Sunday, April 22, 2018

22-04-18 प्रात:मुरली

22-04-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 23-05-83 मधुबन

“छोड़ो तो छूटो!”
आज बापदादा अपने आदि स्थापना के कार्य में निमित्त बने हुए सहयोगी बच्चों को देख रहे हैं। सभी सहयोगी बच्चों के भाग्य को देख हर्षित हो रहे हैं। स्थापना के नक्शे को देख रहे थे। आदि काल इस श्रेष्ठ ब्राह्मणों के संसार की हिस्ट्री और जॉग्राफी को देख रहे थे। कौन-कौन श्रेष्ठ आत्मायें, किस समय, किस स्थान पर और किस विधि पूर्वक सहयोगी बने हैं। क्या देखा? तीन प्रकार के सहयोगी बच्चे देखे। एक बापदादा के अलौकिक कर्तव्य को देख बापदादा की मोहिनी मूर्त, रूहानी सीरत को देख, सोचने की मेहनत भी नहीं की, सिर्फ देखा और देखने से कल्प पहले की स्मृति के संस्कार प्रत्यक्ष हो गये। सेकेण्ड में दिल से निकला यह वो ही मेरा बाबा है। ऐसे बिना मेहनत के सहज बाप के स्नेह में समाये हुए सहयोगी बन गये। सप्ताह कोर्स की भी मेहनत नहीं। लेकिन ईश्वरीय स्नेह के फोर्स से बाप और बच्चों का मिलन हो गया। एक ही शब्द में जीवन के साथी बन गये। बच्चों ने कहा तुम ही मेरे, बाप ने कहा तुम ही मेरे। मेहनत का सवाल नहीं। ऐसे सेकेण्ड के सौदे वाले बिना मेहनत, मुहब्बत में समाये हुए हैं। दूसरे निमित्त बने हुए श्रेष्ठ आत्माओं के त्याग तपस्या और सेवा के सैम्पुल को देख सौदा करने वाले हैं। पहले ग्रुप ने बाप को देखा। दूसरे ग्रुप ने ज्ञान गंगाओं के सैम्पुल को देखा। बुद्धिबल द्वारा सहज बाप को जाना और सहयोगी बने। फिर भी दूसरा ग्रुप भी बच्चों द्वारा बाप के साकार सम्बन्ध में आये। निराकार को भी साकार में सर्व सम्बन्धों में पाया, इसलिए साकार रूप में साकार द्वारा सर्व अनुभव करने के कारण साकारी पालना के लिफ्ट की गिफ्ट ली। यह भाग्य कोटों में कोई, कोई में भी कोई को प्राप्त हुआ। ऐसे लिफ्ट की गिफ्ट लेने वाले स्थापना के कार्य में, सेवा के क्षेत्र में निमित्त बनी हुई आदि आत्मायें, ऐसे ग्रुप को निमंत्रण दे बुलाया है। ऐसे तो और भी निमित्त बने हुए बच्चे हैं। लेकिन विशेष थोड़ों को बुलाया है। जानते हो किसलिए बुलाया है? बीच-बीच में फाउन्डेशन को चेक किया जाता है। अगर फाउन्डेशन ज़रा भी कमज़ोर होता है तो फाउन्डेशन का प्रभाव सब पर पड़ता है। सेवा के क्षेत्र में सेवा के निमित्त फाउन्डेशन आप जैसे रत्न हैं। पहला ग्रुप यज्ञ की स्थापना के फाउन्डेशन बने। सेवा के निमित्त बने। लेकिन सेवा का प्रत्यक्ष पहला फल आप जैसा ग्रुप है। तो सेवा के प्रत्यक्ष फल के रूप में वा शोकेस के पहले शो पीस आप श्रेष्ठ आत्मायें निमित्त बनीं। इतना अपना महत्व जानते हो? नये पत्तों की चमक, दमक, रौनक, उमंग-उल्लास के विस्तार में आदि श्रेष्ठ आत्मायें छिप तो नहीं गये हो! पीछे वालो को आगे करते, स्वयं आगे से पीछे तो नहीं हो गये हो! यूँ तो बापदादा भी बच्चों को अपने से आगे करते, लेकिन आगे करके स्वयं पीछे नहीं होते। कई बच्चे होशियारी से जवाब देते हैं कि पीछे वालों को हम चाँस दे रहे हैं। चांस भले दो लेकिन चांसलर तो रहो ना। इतनी जिम्मेवारी समझते हो? जो पुरुषार्थ के कदम हम उठायेंगे हमें देख और भी ऐसे उमंग-उत्साह के कदम उठायेंगे। यह स्मृति सदा रहती है? नये, नये हैं, लेकिन पुरानों की वैल्यु अपनी है। पुराने पत्तों से कितनी दवाईयाँ बनती हैं। जानते हो ना। पुरानी चीजों का कितना मूल्य होता है। पुरानी वस्तुऍ विशेष यादगार बन जाती हैं। पुरानी चीजों के विशेष म्युजियम बनते हैं। पुरानों की वैल्यु जानते हुए उसी वैल्यु प्रमाण कदम उठा रहे हो? अपने आपको इतना अमूल्य रत्न समझते हो? बाप समान उड़ते पंछी हो? ब्रह्मा बाप की पालना का रिटर्न दे रहे हो? यह साकार पालना कोई साधारण पालना नहीं। इस अमूल्य पालना का रिटर्न अमूल्य बनना और बनाना है। विशेष पालना का रिटर्न, जीवन के हर कदम में विशेषता भरी हुई हो। ऐसे रिटर्न दे रहे हो? सारे कल्प के अन्दर एक बार यह पालना मिलती है। और उसके अधिकारी आप विशेष आत्मायें हो। ऐसे अपने अधिकार के भाग्य को जानते हो? तो आज ऐसे भाग्यवान बच्चों से मिलने आये हैं। तो समझा क्यों बुलाया है? रिजल्ट तो देखेंगे ना!

