मुरली सार:- मीठे बच्चे - माया रावण के संग में आकर तुम भटक गये, पवित्र पौधे
प्रश्न:- हर एक बच्चे को अपने ऊपर कौन-सा वन्डर लगता है? बाप को बच्चों पर
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) शिवालय में जाने के लिए इन विकारों को निकालना है। इस वेश्यालय से दिल हटाते
2) जो कुछ बीता उसे ड्रामा समझ कोई भी विचार नहीं करना है। अहंकार में कभी नहीं
वरदान:- कर्म और योग के बैलेन्स द्वारा ब्लैसिंग का अनुभव करने वाले कर्मयोगी भव
कर्मयोगी अर्थात् हर कर्म योगयुक्त हो। कर्मयोगी आत्मा सदा ही कर्म और योग का साथ
स्लोगन:- सेकेण्ड में संकल्पों को स्टॉप करने का अभ्यास ही कर्मातीत अवस्था के समीप लायेगा।
अपवित्र बन गये, अब फिर पवित्र बनो।
प्रश्न:- हर एक बच्चे को अपने ऊपर कौन-सा वन्डर लगता है? बाप को बच्चों पर
कौन-सा वन्डर लगता है?
उत्तर:- बच्चों को वन्डर लगता कि हम क्या थे, किसके बच्चे थे, ऐसे बाप का हमें वर्सा
उत्तर:- बच्चों को वन्डर लगता कि हम क्या थे, किसके बच्चे थे, ऐसे बाप का हमें वर्सा
मिला था, उस बाप को ही हम भूल गये। रावण आया इतनी फागी आ गई जो रचयिता
और रचना सब भूल गया। बाप को बच्चों पर वन्डर लगता, जिन बच्चों को मैंने इतना
ऊंच बनाया, राज्य-भाग्य दिया, वही बच्चे मेरी ग्लानि करने लगे। रावण के संग में
आकर सब कुछ गँवा दिया।
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) शिवालय में जाने के लिए इन विकारों को निकालना है। इस वेश्यालय से दिल हटाते
जाना है। शूद्रों के संग से किनारा कर लेना है।
2) जो कुछ बीता उसे ड्रामा समझ कोई भी विचार नहीं करना है। अहंकार में कभी नहीं
आना है। कभी शिक्षा मिलने पर फंक नहीं होना है।
वरदान:- कर्म और योग के बैलेन्स द्वारा ब्लैसिंग का अनुभव करने वाले कर्मयोगी भव
कर्मयोगी अर्थात् हर कर्म योगयुक्त हो। कर्मयोगी आत्मा सदा ही कर्म और योग का साथ
अर्थात् बैलेन्स रखने वाली होगी। कर्म और योग का बैलेन्स होने से हर कर्म में बाप द्वारा
तो ब्लैसिंग मिलती ही है लेकिन जिसके भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हैं उनसे भी दुआयें
मिलती हैं। कोई अच्छा काम करता है तो दिल से उसके लिए दुआयें निकलती हैं कि
बहुत अच्छा है। बहुत अच्छा मानना ही दुआयें हैं।
स्लोगन:- सेकेण्ड में संकल्पों को स्टॉप करने का अभ्यास ही कर्मातीत अवस्था के समीप लायेगा।