Saturday, January 21, 2017

मुरली 22 जनवरी 2017

22-01-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:12-01-82 मधुबन 

विश्व का उद्धार– आधारमूर्त आत्माओं पर निर्भर
आज बापदादा विश्व की आधारमूर्त आत्माओं को देख रहे हैं। सर्वश्रेष्ठ आत्मा विश्व के आधारमूर्त हो। आप श्रेष्ठ आत्माओं की ही चढ़ती कला वा उड़ती कला होती है तो सारे विश्व का उद्धार करने के निमित्त बन जाते हो। सर्व आत्माओं की जन्म-जन्मान्तर की आशायें मुक्ति वा जीवनमुक्ति प्राप्त करने की, स्वत: ही पूरी हो जाती हैं। आप श्रेष्ठ आत्मायें मुक्ति अर्थात् अपने घर का गेट खोलने के निमित्त बनती हो तो सर्व आत्माओं को स्वीट होम का ठिकाना मिल जाता है। बहुत समय का दु:ख और अशान्ति समाप्त हो जाती है क्योंकि शान्तिधाम के निवासी बन जाते हैं। जीवनमुक्ति के वर्से से वंचित आत्माओं को वर्सा प्राप्त हो जाता है। इसके निमित्त अर्थात् आधारमूर्त श्रेष्ठ आत्मायें, बाप आप बच्चों को ही बनाते हैं। बापदादा सदा कहते– पहले बच्चे पीछे हम। आगे बच्चे पीछे बाप। ऐसे ही सदा चलाते आये हैं। ऐसे विश्व के आधारमूर्त अपने को समझकर चलते हो? बीज के साथ-साथ वृक्ष की जड़ में आप आधारमूर्त श्रेष्ठ आत्माये हो। तो बापदादा ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं से मिलन मनाने के लिए आते हैं। ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें हो जो निराकार और आकार को भी आप समान साकार रूप में लाते हो। तो कितने श्रेष्ठ हो गये! ऐसे अपने को समझते हुए हर कर्म करते हो? इस समय स्मृति स्वरूप से सदा समर्थ स्वरूप हो ही जायेंगे। यह एक अटेन्शन स्वत: ही हद के टेन्शन को समाप्त कर देता है। इस अटेन्शन के आगे किसी भी प्रकार का टेन्शन, अटेन्शन में परिवार्तित हो जायेगा और इसी स्व-परिवर्तन से विश्व परिवर्तन सहज हो जायेगा। यह अटेन्शन ऐसा जादू का कार्य करेगा जो अनेक आत्माओं के अनेक प्रकार के टेन्शन को समाप्त कर बाप तरफ अटेन्शन खिंचवायेगा। जैसे आजकल सांइस के अनेक साधन ऐसे हैं– स्विच आन करने से चारों ओर का किचड़ा, गंदगी अपने तरफ खींच लेते हैं। चारों ओर जाना नहीं पड़ता लेकिन पावर द्वारा स्वत: ही खिंच जाता है। ऐसे साइलेंस की शक्ति द्वारा, इस अटेन्शन के समर्थ स्वरूप द्वारा, अनेक आत्माओं के टेन्शन समाप्त कर देंगे अर्थात् वे आत्मायें अनुभव करेंगी कि हमारा टेन्शन जो अनेक प्रयत्न से बहुत समय से परेशान कर रहा था वह कैसे समाप्त हो गया। किसने समाप्त किया! इसी अनुभूति द्वारा अटेन्शन जायेगा– शिव शक्ति कम्बाइन्ड रूप की तरफ। तो टेन्शन अटेन्शन में बदल जायेगा ना! अभी तो बार-बार अटेन्शन दिलाते हो– “याद करो– याद करो” लेकिन जब आधारमूर्त शक्तिशाली स्वरूप में स्थित हो जायेंगे तो दूर बैठे भी अनेकों के टेन्शन को खींचने वाले, सहज अटेन्शन खिंचवाने वाले सत्य तीर्थ बन जायेंगे। अभी तो आप ढूंढने जाते हो। ढूंढने के लिए कितने साधन बनाते हो और फिर वे लोग आपको ढ़ूढंने