Monday, January 30, 2017

मुरली 30 जनवरी 2017

30-01-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– किसी भी प्रकार की हबच (लालच) तुम बच्चों को नहीं रखनी है, किसी से भी कुछ मांगना नहीं है, क्योंकि तुम दाता के बच्चे देने वाले हो।”
प्रश्न:
तुम गाडली स्टूडेन्ट हो, तुम्हारा लक्ष्य क्या है, क्या नहीं?
उत्तर:
तुम्हारा लक्ष्य है– बाप द्वारा जो नॉलेज मिल रही है, उसे धारण करना, पास विद आनर बनना। बाकी यह चाहिए, यह चाहिए... ऐसी इच्छायें रखना तुम्हारा लक्ष्य नहीं। तुम किसी भी मनुष्य आत्मा से लेनदेन करके हिसाब-किताब नहीं बनाओ। बाप की याद में रह कर्मातीत बनने का पुरूषार्थ करो।
गीत:-
बचपन के दिन भुला न देना...   
ओम् शान्ति।
बच्चे जानते हैं कि यह है रूहानी बाप और बच्चों का सम्बन्ध। रूहानी बाप अब बैठे हैं और बच्चे भी बैठे हैं। सन्यासी आदि होंगे– अपने आश्रम से कहाँ जायेंगे तो कहेंगे फलाना सन्यासी फलानी जगह रहने वाला है। गीता शास्त्र आदि सुनाते हैं। वह कोई नई बात नहीं। ईश्वर सर्वव्यापी कहने से सारा ज्ञान ही खत्म हो जाता है। अब यह तो है रूहानी बाप जिसको सब रूहें याद करती हैं। रूह ही कहती है– ओ परमपिता परमात्मा। जब दु:ख होता है तो लौकिक को कुछ नहीं कहेंगे। बेहद के बाप को ही याद करेंगे। सन्यासी होंगे तो ब्रह्म तत्व को याद करेंगे। वह हैं ही ब्रह्म ज्ञानी। बाप को ही याद नहीं करते। शिवोहम् कहते हैं, मैं आत्मा सो परमात्मा हूँ। फिर ब्रह्म अथवा तत्व तो रहने का स्थान है। यह बातें बिल्कुल नई हैं। यह ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है। यह जो शास्त्र हैं, उनमें मेरा ज्ञान नहीं है। मेरा ज्ञान न होने कारण तुम जब किसको समझाते हो तो कहते हैं यह तो नई बात है। निराकार परमात्मा ज्ञान देते हैं, यह उन्हों की बुद्धि में ही नहीं आता है। वह तो समझते हैं कृष्ण ने ज्ञान सुनाया है तो मूँझ पड़ते हैं। बाप तो एक-एक बात सिद्ध करके बतलाते हैं। भक्ति मार्ग में तुम सब याद करते हो। भगत तो सब भगत हैं। भगवान तो एक होना चाहिए। सर्व में भगवान समझने से सभी को पूजने लग जाते हैं। पहले अव्यभिचारी एक शिव की भक्ति होती है परन्तु ज्ञान नहीं रहता कि वह क्या करके गये हैं, कब आये थे, यह नहीं जानते हैं। परन्तु वह है सतोप्रधान भक्ति। पूजा उसकी होती है जिससे सुख मिलता है। लक्ष्मी-नारायण के राज्य में भी अपार सुख था। वह स्वर्ग के देवतायें थे। लक्ष्मी-नारायण को सतयुग का पहला-पहला महाराजा-महारानी मानते हैं। परन्तु सतयुग की आयु नहीं जानते हैं। बाप हर एक बात बच्चों को ही समझाते हैं। बच्चे ही ब्राह्मण बनेंगे। यह नई रचना है ना। तुम सबको समझा सकते हो कि परमपिता परमात्मा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा नई सृष्टि रचते हैं, यह तो सब समझते हैं। नहीं तो प्रजापिता क्यों कहते हैं? यह बातें तुम बच्चे ही जानते हो दूसरा कोई नहीं जानते। उन्हों को यह नई-नई बातें समझ में नहीं आती। जब सुनते-सुनते पक्के हो जाते हैं तब समझते हैं हम कितना घोर अन्धियारे में थे। न भगवान को जानते थे, न देवताओं को जानते थे। जो पास्ट