यह सारा ग्रुप तो ब्रह्मा बाप के हर कदम पर फालो करने वाले हैं ना क्योंकि इन साकार आंखों से देखा। सिर्फ दिव्य नेत्र से नहीं देखा। ऑखों देखी हुई बात फालो करना सहज होती है ना। ऐसे सहज पुरुषार्थ के भाग्य अधिकारी आत्मायें हो। समझा कौन हो? जाना, मैं कौन? मैं कौन की पहेली पक्की याद है ना! भूल तो नहीं जाते हो ना! बापदादा वतन में इस ग्रुप को देख रूह-रिहान कर रहे थे। क्या रूह-रिहान की होगी, जानते हो? देख रहे थे अपने भाग्य के मूल्य को कितना जाना है और कितने इस भाग्य के स्मृति स्वरूप रहते हैं। स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप। तो कितने समर्थ स्वरूप बने हैं। यह देख रहे थे। विस्मृति और स्मृति की सीढ़ी पर उतरते और चढ़ते हैं वा सदा स्मृति स्वरूप द्वारा उड़ती कला में जा रहे हैं। ऐसे तो नहीं, पुराने, पुरानी विधिपूर्वक चलने वाले हैं। जो उड़ती कला के बजाए अब तक भी सीढ़ी उतरते चढ़ते रहते। यह सब बच्चों की विधि देख रहे थे। ब्रह्मा बाप बच्चों के स्नेह में बोले, सदा हर कदम में सहज और श्रेष्ठ प्राप्ति का आधार मुझ बाप समान एक बात सदा जीवन में ब्रह्मा बाप की तावीज़ के रूप में याद रखें - "छोड़ो तो छूटो"। चाहे अपने तन की स्मृति को भुलाए देही-अभिमानी बनने में, चाहे सम्बन्ध के लगाव से नष्टोमोहा बनने में, चाहे अलौकिक सेवा की सफलता के क्षेत्र में, चाहे स्वभाव संस्कारों के सम्पर्क में - सभी बातों में छोड़ो तो छूटो। यह मेरेपन के हाथ इन डालियों को पकड़ डालियों के पंछी बना देते हैं। इस मेरेपन के हाथों को छोड़ो तो क्या बन जायेंगे - उड़ते पंछी। छोड़ना तो है नहीं, बनना तो यही है - यह नहीं। लेकिन हे आधार मूर्त श्रेष्ठ आत्मायें "बन गये" यह सेरीमनी मनाओ। सोच रहे हैं, प्लैन बनायेंगे, नहीं। सोच लिया, कौन सी सेरीमनी मनायेंगे! हर ग्रुप फंक्शन मनाते हैं ना। आप लोग कौन सा समारोह मनायेंगे?

