Thursday, January 26, 2017

मुरली 26 जनवरी 2017

26-01-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– सर्वशक्तिमान् बाप की याद से आत्मा पर चढ़ी हुई विकारों की जंक को उतारने का पुरूषार्थ करो”
प्रश्न:
बाप से बुद्धियोग टूटने का मुख्य कारण वा जोड़ने का सहज पुरूषार्थ क्या है?
उत्तर:
बुद्धियोग टूटता है देह-अभिमान में आने से, बाप के फरमान को भूलने से, गन्दी दृष्टि रखने से इसलिए बाबा कहते बच्चे जितना हो सके आज्ञाकारी बनो। देही-अभिमानी बनने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करो। अविनाशी सर्जन की याद से आत्मा को शुद्ध बनाओ।
गीत:
आने वाले कल की तुम...  
ओम् शान्ति।
शिव भगवानुवाच। बच्चों ने गीत सुना। बच्चे समझते हैं हमारे सामने बाबा बैठा है, जिसको पतित-पावन कहा जाता है। परमपिता परमात्मा को जरूर पतित-पावन कहेंगे। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को पतित-पावन नहीं कहेंगे। वह तो ज्ञान का सागर है। बच्चे जानते हैं हम आत्माएं परमपिता परमात्मा से ज्ञान सुनती हैं। तुम अब आत्म-अभिमानी बने हो। दुनिया में सब देह-अभिमानी हैं। आत्म-अभिमानी श्रेष्ठाचारी बनते हैं। उनको परमात्मा ही बैठ आत्म-अभिमानी बनाते हैं। बाप समझाते हैं आत्मा ही पाप आत्मा, पुण्य आत्मा बनती है। पाप जीव वा पुण्य जीव नहीं कहा जाता है। आत्मा में ही संस्कार रहते हैं। शरीर तो घड़ी-घड़ी विनाश हो जाता है। तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा को अविनाशी सर्जन भी कहते हैं। आत्मा भी अविनाशी, बाप भी अविनाशी है। आत्मा तो कभी विनाश नहीं होती है। बाकी हां आत्मा के ऊपर शैतानी की कट (जंक) चढ़ती है। गन्दे ते गन्दी नम्बरवन कट चढ़ती है काम विकार की, फिर क्रोध की कट। आत्माओं को बाप बैठ समझाते हैं तो ये पक्का निश्चय होना चाहिए कि परमपिता परमात्मा इस साधारण ब्रह्मा तन में प्रवेश करते हैं। वह हुआ इस रथ का रथी। घोड़े गाड़ी का रथ नहीं है। परमपिता परमात्मा बच्चों को समझाते हैं कि हे आत्मा तुम्हारे ऊपर 5 विकारों की कट चढ़ी हुई है। 5 विकारों को रावण कहा जाता है। रावण की कट चढ़ने के कारण ही तुम सब विकारी और दु:खी बन गये हो। अब मैं तुम्हारी कट उतारता हूँ। इस कट को उतारने वाला सर्जन मैं एक ही हूँ। मनुष्य आत्मा का दूसरा कोई सर्जन हो नहीं सकता। मनुष्य कभी आत्मा की कट को उतार नहीं सकते। इस कट को उतारने के लिए सर्वशक्तिमान परमात्मा की आवश्यकता है। वह कहते हैं हे जीव की आत्मायें, हे मेरे बच्चे, मुझे याद करेंगे तो तुम्हारी आत्मा की कट उतरती रहेगी। याद नहीं करेंगे तो कट उतरेगी नहीं। धारणा नहीं होगी तो ऊंच पद भी नहीं पायेंगे। कट चढ़े हुए को पतित कहा जाता है। जब आत्मा पतित बनती है तो उनको शरीर भी पतित मिलता है। सतोप्रधान आत्मा है तो उनको शरीर भी सतोप्रधान मिलता है। कट चढ़ती है धीरे-धीरे जैसे आटे में नमक, फिर द्वापर में बहुत कट चढ़ती है। आत्मा की कलायें धीरे-धीरे कमती होती हैं। 