Monday, February 22, 2016

मुरली 22 फरवरी 2016

22-02-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

मीठे बच्चे - अभी भारत खास और आम सारी दुनिया पर ब्रहस्पति की दशा बैठनी है, बाबा तुम बच्चों द्वारा भारत को सुखधाम बना रहे हैं  
प्रश्न:
16 कला सम्पूर्ण बनने के लिए तुम बच्चे कौन सा पुरूषार्थ करते हो?
उत्तर:
योगबल जमा करने का। योगबल से तुम 16 कला सम्पूर्ण बन रहे हो। इसके लिए बाप कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण। काम विकार जो गिराने वाला है इसका दान दो तो तुम 16 कला सम्पूर्ण बन जायेंगे। 2- देह-अभिमान को छोड़ देही-अभिमानी बनो, शरीर का भान छोड़ दो।
गीतः
तुम मात पिता.......
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने अपने रूहानी बाप की महिमा सुनी। वह गाते रहते हैं यहाँ तुम प्रैक्टिकल में उस बाबा का वर्सा ले रहे हो। तुम जानते हो-बाबा हमारे द्वारा ही भारत को सुखधाम बना रहे हैं। जिसके द्वारा बना रहे हैं जरूर वही सुखधाम का मालिक बनेंगे। बच्चों को तो बहुत खुशी रहनी चाहिए। बाबा की महिमा अपरमअपार है। उनसे हम वर्सा पा रहे हैं। अभी तुम बच्चों पर बल्कि सारी दुनिया पर अब ब्रहस्पति की अविनाशी दशा है। अभी तुम ब्राह्मण ही जानते हो भारत खास और दुनिया आम सब पर अब ब्रहस्पति की दशा बैठनी है क्योंकि तुम अब 16 कला सम्पूर्ण बनते हो। इस समय तो कोई कला नहीं है। बच्चों को बहुत खुशी रहनी चाहिए। ऐसे नहीं यहाँ खुशी है, बाहर जाने से गुम हो जाए। जिसकी महिमा गाते हैं वह अब तुम्हारे पास हाज़िर है। बाप समझाते हैं - 5 हज़ार वर्ष पहले भी तुमको राजाई देकर गया था। अब तुम देखेंगे - आहिस्ते-आहिस्ते सब पुकारते रहेंगे। तुम्हारे भी स्लोगन निकलते रहेंगे। जैसे इन्दिरा गांधी कहती थी कि एक धर्म, एक भाषा, एक राजाई हो, उसमें भी आत्मा कहती है ना। आत्मा जानती है बरोबर भारत में एक राजधानी थी, जो अभी सामने खड़ी है। समझते हैं कभी भी सारा खात्मा हो जाए, यह कोई नई बात नहीं है। भारत को फिर 16 कला सम्पूर्ण जरूर बनना है। तुम जानते हो हम इस योगबल से 16 कला सम्पूर्ण बन रहे हैं। कहते हैं ना - दे दान तो छूटे ग्रहण। बाप भी कहते हैं विकारों का, अवगुणों का दान दो। यह रावण राज्य है। बाप आकर इनसे छुड़ाते हैं। इसमें भी काम विकार बड़ा भारी अवगुण है। तुम देह-अभिमानी बन पड़े हो। अब देही-अभिमानी बनना पड़े। शरीर का भान भी छोड़ना पड़े। इन बातों को तुम बच्चे ही समझते हो। दुनिया नहीं जानती। भारत जो 16 कला सम्पूर्ण था, सम्पूर्ण देवताओं का राज्य था, अभी ग्रहण लगा हुआ है। इन लक्ष्मी-नारायण की राजधानी थी ना। भारत स्वर्ग था। अब विकारों का ग्रहण लगा हुआ है इसलिए बाप कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण। यह काम विकार ही गिराने वाला है इसलिए बाप कहते यह दान दो तो तुम 16 कला बन जायेंगे। नहीं देंगे तो नहीं बनेंगे। आत्माओं को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है ना। यह भी तुम्हारी बुद्धि में है। तुम्हारी आत्मा में कितना पार्ट है। तुम विश्व का राज्य-भाग्य लेते हो। यह बेहद का ड्रामा है। अथाह एक्टर्स हैं। इसमें फर्स्टक्लास एक्टर्स हैं यह लक्ष्मी-नारायण। इन्हों का