आप तो ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले ब्रह्मा के साथी बच्चे हो ना। ईश्वरीय परिवार की बुजुर्ग आत्मायें हो। आप सबके ऊपर बापदादा और परिवार की सदा नज़र है कि यही हमारे आदि सैम्पुल स्वरूप हैं। सारे परिवार के लिए, बाप की सर्व आशाओं के दीपक हो। तो कौन सा समारोह करेंगे! बाप समान बन गये, जीवनमुक्त आत्मायें बन गये! नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप बन गये! संकल्प किया और बने। ऐसा समर्थ समारोह मनाओ। तैयार हो ना! वा अभी भी सोचते हो - करना तो चाहिए, चाहिए नहीं लेकिन बाप की सर्व चाह पूर्ण करने वाले हम आदि सैम्पुल हैं - ऐसे निश्चयबुद्धि विजयी रत्न, विजय का समारोह मनाओ। समझा किसलिए बुलाया है! स्पष्ट हो गया ना। इन सभी को ताज पहनाना। जिम्मेवारी की ताजपोशी मनवाना, इन्हों से। इसलिए आये हो ना! बोलते नहीं हो। बुजुर्ग हो गये हो! ब्रह्मा बाप को क्या देखा? अभी अभी बुजुर्ग और अभी अभी मिचनू किशोर। देखा ना। फालो फादर, हाँ जी करने में मिचनू बन जाओ और सेवा में बुजुर्ग। छोटे बच्चों की रौनक देखी ना - कितना मजे से कहते थे - हाँ जी, जी हाँ!

विशेष निमंत्रण पर विशेष आत्मायें आई हैं, अब विशेष सेवा की जिम्मेवारी का फिर से समारोह मनाना। बीच-बीच में ताज उतार देते हो। अभी ऐसा टाइट कर जाना जो उतारो नहीं। अच्छा फिर सुनेंगे कि समारोह की रिजल्ट क्या हुई! अच्छा।

सदा सर्व आत्माओं के निमित्त, उमंग-उत्साह दिलाने वाले, सदा हर पुरुषार्थ के कदम द्वारा औरों को तीव्र पुरुषार्थी बनाने वाले, व्यर्थ को सेकेण्ड में "छोड़ो और छूटो" करने वाले, सदा ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले, ऐसे सेवा के आदि रत्नों को, पालना की भाग्यवान विशेष आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

सेवाधारियों से:- सेवाधारियों को तो सदा ही उड़ते रहना चाहिए - क्योंकि यज्ञ सेवा का बल बहुत है। तो सेवाधारी बलवान बन गये ना। यज्ञ सेवा का कितना गायन है। अगर यज्ञ सेवा सच्ची दिल से करते हैं तो एक सेकण्ड का भी बहुत फल है। आप लोग तो कितने दिन सेवा में रहे हो। तो फलों के भण्डार इकट्ठे हो गये। इतने फल जमा हो गये जो 21 पीढ़ी तक वह फल खाते ही रहेंगे। सेवाधारी वहाँ जाकर माया के वश नहीं हो जाना। सदा सेवा में बिजी रहना। मंसा से शुद्ध संकल्प की सेवा और सम्पर्क सम्बन्ध वा वाणी द्वारा परिचय देने की सेवा। सदा ही सेवा में बिजी रहना। सेवा का पार्ट अविनाशी है। चाहे यहाँ रहो चाहे कहीं भी जाओ, सेवाधारी के साथ सदा ही सेवा है। सदा के सेवाधारी हो। सेवा में बिजी रहेंगे तो माया नहीं आयेगी। जब खाली स्थान होता है तो दूसरे आते हैं। मच्छर भी आयेंगे, खटमल भी आयेंगे। इसलिए सदा बिजी रहो तो माया आयेगी ही नहीं। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। माया नमस्कार करके चली जायेगी। ऐसे बहादुर बनकर जा रहे हो। ऐसे तो नहीं वहाँ जाकर कहेंगे, आज क्रोध आ गया, आज लोभ, मोह आ गया...माया पेपर लेगी, वह भी सुन रही है कि यह वायदा कर रहे हैं। जहाँ बाप है वहाँ माया क्या करेगी। सदा बाप साथ है या अलग हो। कुमार अकेले तो नहीं समझते हो। ऐसे तो नहीं कोई सुनने वाला नहीं, कोई बोलने वाला नहीं... बीमार पड़ेंगे तो क्या करेंगे? दूसरा साथी याद तो नहीं आयेगा? दूसरा साथी लायेंगे तो उसका सुनना भी पड़ेगा, खिलाना भी पड़ेगा, सम्भालना भी पड़ेगा। ऐसा बोझ उठाने की जरूरत ही क्या है। सदा हल्के रहो। सदा युगल रूप हो, दूसरी युगल क्या करेंगे! कभी संकल्प आता है, बीमार पड़ते हो तब आता है? जिस सम्बन्ध की याद आये उसी सम्बन्ध से बाप को याद करो, तो बीमारी में सोये सोये भी ऐसा अच्छा खाना बना लेंगे जैसे दूसरा बना गया। तो सदा साथ रहना, अकेला हूँ नहीं, कम्बाइन्ड हूँ। आप और बाप दोनों कम्बाइन्ड हो, अलग कोई कर नहीं सकता, यह चैलेन्ज करो। चैलेन्ज करने वाले हो न कि घबराने वाले। अच्छा।