16 से 14 कला होने में 1250 वर्ष लग जाते हैं। तुमको यह स्मृति रहनी चाहिए कि हम बी.के., राम के बच्चे हैं। वह सब हैं रावण के बच्चे क्योंकि विष से पैदा होते हैं। सतयुग में विष होता ही नहीं। इस समय भल कोई कितनी भी आशीर्वाद देने वाला हो परन्तु उनके ऊपर भी जरूर कोई आशीर्वाद देने वाला है। जैसे पोप के लिए कहते हैं कि वह ब्लैसिंग देते हैं परन्तु उनको भी उस परमपिता परमात्मा की ब्लैसिंग चाहिए, जो ऊंचे ते ऊंचा है। तुमको ब्लैसिंग तब मिलती है जब तुम श्रीमत पर चलते हो। जो आज्ञाकारी ही नहीं उनके ऊपर आशीर्वाद कैसे होगी, बाबा कहते हैं देही-अभिमानी बनो। देह का अभिमान है तो गोया फरमान नहीं मानते हैं और पद भष्ट हो जाता है। अब बाप आये हैं, तुम भारत को श्रेष्ठाचारी बनाने की सर्विस करते हो, तुमको तीन पैर पृथ्वी भी मुश्किल मिलती है। अब मैं तुम्हारे लिए सारे सृष्टि को ही नया बना देता हूँ। प्रदर्शनी में तुम बड़ों-बड़ों को भी समझा सकते हो कि हम इस ऊंच सर्विस पर हैं। भारत को श्रेष्ठाचारी बना रहे हैं, कैसे? वह आकर समझो। हम तुमको बतला सकते हैं। प्रदर्शनी दिखलाकर समझाना चाहिए कि श्रीमत है ही एक परमात्मा की, जो सदैव एकरस पवित्र है, वही अभोक्ता, असोचता, ज्ञान का सागर है। वही स्वर्ग की स्थापना करते हैं। उनकी श्रीमत पर हम भारत की सर्विस कर रहे हैं। गायन भी है ना– पाण्डवों को 3 पैर पृथ्वी के नहीं मिलते थे। समझाने की बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। सो तब होगा जब योग पूरा होगा। देह- अभिमान की कट भी तब ही उतर सकती है। बाबा राय देते हैं कि फलाने-फलाने को समझाओ कि हम सबने प्रतिज्ञा की हुई है। हमारे पास तो फोटो भी हैं। यह फोटो सब हेड आफिस और देहली तथा सेन्टर्स पर भी होने चाहिए। इसमें भी बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। फोटो की 3-4 कॉपिया होनी चाहिए। परन्तु माया किस समय किसी भी बच्चे पर जीत पा लेती है फिर आश्चर्यवत परमपिता परमात्मा का बनन्ती, विश्व का राज्य लेवन्ती, फिर भी भागन्ती हो जाते हैं। अब बेहद का बाप कहते हैं मैं सारी सृष्टि को बदलता हूँ फिर तुमको फर्स्टक्लास सृष्टि बनाकर दूंगा। जहाँ बैठ तुम राज्य करना और सबका विनाश हो जायेगा। बच्चों को देही-अभिमानी जरूर बनना है। पवित्र बनने का तो सबको हक है, जबकि बाप आया है कहते हैं मेरे साथ योग लगाओ, ज्ञान अमृत पियो तो तुम श्रेष्ठाचारी बन जायेंगे। सन्यासी भी विकारों से घृणा करते हैं, पवित्र रहना तो अच्छा है ना। देवताएं भी पवित्र थे। पतित से पावन बाप ही आकर बनाते हैं। वहाँ सब निर्विकारी रहते हैं। वह है ही वाइसलेस दुनिया। भारत वाइसलेस था तब सोने की चिडि़या थी। ऐसा किसने बनाया? जरूर बाप ने बनाया होगा। आत्मा