Tuesday, April 17, 2018

17-04-2018 प्रात:मुरली

17-04-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - ऐसी कोई ग़फलत मत करो जिससे माया को थप्पड़ लगाने का चान्स मिले, अगर श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो माया थप्पड़ मार मुँह फेर देगी।"
प्रश्नः-
सूर्यवंशी राजधानी में एयरकंडीशन टिकेट लेने का आधार क्या है, वह किन्हें प्राप्त होती है?
उत्तर:-
सूर्यवंशी राजधानी में एयरकन्डीशन टिकेट लेने के लिए हर कदम श्रीमत पर चलना पड़े। अपना सब कुछ बाप पर अर्पण करना पड़े। जो पूरे अर्पण होते हैं वही साहूकार बनते हैं। सूर्यवंशी राजधानी है ही एयरकन्डीशन। तुम्हारी एम आबजेक्ट ही है सूर्यवंशी पद प्राप्त करना। बाकी नम्बरवार पद तो हैं ही।
गीत:-
वह बड़ा खुशनसीब है.....  
ओम् शान्ति।
इस गीत के अर्थ को तुम ब्राह्मण कुल भूषण बच्चे ही जानते हो। अभी तुम बच्चे हो ब्राह्मण सम्प्रदाय फिर दैवी सम्प्रदाय बनेंगे। बच्चों को बाप बैठ समझाते हैं, जबकि बेहद का बाप सम्मुख है और उससे बेहद का वर्सा मिल रहा है। बाकी और क्या चाहिए। भक्ति मार्ग कब से चलता है! यह भी कोई को पता नहीं। भक्ति मार्ग वाले भक्त भगवान को अथवा ब्राइड्स ब्राइडग्रूम को याद करती हैं। परन्तु वन्डर यह है - बाप को जानते नहीं। ऐसा कब देखा? सजनी साजन को नहीं जाने तो याद कर कैसे सके? भगवान तो सबका बाप ठहरा। बच्चे बाप को याद करते हैं परन्तु पहचान बिगर याद करना सब व्यर्थ है इसीलिए याद करने से कोई फ़ायदा नहीं निकलता। याद करते-करते कोई भी उस एम आबजेक्ट को पाते नहीं। भगवान कौन है, उससे क्या मिलेगा, कुछ भी नहीं जानते। इतने सब धर्म हैं। क्राइस्ट, बौद्ध आदि प्रीसेप्टर अथवा धर्म स्थापन करने वालों को उनके फालोअर्स याद करते हैं परन्तु उनको याद करने से हमको क्या मिलना है! कुछ भी पता नहीं है। इससे तो जिस्मानी पढ़ाई अच्छी है। एम आबजेक्ट तो बुद्धि में रहती है ना। बाप से क्या मिलता है, टीचर से क्या मिलता है - वह समझ सकते हैं। गुरू से क्या मिलता है - यह कोई भी नहीं समझ सकते। अब तुम बच्चों को निश्चय हुआ है कि हम बाप के बने हैं। बाबा हमको 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक आ करके स्वर्ग का मालिक बनाते हैं अथवा शान्तिधाम का मालिक बनाते हैं। बाप कहते हैं लाडले बच्चों तुम मुझसे अपना वर्सा लेंगे ना। सब कहते हैं हाँ बाबा क्यों नहीं लेंगे। अच्छा चन्द्रवंशी राम पद पाने में राज़ी होंगे? तुमको क्या चाहिए? बाप सौगात ले आये हैं। तुम सूर्यवंशी लक्ष्मी को वरेंगे या चन्द्रवंशी सीता को? राम के पुजारी कृष्ण का नाम सुनना नहीं चाहते हैं। राम को त्रेता में, कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं। वह समझते हैं राम बड़ा है। यह उन्हों का आपस में झगड़ा हो जाता है। जैसे छोटे बच्चों का झगड़ा होता है ना।

