Wednesday, April 11, 2018

12-04-2018 प्रात:मुरली

12-04-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - किसी भी कारण से कुल कलंकित नहीं बनना है, धरत परिये धर्म न छोड़िये, बाप से किया हुआ वचन सदा याद रहे"
प्रश्नः-
बच्चों को कौन-सी खबरदारी हर क़दम पर रखना बहुत जरूरी है?
उत्तर:-
ईश्वर के सामने जो वचन लिया है, वायदा व प्रतिज्ञा की है वह किसी भी हालत में निभाना है। यह खबरदारी रखना बहुत जरूरी है। कभी भी बाप का बनने के बाद कीचक बन उल्टे कर्म नहीं करना। अगर उल्टा कर्म किया तो धर्मराज पूरा-पूरा हिसाब लेंगे। मनमत वा परमत पर नहीं चलना, हर कदम पर श्रीमत याद रहे।
गीत:-
तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो...  
ओम् शान्ति।
शिव भगवानुवाच अपने बच्चों सालिग्रामों प्रति। सालिग्राम आत्मा को कहा जाता है। बच्चे जानते हैं हमारा परमपिता परमात्मा है, जिसका नाम निराकार शिव ही है। व्यापारी लोग शिव डॉट (बिन्दु) को कहते हैं। बाबा ने समझाया है आत्मा भी डॉट (बिन्दु) है, जो भृकुटी के बीच में रहती है। चमकता है अजब सितारा। यह आत्मा की बात है। यह तो पहले निश्चय करना है। बरोबर हमारा निराकार बाबा शिव हमको पढ़ाते हैं। हमारा बाप शिव है। अहम् आत्मा हैं। रूद्र कहें तो भी निराकार है। सिर्फ नाम अलग है, चीज़ एक ही है। वह है परमपिता परम आत्मा, परे ते परे रहने वाला मनुष्य सृष्टि का बीजरूप। सर्व आत्माओं का बाप। यह निराकार आत्मा बोलती है साकार शरीर से। तुम बच्चे सम्मुख बैठे हो तो नशा चढ़ता है कि बरोबर शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं। बाबा का अपना शरीर नहीं है। बाकी हर एक आत्मा के शरीर का नाम अपना-अपना है। परमात्मा का एक ही नाम है। तो बाप समझाते हैं मैं निराकार शिव हूँ। मैं तुम बच्चों के मुआफिक मनुष्य सृष्टि पर पुनर्जन्म लेने लिए शरीर धारण करता हूँ। तुम सब साकारी हो, मैं साकारी सिर्फ अभी ही बनता हूँ। अभी ही सिर्फ प्रवेश कर पढ़ाता हूँ, इनकी आत्मा और तुम्हारी आत्मा सुनती है। यह अच्छी रीति धारण हो तब बाप के साथ लव हो। परन्तु शक्ल दिखाती है कि इतना लव किसका है नहीं। बाबा कहते ही मुखड़ा खिल जाना चाहिए। जैसे कन्या पति के साथ मिलती है, जेवर आदि पहनती है तो मुखड़ा खिल जाता है। तुम बच्चों को ज्ञान श्रृंगार कराया जाता है, तो खुशी का पारा चढ़ जाना चाहिए। बाबा तुम्हें कोई साकार रूप में नहीं फँसाते हैं। और सब तो देह-अभिमानी, अपने साकार तन में ही फँसाते रहते हैं। यह तो बाप कहते हैं मुझ निराकार बाप को याद करो। हे लाडले बच्चे, हे आत्मायें, मैं परम आत्मा इस ब्रह्मा तन से तुम बच्चों को पढ़ाता हूँ। नहीं तो कैसे पढ़ाऊं। पावन बनाने लिए जरूर शरीर चाहिए। यह ड्रामा में नूँध है। शरीर बिगर तो मैं आ नहीं सकता हूँ। जैसे ब्राह्मणों को खिलाते हैं तो आत्मा को बुलाते हैं। ब्राह्मण को कुछ होता थोड़ेही है। आत्मा बोलती है, समाचार सुनाती है। वह भी होता है ड्रामा अनुसार। ड्रामा में नूँध है, सो सुनाया। उसको पित्र कहा जाता है। सोल को पित्र कहा जाता है, जो एक शरीर छोड़ जाए दूसरा लेती है। अब तुम बच्चे जानते हो बाबा है ज्ञान-सागर। पानी के सागर की कोई बात नहीं।

