Friday, February 19, 2016

मुरली 20 फरवरी 2016

20-02-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम महावीर हो, तुम्हें माया के तूफानों से डरना नहीं है, एक बाप के सिवाए और कोई भी परवाह न कर पवित्र जरूर बनना है”   
प्रश्न:
बच्चों में कौन सी हिम्मत बनी रहे तो बहुत ऊंच पद पा सकते हैं?
उत्तर:
श्रीमत पर चलकर पवित्र बनने की। भल कितने भी हंगामें हो, सितम सहन करने पड़े लेकिन बाप ने जो पवित्र बनने की श्रेष्ठ मत दी है उस पर निरन्तर चलते रहें तो बहुत ऊंच पद पा सकते हैं। किसी भी बात में डरना नहीं है, कुछ भी होता है - नथिंग न्यु।
गीतः
भोलेनाथ से निराला........  
ओम् शान्ति।
यह है भक्तिमार्ग वालों का गीत। ज्ञान मार्ग में गीत आदि की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि गाया हुआ है बाप से हमें बेहद का वर्सा मिलना है। जो भक्ति मार्ग की रसम-रिवाज़ है, वह इसमें नहीं आ सकती। बच्चे कविता आदि बनाते हैं वो औरों को सुनाने के लिए। उसका भी अर्थ जब तक तुम न समझाओ तब तक कोई समझ न सके। अब तुम बच्चों को बाप मिला है तो खुशी का पारा चढ़ना चाहिए। बाप ने 84 जन्मों के चक्र का नॉलेज भी सुनाया है। खुशी होनी चाहिए - हम अभी स्वदर्शन चक्रधारी बने हैं। बाप से विष्णुपुरी का वर्सा ले रहे हैं। निश्चयबुद्धि ही विजयन्ती। जिसको निश्चय होता है वह सतयुग में तो जायेंगे ही। तो बच्चों को सदैव खुशी रहनी चाहिए - फालो फादर। बच्चे जानते हैं निराकार शिवबाबा ने जबसे इसमें प्रवेश किया है तो बड़े हंगामें हुए। पवित्रता पर बड़े झगड़े चले। बच्चे बड़े होते, कहेंगे जल्दी शादी करो, शादी बिगर काम कैसे चलेगा। भल मनुष्य गीता पढ़ते हैं परन्तु उससे समझते कुछ नहीं। सबसे जास्ती बाबा को अभ्यास था। एक दिन भी गीता पढ़ना मिस नहीं करते थे। जब मालूम पड़ा गीता का भगवान शिव है, नशा चढ़ गया हम तो विश्व के मालिक बनते हैं। यह तो शिव भगवानुवाच है फिर पवित्रता का भी बड़ा हंगामा हुआ। इसमें बहादुरी चाहिए ना। तुम हो ही महावीर-महावीरनी। सिवाए एक के और कोई की परवाह नहीं। पुरूष है रचता, रचता खुद पावन बनता है तो रचना को भी पावन बनाता है। बस इस बात पर ही बहुतों का झगड़ा चला। बड़े-बड़े घरों से निकल आये। कोई की परवाह नहीं की। जिनकी तकदीर में नहीं है तो समझें भी कैसे। पवित्र रहना है तो रहो, नहीं तो जाकर अपना प्रबन्ध करो। इतनी हिम्मत चाहिए ना। बाबा के सामने कितने हंगामे हुए। बाबा को कभी रंज हुआ देखा? अमेरिका तक अखबारों में निकल गया। नथिंगन्यु। यह तो कल्प पहले मुआफ़िक होता है, इसमें डरने की क्या बात है। हमको तो अपने बाप से वर्सा लेना है। अपनी रचना को बचाना है। बाप जानते हैं सारी क्रियेशन इस समय पतित है। मुझे ही सबको पावन बनाना है। बाप को ही सब कहते हैं हे पतित-पावन, लिबरेटर आओ, तो उनको ही तरस पड़ता है। रहमदिल है ना। तो बाप समझाते हैं-बच्चे, कोई भी बात में डरो मत। डरने से इतना ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। माताओं पर ही अत्याचार होते हैं। यह भी निशानी है - द्रोपदी को नंगन करते थे। बाप 21 जन्मों के लिए नंगन होने से बचाते हैं। दुनिया इन बातों को नहीं जानती। पतित तमोप्रधान पुरानी सृष्टि भी बननी ही है। हर चीज़ नई से फिर पुरानी जरूर होनी है। पुराने घर को छोड़ना ही पड़ता है। नई दुनिया गोल्डन एज, पुरानी दुनिया आइरन एज...... सदैव तो रह न सके। तुम बच्चे जानते हो-यह सृष्टि चक्र है। देवी-देवताओं के राज्य की फिर से स्थापना हो रही है। बाप भी कहते हैं फिर से तुमको गीता ज्ञान सुनाता हूँ। यहाँ रावण राज्य में दु:ख है। रामराज्य किसको कहा जाता है, यह भी कोई समझते नहीं। बाप कहते हैं मैं स्वर्ग अथवा रामराज्य की स्थापना करने आया हूँ। तुम बच्चों ने अनेक बार राज्य लिया और फिर गँवाया है। यह सबकी बुद्धि में है। 