Saturday, September 17, 2016

मुरली 18 सितंबर 2016

18-09-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:16-11-81 मधुबन 

विजय-माला में नम्बर का आधार
आज बापदादा अपने सिकीलधे श्रेष्ठ आत्माओं से फिर से मिलने आये हैं। याद आता है कि इसी समय, इसी रूप में कितने बार मिले हो? अनेक बार मिलन की स्मृति स्पष्ट रूप में अनुभव में आती है? नॉलेज के आधार पर, चक्र के हिसाब से समझते हो वा अनुभव करते हो? जितना स्पष्ट अनुभव होगा उतना ही श्रेष्ठ वा समीप की आत्मा होंगे। वर्तमान सर्व प्राप्ति और भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध की अधिकारी आत्मा होंगे। अपने आपको इसी अनुभव के आधार पर जान सकते हो कि मुझ आत्मा का विजय माला में कौन सा नम्बर है? वर्तमान समय बापदादा भी बच्चों के पुरूषार्थ और प्राप्ति के आधार पर नम्बरवार याद करते अर्थात् माला और यादगार रूप की विजय माला– जिसको वैजयन्ती माला कहते हैं तो दोनों मालाओं में मेरा नम्बर कौन सा है, यह जानते हो? अपने नम्बर को स्वयं ही जानते हो वा यह कहेंगे कि बापदादा सुनावें? बापदादा तो जानते ही हैं, लेकिन अपने आपको जानते जरूर हो। बाहर से वर्णन करो न करो लेकिन अन्दर तो जानते हो ना? हाँ कहेंगे, वा ना कहेंगे? अभी अगर बापदादा माला निकलवायें तो क्या अपना नम्बर नहीं दे सकते? संकोच वश न सुनाओ वह दूसरी बात है। अगर नहीं जानते तो क्या कहेंगे? औरों को चैलेन्ज करते हो, निश्चय और फखुर से कहते हो कि हम अपने 84 जन्मों की जीवन कहानी जानते हैं, यह कहते हो ना सभी? तो 84 जन्म में यह वर्तमान का जन्म तो सबसे श्रेष्ठ है ना! इसको नहीं जान सकते हो? मैं कौन? इस पहेली को अच्छी तरह से जाना है ना? तो यह भी क्या हुआ? मैं कौन की पहेली। जानने का हिसाब बहुत सहज है। एक है– याद की माला– जितना स्नेह और जितना समय आप बाप को याद करते उतना और उसी स्नेह से बाप भी याद करते हैं। तो अपना नम्बर निकाल सकते हो? अगर आधा समय याद रहता और स्नेह भी 50 परसेन्ट का है, वा 75 परसेन्ट का है तो उसी आधार से सोचो 50 परसेन्ट स्नेह और आधा समय याद तो माला में भी आधी माला समाप्त होने के बाद आयेंगे। अगर याद निरन्तर और सम्पूर्ण स्नेह, सिवाए बाप के और कोई नजर ही नहीं आता, सदा बाप और आप भी कम्बाइन्ड हैं तो माला में भी कम्बाइन्ड दाने के साथ-साथ आप भी कम्बाइन्ड होंगे अर्थात् साथ-साथ मिले हुए होंगे। सदा सब बातों में नम्बरवन होंगे। तो माला में भी नम्बरवन होंगे। जैसे लौकिक पढ़ाई में फर्स्ट डिवीजन, सेकेण्ड, थर्ड होती हैं, वैसे यहाँ भी महारथी, घोड़ेसवार और पैदल तीन डिवीजन हैं। फर्स्ट डिवीजन– सदा फास्ट अर्थात् उड़ती कला वाले होंगे। हर सेकेण्ड, हर संकल्प में बाप के साथ का, सहयोग का, स्नेह का अनुभव करेंगे। सदा बाप के साथ और हाथ में हाथ की अनुभूति करेंगे। `सहयोग दो,'यह नहीं कहेंगे। सदा स्वयं को सम्पन्न अनुभव करेंगे। सेकेण्ड डिवीजन– चढ़ती कला का अनुभव करेंगे लेकिन उड़ती कला का नहीं। चढ़ती कला में आये हुए विघ्नों को पार करने में कभी ज्यादा, कभी कम समय लगायेंगे। उड़ती कला वाले ऊपर से क्रास करने के कारण ऐसे अनुभव करेंगे जैसे कोई विघ्न आया ही नहीं। विघ्न को विघ्न नहीं लेकिन साइडसीन समझेंगे, रास्ते के नजारे हैं। और चढ़ती कला वाले– रूकेंगे, विघ्न है यह महसूस करेंगे इसलिए जरा सा लेस-मात्र कभी-कभी पार करने की थकावट वा दिलशिकस्त होने का अनुभव करेंगे। तीसरी डिवीजन– उसको तो जान