मनुष्य तो देह-अभिमान में आते-आते कितने काले बन गये हैं। अब फिर तुम देही-अभिमानी बन गोरे बनते हो। आत्मा प्योर बनती जाती है। जितना तुम बाबा को याद करेंगे तो इस योग से तुम्हारे विकर्म दग्ध होंगे। पाप नाश होंगे। तुम जानते हो मम्मा बाबा कितनी मेहनत करते होंगे तो भी कर्मभोग तो चुक्तू करना पड़ता है। जन्म-जन्मान्तर का बोझा सिर पर रहा हुआ है। वह अन्त में हिसाब-किताब चुक्तू होना है नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। बच्चों को पता है रूद्र माला है ना। 8 की भी माला है, 108 और 16108 की भी माला है। प्रजा तो अनगिनत है। है तो रूद्र माला ही ना। सारी दुनिया में जो भी आत्मायें हैं सब रूद्र माला है। बाप के सब बच्चे हैं। सारा सिजरा बनता है ना। मनुष्य बहुत बड़ा सिजरा रखते हैं फिर वह सरनेम पड़ जाता है। यह है श्री श्री शिवबाबा की माला। बाप कहते हैं बच्चे देही-अभिमानी बनकर बाप को पूरा याद करना है। तुम अपने को आत्मा समझ बाप को याद करेंगे तो तुम्हारे विकर्म दग्ध होंगे। नहीं तो बहुत डन्डे खाने पड़ेंगे।

बाप बार-बार कहते हैं बच्चे भूलो मत, परन्तु फिर भी माया भुला देती है। बाप कहते हैं बच्चे अपने पास चार्ट रखो - कितना समय हम शिवबाबा को याद करते हैं। एक घड़ी याद करना शुरू करो फिर प्रैक्टिस पड़ती जायेगी। ऐसी अवस्था जमाओ जो अन्त में बाबा की याद रहे। ऐसी याद में रहने वाले ही विजय माला के 8 रत्न बनते हैं, मेहनत चाहिए। जितना जो करेंगे सो पायेंगे। सन्यासी लोग तो घरबार छोड़ जाते हैं फिर महलों में आकर बैठते हैं। वास्तव में यह लॉ नहीं है। तुमको तो वहाँ अथाह सुख मिलता है। बाप गले लगाकर पुचकार करते हैं - मीठे बच्चे, तुम चाहते हो हम साहूकार ते साहूकार बनें तो ऐसा पुरुषार्थ करो भविष्य के लिए। बाकी यहाँ की साहूकारी तो मिट्टी में मिल जानी है। किसकी दबी रही धूल में.. एक्सीडेंट होते आग लगती रहती है। एरोप्लेन गिरते हैं तो चोर लोग झट लूट-मार कर सामान चोरी कर भाग जाते हैं। सो अभी तो यह बाम्ब्स आदि बने हैं, इससे तो ढेर के ढेर मरेंगे। यह अभी की बातें फिर गाई हुई हैं। जो भी लखपति आदि हैं सब खत्म हो जायेंगे। अमेरिका कितना साहूकार है। इस मृत्युलोक में अमेरिका जैसे स्वर्ग है। परन्तु रूण्य के पानी मिसल (मृगतृष्णा समान) है। यह तुम जानते हो वह खुद भी समझते हैं मौत तो बेशक सामने खड़ा है। जरूर भगवान भी होगा ना। परमपिता परमात्मा आते ही हैं स्थापना और विनाश का कर्म कराने। करन-करावनहार है ना। ब्रह्मा द्वारा स्थापना.. अब तुम बैठे हो ना। बच्चे ही ब्राह्मण कहलाते हैं। तुम दादे से वर्सा लेते हो। श्रीमत श्रेष्ठ गाई हुई है तो उस पर चलना है। देवता बनना है। बाप कहते हैं इस समय