आयेंगे, वा सदा आप ही ढूंढते रहेंगे? साइंस भी श्रेष्ठ आत्माओं के श्रेष्ठ कार्य में सहयोगी है। थोड़ी-सी हलचल होने दो और स्वयं को अचल बना दो फिर देखो आप रूहानी चुम्बक बन अनेक आत्माओं को कैसे सहज खींच लेंगे क्योंकि दिन प्रतिदिन आत्मायें ऐसी निर्बल होती जायेंगी जो अपने पुरूषार्थ के पाँव से चलने योग्य भी नहीं होंगी। ऐसी निर्बल आत्माओं को आप शक्ति स्वरूप आत्माओं की शक्ति अपने शक्ति के पाँव दे करके चलायेगी अर्थात् बाप के तरफ खींच लेगी। ऐसे सदा उड़ती कला के अनुभवी बनो तो अनेक आत्माओं को दु:ख, अशान्ति की स्मृति से उड़ाकर ठिकाने पर पहुंचा दो। अपने पंखो से उड़ना पड़ेगा। पहले स्वयं ऐसे समर्थ स्वरूप होंगे तब सत्य तीर्थ बन इन अनेकों को पावन बनाए मुक्ति अर्थात् स्वीट होम की प्राप्ति करा सकेंगे। ऐसे आधारमूर्त हो। तो आज बापदादा ऐसे आधारमूर्त बच्चों को देख रहे हैं। अगर आधार ही हिलता रहेगा तो औरों का आधार कैसे बन सकेंगे इसलिए आप अचल बनो तो दुनिया में हलचल शुरू हो जाए और जरा-सी हलचल अनेकों को बाप तरफ सहज आकर्षित करेगी। एक तरफ कुम्भकरण जगेंगे, दूसरे तरफ कई आत्मायें जो सम्बन्ध वा सम्पर्क में भी आई हैं लेकिन अभी अलबेलेपन की नींद में सोई हुई हैं, तो ऐसे अलबेलेपन की नींद में सोई हुई आत्मायें भी जगेंगी। लेकिन जगाने वाले कौन? आप अचल मूर्त आत्मायें। समझा। सेवा का रूप ऐसे बदलने वाला है, इसके लिए सदा शिव शक्ति स्वरूप बनो। अच्छा। ऐसे सदा शान्ति और शक्ति स्वरूप, अपने समर्थ स्थिति द्वारा अनेकों को स्मृति दिलाने वाले, टेन्शन समाप्त कर अटेन्शन खिंचवाने वाले, ऐसे आधारमूर्त विश्व परिवर्तक बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। 18 जनवरी स्मृति दिवस की सर्व बच्चों को यादप्यार देते हुए अव्यक्त बापदादा बोले 18 जनवरी की यादप्यार तो है ही 18 अध्याय का समर्था स्वरूप। 18 जनवरी क्या याद दिलाती है? सम्पन्न फरिश्ता स्वरूप। फालो फादर का पाठ हर सेकण्ड, हर संकल्प में स्मृति दिलाता है। ऐसे ही अनुभवी हो ना? 18 जनवरी के दिवस सब कहाँ होते हैं? साकार वतन में वा आकारी फरिश्तों के वतन में? तो 18 जनवरी सदा फरिश्ता स्वरूप, सदा फरिश्तों के दुनिया की स्मृति दिलाती है अर्थात् समर्थ स्वरूप बनाती है। है ही याद दिवस तो याद स्वरूप बनने का यह दिन है। तो समझा 18 जनवरी क्या है? ऐसे सदा बनना। यही स्मृति बार-बार दिलाती है। तो 18 का यादप्यार हुआ-बाप समान बनना, सम्पन्न स्वरूप बनना। अच्छा– सभी को पहले से ही स्मृति की यादप्यार पहुंच ही जायेगी। अच्छा।

22-01-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:14-01-82 मधुबन