नम्बरवन पार्ट है। विष्णु सो ब्रह्मा-सरस्वती फिर ब्रह्मा-सरस्वती सो विष्णु बनते हैं। यह 84 जन्म कैसे लेते हैं। सारा चक्र बुद्धि में आ जाता है। शास्त्र पढ़ने से थोड़ेही कोई समझते हैं। वह तो कल्प की आयु ही लाखों वर्ष कह देते हैं। फिर तो स्वास्तिका भी बन न सके। व्यापारी लोग चौपड़ा लिखते हैं तो उस पर स्वास्तिका निकालते हैं। गणेश की पूजा करते हैं। यह है बेहद का चौपड़ा। स्वास्तिका में 4 भाग होते हैं। जैसे जगन्नाथपुरी में चावल का हण्डा रखते हैं, वह पक जाता है तो 4 भाग हो जाते हैं। वहाँ चावल का ही भोग लगाते हैं क्योंकि वहाँ चावल बहुत खाते हैं। श्रीनाथ द्वारे में चावल होते नहीं। वहाँ तो सब सच्चे घी का पक्का माल बनता है। जब भोजन बनाते हैं तो भी सफाई से मुंह बंद करके बनाते हैं। प्रसाद बहुत इज्जत से ले जाते हैं, भोग लगाकर फिर वह सब पण्डे लोगों को मिलता है। दुकान में जाकर रखते हैं। वहाँ बहुत भीड़ रहती है। बाबा का देखा हुआ है। अब तुम बच्चों को कौन पढ़ा रहे हैं? मोस्ट बिलवेड बाप आकर तुम्हारा सर्वेन्ट बना है। तुम्हारी सेवा कर रहे हैं, इतना नशा चढ़ता है? हम आत्माओं को बाप पढ़ाते हैं। आत्मा ही सब कुछ करती है ना। मनुष्य फिर कह देते आत्मा निर्लेप है। तुम जानते हो आत्मा में तो 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट भरा हुआ है, उनको फिर निर्लेप कहना कितना रात-दिन का ॰फर्क हो जाता है। यह जब कोई अच्छी रीति मास डेढ़ बैठ समझे तब यह प्वाइंट्स बुद्धि में बैठें। दिन-प्रतिदिन प्वाइंट्स तो बहुत निकलती रहती हैं। यह है जैसे कस्तूरी। बच्चों को जब पूरा निश्चय बैठता है तो फिर समझते हैं बरोबर परमपिता परमात्मा ही आकर दुर्गति से सद्गति करते हैं।

बाप कहते हैं तुम पर अभी ब्रहस्पति की दशा है। मैंने तुमको स्वर्ग का मालिक बनाया अब फिर रावण ने राहू की दशा बिठा दी है। अब फिर बाप आये हैं स्वर्ग का मालिक बनाने। तो अपने को घाटा नहीं लगाना चाहिए। व्यापारी लोग अपना खाता हमेशा ठीक रखते हैं। घाटा डालने वाले को अनाड़ी कहा जाता है। अब यह तो सबसे बड़ा व्यापार है। कोई बिरला व्यापारी यह व्यापार करे। यही अविनाशी व्यापार है और सब व्यापार तो मिट्टी में मिल जाने वाले हैं। अभी तुम्हारा सच्चा व्यापार हो रहा है। बाप है ज्ञान का सागर, सौदागर, रत्नागर। प्रदर्शनी में देखो कितने आते हैं। सेन्टर में कोई मुश्किल आयेंगे। भारत तो बहुत लम्बा-चौड़ा है ना। सब जगह तुमको जाना है। पानी की गंगा सारे भारत में है ना। यह भी तुमको समझाना पड़े। पतित-पावन कोई पानी की गंगा नहीं। तुम ज्ञान गंगाओं को जाना पड़ेगा। चारों तरफ मेले प्रदर्शनी होते रहेंगे। दिन-प्रतिदिन चित्र बनते रहेंगे। ऐसे शोभावान चित्र हों जो देखने से ही मज़ा आ जाए। यह तो ठीक समझाते हैं, अब लक्ष्मी- नारायण की राजधानी स्थापन हो रही है। सीढ़ी का चित्र भी फर्स्टक्लास है। अभी ब्राह्मण धर्म की स्थापना हो रही है। यह ब्राह्मण ही फिर देवता बनते हैं। तुम अभी पुरूषार्थ कर रहे हो तो दिल अन्दर अपने से पूछते रहो हमारे में कोई छोटा-मोटा कांटा तो नहीं है? काम का कांटा तो नहीं है? क्रोध का छोटा कांटा वह भी बड़ा खराब है। देवतायें क्रोधी नहीं होते हैं। दिखाते हैं-शंकर की आंख खुलने