ही अपवित्र, रोगी बनी है। अब आत्माओं का सर्जन तो परमात्मा है। मनुष्य तो हो न सके। बाप कहते हैं मैं खुद पतित-पावन हूँ। मुझे सब याद करते हैं। पवित्र रहना तो अच्छा है ना। साधू-सन्त आदि सब मुझे ही याद करते आये हैं। जन्म-जन्मान्तर याद करते हैं कि पतित-पावन आओ। तो भगवान एक है; ऐसे नहीं कि भगत ही भगवान हैं। भगवान को भी जानते नहीं। कल्प पहले भी मैंने समझाया था। भगवानुवाच– मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ। ब्रह्मा तन में आता हूँ, जो पूज्य था अब पुजारी बना है। पावन राजा थे अब पतित रंक बने हैं। तुम निश्चय करते हो कि हम प्रजापिता ब्रह्मा के बच् #2330;े बी.के. हैं। परमपिता परमात्मा ने ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचे। ब्राह्मणों को ही दान दिया जाता है। किसका दान देता हूँ? सारे विश्व का। जो शूद्र से ब्राह्मण बन मेरी सर्विस करते हैं, जिन्हों को सम्मुख बैठ समझाते हैं– तुम्हारी कभी गन्दी दृष्टि नहीं होनी चाहिए। प्रदर्शनी में बड़ी हिम्मत चाहिए, समझाने की। पतित-पावन एक बाप ही है। तुम उनको याद करते हो, यह ज्ञान सागर से निकली हुई ज्ञान गंगायें हैं इनको शिव शक्तियां कहा जाता है। शिवबाबा से योग लगाने से शक्ति मिलती है। 5 विकारों की जंक निकलती है। चुम्बक सुई को तब खींचता है जब पवित्र (साफ) हो। तुम आत्माओं पर माया की कट चढ़ी हुई है। अब मेरे साथ योग लगाने से ही कट उतरेगी। अब यह रावण राज्य है, सबकी तमोप्रधान बुद्धि है। तब परमात्मा ने कहा है मैं आकर अजामिल जैसे पापी, गणिकाओं, साधुओं आदि का भी उद्धार करता हूँ। सबको श्रेष्ठाचारी बनाने वाला एक ही बाप है। पतित-पावन बाप ही आकर इन माताओं द्वारा भारत को पावन बनाते हैं इसलिए मातायें पुकारती हैं कि पतित होने से बचाओ। पुरूष पवित्र रहने नहीं देते हैं। तुमको गवर्मेन्ट को कहना चाहिए कि इसमें हमको मदद करो परन्तु स्त्री भी पक्की मस्त चाहिए। ऐसे न हो फिर पति को, बच्चों को याद करती रहे फिर और ही अधोगति हो जाए। बाप सब बातें समझाते रहते हैं। कैसे युक्ति रचो। अभी तुम बच्चों के सुख के दिन आने वाले हैं। मैं तुमको गोल्डन एजेड दुनिया बनाकर देता हूँ जिसको स्वर्ग कहा जाता है। अब श्रीमत कहती है मुझ बाप से योग लगाओ तो तुम्हारी कट उतरे। नहीं तो इतना पद पा नहीं सकेंगे। न धारणा होगी। कोई भी विकर्म नहीं करना चाहिए। देह-अभिमान आने से बुद्धियोग टूट पड़ता है। यह ब्रह्मा भी उस बाप को याद करता है। परमपिता परमात्मा इस ब्रह्मा तन में बैठ इनको कहते हैं हे ब्रह्मा की आत्मा, हे राधे की आत्मा मुझे याद करो तो तुम्हारी कट उतरे। याद तब पड़े जब अपने को आत्मा समझें और श्रीमत पर पूरा चले। लोभ भी कम नहीं है। कोई अच्छी चीज देखी तो दिल होती है खाने की, इसको लोभ कहा जाता है। बाबा कहते हैं माया चूहे मिसल फूंक भी देती है, काटती भी