21 जन्म सतयुग में हम रहते हैं, उसको कहा जाता है 21 पीढ़ी अर्थात् जब वृद्ध अवस्था होती है तब शरीर छोड़ते हैं। अकाले मृत्यु कभी होती नहीं। अब तुम जैसे त्रिकालदर्शी बन गये हो। तुम जानते हो-शिवबाबा कौन है? शिव के मन्दिर भी ढेर बनाये हैं। मूर्ति तो घर में भी रख सकते हो ना। परन्तु भक्ति मार्ग की भी ड्रामा में नूँध है। बुद्धि से काम लिया जाए। कृष्ण की अथवा शिव की मूर्ति घर में भी रख सकते हैं। चीज़ तो एक ही है। फिर इतना दूर-दूर क्यों जाते हैं? क्या उनके पास जाने से कृष्णपुरी का वर्सा मिलेगा। अभी तुम जानते हो जन्म-जन्मान्तर हम भक्ति करते आये हैं। रावण राज्य का भी भभका देखो कितना है। यह है पिछाड़ी का भभका। रामराज्य तो सतयुग में था। वहाँ यह विमान आदि सब थे फिर यह सब गुम हो गये। फिर इस समय यह सब निकले हैं। अभी यह सब सीख रहे हैं, जो सीखने वाले हैं वह संस्कार ले जायेंगे। वहाँ आकर फिर बनायेंगे। यह भविष्य में तुमको सुख देने वाली चीजें हैं। यह साइंस फिर तुमको काम आयेगी। अभी यह साइंस दु:ख के लिए है फिर वहाँ सुख के लिए होगी। अभी स्थापना हो रही है। बाप नई दुनिया के लिए राजधानी स्थापन करते हैं तो तुम बच्चों को महावीर बनना है। दुनिया में यह थोड़ेही कोई जानते कि भगवान आया हुआ है।

बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहो, इसमें डरने की बात नहीं। करके गाली देंगे। गाली तो इनको भी बहुत मिली है। कृष्ण ने गाली खाई - ऐसा दिखाते हैं। अब कृष्ण तो गाली खा न सके। गाली तो कलियुग में खाते हैं। तुम्हारा रूप जो अभी है फिर कल्प के बाद इस समय होगा। बीच में कभी हो न सके। जन्म बाई जन्म फीचर्स बदलते जाते हैं, यह ड्रामा बना हुआ है। 84 जन्मों में जो फीचर्स वाले जन्म लिए हैं वही लेंगे। अब तुम जानते हो यही फीचर्स बदल दूसरे जन्म में यह लक्ष्मी-नारायण के फीचर्स हो जायेंगे। तुम्हारी बुद्धि का अब ताला खुला हुआ है। यह है नई बात। बाबा भी नया, बातें भी नई। यह बातें किसकी समझ में जल्दी नहीं आती। जब तकदीर में हो तब कुछ समझें। बाकी महावीर उनको कहा जाता है जो कितने भी तूफान आयें, हिले नहीं। अब वह अवस्था हो न सके। होनी है जरूर। महावीर कोई तूफान से डरेंगे नहीं। वह अवस्था पिछाड़ी में होनी है इसलिए गाया हुआ है अतीन्द्रिय सुख गोप-गोपियों से पूछो। बाप आये हैं तुम बच्चों को स्वर्ग का लायक बनाने। कल्प पहले मिसल नर्क का विनाश तो होना ही है। सतयुग में तो एक ही धर्म होगा। चाहते भी हैं वननेस, एक धर्म होना चाहिए। यह भी किसको पता नहीं है कि राम राज्य, रावण राज्य अलग-अलग है। अब बाप में पूरा निश्चय है तो श्रीमत पर चलना पड़े। हर एक की नब्ज देखी जाती है। उस अनुसार फिर राय भी दी जाती है। बाबा ने भी बच्चे को कहा-अगर शादी करनी हो तो जाकर करो। बहुत मित्र-संबंधी आदि बैठे हैं, उनको शादी करा देंगे। फिर कोई न कोई निकल पड़ा। तो हर एक की नब्ज देखी जाती है। पूछते हैं बाबा यह हालत है, हम पवित्र रहना चाहते हैं, हमारे संबंधी हमको घर से निकालते हैं, अब क्या करना है? अरे यह भी पूछते हो, पवित्र रहना है, अगर नहीं रह सकते हो तो जाकर शादी करो। अच्छा समझो किसकी सगाई हुई है, राजी करना है, हर्जा नहीं। हथियाला जब