से विनाश हो जाता है। यह भी एक कलंक लगाया है। विनाश तो होना ही है। सूक्ष्मवतन में शंकर को कोई साँप आदि थोड़ेही हो सकते। सूक्ष्मवतन और मूलवतन में बाग बगीचे सर्प आदि कुछ भी नहीं होते। यह सब यहाँ होते हैं। स्वर्ग भी यहाँ होता है। इस समय मनुष्य कांटों मिसल हैं, इसलिए इनको कांटों का जंगल कहा जाता है। सतयुग है फूलों का बगीचा। तुम देखते हो बाबा कैसा बगीचा बनाते हैं। मोस्ट ब्युटीफुल बनाते हैं। सबको हसीन बनाते हैं। खुद तो एवर हसीन है। सब सजनियों को अथवा बच्चों को हसीन बनाते हैं। रावण ने बिल्कुल काला बना दिया है। अब तुम बच्चों को खुशी होनी चाहिए हमारे ऊपर ब्रहस्पति की दशा बैठी है। आधा समय सुख, आधा समय दु:ख हो तो उससे फायदा ही क्या? नहीं, 3/4 हिस्सा सुख, 1/4 हिस्सा दु:ख है। यह ड्रामा बना हुआ है। बहुत लोग पूछते हैं ड्रामा ऐसा क्यों बनाया है? अरे यह तो अनादि है ना। क्यों बना, यह प्रश्न उठ नहीं सकता। यह अनादि अविनाशी ड्रामा बना हुआ है। बनी-बनाई बन रही है। किसको भी मोक्ष नहीं मिल सकता। यह तो अनादि सृष्टि चली आती है, चलती ही रहेगी। प्रलय होती नहीं।

बाप नई दुनिया बनाते हैं परन्तु उसमें गुंजाइस कितनी है। जब मनुष्य पतित दु:खी होते हैं तब बुलाते हैं। बाप आकर सबकी काया कल्पतरू बनाते जो आधाकल्प तुम्हारी कभी अकाले मृत्यु नहीं होगी। तुम काल पर जीत पाते हो। तो बच्चों को बहुत पुरूषार्थ करना चाहिए। जितना ऊंच पद पायें उतना अच्छा है। पुरूषार्थ तो हर एक जास्ती कमाई के लिए करता ही है। लकड़ी वाले भी कहेंगे हम जास्ती कमाई करें। कोई ठगी से भी कमाते हैं। पैसे पर ही आफत है। वहाँ तो तुम्हारे पैसे कोई लूट न सके। देखो दुनिया में तो क्या-क्या हो रहा है। वहाँ ऐसी कोई दु:ख की बात नहीं होती है। अब तुम बाप से कितना वर्सा लेते हो। अपनी जांच करनी चाहिए-हम स्वर्ग में जाने लायक हैं? (नारद का मिसाल) मनुष्य अनेक तीर्थ आदि करते रहते हैं, मिलता कुछ भी नहीं। गीत भी है ना - चारों तरफ लगाये फेरे फिर भी हरदम दूर रहे। अब बाप तुमको कितनी अच्छी यात्रा सिखलाते हैं, इसमें कोई तकलीफ नहीं। सिर्फ बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। बहुत अच्छी युक्ति सुनाता हूँ। बच्चे सुनते हैं। यह मेरा लोन लिया हुआ शरीर है। इस बाप को कितनी खुशी होती है। हमने बाबा को शरीर लोन पर दिया है। बाबा हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। नाम भी है भागीरथ। अभी तुम बच्चे रामपुरी में चलने लिए पुरूषार्थ कर रहे हो। तो पूरा पुरूषार्थ में लग जाना चाहिए। कांटा क्यों बनना चाहिए।

तुम ब्राह्मण-ब्राह्मणियां हो। सबका आधार मुरली पर है। मुरली तुमको नहीं मिलेगी तो तुम श्रीमत कहाँ से लायेंगे। अब तो प्रदर्शनी के चित्र भी समझाने के लिए अच्छे बने हैं। यह मुख्य चित्र तो अपनी दुकान पर रखो, बहुतों का कल्याण होगा। बोलो, आओ तो हम तुमको समझायें। यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है। किसका कल्याण करने में थोड़ा टाइम गया तो हर्जा थोड़ेही है। उस सौदे के साथ यह सौदा करा सकते हो। यह बाबा का अविनाशी ज्ञान रत्नों का दुकान है। नम्बरवन है सीढ़ी का चित्र और गीता के भगवान शिव का चित्र। भारत में शिव भगवान आया था, जिसकी