बाप बैठ समझाते हैं - हूबहू जैसे कल्प पहले समझाया था फिर से समझा रहे हैं। तुम फिर से आकर वर्सा ले रहे हो। तुम्हारी एम आबजेक्ट है ही बेहद का वर्सा लेने की। वह है सूर्यवंशी राज्य पद। सेकेण्ड ग्रेड है चन्द्रवंशी। जैसे एयरकंडीशन से ऊंच तो कुछ होता नहीं। एयरकंडीशन, फर्स्टक्लास, सेकेण्ड क्लास होता है ना। तो सतयुग की पूरी राजधानी एयरकंडीशन समझो फिर है फर्स्टक्लास। तो बाप कहते हैं तुम एयरकंडीशन का सूर्यवंशी राज्य लेंगे वा चन्द्रवंशी फर्स्टक्लास का? उससे भी कम तो फिर सेकण्ड क्लास में नम्बरवार वारिस बनो फिर तुम पीछे-पीछे आकर राज्य पायेंगे। नहीं तो थर्डक्लास प्रजा। फिर उनमें भी टिकेट रिजर्व होती हैं। फर्स्टक्लास रिजर्व, सेकेण्ड क्लास रिजर्व। नम्बरवार दर्जे तो होते हैं ना। सुख तो वहाँ है ही। बाकी कम्पार्टमेंट तो अलग-अलग हैं। साहूकार आदमी टिकेट लेंगे एयरकंडीशन की। तुम्हारे में साहूकार कौन बनते हैं? जो सब कुछ बाप को दे देते हैं। बाबा यह सब कुछ आपका है। भारत में ही महिमा गाई हुई है। सौदागर, रत्नागर, जादूगर.. यह महिमा है बाप की, न कि कृष्ण की। कृष्ण ने तो वर्सा लिया। सतयुग में प्रालब्ध पाई। वह भी बाप का बना। प्रालब्ध कहीं से तो पाई होगी ना। लक्ष्मी-नारायण सतयुग में प्रालब्ध भोगते हैं। अब तुम बच्चे अच्छी रीति जानते हो जरूर उन्होंने पास्ट में प्रालब्ध बनाई होगी ना। भारत की महिमा बहुत है, भारत जितना ऊंच देश कोई हो नहीं सकता। भारत ही परमपिता परमात्मा का बर्थ प्लेस है। यह राज़ कोई की बुद्धि में नहीं बैठता। परमात्मा ही सभी को सुख-शान्ति देते हैं आधाकल्प के लिए। भारत नम्बरवन तीर्थ है। परन्तु गीता में नाम डाल दिया है कृष्ण का, इसलिए इसका मर्तबा कम हो गया है। नहीं तो सभी मनुष्य उस बाप को ही मानते और कोई पर फूल नहीं चढ़ाते। सर्व का पतित-पावन बाप, उनका सोमनाथ मन्दिर है। शिव पर ही सभी आकर माथा टेकते हैं। परन्तु ड्रामा अनुसार एक बाप को भूलने से सृष्टि की हालत कैसी हो जाती है, इसलिए शिवबाबा आते हैं। कोई तो निमित्त बनते हैं ना। अब बाप कहते हैं अशरीरी भव। अपने को आत्मा निश्चय करो। मैं आत्मा किसकी सन्तान हूँ, यह कोई जानते नहीं हैं। वन्डर है ना। कहते भी हैं ओ गॉड फादर, रहम करो। शिव जयन्ती भी मनाते हैं परन्तु वह कब आये थे, यह कोई को पता नहीं है। यह पांच हजार वर्ष की बात है, बाप ही आकर नई दुनिया सतयुग स्थापन करते हैं। सतयुग की आयु लाखों वर्ष तो है नहीं।

बाप बच्चों को कितना सहज कर समझाते हैं - सिर्फ याद करो, गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनो। विष्णु को ही सभी अलंकार दिये हैं। शंख भी दिया है, कमल पुष्प भी दिया है। वास्तव में देवताओं को यह अलंकार थोड़ेही दिये जाते हैं। यह कितनी गुह्य गम्भीर बातें हैं। हैं ब्राह्मणों के अलंकार परन्तु ब्राह्मणों को कैसे देवें। आज ब्राह्मण हैं, कल शूद्र बन पड़ते हैं। ब्रह्माकुमार से शूद्र कुमार बन पड़ते। माया देरी नहीं करती। अगर कोई ग़फलत की, बाप की श्रीमत पर न चला, बुद्धि खराब हुई तो माया अच्छी तरह चमाट मार मुँह फेर देती है। मनुष्य गुस्से में आकर कहते हैं ना - थप्पड़ मार मुँह फेर दूँगा। तो माया भी ऐसी है। बाप को भूले और माया एक सेकेण्ड में थप्पड़ लगाए मुँह फेर देती है। जैसे एक सेकण्ड में जीवनमुक्ति पाते हैं, ऐसे सेकण्ड में जीवनमुक्ति खत्म कर देते हैं। कितने अच्छे-अच्छे को माया पकड़ लेती है। देखती है कि यह कहाँ ग़फलत में है तो झट थप्पड़ लगा देती है। बाप तो बच्चों का मुंह पुरानी दुनिया से फेरकर नई दुनिया तरफ करते हैं।