प्रश्न:- संगमयुगी ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य क्या है? उस लक्ष्य को प्राप्त करने की विधि क्या है?

उत्तर:- संगमयुगी ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है सदा सन्तुष्ट रहना और दूसरों को सन्तुष्ट करना। ब्राह्मण अर्थात् समझदार, स्वयं भी सन्तुष्ट रहेंगे और दूसरों को भी रखेंगे। अगर दूसरे के असन्तुष्ट करने से असन्तुष्ट होते तो संगमयुगी ब्राह्मण जीवन का सुख नहीं ले सकते। शक्ति स्वरूप बन दूसरों के वायुमण्डल से स्वयं को किनारे कर लेना अर्थात् अपने को सेफ कर लेना यही साधन है इस लक्ष्य को प्राप्त करने का। दूसरे की असन्तुष्टता से स्वयं को असन्तुष्ट नहीं होना है। दूसरा किसी भी प्रकार से असन्तुष्ट करने के निमित्त बने तो स्वयं को किनारा करके आगे बढ़ते जाना है, रूकना नहीं है।

प्रश्न:- कौन से संस्कार अपने निजी संस्कार बना लो तो सदा उड़ती कला में उड़ते रहेंगे?

उत्तर:- अपना निजी संस्कार बनाओ कि हर बात में मुझे आगे बढ़ना है। दूसरा बढ़े या न बढ़े। दूसरे के पीछे स्वयं को नीचे नहीं आना है। सहानुभूति के कारण सहयोग देना दूसरी बात है लेकिन दूसरे के कारण स्वयं नीचे आ जाना यह ठीक नहीं। न व्यर्थ सुनो, न देखो। सेवा के भाव से न्यारा होकर देखो। दूसरे के कारण अपना समय और खुशी न गंवाओ तो सदा उड़ती कला में जाते रहेंगे।
वरदान:-
सदा मिलन के झूले में झूलने वाले तत त्वम् के वरदानी बाप समान भव |
जैसे बापदादा आप मालिकों की आज्ञा को मानकर मिलन मनाने के लिए आते हैं, जी हाज़िर का पाठ पढ़कर हाज़िर हो जाते हैं ऐसे ही तत् त्वम्। अमृतवेले से लेकर दिन के समाप्ति तक धर्म और कर्म में बाप समान बनो तो सदा मिलन के झूले में झूलते रहेंगे। इस मिलन के झूले में रहने से प्रकृति और माया दोनों ही आपके झूले को झुलाने वाले दासी बन जायेंगे। सर्व खजाने आपके इस श्रेष्ठ झूले का श्रृंगार बन जायेंगे।
स्लोगन:-
सदा ब्रह्मा बाप की भुजाओं में समाये रहो तो सेफ्टी का अनुभव करेंगे।