है। शास्त्रों में भी ऐसी बहुत कल्पित कहानियां लिखी हैं। सन्यासी फिर कहते यह चित्र तुम्हारी कल्पना हैं। बाबा हर बात बच्चों को समझाते रहते हैं। ऐसे मत समझो कि हम कुछ भी करते हैं तो बाबा को पता नहीं पड़ता है। बाबा जानते हैं इस दुनिया में कितना गन्द है। अबलाओं पर अत्याचार तो होने ही हैं। अपने को युक्ति से बचाना है। नहीं तो पद भ्रष्ट हो जायेगा। समझा जाता है ड्रामा अनुसार यह सब कुछ होना ही है। हम तो समझाते रहते हैं, फिर भी नहीं समझते तो कोई दास दासी बनते हैं तो कोई प्रजा बनते हैं। ड्रामा की भावी बनी हुई है। कर क्या सकते हैं! गरीब, साहूकार प्रजा सब बनने जरूर हैं। बाबा आते भी भारत में हैं, यह है नापाक स्थान। बाबा आकर सारी दुनिया को पाक स्थान बनाते हैं। भारत को ही सारा मक्खन मिलता है। कहानी कितनी सहज है परन्तु ज्ञान योग में रहने की बड़ी हिम्मत चाहिए। श्रीमत पर नहीं चलते हैं तो पद भ्रष्ट हो जाते हैं। बाबा डायरेक्शन देते हैं तो ऐसे-ऐसे समझाओ। समझाने वाला बड़ा सयाना चाहिए। बाप पर कितना लव रहता है। कितना प्यार से बच्चे लिखते हैं कि हम शिवबाबा के रथ के लिए स्वेटर भेजते हैं। शिवबाबा हमारा बेहद का बाप है। हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। बुद्धि में वह बाबा याद आता है। शिवबाबा के रथ को हम टोली भेजते हैं। शिवबाबा के रथ को हम श्रृंगारते हैं। जैसे हुसैन के घोड़े को श्रृंगारते हैं। यह सच्चा-सच्चा घोड़ा है। पतित-पावन बाबा ही पावन बनाने वाला है। यह भी अपना श्रंगार कर रहे हैं। बाबा को भी याद करते हैं और अपने पद को भी याद करते हैं। यह दोनों पक्के हैं– ज्ञान-ज्ञानेश्वरी फिर राज-राजेश्वरी बनती है तो जरूर उनके बच्चे भी बनने चाहिए। बरोबर मालिक बनते हैं नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। राजयोग से राजराजेश्वरी बनते हैं फिर जितना जो सर्विस करे, बाबा युक्तियाँ तो सब बतला रहे हैं। अच्छा–

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप की आशीर्वाद लेने के लिए आज्ञाकारी बनना है। देही-अभिमानी बनने का फरमान पालन करना है।
2) माया चूही है, इससे अपनी सम्भाल करनी है। लोभ नहीं करना है। श्रीमत पर पूरा-पूरा चलते रहना है।
वरदान:
व्यक्त भाव की आकर्षण से परे अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने वाले सर्व बन्धनमुक्त भव
प्रवृत्ति में रहते बन्धनमुक्त बनने के लिए संकल्प से भी किसी सम्बन्ध में, अपनी देह में और पदार्थो में फंसना नहीं। संकल्प में भी कोई बंधन आकर्षित न करे क्योंकि संकल्प में आयेगा तो संकल्प के बाद फिर कर्म में भी आ जायेगा। इसलिए व्यक्त भाव में आते भी, व्यक्त भाव की आकर्षण में नहीं आना, तब ही न्यारी और प्यारी अव्यक्त स्थिति का अनुभव कर सकेंगे।
स्लोगन:
बाप के सहारे का अनुभव करना है तो हद के किनारों का सहारा छोड़ दो।