लौकिक बाप कोई गरीब होता है, पुरानी झोपड़ी में रहता है, फिर नया बनाते हैं तो बच्चे की बुद्धि में बैठ जाता है कि बस अब नया मकान तैयार होगा, हम बैठेंगे। यह पुराना तोड़ देंगे। तुम्हारे लिए भी अब बाप ने हथेली पर बहिश्त लाया है वा वैकुण्ठ लाया है। कहते हैं लाडले बच्चे... आत्माओं से बात करते हैं। इन ऑखों द्वारा तुम बच्चों को देख भी रहे हैं। कश्मीर में ब्राह्मण लोग बहुत होते हैं। श्राध आदि भी वहाँ खिलाते हैं, ब्राह्मण में आत्मा को बुलाते हैं, यह सभी साक्षात्कार का राज़ रखा हुआ है। ऐसे नहीं कि आत्मा कोई से निकलकर आती है। अपने बड़ों की आत्मा को बुलाते हैं। उनके लिए सभी कुछ तैयार रखते हैं। समझते हैं फलाने की आत्मा आयेगी। फिर उनसे पूछा भी जाता है, आगे आत्मा बोलती थी। फिर उनसे पूछा जाता है आप राज़ी खुशी हैं? वह सुनाती है। यह भी ड्रामा अनुसार चलता है। कभी-कभी बताते भी हैं मैंने फलाने घर में जन्म लिया है। यह सब साक्षात्कार की रीति ड्रामा में बनी है, जो रिपीट होती है। बाकी आत्मा कोई आती नहीं है। आगे टेबुल में भी बुलाते थे। बाबा को सभी अनुभव है। अब टेबुल में तो आत्मा आ न सके। जिसने जो कुछ किया वह ड्रामा में था, सो हुआ। ड्रामा को कितना अच्छी रीति पकड़ना पड़ता है। भोग लगाया जाता है, आत्मा को बुलाया जाता है। यह सभी ड्रामा में नूँध है। इसमें संशय की कोई बात नहीं। नये आदमी न समझने के कारण मूँझते हैं। बाप जादूगर भी है ना। समझाते हैं मैं भी ड्रामा के वश में हूँ। ऐसे नहीं ड्रामा के बिगर कुछ कर सकता हूँ। नहीं। बच्चे बीमार पड़ते हैं, ऐसे नहीं मैं ठीक कर दूँगा, आपरेशन कराने से छुड़ा दूँगा। नहीं, कर्मभोग तो सभी को भोगना ही है। तुम्हारे ऊपर तो बोझा बहुत है क्योंकि तुम सभी से पुराने हो। सतोप्रधान से एकदम तमोप्रधान बने हो।