बांधते हैं तो उस समय कहते हैं यह पति तुम्हारा गुरू है। अच्छा तुम उनसे लिखवा लो। तुम मानती हो मैं तुम्हारा गुरू ईश्वर हूँ, लिखो। अच्छा अब मैं हुक्म देता हूँ पवित्र रहना है। हिम्मत चाहिए ना। मंजिल बहुत भारी है। प्राप्ति बहुत जबरदस्त है। काम की आग तब लगती है जब प्राप्ति का पता नहीं है। बाप कहते हैं इतनी बड़ी प्राप्ति होती है तो अगर एक जन्म पवित्र रहे तो क्या बड़ी बात है। हम तुम्हारे पति ईश्वर हैं। हमारी आज्ञा पर पवित्र रहना पड़ेगा। बाबा युक्तियां बता देते हैं। भारत में यह कायदा है - स्त्री को कहते हैं तुम्हारा पति ईश्वर है। उनकी आज्ञा में रहना है। पति का पांव दबाना है क्योंकि समझते हैं ना, लक्ष्मी ने भी नारायण के पांव दबाये थे। यह आदत कहाँ से निकाली? भक्ति मार्ग के चित्रों से। सतयुग में तो ऐसी बात होती नहीं। नारायण कभी कोई थकता है क्या जो लक्ष्मी पांव दबायेगी। थकावट की बात हो न सके। यह तो दु:ख की बात हो जाती है। वहाँ दु:ख-दर्द कहाँ से आया। तब बाबा ने फोटो से लक्ष्मी का चित्र ही उड़ा दिया। नशा तो चढ़ता है ना। छोटेपन से ही वैराग्य रहता था इसलिए भक्ति बहुत करते थे। तो बाबा युक्ति बहुत बताते हैं। तुम जानते हो हम एक बाप के बच्चे हैं तो आपस में भाई-बहन हो गये। डाडे से वर्सा लेते हैं। बाप को बुलाते ही हैं पतित दुनिया में। हे पतित-पावन सभी सीताओं के राम। बाप को कहा जाता है ट्रुथ, सचखण्ड स्थापन करने वाला। वही सारी सृष्टि के आदि- मध्य-अन्त का सत्य ज्ञान तुमको देते हैं। तुम्हारी आत्मा अभी ज्ञान सागर बन रही है।

मीठे बच्चों को हिम्मत रखनी चाहिए, हमको बाबा की श्रीमत पर चलना है। बेहद का बाप बेहद की रचना को स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। तो पुरूषार्थ कर पूरा वर्सा लेना है। वारी जाना है। तुम उनको अपना वारिस बनायेंगे तो वो तुमको 21 जन्मों के लिए वर्सा देंगे। बाप बच्चे के ऊपर वारी जाते हैं। बच्चे कहते हैं बाबा यह तन-मन-धन सब आपका है। आप बाप भी हो तो बच्चा भी हो। गाते भी हैं त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव........ एक की महिमा कितनी बड़ी है। उनको कहा ही जाता है सर्व का दु:ख हर्ता, सुख कर्ता। सतयुग में 5 तत्व भी सुख देने वाले होते हैं। कलियुग में 5 तत्व भी तमोप्रधान होने के कारण दु:ख देते हैं। वहाँ तो है ही सुख। यह ड्रामा बना हुआ है। तुम जानते हो यह वही 5 हज़ार वर्ष पहले वाली लड़ाई है। अभी स्वर्ग की स्थापना हो रही है। तो बच्चों को सदैव खुशी में रहना चाहिए। भगवान ने तुमको एडाप्ट किया है फिर तुम बच्चों को बाप श्रृंगारते भी हैं, पढ़ाते भी हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा बाप समान बनने की हिम्मत रखनी है। बाप पर पूरा वारी जाना है।
2) किसी भी बात में डरना नहीं है। पवित्र जरूर बनना है।
वरदान:
अपने परिवर्तन द्वारा निरन्तर विजय की अनुभूति करने वाले सच्चे सेवाधारी भव!   
जैसे निरन्तर योगी बने हो ऐसे निरन्तर विजयी बनो तो सच्चे सेवाधारी बन जायेंगे क्योंकि विजयी आत्मा, जब हर संकल्प, हर कदम में विजय का अनुभव करती है तो उनका यह परिवर्तन देख अनेक आत्माओं की सेवा स्वत: होती है। उनके नैन रूहानियत का अनुभव कराते हैं, चलन बाप के चरित्रों का साक्षात्कार कराती है, मस्तक से मस्तकमणि का साक्षात्कार होता है। ऐसे अपनी अव्यक्त सूरत से सेवा करने वाली विशेष आत्मा को ही सच्चा सेवाधारी कहा जाता है।
स्लोगन:
विशेषतायें वा गुण दाता की देन हैं, दाता को देखो व्यक्ति को नहीं |