच्छी होती है। तो आज मुरली नहीं चलायेंगे लेकिन सार रूप में सुना रहे हैं कि उत्साह में रहने और उत्साह दिलाने का उत्सव मनाओ। इससे क्या होगा? जो मेहनत करनी पड़ती है वह खत्म हो जायेगी। संस्कार मिलाने की, संस्कार मिटाने की मेहनत से छूट जायेंगे। जैसे जब कोई विशेष उत्सव मनाते हो तो उसमें तन का रोग, धन की कमी, सम्बन्ध-सम्पर्क की खिटपिट सब भूल जाता है। ऐसे अगर यह उत्सव सदा मनाओ तो सारी समस्यायें खत्म हो जायेंगी। फिर समय भी नहीं देना पड़ेगा, शक्तियां भी नहीं लगानी पड़ेंगी। सदा ऐसे अनुभव करेंगे जैसे सभी फरिश्ते बनकर चल रहे हैं। वैसे भी कहावत है फरिश्तों के पैर धरनी पर नहीं होते। खुशी में जो नाचता रहता है उसके लिए भी कहते हो कि यह तो उड़ता रहता है, इसके पांव धरनी पर नहीं हैं। तो सब उड़ने वाले फरिश्ते बन जायेंगे। इसलिए रूहानी सेवाधारी अब यह सेवा करो। कोर्स देना, दिलाना, प्रदर्शनी करना कराना, मेले करना कराना, यह बहुत मेहनत की। अभी इस मेहनत को सहज करने का साधन यह है (जो ऊपर सुनाया) इससे घर बैठे अनुभव करेंगे जैसे शमा के ऊपर परवाने स्वत: ही भागते हुए आ रहे हैं। आखिर भी यह मेहनत कब तक करेंगे, यह साधन भी तो परिवर्तन होंगे ना। तो कम खर्च बाला नशीन वा कम मेहनत सफलता ज्यादा उसका साधन है– यह सौगात। फिर आपको मेला नहीं करना पड़ेगा लेकिन मेला करने वाले और अनेक निमित्त बन जायेंगे। आपको निमन्त्रण देकर बुलायेंगे। जैसे अभी भी भाषण के लिए बनी बनाई स्टेज पर बुलाते हैं ना। वैसे मेले आदि की फिर इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। अभी आप सब दीदी-दादियों को उद्घाटन के लिए बुलाते हो फिर आप भी दीदी-दादियां हो जायेंगी, उद्घाटन करने वाली दर्शनीय मूर्त हो जायेंगी। तो यह अच्छा है ना। अभी तक भी लगाओ टेन्ट, गाइड बुलाओ, लगाने वालों को बुलाओ... यही मेहनत करनी है! अच्छा– अभी तो सौगात मिल गई ना? अभी देंगी क्या? यही संकल्प करो कि “न कभी उत्साह कम करेंगे और न दूसरों का उत्साह कम होने देंगे।” यही देना है। कुछ भी हो जाये, जैसे स्थूल व्रत रखते हैं, तो उसमें भी भूख और प्यास लगती है लेकिन लगते हुए भी व्रत नहीं छोड़ते, चाहे बेहोश भी क्यों न हो जायें। तो आप भी व्रत लो– कोई भी समस्या आ जाए, कोई उत्साह को मिटाने वाला आ जाए लेकिन न उत्साह छोड़ेंगे न औरों में कम करायेंगे। बढ़ेंगे और बढ़ायेंगे। तो सदा ही उत्सव होंगे, सदा मेले होंगे, सदा सेमीनार होंगे, सदा इन्टरनेशनल कान्फ्रेन्स होगी। अच्छा– मिली भी सौगात, ले भी ली और क्या चाहिए। अच्छा।
वरदान:
खुशी के साथ शक्ति को धारण कर विघ्नों को पार करने वाले विघ्न जीत भव
जो बच्चे जमा करना जानते हैं वह शक्तिशाली बनते हैं। यदि अभी-अभी कमाया, अभी-अभी बांटा, स्वयं में समाया नहीं तो शक्ति नहीं रहती। सिर्फ बांटने वा दान करने की खुशी रहती है। खुशी के साथ शक्ति हो तो सहज ही विघ्नों को पार कर विघ्न जीत बन जायेंगे। फिर कोई भी विघ्न लगन को डिस्टर्ब नहीं करेंगे इसलिए जैसे चेहरे से खुशी की झलक दिखाई देती है ऐसे शक्ति की झलक भी दिखाई दे।
स्लोगन:
परिस्थितियों में घबराने के बजाए उन्हें शिक्षक समझकर पाठ सीख लो।