हर एक दुर्योधन और द्रोपदी है। एक कथा में है द्रोपदी किसके घर में रही तो कीचक उनके पिछाड़ी पड़े। द्रोपदियाँ तो वास्तव में सब ठहरी। कुमारी अथवा माता सब द्रोपदियाँ हैं। कन्यायें सर्विस पर जाती हैं तो कीचक पिछाड़ी में पड़ते हैं। फिर लिखा है भीम ने कीचक को मारा। कीचक माना एकदम गन्दे, जो पिछाड़ी पड़ते हैं। तो द्रोपदियों को बाप आकर नंगन होने से बचाते हैं। कन्याओं की तो बहुत सम्भाल करनी पड़ती है। कीचक आदि की अभी की बात है, उनसे बहुत सम्भाल करते रहना है। अगर बाप के पास आये और फिर कीचक बने तो पता नहीं धर्मराज क्या हाल कर देंगे। वह इन बच्चों को साक्षात्कार कराया हुआ है। बहुत सजायें खाते थे। फिर बाबा से पूछा था, बाबा ने कहा साक्षात्कार करायेंगे तो जरूर सहन करना पड़ेगा। इनका हिसाब-किताब उनके पापों से कट जायेगा। बाबा रखता तो किसका भी नहीं है। तो बाप समझाते हैं - कीचक अथवा दुर्योधन नहीं बनो। कंस, जरासंधी, शिशुपाल आदि कितने नाम पड़े हुए हैं। कंस अर्थात् जो विकारी होते हैं। कन्याओं को बहुत सताते हैं।

अब तुम बाप के बच्चे ब्राह्मण बने हो, देवता बनने लिए। तो ब्राह्मण कुल को कलंक नहीं लगाना है। कलंक लगायेंगे तो कुल कलंकित बन जायेंगे। कुल कलंकित का तो कभी मुख भी नहीं देखना चाहिए। उन जैसा पाप आत्मा दुनिया में कोई होता नहीं। तो यहाँ बेहद का बाप जो आकर स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, उनको भी तलाक दे देते हैं। उनको अजामिल पापी कहा जाता है। परन्तु अजामिल जैसे पापियों का भी उद्धार तो होना ही है। सजायें खाकर बहुत पीड़ित होते हैं। आत्माओं को बड़ा दु:ख होता है। परमपिता परमात्मा बेहद के बाप को फारकती दे देते हैं। इन जैसा पाप आत्मा इस दुनिया में कोई होता नहीं। दुनिया तो बहुत गन्दी है। बड़ी खबरदारी रखनी है। पहले-पहले जब भट्ठी में रहे तो कितनी मात-पिता को सम्भाल करनी पड़ी। माया बड़ी जबरदस्त है इसलिए बाबा कहते हैं बच्चे इतनी ताकत है जो पवित्र रह बाप से वर्सा लो? बुद्धि कहती है - जब हम बच्चे बने हैं तो बच्चे बनकर बाप का नाम बदनाम थोड़ेही करेंगे। बाप कहते हैं मैं आकर तुम बच्चों को पावन बनाने की कितनी मेहनत करता हूँ। पतित दुनिया, पतित शरीर में आता हूँ। फिर भी कलंक लगाया तो याद रखना बहुत कड़ी सजायें खानी पड़ेंगी। यहाँ तो प्राप्ति बहुत है। स्वर्ग का मालिक बनते हो। लेकिन चलते-चलते बाप का हाथ छोड़ा तो एकदम मिट्टी में मिल जायेंगे। सम्मुख रहने वालों को भी माया नाक से पकड़ लेती है, इसीलिए बहुत खबरदार रहना है। बाप का बनकर प्रतिज्ञा कर और फिर पवित्र न रहे तो भी बहुत कड़ी सज़ा खानी पड़ेगी। ईश्वर के साथ वचन कर (प्रतिज्ञा करके) पूरा निभाना है। ईश्वर साथ वचन अथवा प्रतिज्ञा करना यह बात अभी ही होती है। शिवबाबा कहते हैं प्रतिज्ञा करो हम पवित्र बन भारत को स्वर्ग बनायेंगे। अगर प्रतिज्ञा तोड़ी तो खलास। धरत परिये धर्म न छोड़िये। मर जाओ तो भी यह प्रतिज्ञा