मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - ड्रामा की यथार्थ नॉलेज से ही तुम अचल, अडोल और एकरस रह
प्रश्न:- देवताओं का मुख्य एक कौन-सा गुण तुम बच्चों में सदा दिखाई देना चाहिए?
उत्तर:- हर्षित रहना। देवताओं को सदा मुस्कराते हुए हर्षित दिखाते हैं। ऐसे तुम बच्चों को भी
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर पवित्र बन स्वयं का श्रृंगार करना है। कभी भी माया की धूल
2) इस ड्रामा को यथार्थ रीति समझकर अपनी अवस्था अचल, अडोल, स्थेरियम बनानी है।
वरदान:- भगवान और भाग्य की स्मृति से औरों का भी भाग्य बनाने वाले खुशनुम: खुशनसीब भव
अमृतवेले से लेकर रात तक अपने भिन्न-भिन्न भाग्य को स्मृति में लाओ और यही गीत
स्लोगन:- माया के झूले को छोड़ अतीन्द्रिय सुख के झूले में सदा झूलते रहो।
सकते हो, माया के तूफ़ान तुम्हें हिला नहीं सकते''
प्रश्न:- देवताओं का मुख्य एक कौन-सा गुण तुम बच्चों में सदा दिखाई देना चाहिए?
उत्तर:- हर्षित रहना। देवताओं को सदा मुस्कराते हुए हर्षित दिखाते हैं। ऐसे तुम बच्चों को भी
सदा हर्षित रहना है, कोई भी बात हो, मुस्कराते रहो। कभी भी उदासी या गुस्सा नहीं आना
चाहिए। जैसे बाप तुम्हें राइट और रांग की समझानी देते हैं, कभी गुस्सा नहीं करते, उदास
नहीं होते, ऐसे तुम बच्चों को भी उदास नहीं होना है।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर पवित्र बन स्वयं का श्रृंगार करना है। कभी भी माया की धूल
में लिथड़कर श्रृंगार बिगाड़ना नहीं है।
2) इस ड्रामा को यथार्थ रीति समझकर अपनी अवस्था अचल, अडोल, स्थेरियम बनानी है।
कभी भी मूँझना नहीं है, सदैव हर्षित रहना है।
वरदान:- भगवान और भाग्य की स्मृति से औरों का भी भाग्य बनाने वाले खुशनुम: खुशनसीब भव
अमृतवेले से लेकर रात तक अपने भिन्न-भिन्न भाग्य को स्मृति में लाओ और यही गीत
गाते रहो वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य। जो भगवान और भाग्य की स्मृति में रहते हैं वही औरों को
भाग्यवान बना सकते हैं। ब्राह्मण माना ही सदा भाग्यवान, सदा खुशनसीब। किसी की हिम्मत
नहीं जो ब्राह्मण आत्मा की खुशी कम कर सके। हर एक खुशनुम:, खुशनसीब हो। ब्राह्मण
जीवन में खुशी का जाना असम्भव है, भल शरीर चला जाए लेकिन खुशी जा नहीं सकती।
स्लोगन:- माया के झूले को छोड़ अतीन्द्रिय सुख के झूले में सदा झूलते रहो।