कर्मेन्द्रिय जीत ही विश्व राज्य अधिकारी आवाज में आने के लिए वा आवाज को सुनने के लिए कितने साधन अपनाते हो? बापदादा को भी आवाज में आने के लिए शरीर के साधन को अपनाना पड़ता है। लेकिन आवाज से परे जाने के लिए इस साधनों की दुनिया से पार जाना पड़े। साधन इस साकार दुनिया में हैं। बापदादा के सूक्ष्म वतन वा मूलवतन में कोई साधनों की आवश्यकता नहीं है। सेवा के अर्थ आवाज में आने के लिए कितने साधनों को अपनाते हो? लेकिन आवाज से परे स्थिति में स्थित होने के अभ्यासी सेकण्ड में इन सबसे पार हो जाते हैं। ऐसे अभ्यासी बने हो? अभी-अभी आवाज में आये, अभी-अभी आवाज से परे। ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर अपने में अनुभव करते हो? संकल्प शक्ति को भी, जब चाहो तब संकल्प में आओ, विस्तार में आओ, जब चाहो तब विस्तार को फुलस्टाप में समा दो। स्टार्ट करने की और स्टॉप करने की दोनों ही शक्तियां समान रूप में हैं? हे कर्मेन्द्रियों के राज्यधारी, अपनी राज्य सत्ता अनुभव करते हो? राज्य सत्ता श्रेष्ठ है वा कर्मेन्द्रियों अर्थात् प्रजा की सत्ता श्रेष्ठ है? प्रजापति बने हो? क्या अनुभव करते हो? स्टाप कहा और स्टाप हो गया। ऐसे नहीं कि आप कहो स्टाप और वह स्टार्ट हो जाए। सिर्फ हर कर्मेन्द्रिय की शक्ति को आंख से इशारा करो तो इशारे से ही जैसे चाहो वैसे चला सको। ऐसे कर्मेन्द्रिय जीत बनें तब फिर प्रकृतिजीत बन कर्मातीत स्थिति के आसनधारी सो विश्व राज्य अधिकारी बनो। तो अपने से पूछो– पहली पौढ़ी कर्मेन्द्रिय जीत बने हैं? हर कर्मेन्द्रिय “जी हजूर” “जी हाजर” करती हुई चलती है? आप राज्य अधिकारियों का सदा स्वागत अर्थात् सलाम करती रहती है? राजा के आगे सारी प्रजा सिर झुकाकर सलाम करती है? हे राज्य अधिकारी, आप सबकी राज्य कारोबार कैसी है? मंत्री, उपमंत्री कहाँ धोखा तो नहीं देते हैं? चेक करते हो अपनी राज्य कारोबार को? राज्य दरबार रोज लगाते हो या कभी-कभी? क्या करते हो? राज्य अधिकारी के यहाँ के संस्कार भविष्य में कार्य करेंगे। चेक करते हो कि वर्तमान समय मुझ आत्मा के राज्यवंश के संस्कार हैं? वा प्रजा के संस्कार हैं वा स्टेट के राज्य अधिकारी के संस्कार हैं अर्थात् हद के राज्य अधिकारी के संस्कार हैं वा बेहद विश्व महाराजन के संस्कार हैं वा उनसे भी लास्ट पद दास-दासी के संस्कार हैं? साकार में भी सुनाया था कि दास-दासी बनने की निशानी क्या है? जो किसी भी समस्या वा संस्कार के अधीन बन उदास रहता है, तो उदास वा उदासी ही निशानी है– दास दासी बनना। तो मैं कौन? यह स्वयं ही स्वयं को चेक करो। कहाँ किसी भी प्रकार की उदासी की लहर तो नहीं आती? उदास अर्थात् अभी भी दास हैं, तो ऐसे को राज्य अधिकारी कैसे कहेंगे? इसी तरह से साहूकार प्रजा भी होगी। तो यहाँ भी कई राजे नहीं बने हैं लेकिन साहूकार बने हैं क्योंकि ज्ञान रत्नों का खजाना बहुत है, सेवा कर पुण्य का खाता भी जमा बहुत है। लेकिन समय आने पर स्वयं को अधिकारी बनाकर सफलतामूर्त बन जाएं वह कन्ट्रोलिंग पावर और रूलिंग पावर नहीं है अर्थात् नॉलेजफुल हैं लेकिन पावरफुल नहीं हैं। शस्त्रधारी हैं लेकिन समय पर कार्य में नहीं ला सकते हैं। स्टॉक है लेकिन समय पर न स्वयं यूज कर सकते और न औरों को यूज करा सकते हैं। विधान आता है लेकिन विधि नहीं आती। ऐसे भी संस्कार