गये होंगे। रूकना, चलना और चिल्लाना। कभी चलेंगे, कभी चिल्लायेंगे। याद की मेहनत में रहेंगे क्योंकि सदा कम्बाइन्ड नहीं रहते। सर्व सम्बन्ध निभाने के प्रयत्न में रहते हैं। पुरूषार्थ में ही सदा लगे रहते हैं। वह प्रयत्न में रहते और वह प्राप्ति में रहते। तो इससे अभी समझो– “मेरा नम्बर कौन सा?” माला के आदि में हैं अर्थात् फर्स्ट डिवीजन में हैं वा माला के मध्य में अर्थात् सेकेण्ड डिवीजन में वा माला के अन्त में अर्थात् थर्ड डिवीजन में हैं? तो याद और विजय दोनों के आधार से अपने आपको जान सकते हो। तो जानना सहज है वा मुश्किल है? तो हरेक का नम्बर निकलवायें? निकाल सकेंगे ना? बापदादा सदा अमृतवेले से बच्चों की माला सिमरण करने शुरू करते हैं। हरेक रत्न की वा मणके की विशेषता देखते हैं। तो अमृतवेले सहज ही अपने आपको भी चेक कर सकते हो। याद की शक्ति से, सम्बन्ध की शक्ति से, स्पष्ट रूहानी टी.वी. में देख सकते हो कि बापदादा किस नम्बर में मुझे सिमरण कर रहे हैं। उसके लिए विशेष बात– बुद्धि की लाइन बहुत क्लीयर चाहिए। नहीं तो स्पष्ट नहीं देख सकेंगे। अच्छा– समझा मैं कौन हूँ? अब तो समय की समीपता कारण स्वयं को बाप के समान अर्थात् समानता द्वारा समीपता में लाओ। संकल्प, बोल, कर्म, संस्कार और सेवा सब में बाप जैसे समान बनना अर्थात् समीप आना। चाहे पीछे आने वाले हों चाहे पहले। लेकिन समानता से समीप आ सकते हो। अभी सभी को चांस है। अभी सीट फिक्स की सीटी नहीं बजी

है इसलिए जो चाहो वह बन सकते हो। अभी `टू लेट' का बोर्ड नहीं लगा है इसलिए क्या करेंगे? महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश दोनों हैं ना! महाराष्ट्र का तो नाम ही “महा” है। तो महान ही हो गया ना! मध्यप्रदेश की क्या विशेषता है? जानते हो? बापदादा की सेवा के आदि में पहली नजर मध्यप्रदेश की तरफ गई। बच्चों को भी भेजा था। तो सेवा के क्षेत्र में पहली नजर जब मध्य प्रदेश पर गई तो मध्य प्रदेश की सेवा में और सेवा का प्रत्यक्षफल खाने में पहला नम्बर होगा ना? क्योंकि बापदादा की विशेष नजर पड़ी। जहाँ नजर पड़ी वो नम्बरवन नजर से निहाल हो गये ना इसलिए दोनों ही महान हो। महाराष्ट्र में बापदादा के साकार में चरण पड़े। चरित्र भूमि भी महाराष्ट्र को बनाया। तो महाराष्ट्र क्या करेगा? महाराष्ट्र को तो डबल फल देना पड़ेगा। क्या डबल फल देंगे? देखें, पहले टच होता है कि क्या फल देना है? अगर टच नहीं होता तो महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश वन नम्बर हो जायेगा। एक है वारिस और दूसरे हैं वी. आई. पीज.। तो वारिस भी निकालने हैं और वी. आई. पीज. भी निकालने हैं, यह है डबल फल। कहाँ वी. आई. पीज. निकालते, कहाँ वारिस निकालते लेकिन दोनों निकालने हैं। वारिस भी नामीग्रामी हों और वी. आई. पीज. भी नामीग्रामी हों। तो इसमें कौन नम्बरवन लेगा? फारेन लेगा, महाराष्ट्र लेगा वा मध्यप्रदेश लेगा? कौन लेगा? और भी ले सकते हैं लेकिन आज तो यह सामने बैठे हैं? अच्छा– तो क्या सुना? जो ओटे सो अर्जुन गाया हुआ है ना? इसमें जो भी आगे जाये जा सकता है। अभी नम्बर आउट नहीं हुए हैं इसलिए जो भी निमित्त बन नम्बरवन आने चाहे वह आ सकते है। समझा क्या करना है? उसका साधन भी सुनाया-“उड़ती कला”। चढ़ती कला नहीं उड़ती कला। उसके लिए सदा डबल लाइट रहो। यह तो जानते हो ना! जानते सब हो अभी स्वरूप और अनुभव में लाओ। अच्छा। ऐसे सदा बाप के साथी, हर संकल्प, बोल और कर्म में बाप समान