हो जाते हैं उन्हों की ही भक्ति की जाती है। फिर पूछो परमपिता परमात्मा जिसकी तुम जयन्ती मनाते हो उसके साथ तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? वह क्या करके गये हैं? कुछ भी बता नहीं सकेंगे। कृष्ण के लिए सिर्फ कहते हैं मक्खन चुराया, यह किया, ज्ञान दिया। कितना घोटाला है। दाता तो एक ईश्वर ही है। कृष्ण के लिए तो दाता नहीं कहेंगे। वह तो मूंझे हुए हैं। यह सब ड्रामा में नूंध है। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। नटशेल में थोड़ी बातें भी मनुष्यों की बुद्धि में नहीं बैठती। अगर एक-एक के 84 जन्मों का वृतान्त बैठ निकालें तो पता नहीं कितना हो जाए। बाप कहते हैं इन सब बातों को छोड़ मामेकम् याद करो। थोड़ा विस्तार से कभी समझाया जाता है तो मनुष्यों का संशय मिट जाए। बाकी बात तो थोड़ी है– मुझे याद करो। जैसे मन्त्र देते हैं ईश्वर को याद करो। परन्तु वह ऐसे नहीं कहेंगे कि ईश्वर को याद करने से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और ईश्वर के पास जायेंगे। यह तो बाप ही समझाते हैं तो गंगा स्नान से विकर्म विनाश नहीं होंगे। इस समय हर एक पर विकर्मों का बोझा बहुत भारी है। सुकर्म थोड़े होते हैं बाकी विकर्म तो जन्म-जन्मान्तर के बहुत हैं। कितना ज्ञान और योग में रहते हैं तो भी इतने विकर्म हैं जो छूटते ही नही हैं। जब कर्मातीत बन जायेंगे फिर तो तुमको नया जन्म नई दुनिया में मिलेगा। अगर कुछ विकर्म रहे हुए होंगे तो पुरानी दुनिया में ही दूसरा जन्म लेना पड़ेगा। ज्ञान तो बच्चों को बहुत अच्छा मिल रहा है। बाप कहते हैं और कुछ नहीं समझते हो तो बाप को याद करो इससे भी सेकेण्ड में स्वर्ग की बादशाही मिल जायेगी। एक कहानी भी है– खुदा-दोस्त की। एक रोज के लिए बादशाही देते थे। अब तुम जानते हो बाबा ही त्वमेव माताश्च पिता, बन्धू.... हो गया, तो खुदा दोस्त हुआ ना। अल्लाह अवलदीन, खुदा दोस्त, यह सब बातें इस समय की हैं। बाबा तुम्हें एक सेकेण्ड में स्वर्ग की बादशाही देते हैं। बच्चियां जब ध्यान में जाती थी तो वहाँ प्रिन्स प्रिन्सेज बन जाती थी, वहाँ के सब समाचार आकर सुनाती थीं। तुम बाप को अब जानते हो। सब कहते हैं हेविनली गॉड फादर, जरूर नई दुनिया स्वर्ग ही रचेंगे। भारत ही गोल्डन एज था। उस समय और कोई धर्म नहीं था। क्रिश्चियन भी कहते हैं– क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था। जहाँ लक्ष्मी-नारायण राज्य करते थे इसलिए पूछते हैं इन्हों को यह वर्सा कहाँ से मिला? भारतवासियों का इनसे क्या सम्बन्ध है? स्वर्ग के मालिक पहले यह थे। अब तो नर्क है, यह कहाँ गये। जन्म-मरण को तो मानते हैं ना। आत्मा जन्म-मरण में आती है तब तो 84 जन्म लेंगे। नहीं तो कैसे लेंगे। दुनिया में अनेक मत हैं। कोई पुनर्जन्म को मानते हैं, कोई नहीं मानते हैं। पूछना चाहिए परमपिता परमात्मा शिव से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? यह ब्रह्मा विष्णु शंकर कौन हैं? कहाँ के रहने वाले हैं? तुम कहेंगे सूक्ष्मवतन के। और तो कोई बता न सके। तुम्हारे लिए तो कितना सहज है। माताओं को तो कोई नौकरी आदि का