अब तुम बच्चों को बाप मिला है तो बाप से वर्सा लेना चाहिए। तुम जानते हो कल्प-कल्प हम ड्रामा अनुसार बाप से वर्सा लेते हैं। जो सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी घराने के होंगे वह अवश्य आयेंगे। जो देवी-देवता थे फिर शूद्र बन गये हैं फिर वही ब्राह्मण बन दैवी सम्प्रदाय बनेंगे। यह बातें बाप बिगर कोई समझा न सके। बाप को बच्चे कितने मीठे लगते हैं! कहते हैं तुम वही कल्प पहले वाले मेरे बच्चे हो। मैं कल्प-कल्प आकर तुमको पढ़ाता हूँ। कितनी वन्डरफुल बातें हैं! निराकार भगवानुवाच शरीर से वाच करेंगे ना। शरीर अलग हो जाता तो आत्मा वाच कर न सके। आत्मा डिटैच हो जाती है। अब बाप कहते हैं अशरीरी भव। ऐसे नहीं कि प्राणायाम आदि चढ़ाना है। नहीं। समझना है मैं आत्मा अविनाशी हूँ। मेरी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। बाप खुद कहते हैं मेरी आत्मा भी जो एक्ट करती है वह पार्ट सारा भरा हुआ है। भक्ति मार्ग में भी वही पार्ट चलता है। कोई ने शराब पिया ही नहीं है तो टेस्ट का पता कैसे हो सकता है। ज्ञान भी जब लेवे तब पता पड़े। ज्ञान से ही सद्गति होती है। बाप कहते हैं मै सर्व का सद्गति दाता हूँ। सर्वोदया लीडर्स हैं ना। कितने किस्म-किस्म के हैं! वास्तव में तो सर्व पर दया करने वाला बाप है ना। सभी कहते हैं हे भगवान रहम करो। तो सभी पर रहम वह करते हैं। बाकी सब हैं खुद के रहम करने वाले। बाप तो सारी दुनिया को सतोप्रधान बनाते हैं। उसमें तत्व भी आ जाते हैं। यह काम एक परमात्मा का ही है। तो सर्वोदया का अर्थ कितना बड़ा है, एकदम सर्व पर दया कर देते हैं। स्वर्ग की स्थापना में कोई भी दु:खी नहीं होता है। वहाँ नम्बरवन फर्नीचर, वैभव आदि मिलते हैं। दु:ख देने वाले जानवर, मक्खी, मच्छर आदि कोई नहीं होता। यहाँ भी बड़े आदमी के घर में कितनी सफाई होती है! कभी तुम मक्खी नहीं देखेंगे। कोई मच्छर घुस न सके। स्वर्ग में कोई की ताकत नहीं जो ऐसे गन्द करने वाली कोई चीज़ हो। नहीं। नैचुरल फूलों आदि की खुशबू रहती है। तुमको सूक्ष्मवतन में शिवबाबा शूबीरस भी पिलाते हैं। अब सूक्ष्मवतन में तो कुछ है नहीं। यह सभी साक्षात्कार हैं। वैकुण्ठ में कितने अच्छे फल बगीचे आदि होते हैं! सूक्ष्मवतन में थोड़ेही बगीचा रखा है। यह है सभी साक्षात्कार। यहाँ बैठे हुए तुम सभी साक्षात्कार करते हो। गीत भी बड़ा फर्स्टक्लास है। तुम जानते हो हमको बाप मिला है और क्या चाहिए! बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेते हैं तो बाप को याद करना चाहिए। बाप की मत मशहूर है। श्रीमत से हम श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनेंगे।

सन्यासी कहते हैं यह काग विष्ठा समान सुख है। परन्तु उन्हों को यह पता नहीं है कि सतयुग में सदैव सुख था। छोटेपन में यह राधे-कृष्ण हैं, इनके चरित्र आदि कुछ है नहीं। स्वर्ग के बच्चे होते ही अच्छे हैं। भल करके मुरली से डांस आदि करते होंगे। बाकी ज्ञान नहीं सुनाते। श्रीकृष्ण को मुरली दी है तब भला सरस्वती कहाँ गई। सरस्वती को तो सितार देते हैं तो बड़ी वह ठहरी ना! यह सब है भक्ति मार्ग, गुड़ियों का खेल। देवी देवताओं की मूर्ति बनाकर, पूजा आदि करके फिर डुबो देते हैं। इस पर तुम्हारा एक गीत भी बना हुआ है, इसको कहा जाता है ब्लाइन्ड फेथ। अच्छा !

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) हर एक इस ड्रामा के वश है, इस ड्रामा की किसी भी सीन को देखते संशय नहीं उठाना है। ड्रामा के हर राज़ को अच्छी रीति समझकर अडोल रहना है।
2) अपने को अविनाशी आत्मा समझ इस शरीर से डिटैच हो अशरीरी बनने का अभ्यास करना है।
वरदान:-
बाप के दिये हुए खजाने को मनन कर अपना बनाने वाले सदा हर्षित, सदा निश्चिंत भव |
आप बच्चों के मनन वा सिमरण करने का चित्र भक्ति मार्ग में विष्णु का दिखाया है। सांप को शैया बना दिया अर्थात् विकार अधीन हो गये। माया से हार खाने की, युद्ध करने की कोई चिंता नहीं, सदा मायाजीत अर्थात् निश्चिंत। रोज़ ज्ञान की नई-नई प्वाइंट स्मृति में रख मनन करो तो बड़ा मजा आयेगा, सदा हर्षित रहेंगे क्योंकि बाप का दिया हुआ खजाना मनन करने से अपना अनुभव होता है।
स्लोगन:-
स्व परिवर्तक वह है जिसके अन्दर सदा यह शुभ भावना इमर्ज रहे कि बदला नहीं लेना है बदलकर दिखाना है।