अर्थात् बाप के समीप रत्न, सदा स्वरूप और सफलता स्वरूप, विजय माला के समीप रत्नों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। विदेशी बच्चों की सेवा की मुबारक देते हुए– सेवा के प्रति और भी इशाराबापदादा सेवा के लिए कभी भी मना नहीं करते हैं, खूब धूमधाम से सेवा करो। जिन्हों को भी निमन्त्रण देना हो दे सकते हो। फारेन वालों को सेवा की मुबारक हो। सभी सेवा के उमंग-उत्साह में अच्छे आगे बढ़ रहे हैं। और ऐसे बढ़ते हुए विशेष आत्माओं की सेवार्थ निमित्त बन जायेंगे। जिनको विशेष वी.आई.पी. कहते हो, अभी वी.आई.पीज. के निकलने का समय पहुंच गया है इसलिए सेवा से स्वत: निकलते रहेंगे। सभी को विशेष रूहानियत का अनुभव कराओ। शान्ति, शक्ति का अनुभव कराओ। नॉलेज तो बहुत है लेकिन एक सेकेण्ड की अनुभूति ही उन्हों के लिए नवीनता है। सारी विदेश की मैजारिटी आर्टीफिशल है, तो रीयल शान्ति, रीयल सुख, रीयल स्वरूप की अनुभूति है ही नहीं। अगर वह एक सेकेण्ड की भी हो जायेगी तो नवीनता का अनुभव करेंगे। वैसे भी विदेश में सदा नई चीज पसन्द करते हैं इसलिए यह नवीनता करो। कोई भी नामधारी महात्मा यह अनुभूति नहीं करा सकते। आत्मा परमात्मा का शब्द तो सुनते रहते हैं लेकिन कनेक्शन जुड़वाकर अनुभव करना– यह नवीनता है। जिसको कहा जाता है रीयल्टी का अनुभव करना। यही साधन है। सभी सर्विसएबुल समीप रत्नों को नाम सहित याद। अच्छा। कुमारों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात कुमारों को सदा यह स्मृति रहे कि हम कुमार नहीं लेकिन ब्रह्माकुमार हैं, रूहानी सेवाधारी हैं। सेवाधारी अर्थात् स्वयं सम्पन्न स्वरूप होकर औरों को देने वाले। तो सदा अपने को सर्व खजानों से सम्पन्न अनुभव करते हो? सेवाधारी समझ कर सेवा करेंगे तो सफलतामूर्त होंगे। सेवा की विशेषता ही है सदा नम्रचित। निमित्त और नम्रचित– यह दोनों विशेषताएं सेवा में सफलता स्वरूप बनाती हैं। कुमार सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ने वाले होते हैं। लेकिन बागे बढ़ते हुए निमित्त और नम्रचित की विशेषता नहीं होगी तो सेवा करेंगे, मेहनत करेंगे सफलता कम दिखाई देगी। तो कुमार सेवा में तो होशियार हो ना? सभी प्लैनिंग बुद्धि हो। जैसे सेवा की भाग दौड़ में होशियार हो वैसे इन दो विशेषताओं में भी होशियार बनो। विशेषताओं सहित विशेष सेवाधारी बनो। नहीं तो टैम्प्रेरी टाइम की सफलता तो होगी लेकिन चलते-चलते थोड़े टाइम के बाद कनफ्युजड हो जायेंगे। यह क्या हुआ, यह क्यों हुआ, यह दीवार आ जायेगी। तो सदा यह दो बातें स्मृति में रखना– इससे सर्विस में फास्ट और फर्स्ट हो जायेंगे। कुमारों को सेवा तो करनी है लेकिन मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहकर करनी है फिर देखो सफलता हुई पड़ी है। कुमारों को सब प्रकार के चांस हैं, सेवा करने में भी चांस, पुरूषार्थ में आगे जाने का भी चांस और साथ-साथ अपने परिवार को आगे बढ़ाने का चांस है। कुमार जीवन लक्की जीवन है। कुमार अर्थात् सदा स्वतन्त्र। किसी भी प्रकार के बंधन के वश नहीं। ऐसे स्वतन्त्र अनुभव करते हो ना? स्वयं के व्यर्थ संकल्प भी एक बंधन है, यह बंधन भी उड़ती कला से नीचे ले आते हैं। तो निर्बन्धन कुमार। व्यर्थ संकल्प भी समाप्त। निर्बन्धन आत्मा ही तीव्रगति में जा सकती है। बापदादा को कुमारों के ऊपर नाज है कि कुमार अपने जीवन को कितना श्रेष्ठ बना रहे हैं। सदा इसी स्मृति में रहो कि हमारे जैसा भाग्यवान कोई नहीं, कुमारों का अपना भाग्य, कुमारियों का अपना। कुमारियां स्वतन्त्र होकर सेवा नहीं कर सकती। कुमार तो कहाँ भी अकेले जाकर सेवा कर सकते हैं। कुमारों को क्या बंधन है। कुमारियां तो फिर भी आजकल की दुनिया के हिसाब से बंधन में हैं, कुमार तो आलराउन्ड सेवा कर सकते हैं। कुमार हैं डबल लाइट। किसी भी प्रकार का बोझ नहीं। न संकल्पों का बोझ, न संबंध-सम्पर्क का बोझ। कुमार हैं ही निर्बन्धन, क्योंकि नॉलेजफुल हो गये। नॉलेजफुल व्यर्थ की तरफ कभी भी जा नहीं सकते। व्यर्थ संकल्प भी नॉलेजफुल के आगे आ नहीं सकता। संकल्प में भी शक्तिवान, कर्म में भी शक्तिवान। मास्टर सर्वशक्तिवान हो। तो सदा ऐसे अनुभव करते हो कि हम मास्टर सर्वशक्तिवान हैं? क्योंकि कुमारों के पीछे माया चक्र बहुत लगाती है। माया को भी कुमार कुमारियां अच्छे लगते हैं। जैसे बाप को बहुत प्रिय हो, ऐसे माया को भी प्रिय हो, इसलिए माया से सावधान रहना। सदा अपने को कम्बाइन्ड समझना, अकेला नहीं, युगल साथ है। सदा कम्बाइन्ड समझेंगे तो माया आ नहीं सकती। पार्टियों के साथ वर्तमान समय का विशेष अटेन्शन– व्यर्थ संकल्पों की समाप्ति सभी अपने को समर्थ आत्मायें समझते हो? समर्थ आत्मायें अर्थात् जिनका व्यर्थ का खाता समाप्त हो। नहीं तो ब्राह्मण जीवन में व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म बहुत समय व्यर्थ गंवा देते हैं। जितनी कमाई जमा करने चाहो उतनी नहीं कर सकते हो। व्यर्थ का खाता समर्थ बनने नहीं देता। अब व्यर्थ का खाता समाप्त करो। जब नया चौपड़ा रखते हो तो पुराने को खत्म कर देते हो ना। तो वर्तमान समय यही विशेष अटेन्शन रखो कि व्यर्थ का खाता समाप्त कर सदा समर्थ रहें। मास्टर सर्वशक्तिमान जो चाहो वह कर सकते हो। जैसे किसको तन की वा धन की शक्ति है तो जो चाहे वह कर सकता है, अगर शक्ति नहीं तो चाहते भी मजबूर हो जाता। ऐसे आप मास्टर सर्वशक्तिमान क्या नहीं कर सकते। सिर्फ अटेन्शन। बार-बार अटेन्शन चाहिए। अमृतवेले अटेन्शन दिया, रात को दिया, बाकी मध्य में अलबेलापन हो गया तो रिजल्ट क्या होगी? व्यर्थ का खाता समाप्त नहीं होगा। कुछ न कुछ पुराना खाता रह जायेगा इसलिए बार-बार यही अटेन्शन दो कि हम मास्टर सर्वशक्तिमान हैं। चेकिंग चाहिए अच्छी तरह से क्योंकि माया अभी भी अपनी बारी लेने के लिए होशियार बैठी है। वह अन्त में सबसे ज्यादा होशियार हो जाती है क्योंकि सदा के लिए विदाई लेनी है ना तो अपनी होशियारी तो दिखायेगी ना इसलिए सदा अटेन्शन रखो। क्लास में गये, याद में बैठे उस समय तो अटेन्शन रहता है लेकिन बार-बार अटेन्शन। और जिसका बार-बार अटेन्शन है उसकी निशानी है– सब टेन्शन से परे। लाडले तो ही, बाप के बने, श्रेष्ठ भाग्य का सितारा चमका और क्या चाहिए। सिर्फ यही छोटा-सा काम दिया है कि बार-बार बुद्धि द्वारा अटेन्शन रखो। अच्छा।
वरदान:
संगमयुग पर हर कर्म कला के रूप में करने वाले 16 कला सम्पन्न भव   
संगमयुग विशेष कर्म रूपी कला दिखाने का युग है। जिनका हर कर्म कला के रूप में होता है उनके हर कर्म का वा गुणों का गायन होता है। 16 कला सम्पन्न अर्थात् हर चलन सम्पूर्ण कला के रूप में दिखाई दे-यही सम्पूर्ण स्टेज की निशानी है। जैसे साकार के बोलने, चलने... सभी में विशेषता देखी, तो यह कला हुई। उठने बैठने की कला, देखने की कला, चलने की कला थी। सभी में न्यारापन और विशेषता थी। तो ऐसे फालो फादर कर 16 कला सम्पन्न बनो।
स्लोगन:
पावरफुल वह है जो फौरन परखकर फैंसला कर दे।