नहीं तोड़ना। जबान करके फिर बदल जाते हैं ना। अभी तुम जबान करते हो परमपिता परमात्मा के साथ। अगर जबान कर बदल गये तो धर्मराज द्वारा दण्ड बहुत खाना पड़ेगा। फल देने वाला तो बाप है ना। दान-पुण्य का भी फल दिलाते हैं, तो पाप की सजा भी दिलाते हैं। करनकरावनहार है तो तुमको बड़ा खबरदार रहना है। यहाँ तो सम्मुख बैठे हो। बाहर में तो हंस को बगुलों के साथ रहना पड़ता है। बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते काके, मामे, चाचे को देखते एक बाप को ही याद करना है। यह कोई वह कॉमन सतसंग नहीं है, जहाँ ढेर आकर इकट्ठे हो। वह क्रिश्चियन लोग तो एक ही बार लेक्चर में कितने क्रिश्चियन बना लेते हैं। यहाँ ऐसे नहीं हो सकता। यहाँ तो जीते जी मरना पड़ता है। श्रीमत पर चलना पड़ता है। देह-अभिमान छोड़ अपने को आत्मा समझना है। आत्मा-परमात्मा अलग रहे बहुकाल... अब जबकि वह सतगुरू मिला है दलाल के रूप में। कहते हैं मुझ बाप को याद करो तो तुम्हारा बेड़ा पार हो सकता है। हाथ छोड़ा तो खत्म। महान पाप-आत्मा बन जाते हैं। ऐसे महान पापात्मा भी देखने हो तो यहाँ देखो। बाप कहते हैं तुम बच्चे ऐसे पतित नहीं बनना। पुण्य आत्मा बनना। पापों से बचेंगे तब जब योग में रहेंगे। बॉक्सिंग में खबरदारी चाहिए। नहीं तो माया कभी पीठ पर घूँसा मार देगी। माया पर जीत पाना मासी का घर नहीं है। यह है सतोप्रधान सन्यास। तुम बच्चों को बहुत सम्भाल रखनी है। दूसरी मत पर चला यह मरा। बाबा को लिखते हैं - बाबा, माया को कहो हम पर क्षमा करे। बाबा कहते - नहीं, अभी तो माया को हम ऑर्डर करते हैं कि खूब तूफान मचाओ। दु:ख के, विकर्मों के एकदम पहाड़ गिराओ। अच्छी तरह नाक से पकड़कर फथकाओ। देखो, स्वर्ग के लायक है? ऐसे थोड़ेही कहेंगे कृपा करो, आशीर्वाद करो। स्कूल में टीचर किस पर भी कृपा करते हैं क्या? उन्हें तो पढ़ना है। यह नॉलेज है, अन्धश्रद्धा की कोई बात नहीं। यह कोई कॉमन सतसंग नहीं है। यह है ईश्वरीय सतसंग। अच्छा!

मात-पिता बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) बाप से जो प्रतिज्ञा की है उस पर कायम रहना है। कभी भी जबान दे बदलना नहीं है। बहुत-बहुत खबरदार रहना है।
2) अपना और दूसरों का ज्ञान श्रृंगार करना है। कभी भी देह-अभिमानी बन साकार शरीर में न फँसना है, न किसी को फँसाना है।
वरदान:-
हर सेकण्ड स्वयं को भरपूर अनुभव कर सदा सेफ रहने वाले स्मृति सो समर्थ स्वरूप भव|
बापदादा द्वारा संगमयुग पर जो भी खजाने मिले हैं उनसे स्वयं को सदा भरपूर रखो, जितना भरपूर उतना हलचल नहीं, भरपूर चीज़ में दूसरी कोई चीज़ आ नहीं सकती, ऐसे नहीं कह सकते कि सहनशक्ति वा शान्ति की शक्ति नहीं है, थोड़ा क्रोध या आवेश आ जाता है, कोई दुश्मन जबरदस्ती तब आता है जब अलबेलापन है या डबल लाक नहीं है। याद और सेवा का डबल लाक लगा दो, स्मृति स्वरूप रहो तो समर्थ बन सदा ही सेफ रहेंगे।
स्लोगन:-
विश्व का नव निर्माण करने के लिए अपनी स्थिति निर्मानचित बनाओ।