जयन्ती मनाते हैं। अब फिर वह बाप आया है। यज्ञ भी रचा हुआ है। तुम बच्चों को राजयोग का ज्ञान सुना रहे हैं। बाप ही आकर राजाओं का राजा बनाते हैं। बाप कहते हैं मैं तुमको सूर्यवंशी राजा-रानी बनाता हूँ, जिन्हों को फिर विकारी राजायें भी नमन करते हैं। तो स्वर्ग का महाराजा-महारानी बनने का पूरा पुरूषार्थ करना चाहिए। बाबा कोई मकान आदि बनाने की मना नहीं करते हैं। भल बनाओ। पैसे भी तो मिट्टी में मिल जायेंगे, इससे क्यों न मकान बनाए आराम से रहो। पैसे काम में लगाने चाहिए। मकान भी बनाओ, खाने के लिए भी रखो। दान-पुण्य भी करते हैं। जैसे कश्मीर का राजा अपनी प्रॉपर्टी जो प्राइवेट थी, वह सब आर्य समाजियों को दान में दिया। अपने धर्म, जाति के लिए करते हैं ना। यहाँ तो वह कोई बात नहीं। सब बच्चे हैं। जाति आदि की बात नहीं। वह है देह की जाति आदि। मैं तो तुम आत्माओं को विश्व की बादशाही देता हूँ, पवित्र बनाए। ड्रामा अनुसार भारतवासी ही राज्य-भाग्य लेंगे। अब तुम बच्चे जानते हो - हमारे ऊपर ब्रहस्पति की दशा बैठी हुई है। श्रीमत कहती है मामेकम् याद करो और कोई बात नहीं। भक्ति मार्ग में व्यापारी लोग कुछ न कुछ धर्माऊ जरूर निकालते हैं। उसका भी दूसरे जन्म में अल्पकाल के लिए मिलता है। अब तो मैं डायरेक्ट आया हूँ, तो तुम इस कार्य में लगाओ। मुझे तो कुछ नहीं चाहिए। शिवबाबा को अपने लिए कोई मकान आदि बनाना है क्या। यह सब तुम ब्राह्मणों का है। गरीब साहूकार सब इकट्ठे रहते हैं। कोई-कोई बिगड़ते हैं - भगवान के पास भी सम दृष्टि नहीं है। कोई को महल में, कोई को झोपड़ी में रखते हैं। शिवबाबा को भूल जाते हैं। शिवबाबा की याद में रहे तो कभी ऐसी बातें न करें। सबसे पूछना तो होता है ना। देखा जाता है यह घर में ऐसा आराम से रहता है तो वह प्रबन्ध देना पड़े इसलिए कहते हैं सबकी खातिरी करो। कोई भी ची॰ज न हो तो मिल सकती है। बाप का तो बच्चों पर लव रहता है। इतना लव और कोई का रह न सके। बच्चों को कितना समझाते हैं पुरूषार्थ करो। औरों के लिए भी युक्ति रचो। इसमें चाहिए 3 पैर पृथ्वी के, जिसमें बच्चियां समझाती रहें। कोई बड़े आदमी का हाल हो, हम सिर्फ चित्र रख देते हैं। एक-दो घण्टा सुबह-शाम को क्लास कर चले जायेंगे। खर्चा सब हमारा, नाम तुम्हारा होगा। बहुत आकर कौड़ी से हीरे जैसे बनेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) जो भी अन्दर में कांटे हैं उनकी जांच कर निकालना है। रामपुरी में चलने का पुरूषार्थ करना है।
2) अविनाशी ज्ञान रत्नों का सौदा कर किसी का भी कल्याण करने में समय देना है। हसीन बनना और बनाना है।
वरदान:
स्थूल वा सूक्ष्म में हर फरमान को पालन करने वाले सम्पूर्ण फरमानबरदार भव!   
स्थूल फरमान पालन करने की शक्ति उन्हीं बच्चों में आ सकती है जो सूक्ष्म फरमान पालन करते हैं। सूक्ष्म और मुख्य फरमान है निरन्तर याद में रहो वा मन-वचन-कर्म से पवित्र बनो। संकल्प में भी अपवित्रता व अशुद्धता न हो। यदि संकल्प में भी पुराने अशुद्ध संस्कार टच करते हैं तो सम्पूर्ण वैष्णव वा सम्पूर्ण पवित्र नहीं कहेंगे इसलिए कोई एक संकल्प भी फरमान के सिवाए न चले तब कहेंगे सम्पूर्ण फरमानबरदार।
स्लोगन:
बाप को जानकर दिल से बाबा कहना यह सबसे बड़ी विशेषता है।