वाली आत्मायें हैं अर्थात् साहूकार संस्कार वाली हैं। जो राज्य अधिकारी आत्माओं के सदा समीप के साथी जरूर होते हैं लेकिन स्व अधिकारी नहीं होते। समझा? अभी आप ही सोचो कि वर्तमान समय अब तक मैं कौन बना हूँ? अभी भी बदल सकते हो। अभी भी फाइनल सीट के सेटिंग की सीटी नहीं बजी है। फुल चांस है। लेकिन औरों को भी क्या कहते हो? अब नहीं तो कबा नहीं क्योंकि कुछ समय के पहले के संस्कार चाहिए। लास्ट समय के नहीं इसलिए डबल विदेशी ग्रुप गोल्डन चांस लेने वाले चांसलर ग्रुप बनो। तो सब कौन से ग्रुप के हो? अच्छा! आज अमेरिका और आस्ट्रेलिया का टर्न है तो दोनों ही कौन-सा ग्रुप हो? कौन-सा ग्रुप लाईहो? आस्ट्रेलिया वाले क्या समझते हैं? चांसलर्स ग्रुप है? आस्ट्रेलिया की शक्तियां क्या समझती हैं? शक्ति दल भी कम नहीं है। पाण्डव हैं तो शक्तियाँ, शक्तियाँ है। दोनों ही अपनी रफ्तार से चल रहे हैं। आस्ट्रेलिया में शक्तियाँ ज्यादा हैं या पाण्डव? (दोनों समान हैं) शक्तियाँ थोड़ी रेस्ट कर रही हैं फिर ज्यादा उड़ेगी ना इसलिए रेस्ट कर रही हैं। बाकी जाना तो नम्बरवन है। ऐसे कई करते हैं बीच में थोड़ी रेस्ट ले करके फिर फास्ट जाते हैं और मंजिल पर पहुंच जाते हैं। अच्छा। सदा कर्मेन्द्रिय जीत, प्रकृति जीत, सूक्ष्म संस्कार जीत अर्थात् मायाजीत, स्वराज्य अधिकारी, सो विश्व राज्य अधिकारी ऐसे राज्य वंशी, राजऋषि आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।

आस्ट्रेलिया पार्टी से:- बापदादा को आप लोगों से ज्यादा बच्चों की याद आती रहती है? बापदादा भी रोज बच्चों की माला सिमरण करते हैं। आप कभी मिस भी करो, बापदादा मिस नहीं करेंगे। हरेक मणके का अपना-अपना नम्बर है। हैं तो माला में। कितने बार बापदादा ने आप सबकी माला सिमरण की होगी? आस्ट्रेलिया वालों के ऊपर तो बापदादा को सदा ही नाज है क्यों? क्योंकि आस्ट्रेलिया निवासियों ने बाप को पहचान अपना बनाने में नम्बरवन रिकार्ड दिखाया है। संख्या में देखो, वृद्धि में देखो, क्वालिटी में देखो, सबमें आगे है। और अच्छी तरह से सम्भाल रहे हैं इसलिए आस्ट्रेलिया कम नहीं है, लण्डन में फिर भी भारतवासी आत्मायें ज्यादा हैं लेकिन आस्ट्रेलिया में सब पर्दे के अन्दर छिपे हुए बाप को पहचानने में नम्बरवन हैं इसलिए बापदादा को प्रिय हैं। समझा। अच्छा।
वरदान:
निर्माणता की विशेषता द्वारा सहज सफलता प्राप्त करने वाले सर्व के माननीय भव
सर्व द्वारा मान प्राप्त करने का सहज साधन है-निर्मान बनना। जो आत्मायें स्वयं को सदा निर्माणचित की विशेषता से चलाती रहती हैं वह सहज सफलता को पाती हैं। निर्माण बनना ही स्वमान है। निर्माण बनना झुकना नहीं है लेकिन सर्व को अपनी विशेषता और प्यार से झुकाना है। वर्तमान समय के प्रमाण सदा और सहज सफलता प्राप्त करने का यही मूल आधार है। हर कर्म, सम्बन्ध और सम्पर्क में निर्माण बनने वाले ही विजयी-रत्न बनते हैं।
स्लोगन:
नॉलेज की शक्ति धारण कर लो तो विघ्न वार करने के बजाए हार खा लेंगे।