फुरना नहीं है। घर में रहने वाली हैं। कोई धन्धेधोरी का हंगामा नहीं है। बाप से वर्सा लेना है। पुरूषों को तो फुरना है। तुमको तो बाबा कहते हैं तुम अपना मर्तबा लो, विश्व के मालिक बनो। साहूकारों को तो कितनी चिंता रहती है। दुनिया में रिश्वतखोरी भी बहुत है। तुमको रिश्वत लेने की कोई दरकार ही नहीं। वह तो व्यापारियों का काम है। तुम इनसे छूटे हुए हो। फिर भी माया ऐसी है जो चोटी से पकड़ लेती है इसलिए फिर कुछ न कुछ हबच (लोभ-लालच) रहती है तो जिज्ञासुओं से मांगते रहते हैं। बाबा कहते हैं बच्चे किसी से भी मांगो मत। तुम दाता के बच्चे हो ना। तुमको देना है न कि मांगना है। तुमको जो कुछ चाहिए शिवबाबा से मिल सकता है। और कोई से लेंगे तो उनकी याद रहेगी। हर एक चीज शिवबाबा से लेंगे तो शिवबाबा तुमको घड़ी-घड़ी याद पड़ेगा। शिवबाबा कहते हैं– तुम्हारे लेन-देन का हिसाब मेरे साथ है। यह ब्रह्मा तो बीच में दलाल है। देने वाला मैं हूँ। मेरे से तुम कनेक्शन रखो थ्रू ब्रह्मा। कोई भी चीज औरों से लेंगे तो तुमको उनकी याद आयेगी और तुम व्यभिचारी बन जायेंगे। शिवबाबा के भण्डारे से तुम चीज ले लो और किसी से मांगो मत। नहीं तो देने वाले को नुकसान पड़ता है क्योंकि उसने शिवबाबा की भण्डारी में नहीं दिया। देना चाहिए शिवबाबा की भण्डारी में। मनुष्यों से लेन-देन का कनेक्शन तो बहुत समय रखा, अब तुम्हारा कनेक्शन डायरेक्ट शिवबाबा से है। लेकिन बाबा जानते हैं बच्चों में लोभ का भूत है। कई बच्चे कहते हैं हमने शिवबाबा को देखा नहीं है। अरे तुम अपने को देखते हो? तुमको अपनी आत्मा का साक्षात्कार हुआ है, जो कहते हो हमको शिवबाबा का साक्षात्कार हो? तुम जानते हो हमारी आत्मा भ्रकुटी के बीच में रहती है। शिवबाबा भी भ्रकुटी के बीच में ही होगा। तुम जानते हो आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। किस समय आत्मा का साक्षात्कार हो भी सकता है। आत्मा स्टॉर है, साक्षात्कार भी दिव्य दृष्टि से ही होगा। अच्छा कृष्ण की तुम भक्ति करो, साक्षात्कार हो सकता है फिर फायदा क्या? परमात्मा का भी साक्षात्कार हुआ फायदा क्या? फिर भी तुमको तो पढ़ना है ना। भक्ति मार्ग में साक्षात्कार होता है तो उनका कितना गायन करते हैं। परन्तु मिलता कुछ भी नहीं है। शिवबाबा है ज्ञान का सागर। ब्रह्मा को तो ज्ञान का सागर नहीं कहेंगे ना। ब्रह्मा को भी उनसे ज्ञान मिलता है। आजकल शिवालिंग सबके आगे रख देते हैं, समझते कुछ भी नहीं। पूजा करते हैं परन्तु कोई की भी बायोग्राफी बता न सकें। इन ज्ञान रत्नों को समझ न सकें। रत्न लेते-लेते कईयों को माया बन्दर बना देती है। कहते हैं हमको रत्न नहीं चाहिए। बाबा समझाते हैं फिर भी शिवालय में तो आयेंगे परन्तु प्रजा पद। पुरूषार्थ कर ऊंच पद पाना चाहिए। बाप कहते हैं मैं बैकुण्ठ की बादशाही देने आया हूँ, तुम पुरूषार्थ कर आप समान बनाओ। पुजारियों से भी तुम पूछ सकते हो यह कौन हैं? कहते हैं ना– आये आग लेने और बबोरची (मालिक) बन बैठे। कोई पुजारियों की भी बुद्धि में अच्छी रीति बैठ जाता है। हम भी पुजारी थे, अब पूज्य बने हैं। यह लक्ष्मी-नारायण पूज्य किस पुरूषार्थ से बने हैं, तुम समझा सकते हो। बाबा कहते हैं– जहाँ मेरे भगत हैं उनको समझाओ। भगत होंगे शिव के मन्दिर में, लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में, जगत अम्बा के मन्दिर में जाओ। पुजारियों को समझाओ– वह फिर औरों को समझायें। पुजारी बैठ किसको जगत अम्बा का आक्यूपेशन बतायें तो सब खुश हो जाएं। उनको कहना चाहिए तुम इन सब बातों को समझो। तुम किसको बैठ इन देवताओं की जीवन कहानी बतायेंगे तो तुमको बहुत पैसे मिलेंगे। यह भी समझा वही सकता है जो देही-अभिमानी हैं। देह-अभिमानी को तो सारा दिन यह चाहिए, यह चाहिए, हबच (लालच) रहती है। स्टूडेन्ट को तो नॉलेज की हबच होनी चाहिए तो मैं पास विद ऑनर हो जाऊं। यह है पढ़ाई का लक्ष्य। ड्रामा के राज को भी समझना है। ड्रामा कोई लम्बा नहीं है। परन्तु शास्त्रों में इनकी आयु लम्बी लिख दी है। तो यह सब बुद्धि में आना चाहिए। सर्विस तो बहुत है कोई करके दिखाये। बाप से कोई कृपा थोड़ेही मांगी जाती है। कहते हैं भगवान बच्चा दो तो कुल की वृद्धि होगी। अरे बाप तो अपने कुल की वृद्धि कर रहे हैं। इस समय फिर देवता कुल की वृद्धि हो रही है। अभी ईश्वरीय कुल की वृद्धि होती है। तुम भी ईश्वरीय सन्तान हो। तो बाप समझाते हैं यह सब इच्छायें छोड़ एक बाप को याद करो। बन्धन आदि हैं, यह सब कर्म का हिसाब है। बाबा को देखो कितना बन्धन है, कितने बच्चों के ख्यालात रहते हैं, कितनी खिटपिट होती है। कितनी निंदा करते हैं। डिससर्विस करना सहज है, सर्विस करना बहुत मुश्किल है। एक खराब होता है तो 10-20 को खराब कर देते हैं। बाकी पांच आठ निकलते बड़ी मेहनत से हैं। कई सेन्टर्स पर आते भी रहते हैं फिर काला मुँह भी करते रहते हैं। ऐसे बन्दर बुद्धि वायुमण्डल को खराब करते हैं। ऐसों को तुम बिठाते क्यों हो! काला मुँह किया तो उसका असर बहुत समय चलता है। रजिस्टर से मालूम चल जाता है। चार पांच वर्ष आकर फिर आना बन्द कर दिया। बाबा समझाते हैं ऐसा करने से तुम राजाई पद पा नहीं सकेंगे। इन्द्रप्रस्थ की कहानी भी है, पत्थर बन गये। तुम भी पत्थरबुद्धि बन पडेंगे। पारस बन नहीं सकेंगे। फिर भी पुरूषार्थ नहीं करते, यह भी ड्रामा में नूंध है। राजधानी में नम्बरवार चाहिए। नौकर, चण्डाल आदि सब चाहिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) लौकिक सब इच्छायें छोड़ ईश्वरीय कुल की वृद्धि करने में मददगार बनना है, कोई भी डिससर्विस का काम नहीं करना है।
2) लेन-देन का कनेक्शन एक बाप से रखना है, किसी देहधारी से नहीं।
वरदान:
ज्ञान के राजों को समझ सदा अचल रहने वाले निश्चयबुद्धि, विघ्न-विनाशक भव !
विघ्न-विनाशक स्थिति में स्थित रहने से कितना भी बड़ा विघ्न खेल अनुभव होगा। खेल समझने के कारण विघ्नों से कभी घबरायेंगे नहीं लेकिन खुशी-खुशी से विजयी बनेंगे और डबल लाइट रहेंगे। ड्रामा के ज्ञान की स्मृति से हर विघ्न नाथिंगन्यु लगता है। नई बात नहीं लगेगी, बहुत पुरानी बात है। अनेक बार विजयी बनें हैं– ऐसे निश्चयबुद्धि, ज्ञान के राज को समझने वाले बच्चों का ही यादगार अचलघर है।
स्लोगन:
दृढ़ता की शक्ति साथ हो तो सफलता गले का हार बन जायेगी।